ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

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ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनिवार, 23 मार्च 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -40 -कन्या राशि का स्वभाव और प्रभाव पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


कन्या राशि --यह राशि पिंगल वर्ण ,स्त्री जाति ,द्विस्वभाव ,दक्षिण दिशा की स्वामिनी ,रात्रिबली ,वायु और शीत प्रकृति ,पृथ्वीतत्व और अल्प संतान वाली है | इसका प्राकृतिक स्वभाव मिथुन राशि जैसा ही है --पर इसकी विशेषता इतनी है कि व्यक्ति अपनी उन्नति और मान पर पूर्ण ध्यान की भागीरथ चेष्टा और प्रयत्न करता है | इस राशि से पेट का विचार किया जाता है | इसका चिन्ह कुमारी कन्या है | यह राशि चिरस्थायी स्नेह एवं विवेक की प्रतीक है | यह विषुवत रेखा की ओर 12 डिग्री तक स्थिर  है | 

-----यह क्रीड़ास्थल तथा शिल्प रचना के स्थानों पर विवेचन करने वाली है | यह कोमल ,सौम्य ,चंचल एवं शान्त दोनों प्रकार के लक्षणों से युक्त है | अवस्था इसकी बाल्य है | सत्व गुण है ,पृथ्वी तत्व है | वैसे यह राशि जनसेवा -स्वास्थ -सम्बन्धी कार्यक्रमों की अधिष्ठात्री शक्ति है | उत्तराफाल्गुनी के तीन चरण ,हस्त और चित्रा के दो चरण इसमें निहित हैं | उत्तराफाल्गुनी में जन्म लेने वाला व्यक्ति सहनशील ,वीर ,कोमल वचन बोलने वाला ,धनुर्वेद के अर्थ को जानने वाला ,महान योद्धा और जनप्रिय होता है ,सदैव संतुष्ट रहता है ,धनाढ्य से सम्पन्न होता है | मिथ्या बोलने वाला ,ढीठ ,शराबी ,बंधुहीन ,चोर लम्पट होता है ,किन्तु फिर भी देवताओं और ब्राह्मणों का भक्त होता है | --अगले भाग में तुला राशि पर परिचर्चा करेंगें -------भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com



शुक्रवार, 22 मार्च 2024

ज्योतिष कक्षा -पाठ -39 सिंह राशि का स्वभाव और प्रभाव पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


सिंह राशि में जन्म लेने वाला व्यक्ति साधारण क्षवज्ञ ,धैर्यवान ,चिंतातुर ,उदार ,अभिमानी ,मातृभक्त ,कृषक ,शत्रु -विजयी ,प्रख्यात ,शिक्षक और श्यामवर्ण वाला होता है | साथ ही साहसी ,शीघ्र क्रोधित हो जाने वाला | दन्त रोगी ,श्रृंगार से अलिप्त रहने वाला ,साधु -संत प्रिय और आत्म-विश्वासी होता है | 

---सिंह राशि का चिन्ह "शेर " शौर्य का प्रतीक है | यह स्वतंत्र प्रेमी और बिहारी होता है | दासता को  यह कभी पसंद नहीं करता | यह मूल संज्ञक राशि है | पूर्व दिशा में इसका स्थान है | यह राशि राजसत्ता की स्वामिनी भी होती हैं | इसका जातक क्रूर कर्मा ,शांत लक्षणों से युक्त ,स्थिर स्वभाव का है | पाण्डु गौरवर्ण और तमोगुणी तत्व यह अपने अंदर निहित रखता है | 

---इसका तत्व अग्नि है | जाति इसकी क्षत्रिय है | दिन में यह बलवान रहती है ,काननचारी है ,विषम है | उत्तर विषुवत रेखा की ओर 20 डिग्री से 12 डिग्री तक इस राशि का स्थान है | मघा ,पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी का एक चरण इसमें व्याप्त है | इस कारण ज्योतिष तत्वज्ञों का मत है कि इस राशि में जन्म लेने वाला व्यक्ति ----बहुभृत्यो धनीभोगी पितृ भक्तो महोदयमी ,चमुनाथो राजसेवी मघायां जायते नरः "---इस युक्ति में विपुल तथ्य है | वास्तव में सिंह राशि वाले अधिक सेवक रखने वाले ,धनाढ्य ,भोगी ,माता और पिता के भक्त ,महान उद्योगी ,सेनापति और राजा की सेवा करने वाले होते हैं | ---अगले भाग में कन्या  राशि पर चर्चा करेंगें | ----भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com



गुरुवार, 21 मार्च 2024

ज्योतिष कक्षा -पाठ -38 -कर्क राशि का स्वभाव और प्रभाव पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


कर्क राशि ---इस राशि वाले  व्यक्ति का मुख "चेहरा " गोल और मोहक ,शरीर मध्यम ऊंचा व पतला होता है | यह स्त्री कामी ,तरंगी ,नाटकी ,निश्चिन्त ,प्रेमपाश में पड़कर निरर्थक धन का व्यय करने वाला ,मादक पदार्थों का व्यापारी होता है | ------यह राशि सहानुभूति एवं सुकुमारता के साथ -साथ प्रजा ,सत्ता तथा मिलन सरिता की प्रतीक मानी जाती है | इसका स्थान उत्तर दिशा में है | यह विषुवत रेखा की ओर 24 डिग्री से 20 डिग्री तक संचरण करती है | यह सम है | इसकी अवस्था बाल्य है | इसका वर्ण रक्त +स्वेत है | रजोगुणी है | इसका जल तत्व है | रात्रि में यह बली रहती है | शूद्र जाति की है तथा तुच्छ भावनाओं की ओर उन्मुख रहती है | 

----इस राशि के गमनकारी नक्षत्र पुनर्वसु ,पुष्य और अश्लेषा हैं | जो एक ही चरण में व्याप्त है | पुष्य नक्षत्र का उतपन्न व्यक्ति धन और धर्म  से युक्त होता है | पुत्र सम्पन्न ,पंडित ,शांत स्वभाव ,सुभग और सुखी होता है | --किन्तु आश्लेषा का प्रतिफल इस  फल कास अपवाद है --तभी कहा है ---"सर्वभक्षी कृतान्तश्च कृतध्नों वाचकः खलः ,आष्लेशयाम नरो जातः कृतकर्मा ही जायते "----इस कथन में अल्प संदेह नहीं ---आश्लेषा नक्षत्र में  उत्पन्न जातक यमराज के तुल्य आचरण करने वाला होता है ,--क्योंकि इस राशि का चिन्ह केकड़ा है | इसी कारण यह राशि हर समय सजग और प्रबुल्ल रहती है | ----अगले भाग में सिंह राशि पर चर्चा करेंगें | ----


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बुधवार, 20 मार्च 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -37 -मिथुन राशि का स्वभाव और प्रभाव पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ


मिथुन राशि --यह राशि एकता ,बुद्धिमता ,साहस तथा उत्साह की प्रतीक मानी जाती है | इसका स्थान विषुवत रेखा से 24 डिग्री पर है | यह सम राशि है और यह पश्चिम दिखा में निवास करती है | इसकी अवस्था बाल्य है | सत्वगुण है ,वायु तत्व है ,विषम है और जाति इसकी वैश्य है | 

---इसका स्थान वक्षस्थल है | इससे स्तन ,कंधे ,भुजा ,हाथ और फेफड़े प्रभावित रहते हैं | यह स्पन्दन और श्वासों पर अपना शासन करती है | यह राशि पुरुष आकार की है | इसका रंग हरा हरित है | 

--मुख्यतः इस राशि का संचरण ऐसे व्यक्तियों में देखा गया है ,जो नृत्य ,गायन ,वाद्य ,शिल्प ,अनुसंधान तथा वाग्विधता में अपना सानी नहीं रखते ,मृगशिरा के दो चरण ,आर्द्रा और पुनर्वसु नक्षत्र के तीन चरण इस राशि में व्याप्त हैं  | इसी कारण इस राशि के व्यक्तियों का स्वभाव शांत होता है | ये सुखी ,अत्यन्त भोगी ,सुभग ,सब जनों के प्रेमी और पुत्र ,मित्र आदि से युक्त होते हैं | ------" शांत सुखी च सुभगो जनवल्ल्भः , पुत्र मित्रादि भिरयुक्तो जायते च पुनर्वसौ "----इसके अपवाद में ऐसा भी कथन है ---अहंकारी एरद्वेषी मृगे भवति मानवः ---और ----कृतघ्नः कोय युक्तश्च नरः पाप रतः शठः ,आर्द्रा नक्षत्र सम्भूतो धनधान्य विवर्जितः "---किन्तु  इसके प्रतिकूल भी कहा है --मिथुन राशि वाला व्यक्ति --शास्त्री ,पंडित ,वक्ता ,कवि ,ग्रंथकार ,प्रियभाषी ,प्रेमालु स्वभाव ,कला -सम्पन्न ,सत्यवादी ,रूपवान ,स्त्री अभिलाषी ,अधिवक्ता ,सुरागरसा ,{जासूस } -संवाददाता होता है |  ऐसा व्यक्ति अधिक पुत्रों वाला मेधावी और तर्कशील होता है | तथा अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है | ---अगले भाग में कर्कराशि पर विवेचन करेंगें | -भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com



रविवार, 17 मार्च 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -36 -वृष राशि का स्वभाव और प्रभाव पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिषशास्त्र में वृष राशि का स्थान मुख में है | मुख से अभिप्राय जिह्वा ,कपोल ,गला और गरदन  से भी है | शरीर के इन भागों में इसका प्रभाव पड़ता है | इसकी अवस्था तरुण है | रंग गौरवर्ण ,पृथ्वीतत्व वाली है | इसके मनुष्य का मन शांत ,सुकोमल  स्वभाव सरल एवं मधुर होता है | काव्य की अनुभूतियाँ और भावनाएं हृदय में दबी रहती है | कालबंत की कला कंठ से फूटती है | 

--वृष राशि वाला व्यक्ति गायक और कुशल वादक होता है | यह राशि रात्रि में बलवान होती है ,शरीर लंबा रखती है | इसकी जाति ब्राहण है | सम है ,धर्म की द्योतक है | इस राशि का व्यक्ति आज्ञापालक होता है और धार्मिक भाव का समर्थक होता है | सेवा सुश्रूषा करने में अभिरुचि रखता है तथा ललित कलाओं का पारखी होता है | इसकी स्थिति विषुवत रेखा के 20 o पर मानी गई है | 

---इसकी पूर्व दिशा है | यह कृतिका के तीन चरण ,रोहिणी और मृगशिरा के दो दो चरण अपने अंदर निहित रखती है --क्योंकि यह राशि रोहिणी नक्षत्र पर आधृत है ,इस कारण इसका अनुचरी धनवान ,उपकार को मानने वाला ,बुद्धिमान, राजा से मान्य ,प्रिय बोलने वाला ,सत्यवक्ता और सुन्दर रूप वाला होता है | ---अगले भाग में मिथुन राशि पर परिचर्चा करेंगें --भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


मंगलवार, 5 मार्च 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -35 -मेष राशि का स्वभाव और प्रभाव -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


मेष राशि  का स्वभाव और प्रभाव की बात करें --ठीक से  अनुभव करें --

यह राशि मानव शरीर के शीश पर निवास करती है | यह अदम्य साहस ,शौर्य और बल -विक्रम का प्रतीक बनकर बलिदान और ओज की सृष्टि करके पुरुष को निर्भीकता और दृढ़ता की ओर ले जाती है | इसका रक्तवर्ण है ,तरुण अवस्था है ,यह पूर्व दिशा में निवास करती है | इसके मधुर स्पर्शन से धातु व अन्न का सर्जन होता है | यह अग्नितत्व के लिए विख्यात है | यह रात्रि में बली रहती है | इसकी जाति क्षत्रिय है | गुण रजोगुण है | विषम होने के कारण यह स्वभाव से क्रूर ,चपल और अटूट है | 

---विषुवत रेखा सन्निकट उत्तर में 12 डिग्री पर स्थित होने के कारण इसके प्रभाव में आने वाला मानव तेजपुंज और बलिष्ठ होता है | वह आतंकित और भयावह वातावरण से भयभीत नहीं होता | मनोबल बटोर कर समाज का प्रतिनिधित्व करता है | 

---भरणी और कृतिका नक्षत्र के आधारभूत यह राशि मस्तिष्क में प्रभुता की भावना प्रादुर्भाव करती है और उच्च गति की ओर जाने का सतत प्रयत्न करती है | यह राशि नववर्ष की प्रेरक शक्ति को सृष्ट करके अपने कृतित्व और व्यक्तित्व को गतिवान बनाती है | इसका अनुगामी उच्चपद और शासन का आकांक्षी और क्रांतिकारी अग्रदूत होता है | 

---नराशय ,पराभव और अभावों से उठकर मध्यान्ह सूर्य के समान अंगराई लेता है और विश्व का अभिनंदनीय पुरुष बनकर अंगारों से खेलता है | संघर्षों से पल्ल्वित होता है | इसका अनुयायी अड़ियल और दुराग्रही होता है | --भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


सोमवार, 4 मार्च 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -34 -राशि मंडल क्या है -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


भचक्र में स्थित 12 राशियों के समस्त राशि -मंडल को एक बृहत् -विराट -काल पुरुष मानते हुए मेष को सिर ,वृष को मुख ,मिथुन को बाहु तथा गला या वक्षस्थल ,कर्क को हृदय ,सिंह को कांख या पेट ,कन्या को पेट का नीचे का भाग कटि -कमर -तुला को वास्ति तथा जनेन्द्रिय ,वृश्चिक को गुदा ,धनु को कूल्हे तथा जांघ ,मकर को घुटने , कुम्भ को पिंडिलिया और मीन को पैर माना है | यह शरीर के बाहरी अवयवों का विभाग है | 

----भीतरी अवयवों पर 12 राशियों का क्रमशः निम्नलिखित प्रकार से अधिपत्य है ---

---1 --मेष --मस्तिष्क --दिमाग 

--2 ---वृष ---कंठ की नली 

--3 ---मिथुन --फेफड़े --स्वास की नली 

--4 --कर्क --पाचन -शक्ति 

--5 --सिंह --हृदय --दिल 

--6 --कन्या --अंतरिया -पेट के भीतर का निचला भाग 

--7 --तुला --गुर्दे 

--8 -वृश्चिक ---मूत्रेंद्रिय ,जनेन्द्रिय 

--9 --धनु --स्नायु -मंडल तथा नसें जिनमें रक्त प्रवाहित होता रहता है | 

--10 --मकर --हड्डियां तथा अंगों के जोड़ 

--11 --कुम्भ ---रक्त तथा रक्त प्रवाह 

--12 -- मीन --- शरीर में सर्वत्र कफोत्पादन 

नोट --जन्म के समय जिस राशि में शुभ ग्रह होते हैं ,शरीर का वो भाग पुष्ट होता है ,जिस राशि में पाप ग्रह होते हैं ,शरीर का उससे सम्बंधित भाग कृष ,रोगयुक्त ,बृणाङ्कित व  पीड़ित होता है | --भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com

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रविवार, 3 मार्च 2024

ज्योतिष कक्षा -पाठ -33 -अक्षरानुसार राशि ज्ञान -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और उनमें से प्रत्येक चरण एकेक अक्षर होता है | किस अक्षर की कौन सी राशि बनती होती है ,इसे निम्न तालिका के अनुसार समझ लेनी चाहिए ----

----1 ---- मेष --चू चे चो ला ली लू ले लो आ 

---2 ------ वृष ---ई ऊ ए ओ वा वी वू वे वो 

---3 -------मिथुन --का की कू घ ड छ के को हा 

----4 ------कर्क --ही हू हे हो डा डी डू डे डो 

----5 ----सिंह --मा मी मू में मो टा टी टू टे 

-----6 ---कन्या --टो पा पी पू ष ण ठ पे पो 

-----7 --तुला ---रा री रु रे रो ता ती तू ते 

-----8 ---वृश्चिक ---तो ना नी नू ने नो या यी यू 

---9 -----धनु ----ये यो भा भी भू ध फा ढा में 

----10 --मकर ---भो ज जी खी खू खे खो गा गी 

---11 ---कुम्भ --गू गे गो सा सी सू से सो दा 

----12 --मीन ----दी दू थ झ य दे दो च ची 

---किस राशि के अंतर्गत किस -किस नक्षत्र के कितने -कितने चरण होते हैं --इसे नीचे लिखे अनुसार समझा जा सकता है -------

--1 ---मेष ---अश्विनी तथा भरणी के चारों चरण एवं कृतिका नक्षत्र का पहला चरण | 

--2 --वृष --कृतिका नक्षत्र के अंतिम तीन चरण ,रोहिणी नक्षत्र के चारों चरण तथा मृगशिरा नक्षत्र के पहले दो चरण |

--3 --मिथुन -मृगशिरा नक्षत्र के अंतिम दो चरण ,आर्द्रा नक्षत्र के चारों चरण तथा पुनर्वसु नक्षत्र के पहले तीन चरण 

--4 --कर्क --पुनर्वसु नक्षत्र का अंतिम एक चरण तथा पुष्य और अश्लेषा नक्षत्र के चारों चरण  | 

--5 --सिंह --मघा तथा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के चारों चरण एवं उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का पहला एक चरण  | 

--6 --कन्या -उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के अंतिम तीन  चरण ,हस्त नक्षत्र के चारों चरण तथा चित्रा नक्षत्र के अंतिम तीन  चरण  | 

--7 --तुला --चित्रा नक्षत्र के अंतिम दो चरण ,स्वाति नक्षत्र के चारों चरण तथा विशाखा नक्षत्र के पहले दो चरण  | 

--8 --वृश्चिक --विशाखा नक्षत्र का अंतिम चरण ,अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्र के चारों चरण  | 

--9 --धनु --मूल तथा पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के चारो चरण एवं उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का पहला चरण | 

--10 --मकर --उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के अंतिम एक चरण ,श्रवण नक्षत्र के चारों चरण तथा धनिष्ठा नक्षत्र पहले दो चरण 

--11 --कुम्भ --धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण ,शतभिषा नक्षत्र के चारों चरण तथा पूर्वाभाद्रपद के पहले तीन चरण 

--12 --मीन --पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का अंतिम एक चरण ,तथा उत्तराभाद्रपद एवं रेवती नक्षत्र के चारों चरण  | 

---नोट --अभिजीत नक्षत्र की गणना मकर राशि के अंतर्गत की जाती है ,अतः अभिजीत नक्षत्र के चारों चरणों के चार अक्षर जू जे जो खा की राशि भी मकर ही समझनी चाहिए | --अगले भाग में राशि मंडल पर विचार रखेंगें -----अगले भाग में अक्षरानुसार राशि ज्ञान पर परिचर्चा करेंगें ----भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


शनिवार, 2 मार्च 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -32 -ज्योतिष में राशियां क्या हैं -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


पृथ्वी के "सूर्य के चारो ओर परिभ्रमण " मार्ग को 12 भागों में बांटा गया है | इस मार्ग के प्रत्येक स्थल की पहचान केवल तारों के विविध प्रकार के झुंडों से होती है | इस झुंड या ढेर को संस्कृत में राशि कहते हैं | आकाश स्थित भचक्र के 360 अंश अथवा 108 भाग निश्चित किये गये हैं -तथा -समस्त भचक्र को 12 राशियों में विभक्त किया गया है ,अतः 30 अंश अथवा 9 भाग की एकेक राशि होती है | --12 राशियों के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं -----1 --मेष ,---2 --वृष ,--3 --मिथुन ,--4 --कर्क ,---5 सिंह ,--6 कन्या ,--7 --तुला ,---8 --वृश्चिक ,--9 --धनु ,--10 --मकर ,---11 --कुम्भ ,---12 मीन ,

----ज्योतिष सीखने वाले पाठकों को राशि चक्र के उपरान्त 12 भाग ,जिनको राशि अथवा चिन्ह कहते हैं ,हृदयंगम करने आवश्यक है | प्रत्येक राशि की क्रम -व्यवस्था तथा संख्या उतनी ही महत्वपूर्ण है ,--जितना महत्वपूर्ण इसका साइन चिन्ह है | पाठक को यह बताने में देर नहीं लगनी चाहिए कि पांचवी राशि का नाम सिंह है ,इसका चिन्ह प्रतीक शेर है | इसी प्रकार बारहवीं राशि का नाम मीन है और इसका चिन्ह मछलियों की जोड़ी है | पाठक को जब यह पूर्णतः कंठस्थ हो जाय ,तभी उसे आगे विषय -प्रवेश करना चाहिए | 12 राशियों के अन्तर्गत अश्विनी आदि नक्षत्रों के क्रमशः नौ -नौ  चरण होते हैं | --

---राशि -----------------  राशि का अंग्रेजी नाम --------  चिन्ह 

--1 ---मेष -   --------------------- एरीज - ------            मेढ़ा 

--2 ----वृष -- -------------------   तौरूस ---- ------------सांढ़ 

--3 --मिथुन -----------------------जैमिनी ------------- युवा -दम्पत्ति 

--4 --कर्क --------------------------- कैंसर ---------------- केकड़ा 

--5 ---सिंह -----------------------लिओ --------------------------शेर 

--6 - --कन्या --------------------विरगो -------------------------कुमारी 

--7 --तुला -----------------------लिब्रा ----------------------------तराजू 

--8 --वृश्चिक --------------------स्कार्पियो ----------------------------बिच्छू 

-9 --धनु --------------------------सैगीटेरियस ---------------------------धनुर्धारी 


--10 --मकर -------------------कैपरीकोर्न -----------------------------मगरमच्छ 

--11 --कुम्भ ------------------अक्वेरियस ---------------------------घड़ा --{कलश } 

--12 मीन ------------------------पीसेस ----------------------------------दो मछली 

---अगले भाग में अक्षरानुसार राशि ज्ञान पर परिचर्चा करेंगें ----भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com



शुक्रवार, 1 मार्च 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -31 -वार किसे कहते हैं -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


आकाश -मण्डल में शनि, गुरु ,मंगल ,रवि ,शुक्र ,बुध हुए चन्द्रमा --इन सातों ग्रहों की स्थिति क्रमशः एक -दूसरे से नीचे मानी  गई है ,--अर्थात शनि की कक्षा सबसे ऊपर है | शनि से नीचे गुरु ,गुरु से नीचे मंगल ,मंगल से नीचे सूर्य ,सूर्य से नीचे शुक्र ,शुक्र से नीचे बुध ,बुध से नीचे चन्द्रमा की कक्षा है | 

---एक दिन रात में 24 होराएं होती हैं ,अर्थात प्रत्येक होरा 1 घण्टे के बराबर होती है |  घंटे का दूसरा नाम होरा है ,यह भी कहा जा सकता है | प्रत्येक होरा का स्वामी नीचे की कक्षा के क्रम से एकेक ग्रह होता है | 

---सृष्टि के प्रारम्भ में सबसे पहले सूर्य दिखलाई पड़ता है ,अतः पहली होरा का स्वामी सूर्य को माना गया है ,--इसलिए सृष्टि का पहला दिन सूर्य के दिन रविवार ,आदित्यवार अथवा सूर्यवार के नाम से पुकारा जाता है | उसके पश्चात प्रत्येक -घंटे -पर एकेक ग्रह का अधिकार रहता है ,अर्थात उस दिन की दूसरी होरा का स्वामी सूर्य के समीप वाला ग्रह शुक्र ,इसी प्रकार तीसरी होरा का स्वामी बुध ,चौथी होरा का स्वामी चन्द्रमा ,पांचवी होरा का स्वामी शनि ,छठी होरा का स्वामी गुरु ,सातवीं होरा का स्वामी मंगल ,आठवीं होरा का स्वामी फिर से सूर्य ,नौवीं होरा का स्वामी फिर शुक्र ,दशवीं होरा का  स्वामी फिर बुध ,इसी प्रकार क्रम चलता रहता है | पहले दिन की होरा सूर्य से आरम्भ होती है तथा 24 वीं बुध पर सम्पत होती है | 

---दूसरे दिन की पहली होरा का स्वामी उपर्युक्त क्रम से चन्द्रमा होता है ,अतः दूसरे दिन को चंद्रवार अथवा सोमवार कहा जाता है | इसी क्रम से तीसरे दिन की पहली होरा का स्वामी मंगल होता है ,अतः उस दिन को मंगलवार कहा जाता है | चौथे दिन की पहली होरा का स्वामी बुध होता है ,अतः उस दिन को बुधवार कहा जाता है | पांचवे दिन की पहली होरा का स्वामी गुरु होता है ,अतः उस दिन को गुरुवार कहा जाता है | छठे दिन की पहली होरा का स्वामी शुक्र होता है ,अतः उस दिन को शुक्रवार कहा जाता है | सातवें दिन की पहली होरा का स्वामी शनि होता है ,अतः उस दिन को शनिवार कहते हैं | 

---इसी क्रम से आठवें दिन की पहली होरा सूर्य आ जाती है ,अतः आठवां दिन फिर रविवार के नाम से पुकारा जाता है | इसी क्रमशः -1 -सूर्य ,--2 -चंद्र ,--3 --मंगल ,--4 बुध ,--5 गुरु ,--6 ---शुक्र ,---7 -शनि | ये सातो दिन की पहली होरा के स्वामी होते हैं | यह क्रम निरंतर चलता रहता है ,इसलिए इन सातों ग्रहों की प्रथम होरा के आधार पर सात दिनों -सप्ताह --के नाम रखे गये हैं ---रविवार ,सोमवार ,मंगलवार ,बुधवार ,गुरुवार ,शुक्रवार ,शनिवार ---इन वारों का क्रम लगातार चलता रहता है | सात दिनों के इस समूह को सप्ताह का नाम दिया गया है | 

सौम्य -संज्ञक वार --गुरुवार ,सोमवार ,बुधवार तथा शुक्रवार हैं | 

क्रूर संज्ञक वार --मंगलवार ,रविवार और शनिवार हैं | 

नॉट ---किसी भी शुभ कार्य करने के लिए सौम्य -संज्ञक वार सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं | प्रत्येक वार का स्वामी उसी का अधिपति गृह है | ---अगले भाग में राशियां क्या होतीं हैं --इस पर परिचर्चा करेंगें | भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -30 पंचांग का पांचवां अंग -करण -पढ़ें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


पाठकगण को यह तो ज्ञात होगा ही कि तिथियां केवल 30 होती हैं | 15 शुक्लपक्ष की और 15 कृष्णपक्ष की | तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं | किस तिथि के किस आधे भाग को कौन -सा करण कहते हैं | यह निम्न तालिका से स्पष्ट हो जायेगा ---------------

----कृष्णपक्ष -----        शुक्लपक्ष 

-1 -प्रतिपदा =कौलव  --1 --किंस्तुघ्न =बव 

-2 -द्वितीया -तैतिल =गरज --2 -बालव =कौलव 

-3 -तृतीया -वणिज =विष्टि --3 तृतीया -तैतिल =गरज 

-4 चतुर्थी -बव =बालव --4 -चतुर्थी ---वणिज =विष्टि 

-5 पंचमी -कौलव =तैतिल ,-पंचमी --बव =बालव 

-6 -षष्ठी --गरज =वणिज ,--6 -षष्ठी ---कौलव =तैतिल 

-7 -सप्तमी ---विष्टि -बव ----7 सप्तमी --गरज =वणिज 

--8 --अष्टमी ---बालव =कौलव ,--8 -अष्टमी ---विष्टि =बव 

--9 नवमी ---तैतिल =गरज ----9 नवमी ---बालव =कौलव 

-10 -दशमी --वणिज ---विष्टि ,---10 दशमी ---तैतिल =गरज 

--11 एकादशी ---बव =बालव ---11 एकादशी --वणिज =विष्टि 

-12 -द्वादशी ---कौलव =तैतिल ,---12 -द्वादशी --बव =बालव 

-13 त्रयोदशी -गरज =वणिज ,---13 त्रयोदशी ---कौलव =तैतिल 

-14 -चतुर्दशी --विष्टि =शकुन ----14 चतुर्दशी =गरज =वणिज 


-30 -अमावस्या ---चतुष्पाद -----15 --पूर्णिमा ---विष्टि =बव 

----उपर्युक्त तालिका में पाठक देखेंगें कि बव ,बालव ,कौलव ,तैतिल ,वणिज ,गरज और विष्टि  इन 7 कारणों की तो बारंबार पुनरावृत्ति होती है और शेष चार --शकुन ,चतुष्पाद ,नाग और किन्तुघ्न एक मास में केवल एकबार होते हैं ,विष्टि करण को ही भद्रा कहते हैं |  पाठक इस बात को याद रखें ,क्योंकि आगे किन्हीं प्रकरणों में हम भद्रा पर विचार करेंगें | ---पंचांग में पहले - तिथि फिर दिन फिर नक्षत्र फिर योग और अन्तिम पांचवीं चीजें कारण -इनके आधार पर ही किसी भी शुभ या अशुभ कार्यों का निर्णय होता है ----अगले भाग में वार शब्द पर व्याख्या करेंगें ----- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com




बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -29 -योग किसे कहते हैं -पढ़ें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


सूर्य और चन्द्रमा के राशि ,कला ,विक्ला को "योग "कहते हैं | योग 27 होते हैं ,जिनके नाम नीचे दिए जा रहे हैं | ---1 -विष्कुम्भ ,--2 प्रीति ,---3 --आयुष्मान ,--4 --सौभाग्य ,--5 --शोभन ,---6 --अतिगण्ड ,--7 --सुकर्मा ,--8 --धृति ,--9 --शूल ,--10 --गंड ,--11 --वृद्धि ,--12 --ध्रुव ,---13 --व्याघात ,--14 --हर्षण ,--15 --वैर ,--16 --सिद्धि ,--17 व्यतिपात ,---18 --वरीयान ,---19 --परिध ,---20 ---शिव ,---21 --सिद्ध ,---22 --साध्य ,--23 ---शुभ ,---24 --शुक्ल ,--25 --ब्रह्म ,---26 --इन्द्र ,---27 ---वैधृति | 

योगों के स्वामी क्रम से जानें ------

-1 ---विष्कुम्भ =यम ,----2 ---आयुष्मान =चन्द्र ,-----3 शोभन =गुरु ,-----4 -सुकर्मा =इंद्र ,----5 --शूल =सर्प ,---6 --वृद्धि =सूर्य ,----7 ---व्याघात =वायु ,---8 --वैर -वज्र =वरुण ,----9 -व्यतिपात =रूद्र ,---10 --परिध =विश्वकर्मा ,---11 --सिद्ध =कार्तिकेय ,---12 --शुभ =लक्ष्मी ,----13 --ब्रह्म =अश्विनी ,----14 --वैधृति =दिति ,---15 --प्रीति =विष्णु ,---16 --सौभाग्य =ब्रह्मा ,---17 -अतिगंड =चंद्र ,---18 -धृति =जल ,---19 --गंड =अग्नि ,--- 20 -- ध्रुव =भूमि ,---21 --हर्षण =भग ,--22 --सिद्धि =गणेश ,--23 --वरियन =कुबेर ,--24 --शिव =मित्र ,---25 --साध्य =सावित्री ,--26 --शुक्ल =पार्वती ,---27 --इन्द्र =पितर --| 

 पाठकगण --ज्योतिष जगत सबसे ज्यादा फलादेश में आधुनिक समय में --लोगों के मुखारविन्द पर दो शब्द निरन्तर होते हैं --तुम्हारा नक्षत्र ठीक नहीं है ,दूसरा --योग अच्छा नहीं चल रहा है | जबकि सच यह है --ज्योतिष में दो रूप होते हैं गणित + फलित ---गणित में नक्षत्र +योग गणना की चीजें हैं ,------किन्तु फलित में --व्यक्ति का समय का फलादेश नक्षत्र +योग हैं |  अतः दोनों -गणित + फलित की जानकारी ठीक से होनी चाहिए --तभी खगोलशास्त्री बन सकते हैं | --अगले भाग में पंचांग का एक अंग करण है जिस पर परिचर्चा करेंगें | --- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com




ज्योतिष कक्षा पाठ -28 पंचांग किसे कहते हैं -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी जगा मेरठ


पंचांग के बिना वैदिक ,स्मार्त तथा गृहस्थी के कोई कार्य सिद्ध नहीं होते |   काल रूपी ईस्वर के पंच अंग को पंचांग कहते हैं | वो पाँच अंग हैं --1 -तिथि , -2 -वार ,--3 -नक्षत्र ,--4 --करण ,--5 -योग ---यहाँ हम केवल नक्षत्र के बारे में बता रहे हैं | तिथियों के बारे में पहले बता चुके हैं शेष के विषय में आगे बताएंगें | 

----जैसा कि हमने अभी बताया था कि समस्त भचक्र को 27 भागों में बांटा गया है | इस कारण 1 राशि =2 "सवा दो नक्षत्र " उपरोक्त  तालिका के द्वारा पाठकगण प्रत्येक नक्षत्र के अंश और कला को ज्ञात कर सकते हैं | 

-----चन्द्रमा जिस राशि ,अंश ,कला और विकला में होता है ,उस भाग का स्वामी जो नक्षत्र माना गया है "वह नक्षत्र हैं " ऐसा व्यवहारिक भाषा में कहा जाता है | कोई पाठक प्रश्न करे कि आज अश्विनी नक्षत्र 28  घटी 25 पल है --इसका क्या अर्थ है ? ---इसका उत्तर यह है कि अश्विनी नक्षत्र तो सदैव था ,सदैव रहेगा --किन्तु अश्विनी नक्षत्र आज 28 घटी 25 पल है ,--इसका अर्थ है जिस स्थान के हिसाब से पंचांग बनाया गया है ,उस स्थान पर सूर्योदय के 28 घटी 25 पल तक चन्द्रमा प्रथम राशि के 13 अंश 20 कला वाले भाग में "जो अश्विनी के नाम से विख्यात है " रहेगा   | 

----ठीक 28 घटी 25 पल व्यतीत हो जाने पर चन्द्रमा प्रथम राशि के 13 अंश 20 कला वाले  भाग को पार का आगे वाले भाग "भरणी " में चला जायेगा |  इसलिए नक्षत्र है --इसका अर्थ हुआ नक्षत्र वाले भाग में चन्द्रमा इस समय तक रहेगा | अक्सर पूछा जाता है कि आपका जन्म नक्षत्र क्या है ? इसका अर्थ है --जब आपका जन्म हुआ था तब चन्द्रमा किस नक्षत्र वाले आकाशीय विभाग में था | इसी प्रकार इस बात को भी जान लिया जाता है कि जन्म के समय चन्द्रमा किस राशि में था | 

---प्रत्येक नक्षत्र का भाग 13 अंश 20 विकला है | इसको 4 से भाग देने पर प्रत्येक भाग 3 अंश 20 कला का हुआ ,इस प्रत्येक भाग को पाद "पैर " या चरण कहते हैं | नक्षत्र के जिस चरण में जन्म हो ,उसके अनुसार नाम का प्रथम अक्षर चुनने की प्रथा है | 

---अगले भाग में --पंचांग का एक अंग योग है --जिस पर परिचर्चा करेंगें ----- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

खगोलशास्त्री कैसे बनें -सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ



 खगोलशास्त्री कैसे बनें -सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ

प्रिय ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड के श्रोता और पाठकगण -----मेरी आत्मकथा और ज्योतिष की अचूक और सटिक किताब को लिखने का अन्तिम प्रयास करने की कोशिश कर रहा हूँ | --यह दोनों किताब शीघ्र पूर्ण हो आप सभी का स्नेह और आशीष चाहिए ----इसके बाद नेट की दुनिया से अवकाश लेना चाहता हूँ | 2010 से चलने का प्रयास किया था | अब मेरी उम्र वैराग की ओर ईशारा कर रही है | मुझे अपने जीवन में अनुभव यह हुआ है --व्यक्ति कैसा भी हो सही मार्गदर्शन से उच्च शिखर पर आसीन सकता है | ---- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com

ज्योतिष कक्षा पाठ -27 -नक्षत्रों के चरणाक्षर जानें -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 ज्योतिषशास्त्र ने सूक्ष्मता से समझने के लिए प्रत्येक नक्षत्र के चार -चार भाग किये हैं ,जिन्हें पथम चरण ,द्वितीय चरण ,तृतीय चरण ,चतुर्थ चरण कहा जाता है | प्रत्येक नक्षत्र के जो चार -चार चरण होते हैं ,उनमें प्रत्येक नक्षत्र के चरण का एकेक "अक्षर " निर्धारित कर दिया है | जिस नक्षत्र के जिस चरण में जिस व्यक्ति का जन्म होता है ,उसका नाम उसी जमकालीन नक्षत्र के चरणाक्षर पर रखा जाता है |  उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति का जन्म सतभिषा नक्षत्र के चतुर्थ चरनाक्षर सू से प्रारम्भ करके सुरेश ,शुशील ,सुमित ,सुखीलाल ,और स्त्रिओं में सुरेखा ,इत्यादि रखा जायेगा | किस नक्षत्र के कौन -कौन से चरणाक्षर होते हैं ,इसे निम्न तालिका के द्वारा सहज ही समझा जा सकता है | 

----नक्षत्र -----   प्रथम चरण --------- द्वितीय चरण ----  तृतीय चरण ------  चतुर्थ चरण 

--अश्विनी ------ ------------चू ,----------------चे ,---------------चो ,-----------------ला 

---भरणी ------------------ली-----------------,लू, ----------------ले, -----------------लो 

--कृतिका------------------अ -----------------,इ ,--------------उ ,-------------------ए 

--रोहिणी -----------------ओ ----------------,बा , -------------बी ,------------------बू 

--मृगशिरा ----------------बे ------------------,बो ,---------क ,-------------------की 

----आर्द्रा -----------------कू ------------------,घ ,---------ड ---------------------,छ 

--पुनर्वसु ------------------के ,-----------------को ---------,ह --------------------,ही 

--पुष्य ----------------------हू ,-------------हे ,------------------हो------------------,ड 

--आश्लेषा ----------------- डी----------- ,डु ,-------------डे ---------------------,डो 

--मघा ----------------------म ----------,मी--------------- ,मु ---------------------,में 

---पूर्वाफाल्गुनी -----------मो -----------,ट ----------------,टी ---------------------,टू 

--उत्तराफाल्गुनी ----------टे ,-----------टो -----------------,प-------------------- ,पी 

---हस्त -------------------पू ,------------ष ,------------------ण -------------------,ठ 

--चित्रा --------------------पे ,------------पो -------------------,र -----------------,री 

--स्वाति --------------------रु ,------------रे ,------------------रो------------------- ,त 

---विशाखा ----------------ती --------------,तू -------------,ते ,-----------------------तो 

---अनुराधा ----------------न ,------------नी ,---------------नू ------------------------,ने 

---ज्येष्ठा ---------------------नो ,------------या ,--------------यी ,---------------------यूं 

-----मूल ------------------ये ,--------------यो ,------------भ ------------------==-,भी 

---पूर्वाषाढ़ा --------------भू ,---------------ध ,------------फा ,------------------ढा 

---उत्तराषाढ़ा -------------भे ,---------------भो ----------,ज -------------------,जी 

--अभिजीत ---------------जू ---------------,जे ,---------जो ,-------------------ख 

--श्रवण -------------------खी -----------,खू ------------,खे -------------------,खो 

---धनिष्ठा -----------------गा ,----------गी ,-------------गू---------------------,गे 

---शतभिषा -------------गो ,----------स ,--------------सी -------------------,सू 

---पूर्वाभाद्रपद ---------से ,---------सो ,---------------दा ,--------------------दी 

---उत्तराभाद्रपद ------दू ,----------थ ,-----------------झ --------------------,यं 

-------रेवती ----------दे ----------,दो ,-----------------च ,---------------------ची 

---- अगले भाग में पंचाग किसे कहते हैं पर परिचर्चा करेंगें ----भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ 26 -बालक के पैर देखना -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


सभी को नहीं किन्तु थोड़े पाठकों को यह अवश्य ज्ञात होगा कि जब घर में किसी बालक का जन्म होता है ,तो उसकी पैदाइश के बारे में पण्डित को बताया जाता है और पत्रा देखकर पंडित बताया करते हैं कि बालक के पैर सोने ,चांदी अथवा लोहे या ताम्बे के हैं | यहाँ हम उन्हीं चार पायों के बारे में बता रहे हैं | पाये निम्न चार होते हैं ----{1 }---सोना ,---{2 }--चांदी ,---{3 }--ताम्बा ,---{4 }---लोहा ----

---1 ---सोने के पैर -रेवती ,अश्विनी ,भरणी नक्षत्रों में जन्म सोने {स्वर्ण } का पाया {पैर } कहा जाता है ,जो मध्यम फलदायक माना जाता है | 

----2 ---चांदी के पैर ---आर्द्रा ,पुनर्वसु ,पुष्य ,आश्लेषा ,मघा ,पूर्वाफाल्गुनी ,उत्तराफाल्गुनी ,हस्त ,चित्रा ,स्वाति ,विशाखा ,अनुराधा नक्षत्रों में यदि बालक का जन्म हो ,तो चांदी का पाया {पैर } होता है ,जो शुभ और श्रेष्ठ होता है | 

---3 ---ताम्बे के पैर ---पूर्वाभाद्रपद ,{इसे भाद्रपदा भी लिखते हैं } ,उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों में जन्म लेना ताम्बे का पाया माना जाता है ,जो श्रेष्ठ होता है | 

---4 --लोहे के पैर --उपर्युक्त नक्षत्रों के अतिरिक्त शेष सभी नक्षत्रों में लोहे का पाया माना जाता है ,जो नेष्ट  और धन हानिकारक माना जाता है | 

---विशेष ----कुछ विद्वान इस मत से विपरीत मत लिखते हैं | उनका अभिमत है कि इस रहस्य को समझने के लिए भाव -वेक्षण आवश्यक है | जिस प्रकार पलंग के चार पाये होते हैं ,उसी प्रकार द्वादश भावों को 4 भागों में विभाजित कर दिया है | 

-1 ---प्रथमभाव ,षष्टभाव ,एकदश भाव ---इसका नाम रखा गया है स्वर्णपाद {सोने का पाया }

--2 --द्वितीयभाव ,पंचमभाव ,नवमभाव --इसका नाम रखा गया है रजतपाद --{चांदी का पाया }


--3 --तृतीयभाव ,सप्तमभाव ,दसमभाव --इसका नाम रखा गया है  ताम्रपाद --{ताम्बे का पाया }

--4 -चतुर्थभाव ,अष्टमभाव ,द्वादशभाव --इसका नाम रखा गया है --लोहपाद --{लोहे का पाया }

--इस मतानुसार जिस भाव में चन्द्रमा बैठा हो --उसी भावानुसार पाया निर्धारित करना चाहिए | 

-ध्यान दें --चांदी +ताम्बे के पैर उत्तम माने जाते हैं एवं सोना +लोहा के पैर उत्तम नहीं माने जाते हैं --यह उपचार से सही होते हैं | --अगले भाग में नक्षत्रों के चरणाक्षर पर प्रकश डालेंगें ----भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com



रविवार, 25 फ़रवरी 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -25 -नक्षत्र जन्म फल विचार -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिष जगत में नक्षत्रों पर ही बहुत कुछ निर्भर है | बालक का जन्म किस नक्षत्र में हुआ है --इसका प्रभाव माता पिता ,परिजन या फिर खुद बालक के लिए कैसा रहेगा ---मूल विचार --

--1 ----ज्येष्ठा के अंत को तथा मूल आदि की दो घडी और कहीं -कहीं 6 -6 घटी तक अभुक्त मूल कही जाती है | इस अभुक्त मूल उत्पन्न बालक का 8 वर्ष तक पिता द्वारा देखना सर्वथा वर्जित है | रुद्रार्चन अथवा शिव -पूजन कराना हितकर होता है | 

--2 ---अश्विनी नक्षत्र का प्रथम चरण का जन्म मुख्यतः पिता को भय एवं कष्टकारक ,शेष तीनों चरणों में जन्म होना शुभ होता है | 

---3 ---आश्लेषा  नक्षत्र के प्रथम चरण का जन्म शुभ किन्तु द्वितीय चरण का जन्म धन हानिकारक ,तृतीय चरण सास को अथवा माता को अनिष्टकारक और चतुर्थ चरण का जन्म पिता को कष्टकारक होता है | 

---4 --मघा नक्षत्र के प्रथम चरण का जन्म माता को एवं द्वितीय चरण का जन्म पिता को नेष्ट माना जाता है | किन्तु तृतीय चरण और चतुर्थ चरण का जन्म शुभ होता है | 

--5 --ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण का जन्म बड़े भाई को अथवा लड़की का जन्म होने पर पति के ज्येष्ठ भ्राता को ,द्वितीय चरण छोटे भाई  को तृतीय चरण माता को तथा चतुर्थ चरण स्वयं को नष्ट होता है | 

--6 --मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म हो ,तो पिता अथवा श्वसुर के ,द्वितीय चरण का जन्म माता को नेष्ट होता है ,तथा तृतीय चरण का जन्म धन -हानि करने वाला कहा गया है | चतुर्थ चरण का जन्म शुभ माना जाता है | 

--7 --रेवती नक्षत्र के प्रथम ,द्वितीय एवं तृतीय चरण में जन्म हो तो शुभ किन्तु चतुर्थ चरण में जन्म हो ,तो अशुभ एवं कष्टकारक होता है | 

--ध्यान दें --भारत वर्ष में बहुत से लोग इन मूल नक्षत्रों के प्रभाव को जानते नहीं हैं या परिस्थिति नहीं होती --अतः इन नक्षत्रों से प्रभावित जातक हों या परिवार 28 वर्ष तक उपचार न होने के कारण दुःखी होते हैं | जब सम्पूर्ण भारत में जन्मपत्री सभी बच्चों की बनती हैं तो उपचार भी ज्योतिषी को जरूर बताने चाहिए --परिस्थिति के अनुसार | --अगले भाग में -जातक के पैर कैसे होते हैं --इस पर परिचर्चा करेंगें | --भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -24 -नक्षत्रों के प्रकार जानें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


नक्षत्रों के निम्न 16 प्रकार हैं ---

{1 }- ध्रुव नक्षत्र ,  {2 }-- चर या चल नक्षत्र ,  {3 }--उग्र नक्षत्र ,---{4 }--मिश्र नक्षत्र ,  {5 }--क्षिप्र नक्षत्र ,  {6 }--मृदु नक्षत्र ,---{7 }--तीक्ष्ण नक्षत्र ,--{8 }--उर्ध्व नक्षत्र ,---{9 }--अधोमुख नक्षत्र ,--{10 }--तिर्यङ्गमुख नक्षत्र ,--{11 }--अंध नक्षत्र ,--{12 }--मध्यलोचन नक्षत्र ,--{13 }--मंदलोचन नक्षत्र ,---{14 }--सुलोचन नक्षत्र ,---{15 }--पंचक नक्षत्र ,--{16 मूल नक्षत्र ---आधुनिक समय में लोग कुछ ही नक्षत्रों को जानते हैं --विशेष --मूल और पंचक | 

1 ---------ध्रुव नक्षत्र --रोहिणी ,उत्तराफाल्गुनी ,उत्तराषाढ़ा | 

2 ----------चर नक्षत्र ----पुनर्वसु ,स्वाति ,श्रवण ,धनिष्ठा ,शतभिषा   | 

3 ---------उग्र नक्षत्र ---भरणी ,मघा ,पूर्वाफाल्गुनी ,पूर्वाषाढ़ा   | 

4 ---------मिश्र नक्षत्र ---कृतिका ,विशाखा   | 

5 --------- मृदु नक्षत्र ---मृगशिरा ,चित्रा ,अनुराधा ,रेवती   | 

6 ---------क्षिप्रा नक्षत्र -- अश्विनी ,पुष्य ,हस्त ,अभिजीत   | 

7 ------- तीक्ष्ण नक्षत्र ----आर्द्रा ,आश्लेषा ,ज्येष्ठा ,मूल   | 

8 --------उर्ध्व नक्षत्र -----रोहिणी ,पुष्य   | 

9 --------अधोमुख ------आश्लेषा ,भरणी ,कृतिका   | 

10 --------तिर्यङ्गमुख नक्षत्र --अश्विनी ,पुनर्वसु ,हस्त ,चित्रा ,अनुराधा, रेवती    | 

11 -------अंध नक्षत्र ------- रोहिणी ,विशाखा ,धनिष्ठा    | 

12 --------मध्यलोचन -----शतभिषा ,आश्लेषा ,नुराधा   | 

13 --------सुलोचन ---पुनर्वसु ,स्वाति   | 

14 ------मंदलोचन  नक्षत्र ------शतभिषा ,आश्लेषा ,अनुराधा   | 

15 ---------पंचक नक्षत्र ----धनिष्ठा ,शतभिषा ,पूर्वाभाद्रपद ,उत्तराभाद्रपद ,रेवती  | 

16 ------मूल --------- ज्येष्ठा ,आश्लेषा ,रेवती ,मूल ,मघा ,अश्विनी 

---ध्यान दें --किस नक्षत्र का क्या प्रभाव होता है एवं क्या -क्या उपचार होते हैं आगे बताने का प्रयास करेंगें | - भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com



ज्योतिष कक्षा पाठ -23 -नक्षत्रों के स्वामी को जानने हेतु पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


पाठकगण -आपने नक्षत्रों को जाना अब क्रम से नक्षत्रों के स्वामी कौन -कौन से हैं देखें और अनुभव को याद सदा रखें ----{1 } -अश्विनी --अश्विनी कुमार , ---{2 }--भरणी ---काल ,----{3 }---कृतिका ---अग्नि ,---{4 }--रोहिणी ---ब्रह्मा ,--{5 }--मृगशिरा --चन्द्रमा ,---{6 }--आर्द्रा --रूद्र ,---{7 }--पुनर्वसु ---अदिति ,----{8 }--पुष्य ---गुरु --{बृहस्पति },---{9  }--आश्लेषा ---सर्प ,---{10  }--मघा ---पितर ,---{11  }--पूर्वाफाल्गुनी ---भग ,----{12  }--उत्तराफाल्गुनी ---अर्यमा ,---{13  }--हस्त --सूर्य ,----{14  }--चित्रा ---विस्वकर्मा ---{15  }--स्वाति ---पवन ,---{16  }--विशाखा ---शुक्राग्नि ,----{17  }---अनुराधा --मित्र ,---{18  }--ज्येष्ठा ---इन्द्र ,---{19  }--मूल ---निरऋति ,---{20  }--पूर्वाषाढ़ा --जल ,---{21  }--उत्तराषाढ़ा ---विश्वेदेव ,----{22  }---अभिजीत ---ब्रह्मा ,---{23  }--श्रवण ---विष्णु ,---{24  }--धनिष्ठा ---वस् ,---{25  }---शतभिषा ---वरुण ,---{26  }--पूर्वाभाद्रपद ---अजेकापद ,----{27  } उत्तराभाद्रपद --अहिर्बुधन्य ,---{28  }--रेवती --पूषा ----ये नक्षत्रों के स्वामी हैं --हर जातक के जन्म अलग -अलग नक्षत्र में होता है --अतः फलादेश करते समय व्यक्ति का स्वभाव इस पर भी निर्भर करता है | ------अगले भाग में नक्षत्र कितने प्रकार के होते हैं --इस पर चर्चा करेंगें ---- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


बुधवार, 21 फ़रवरी 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -22 नक्षत्र किसे कहते हैं -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिष के नवीन पाठकों को यह शंका हो सकती है कि जब इस विराट आकाश में असंख्य तारागण हैं ,तो फिर भारतीय ज्योतिष ने अपने गणित और फलित आदि में 27 नक्षत्र और 9 ग्रहों को ही प्रधानता क्यों दी ?  ---उनकी इस शंका का समाधान यह है कि आकाश में प्रायः गोल "कुछ लम्बोतरा -सा " मार्ग है |  इस मार्ग  पृथ्वी 1 ,100 मील प्रति घण्टे की गति से निरन्तर चक्कर लगाया करती है |  आकाश में कोई सड़क -मार्ग तो है नहीं , न ही वहां मील के कोई मापक पथ्थर ही लगे हैं ,तब यह कैसे पता चले कि पृथ्वी कितना चल चुकी है और अब कहाँ है ? ---इस समस्या को हल करने के लिए जिस मार्ग पर पृथ्वी घूमती है ,---उस पर या उसके आसपास स्थित नक्षत्रों में से 27 नक्षत्रों को चुन लिया गया है | ये स्थिर नक्षत्र हैं | ग्रह तो घूमते रहते हैं किन्तु नक्षत्र अपने स्थान पर स्थित रहते हैं | 

-----इन नक्षत्रों से वो ही काम लिया जाता है --जो दूरी जानने के लिए मील के पत्थरों से लिया जाता है | इस प्रकार पृथ्वी के गोलाकार मार्ग को 27 नक्षत्रों में बाँटने की व्यवस्था इसलिए की गई है ---जिससे कि आकाश  निश्चित स्थान का निर्देश किया जा सके | एक विशेष बात यह  भी  है कि आकाश -मण्डल में असंख्य ताराओं के समूहों द्वारा जो विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनती है ,उन्हीं आकृतियों ,अर्थात ताराओं के समूह को नक्षत्र कहा जाता है ,तथा प्रत्येक नक्षत्र का एकेक नाम रख दिया गया है | 

--1 --अश्विनी ,--2 -भरणी ,---3 --कृतिका ,--4 --रोहिणी ,---5 ---मृगशिरा ,---6 ---आर्द्रा ,---7 ---पुनर्वसु ,--8 ---पुष्य ,-----9 आश्लेषा ,---10 ---मघा ,--11 ---पूर्वाफाल्गुनी ,----12 --उत्तराफाल्गुनी ,---13 ---हस्त ,--14 --चित्रा ,---15 स्वाति ,--16 --विशाखा ,---17 --अनुराधा ,---18 ---ज्येष्ठा ,---19 --मूल ,---20 ---पूर्वाषाढ़ा ,---21 ---उत्तराषाढ़ा ,--22 --श्रवण ,--23 --धनिष्ठा ,---24 --शतभिषा ,---25 --पूर्वाभाद्रपद ,---26 ---उत्तराभाद्रपद ,--27 ---रेवती  | 

----किसी समय वैदिक काल में  उत्तराषाढ़ा और श्रवण के बीच में अभिजीत नामक नक्षत्र की गणना और की जाती थी |  किन्तु अब 27 नक्षत्रों के अतिरिक्त 28 वां नक्षत्र अभिजीत भी माना जाता है | उत्तराषाढ़ा की अन्तिम 18 घटि तथा श्रवण के प्रारम्भ की 4 घटि ,-----इस प्रकार कुल 19 घटियों  के मान वाला नक्षत्र अभिजीत है | सामान्यतः 1 नक्षत्र की 60 घटि होती है | -----अगले भाग में नक्षत्रों के स्वमियों की चर्चा करेंगें | - -- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com






मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

ज्योतिष कक्षा पाठ -21 -तिथियों का फलादेश पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


-1 -प्रतिपदा -इसमें जन्म लेने वाला व्यक्ति पापियों के साथ रहने वाला ,धन से हीन ,कुल का संताप करने वाला ,व्यसन में आसक्त अन्तः कारण वाला होता है | 

---2 -द्वितीया -इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति सदा पराई स्त्री में रत रहने वाला ,सत्य और पवित्रता से हीन तथा चोरी और प्रेम से विहीन होता है | 

---3 ---तृतीया ---इसमें जन्म लेने वाला मनुष्य चैतन्य रहित ,अत्यन्त विकल ,द्रव्यहीन तथा दूसरे से द्वेष करने में सर्वदा रत रहता है | 

---4 --चतुर्थी ---इसमें जन्म लेने वाला व्यक्ति अत्यधिक भोगी ,दानी ,मित्रों के साथ स्नेह करने वाला पंडित ,धन और संतान से युक्त होता है 

---5 पंचमी ---इसमें जन्म लेने वाला व्यक्ति अत्यधिक व्यवहार की समझ रखने वाला ,गुणों को सरलता से ग्रहण करने वाला  , माता पिता की रक्षा करने वाला तथा अपने शरीर से प्रेम करने वाला होता है |  

---6 --षष्ठी -इसमें जन्म लेने वाला व्यक्ति देश -विदेश की यात्रायें करने वाला ,सदैव झगड़ा करने वाला ,नित्य पेट का भरण -पोषण करने वाला होता है | 

---7 -- सप्तमी -इस तिथि के अंतर्गत जन्म लेने वाला व्यक्ति थोड़े में संतोष पाने वाला ,तेजयुक्त ,सौभाग्य गुण से युक्त ,पुत्रवान और धनवान होता है | 

---8 -- अष्टमी --इसमें जन्म लेने वाला व्यक्ति धर्मात्मा ,सत्यवक्ता ,दानी ,भोगी ,दयावान ,गुणों का पारखी तथा अनेक कार्यों को जानने वाला होता है | 

--9 --नवमी -इसमें पैदा होने वाला व्यक्ति देवताओं की आराधना करने वाला ,पुत्रवान ,धनवान और स्त्रियों में आसक्त ,सदैव शास्त्रों में लीन रहने वाला होता है | 

--10 --दशमी -इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति धर्म और अधर्म को जानने वाला ,देवताओं की सेवा करने वाला ,यज्ञादि कराने वाला बड़ा ही तेजस्वी होता है | 

--11 --एकादशी --इसमें जन्म लेने वाला व्यक्ति थोड़े में संतोष करने वाला ,राजाओं के घर में रहने वाला ,पवित्र ,धनवान ,पुत्रवान और बुद्धिमान होता है | 

--12 --द्वादशी --इसमें जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने शरीर से सदा खिन्न रहने वाला विश्व -भ्रमण करने वाला ,स्वभाव का चंचल होता है | 

---13 --त्रयोदशी --इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति बड़ा सिद्ध ,बड़ा पंडित ,शस्त्राभ्यास करने वाला ,इन्द्रियों को वश में रखने वाला ,प्रिपकारी होता है | 

--14 --चतुर्दशी -- इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति धनि ,धर्मात्मा ,वीर ,सज्जन लोगों के प्रति श्रद्धावान ,बड़े लोगों के संपर्क में रहने वाला यशस्वी होता है | 

--15 ---पूर्णिमा --इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति श्रीमान ,बुद्धिमान ,अधिक भोजन करने वाला ,उत्साही ,घर की स्त्री से कम किन्तु पराई स्त्री में अधिक आसक्त रहने वाला होता है | 

---16 --अमावस्या -- इस तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति बहुत ज्यादा आलसी ,दूसरों से द्वेष रखने वाला ,कुटिल ,मूर्ख ,पराक्रमी और ज्ञानवान होता है | 

----ध्यान दें --कुण्डली का फलादेश करते समय तिथियों के फलादेश पर भी ध्यान दिया करें ----अगले भाग में नक्षत्रों पर परिचर्चा करेंगें ------ -- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

ज्योतिष कक्षा -पाठ -20 -तिथियों के स्वामी जानें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 पाठकगण-- ध्यान दें ---चन्द्रमा जब सूर्य से ठीक 180 अंश पर पहुंच जाता है तो दोनों का फासला कम होना शुरू हो जाता है | ---जिस समय चन्द्रमा व सूर्य का अन्तर 96 अंश से कम होना प्रारम्भ होता है --उसी समय से कृष्ण पक्ष की अष्टमी प्रारम्भ हो जाएगी | इसी को प्रदर्शित करने के लिए पंचांग में लिखा रहता है --आज सप्तमी 32 घटी 15 पल --कल अष्टमी 29 घटी  27 पल ---इसका अर्थ हुआ कि जिस स्थान के हिसाब से पंचांग बनाया गया है ---उस स्थान पर सूर्योदय के उपरान्त 32 घटी 15 पल पर सूर्य व चन्द्रमा का अन्तर 96 अंश हो जायेगा और दूसरे दिन --उसी पंचांग के स्थान पर --- सूर्योदय के उपरान्त 28 घटी 27 पल पर सूर्य -चन्द्रमा का अन्तर 84 घटी रह जायेगा --अर्थात अष्टमी समाप्त हो जाएगी | 

---तिथि  ------------------------------                   ---    तिथियों क्र स्वामी 

---1 ---------प्रतिपदा  --------------------------------------------  अग्नि 

--2 -------द्वितीया --------------------------------------------------ब्रह्मा 

---3 --------तृतीया -------------------------------------------------गौरी 

---4 -------चतुर्थी ---------------------------------------------------गणेश 

----5 -------पंचमी --------------------------------------------------शेषनाग 

---6 ----------षष्ठी ---------------------------------------------------कार्तिकेय 

--- 7 ----------सतमी -----------------------------------------------------सूर्य 

--8 ---------अष्टमी ----------------------------------------------------शिव 

----9 --------नवमी -----------------------------------------------------दुर्गा 

--10 ----------दशमी ---------------------------------------------------काल 

---11 ----------एकादशी ----------------------------------------------विश्वेदेवा 

---12 -----------द्वादशी ---------------------------------------------------विष्णु 

-----13 -------त्रयोदशी --------------------------------------------------कामदेव 

---14 --------चतुर्दशी -----------------------------------------------------शिव 

----15 -------पूर्णिमा ------------------------------------------------------चन्द्रमा 

---1 6 ----- अमावस्या ------------------------------------------------------पितर 

---तिथियों का फलादेश परैत करते समय पाठकों को उनके स्वामियों के सम्बन्ध में विचार अवश्य करना चाहिए | जिस तिथि के स्वामी का  जैसा स्वभाव है ,वो ही स्वभाव उस तिथि और जातक का भी होगा | --अगले भाग में तिथियों के फलादेश पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगें ------ ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com


खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...