ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

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ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 13 नवंबर 2023

जानिए गोवर्धन पूजा की सरल विधि--पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


 कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस बार गोवर्धन पूजा का पर्व 13+14/11/2023 को है। -----जानिए गोवर्धन पूजा की सरल विधि-

---------पूजन विधि----------
गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन सुबह शरीर पर तेल की मालिश करके स्नान करना चाहिए। फिर घर के द्वार पर गोबर से प्रतीकात्मक गोवर्धन पर्वत बनाएं। इस पर्वत के बीच में पास में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। अब गोवर्धन पर्वत व भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न प्रकार के पकवानों व मिष्ठानों का भोग लगाएं। साथ ही देवराज इंद्र, वरुण, अग्नि और राजा बलि की भी पूजा करें। पूजा के बाद कथा सुनें। प्रसाद के रूप में दही व चीनी का मिश्रण सब में बांट दें। इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन करवाकर उसे दान-दक्षिणा देकर प्रसन्न करें।
------शुभ मुहूर्त----------
14/11/23-----सुबह 06:20 से 07:20 बजे तक
-14/11/23----सुबह 09:20 से 10:30 बजे तक
-14/11/23------दोपहर 01:30 से 2:00 बजे तक
--13/11/23----दोपहर 02:50 से 04:10 बजे तक
--13/11--/23



----शाम 04:10 से 05:30 बजे तक
-----------------------गोवर्धन पर्वत की पूजा------------
एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि नाच-गाकर खुशियां मनाई जा रही हैं। जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो गोपियों ने कहा- आज मेघ व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है। तब श्रीकृष्ण बोले- इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करना चाहिए।
तब सभी श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह बात जाकर नारद ने देवराज इंद्र को बता दी। यह सुनकर इंद्र को बहुत क्रोध आया। इंद्र ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलधार बारिश करें। बारिश से भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे। गोप-गोपियों की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले- तुम सब गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलो। वह सब की रक्षा करेंगे। सब गोप-ग्वाले पशुधन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी उंगली पर उठाकर छाते-सा तान दिया।
गोप-ग्वाले सात दिन तक उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टि से बच गए। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह चमत्कार देखकर ब्रह्माजी द्वारा श्रीकृष्णावतार की बात जान कर इंद्रदेव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि- अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व गोवर्धन पूजा के रूप में प्रचलित है।-----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

यह अच्युतश्याष्टक स्तुति है- सुनें---ज्योतिषी झा "मेरठ "



 यह अच्युतश्याष्टक स्तुति है- सुनें---ज्योतिषी झा "मेरठ "

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तमाम कठिनाईयों के बाद भी बहुत तीव्र गति से प्रगति की ओर बढ़ रहे थे--पढ़ें भाग -74 ज्योतिषी झा मेरठ



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -74 ज्योतिषी झा मेरठ
2006 - तमाम कठिनाईयों के बाद भी बहुत तीव्र गति से प्रगति की ओर बढ़ रहे थे | मेरठ के एक प्रमुख यजमान थी -जिन्होनें उलाहना दी -आप इतने बड़े पण्डित हो तो आपको खुद पुत्र क्यों नहीं हो जाता है | ये ऐसी यजमान थी -जिनके यहाँ अनुष्ठान किया तो पुत्र का विवाह हुआ | दूसरे पुत्र का विवाह नहीं हो रहा था --तो हमने पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए कहा था --इसका जबाब यह मिला था | हम तो नीरास हो चुके थे एवं उम्र भी 36 वर्ष हो चुकी थी | बड़ी पुत्री 16 वर्ष की थी ,छोटी पुत्री 10 वर्ष की --इन्हीं का भरण- पोषण ठीक से हो जाय यही कामना बची थी | घर पर परिजन बहुत ही तिरस्कृत करते थे --जबकि चाहे ननिहाल हो ,ससुराल हो या फिर मेरी मातृ भूमि के लोग -जब भी गांव जाते थे तो लोगों का ताता लगा रहता था --जन्मपत्री दिखाने के लिए | मेरे जिस घर में काफी सालों से -दरिदृयोग चल रहा था --1982 से 2001 तक --इस मध्य हमने एक शतचण्डी करि थी 1996 में --इसके बाद माँ लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु माता पिता से बहुत यज्ञ कराये थे --जबकि मेरे हालात अच्छे नहीं थे --उन पैसों से मेरे बच्चों का भरण पोषण ठीक से हो सकता था किन्तु जो गुरु जनों से सीखा था --उन यज्ञ की विधियों को अपनी कसौटी पर परखना था | इससे मेरा अनुज बहुत नाराज रहता था --वो कहता था कमाता मैं हूँ लुटाता यह है --पर माता पिता और पतनी का दान या यज्ञ करने में पूर्ण सहायता मिलती थी | माँ लक्ष्मी की कृपा से मेरे घर में चाहे अनुज हो ,दीदी हो ,हम हों, मेरे माता पिता हों या फिर मामा सभी धनाढ्य हुए | मुझे लगता है --तमाम यज्ञ माता पिता के द्वारा ही हुए -धन हम लगाते थे ,आचार्य भी हम ही बनते थे --पर यज्ञ में चढ़ी दक्षिणा या दान सभी भूदेवों को अर्पण करते थे | तो मुझे अनुभव हुआ माता पिता सभी परिजनों का हित चाहते थे --सो इनका आशीर्वाद हम सभी को मिला | पर धन आना और विवेक रहना ये गुण केवल धार्मिक व्यक्ति में ही संभव है --अतः धन आने के बाद जब हम अलग हुए फिर कभी कोई यज्ञ माता पिता ने नहीं की | अतः मेरे परिवार में विघटन शुरू हुआ | मैं कदापि अपने घर परिवार को अलग होते नहीं देख सकता था या हूँ --पर ग्रहों के खेल निराले होते हैं | जो युद्ध हमें बाहरी लोगों से लड़ना चाहिए था --वो युद्ध हमारे घर में ही शुरू हुआ | एक तरफ मैं था --दूसरी ओर सम्पूर्ण परिजन थे | मेरे ज्योतिष के सभी अनन्य भक्त थे सभी को यथा योग्य निःशुल्क सहायता करता था | मेरा घर झंझारपुर शहर में है ,यहाँ मारवाड़ी समाज का बाजार ही है -साथ ही मेरे पिता की ख्याति बढ़ रही थी | --मेरी पहचान पिता की वजह से थी --पिता इसी में गदगद रहते थे ,चाय सरबत का भंडारा चलता रहता था | चारो ओर पिता की छत्रछाया में हम सभी मस्त रहते थे | पर मेरठ में अपना मकान होते ही -सभीने मुझपर ही आक्रमण कर दिए | अगर हम सर्वस्व पिता को देते रहते -तो तत्काल तो मस्त रहते -पर आगे चलकर यही होना था सो केवल अपना अलग रहना चाहते थे | मेरे अलग होने के कई कारण थे | मेरे बच्चे बड़े हो रहे थे, इनको गांव में अपना मकान होते हुए भी दीक्कत होती थी --किरायेदारों की वजह से संकीर्ण मार्ग था ,अनुज का परिवार नहीं रहता था ,माता पिता बिना मुझे पूछे धन के बल पर युद्ध लड़ना चाहते थे --जो हम नहीं चाहते थे | माता पिता धार्मिक बनें व्याज का करोबार न करें | एकबार व्याज के चक्कर में पिता का अपमान बाजार में किसी ने कर दिया -यह बात मुझ सहन नहीं हुई ,हमने उसके घर जाकर --उसकी हैकरी निकाल दी --वो तत्काल पूरा पैसा दे गया | यह धन अनुज का था --हमने पिता से यह काम करने को मना किया पर नहीं माने | जब भी हम गांव जाते --पैसे व्याज पर लेने के लिए भीड़ लगी रहती थी --कुछ लोगों को माँ मेरी ओर सरका देती इससे ले लो ये बात बहुत ही अखरती थी | और भी बहुत से कारण थे --जिनका उल्लेख आगे के भाग में करेंगें ----खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...