मेरे प्रिय पाठक गण --आत्मकथा वस्तुतः मेरा भूत ,वर्तमान और भविष्य का लेखा जोखा है | मैं अपनी आत्मकथा से बहुत कुछ सीखने का प्रयास करता हूँ --साथ ही जो गलती मुझसे हुई है -वो मेरे इर्द -गिर्द रहने वाले न करें यही एक छोटा सा प्रयास है | आज मेरे पिता नहीं हैं -जब थे तो कईबार अहसास होता था -बहुत निर्दयी हैं | पर आज जब हम खुद पिता हैं -तो अपने बच्चों को सही दिशा देने के लिए कठोर निर्णय लेता रहता हूँ --तो मेरे बच्चों को भी लगता है मैं बहुत निर्दयी हूँ | इसका अभिप्राय यह है -व्यक्तिगत सोच और जिम्मेदारी की सोच में बहुत अन्तर होता है | आज जब हम खुद अपनी संतान के लिए कठोर निर्णय लेते हैं तो पिता कैसे कठोर निर्णय नहीं लेते --यह समझ व्यक्ति को जब आती है --तब तक पुत्र अपने पिता को खो देता है | खासकर मेरे साथ ऐसा ही हुआ --आज अपनी गलती की माफी चाहकर भी नहीं प्राप्त कर सकते --और इस कारण हम पूर्वजों के दोषी हो गए | वास्तव में व्यक्ति की अनन्त भूल के कारण भी पितृदोष बनता है --जो प्रत्यक्ष उदाहरण होता है | मेरे जीवन में पिता का स्नेह बहुत रहा --मुझमें जो गुण हैं वो पिता एवं आराध्य गुरु तथा सत्संग के प्रभाव से प्राप्त हुए --जिसको कुण्डली भी दर्शाती है --सिंह लगन का हूँ -सूर्य + मंगल की युति लगन में हैं --यह बहुत ही प्रभावशाली योग है | चन्द्रमा उच्च का कर्म क्षेत्र में है --इसका भावार्थ उत्तम दर्जे का रहन -सहन से सदा युक्त रहा हूँ | जब पिता की छत्रछाया में था -गरीबी भले ही थी -उत्तम वस्त्र कर्ज लेकर भी पहनाते थे | एकबार दशवीं का पेपर देना था -धन नहीं था तो पिता अपनी घडी 30 रूपये में बेचकर फीस जमा करि थी --यह चन्द्रमा का प्रभाव था | मेरी कुण्डली में बुध -शुक्र की युति धन +वाणी के क्षेत्र में हैं ---इसका प्रभाव मुझे बाल्य्काल से मिला --शिक्षा में भले ही निपुण नहीं था --पर मन्त्र जिह्वा पर होते थे | कोई मददगार नहीं थे --पर अपनी वाणी +कला से मोह लेते थे --अतः सबका प्रिय होता था | मेरी कुण्डली में गुरु तृतीय भाव और शनि भाग्य भाव में होने के कारण जितनी हानि हुई --लाभ भी उतना ही मिलना था | अतः पिता के बाद पतनी की छत्रछाया बहुत ही मजबूत रही | अपनों से बेहतर मददगार पराये बहुत रहे | ये दो योग मानों अपनी गोद में ऐसे उठाये --कि गिराने वाले थक हम गए गिरे नहीं | मेरे पिता अनपढ़ थे -यही आशीर्वाद मुझे मिला -जो हम विद्वान बनें --मेरे पिता मुझे विद्वान देखना चाहते थे --तब राहु की दशा चल रही थी --जो सम्भव नहीं था --पर आशीर्वाद का प्रभाव --गुरु की दशा आते ही हम विद्वान बन गए | पिता के आशीष के आगे तमाम विपरीत ग्रह पराजित हो गए --यह मेरा पुरुषार्थ नहीं था --पिता--एवं पतनी के अनन्त योगदान से संभव हुआ | जब मैं 13 वर्ष का था --तो श्रीमालीजी का राशि फल स्टेशन पर खरीदकर पढता रहता था --10 रूपये में | सबसे पहली नजर मेरी मंगल पर गयी --जो तीन भवन के योग को दर्शा रहा था --तब राहु की दशा चल रही थी --गरीबी चरम सीमा पर थी --पर विस्वास से लवालव था ---इस बात को सत्य होने में कई साल लग गए | जब हम 30 वर्ष के हुए तो पहला भवन मिला ,शिक्षा की फिर से शुरुआत हो गयी ,बच्चे भी पढ़ते थे -- मैं खुद भी संगीत की दुनिया में सीखने उतर गया --| सही मायने में ज्योतिषी तो मैं बाल्य्काल से हूँ --पर जब हम 50वर्ष के हुए तब मुझे लगा --सही ज्योतिष इसे कहते हैं --जिसमें किसी की बात दर्पण की तरह दिखने लगे --पूछने की जरुरत ही न पड़े | कईबार ऐसा भी लगता है -मैं सबसे घटिया ज्योतिषी हूँ --तब साधना में लीन होने लगता हूँ तो फिर भगवत कृपा से मार्ग प्रशस्त होने लग जाता है | --अब मैं अपनी कुण्डली की उन बातों पर भी प्रकाश डालने की कोशिश करूँगा --जिसकी वजह से विद्वान कम --मूर्ख में ज्यादा हूँ | आगे की चर्चा अगले भाग में पढ़ें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
सोमवार, 7 अक्टूबर 2024
मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -100 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
मेरे प्रिय पाठक गण --आत्मकथा वस्तुतः मेरा भूत ,वर्तमान और भविष्य का लेखा जोखा है | मैं अपनी आत्मकथा से बहुत कुछ सीखने का प्रयास करता हूँ --साथ ही जो गलती मुझसे हुई है -वो मेरे इर्द -गिर्द रहने वाले न करें यही एक छोटा सा प्रयास है | आज मेरे पिता नहीं हैं -जब थे तो कईबार अहसास होता था -बहुत निर्दयी हैं | पर आज जब हम खुद पिता हैं -तो अपने बच्चों को सही दिशा देने के लिए कठोर निर्णय लेता रहता हूँ --तो मेरे बच्चों को भी लगता है मैं बहुत निर्दयी हूँ | इसका अभिप्राय यह है -व्यक्तिगत सोच और जिम्मेदारी की सोच में बहुत अन्तर होता है | आज जब हम खुद अपनी संतान के लिए कठोर निर्णय लेते हैं तो पिता कैसे कठोर निर्णय नहीं लेते --यह समझ व्यक्ति को जब आती है --तब तक पुत्र अपने पिता को खो देता है | खासकर मेरे साथ ऐसा ही हुआ --आज अपनी गलती की माफी चाहकर भी नहीं प्राप्त कर सकते --और इस कारण हम पूर्वजों के दोषी हो गए | वास्तव में व्यक्ति की अनन्त भूल के कारण भी पितृदोष बनता है --जो प्रत्यक्ष उदाहरण होता है | मेरे जीवन में पिता का स्नेह बहुत रहा --मुझमें जो गुण हैं वो पिता एवं आराध्य गुरु तथा सत्संग के प्रभाव से प्राप्त हुए --जिसको कुण्डली भी दर्शाती है --सिंह लगन का हूँ -सूर्य + मंगल की युति लगन में हैं --यह बहुत ही प्रभावशाली योग है | चन्द्रमा उच्च का कर्म क्षेत्र में है --इसका भावार्थ उत्तम दर्जे का रहन -सहन से सदा युक्त रहा हूँ | जब पिता की छत्रछाया में था -गरीबी भले ही थी -उत्तम वस्त्र कर्ज लेकर भी पहनाते थे | एकबार दशवीं का पेपर देना था -धन नहीं था तो पिता अपनी घडी 30 रूपये में बेचकर फीस जमा करि थी --यह चन्द्रमा का प्रभाव था | मेरी कुण्डली में बुध -शुक्र की युति धन +वाणी के क्षेत्र में हैं ---इसका प्रभाव मुझे बाल्य्काल से मिला --शिक्षा में भले ही निपुण नहीं था --पर मन्त्र जिह्वा पर होते थे | कोई मददगार नहीं थे --पर अपनी वाणी +कला से मोह लेते थे --अतः सबका प्रिय होता था | मेरी कुण्डली में गुरु तृतीय भाव और शनि भाग्य भाव में होने के कारण जितनी हानि हुई --लाभ भी उतना ही मिलना था | अतः पिता के बाद पतनी की छत्रछाया बहुत ही मजबूत रही | अपनों से बेहतर मददगार पराये बहुत रहे | ये दो योग मानों अपनी गोद में ऐसे उठाये --कि गिराने वाले थक हम गए गिरे नहीं | मेरे पिता अनपढ़ थे -यही आशीर्वाद मुझे मिला -जो हम विद्वान बनें --मेरे पिता मुझे विद्वान देखना चाहते थे --तब राहु की दशा चल रही थी --जो सम्भव नहीं था --पर आशीर्वाद का प्रभाव --गुरु की दशा आते ही हम विद्वान बन गए | पिता के आशीष के आगे तमाम विपरीत ग्रह पराजित हो गए --यह मेरा पुरुषार्थ नहीं था --पिता--एवं पतनी के अनन्त योगदान से संभव हुआ | जब मैं 13 वर्ष का था --तो श्रीमालीजी का राशि फल स्टेशन पर खरीदकर पढता रहता था --10 रूपये में | सबसे पहली नजर मेरी मंगल पर गयी --जो तीन भवन के योग को दर्शा रहा था --तब राहु की दशा चल रही थी --गरीबी चरम सीमा पर थी --पर विस्वास से लवालव था ---इस बात को सत्य होने में कई साल लग गए | जब हम 30 वर्ष के हुए तो पहला भवन मिला ,शिक्षा की फिर से शुरुआत हो गयी ,बच्चे भी पढ़ते थे -- मैं खुद भी संगीत की दुनिया में सीखने उतर गया --| सही मायने में ज्योतिषी तो मैं बाल्य्काल से हूँ --पर जब हम 50वर्ष के हुए तब मुझे लगा --सही ज्योतिष इसे कहते हैं --जिसमें किसी की बात दर्पण की तरह दिखने लगे --पूछने की जरुरत ही न पड़े | कईबार ऐसा भी लगता है -मैं सबसे घटिया ज्योतिषी हूँ --तब साधना में लीन होने लगता हूँ तो फिर भगवत कृपा से मार्ग प्रशस्त होने लग जाता है | --अब मैं अपनी कुण्डली की उन बातों पर भी प्रकाश डालने की कोशिश करूँगा --जिसकी वजह से विद्वान कम --मूर्ख में ज्यादा हूँ | आगे की चर्चा अगले भाग में पढ़ें --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ
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