कर्क राशि ---इस राशि वाले व्यक्ति का मुख "चेहरा " गोल और मोहक ,शरीर मध्यम ऊंचा व पतला होता है | यह स्त्री कामी ,तरंगी ,नाटकी ,निश्चिन्त ,प्रेमपाश में पड़कर निरर्थक धन का व्यय करने वाला ,मादक पदार्थों का व्यापारी होता है | ------यह राशि सहानुभूति एवं सुकुमारता के साथ -साथ प्रजा ,सत्ता तथा मिलन सरिता की प्रतीक मानी जाती है | इसका स्थान उत्तर दिशा में है | यह विषुवत रेखा की ओर 24 डिग्री से 20 डिग्री तक संचरण करती है | यह सम है | इसकी अवस्था बाल्य है | इसका वर्ण रक्त +स्वेत है | रजोगुणी है | इसका जल तत्व है | रात्रि में यह बली रहती है | शूद्र जाति की है तथा तुच्छ भावनाओं की ओर उन्मुख रहती है |
----इस राशि के गमनकारी नक्षत्र पुनर्वसु ,पुष्य और अश्लेषा हैं | जो एक ही चरण में व्याप्त है | पुष्य नक्षत्र का उतपन्न व्यक्ति धन और धर्म से युक्त होता है | पुत्र सम्पन्न ,पंडित ,शांत स्वभाव ,सुभग और सुखी होता है | --किन्तु आश्लेषा का प्रतिफल इस फल कास अपवाद है --तभी कहा है ---"सर्वभक्षी कृतान्तश्च कृतध्नों वाचकः खलः ,आष्लेशयाम नरो जातः कृतकर्मा ही जायते "----इस कथन में अल्प संदेह नहीं ---आश्लेषा नक्षत्र में उत्पन्न जातक यमराज के तुल्य आचरण करने वाला होता है ,--क्योंकि इस राशि का चिन्ह केकड़ा है | इसी कारण यह राशि हर समय सजग और प्रबुल्ल रहती है | ----अगले भाग में सिंह राशि पर चर्चा करेंगें | ----
भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com
