ज्योतिष के पाठकगण -अब मैं ज्योतिष की ऐसी किताब लिखने का प्रयास करने जा रहा हूँ --जो हम रहें या न रहें -यह ज्योतिष की लिखित मेरे द्वारा किताब किसी भी ज्योतिष जिज्ञासु व्यक्ति को लाभ देगी | बहुत ही सरल भाषा में
ब्लॉग पोस्ट पर उपलब्ध रहेगी --इसे निःशुल्क कोई भी पढ़कर लाभ ले सकता है | -आज ज्योतिष ज्ञान का तृतीय दिवस है --आज जानें --युग शब्द का अर्थ क्या है एवं ज्योतिष में इसकी क्या जरुरत है |
---कलि शयनो भवति सज्जीहानस्तु द्वापर ,उतिष्ठ स्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरंश्चरै वेति चरैवेति "--
{1 }-सोने वाला युग -कलियुग
{2 }-बैठने वाला युग --द्वापर युग
{3 }-उठने वाला युग --त्रेता युग
{4 }--धूमने वाला युग -कृत युग
---काल मान के अर्थ में युग शब्द वेदों में अनेको बार आया है | युग कितने हैं ? --इस पर विद्वानों में थोड़ा मतभेद अवश्य है | कहीं 5 कहीं 6 कहीं 4 और कहीं 3 का विवेचन है | सायणाचार्य का त्रियुगं शब्द का अर्थ -कृत ,त्रेता ,द्वापर तीन युगों का द्योतक हैं | स्तोमों में चार और पांच की संख्या बतलायी है | वास्तविकता कुछ भी हो --युग ही काल के परिमाण दर्शक हैं और वह क्रमशः चार हैं ---
{1 }--सतयुग --17 लाख 28 हजार वर्ष
{2 }-त्रेतायुग --12 लाख 96 हजार वर्ष
{3 }-द्वापरयुग --8 लाख 64 हजार वर्ष
{4 }--कलियुग --4 लाख 32 हजार वर्ष
--आर्य ग्रंथों में इन युगों की आरम्भ --सृष्टि का उल्लेख भी मिलता है | -----ज्योतिष ज्ञान में पहला ज्योतिष परिचय जाना ,दूसरा सूर्यदेव का वैभव को जाना इसके बाद --युग को जाना --आगे संवत्सर की चर्चा करेंगें | --भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com
