जन्म -कुण्डली का निर्माण करने से पहले ,अथवा किसी जातक की जन्म -कुण्डली का फलादेश निकालने से पहले पाठकों को ग्रहों का पारस्परिक दृष्टि -सम्बन्ध के विषय में भी जानकारी प्राप्त कर लेनी चहिये | जब भी कोई दो ग्रह अलग -अलग स्थानों -भावों -में बैठे हुए एक -दूसरे के ऊपर अपनी दृष्टि डालते हैं ,तो उसे उन ग्रहों का पारस्परिक दृष्टि -सम्बन्ध कहा जाता है | -----जैसे --किसी कुण्डली में लग्न में बैठा हुआ मंगल अपने स्थान से चौथे भाव में स्थित शनि के ऊपर अपनी दृष्टि डाल रहा है | साथ ही चौथे भाव में बैठा हुआ शनि भी अपने स्थान से दसवें भाव में स्थित मंगल के ऊपर अपनी पूर्ण दृष्टि डाल रहा है | इस प्रकार दोनों ग्रह परसपर एक -दूसरे को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं ,अतः इसे ग्रहों का पारस्परिक दृष्टि -सम्बन्ध कहा जायेगा | इसी प्रकार अन्य ग्रहों के पारस्परिक दृष्टि -सम्बन्ध के विषय में भी समझ लेना चाहिए |
---ग्रह दृष्टि सम्बन्ध ----जब कोई ग्रह अपने बैठे हुए स्थान से किसी अन्य स्थान -भाव -को देखता है अथवा उस स्थान पर बैठे हुए किसी ग्रह को देखता है ,तो उसे उस ग्रह का दृष्टि -सम्बन्ध कहा जाता है | --एक और प्रमाण देखें --किसी कुण्डली में द्वादश भाव में बैठा गुरु सप्तम भाव में स्थित शनि को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है --अतः इसे गुरु और शनि का दृष्टि -सम्बन्ध कहा जायेगा | इसी प्रकार अन्य ग्रहों के दृष्टि -सम्बन्ध के बारे में भी समझ लेना चाहिए |
----अगले भाग में स्थान -सम्बन्ध पर परिचर्चा करेंगें --- - -भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
