ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मंगलवार, 7 नवंबर 2023

मेरा राजयोग ही था जो हम चल रहे थे अन्यथा दुःखों की भरमार थी -पढ़ें - भाग -71 ज्योतिषी झा मेरठ



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -71 ज्योतिषी झा मेरठ

प्रिय पाठकगण -भगवान श्री राम हों या श्रीकृष्ण राज परिवार में जन्म लिए --इनकी जीवनी से यह ज्ञात होता है ,दुःख में सुख का अनुभव नहीं होता है और सुख में दुःख का भी अनुभव नहीं होता है | ---अस्तु -मेरा राजयोग ही था जो हम चल रहे थे अन्यथा दुःखों की भरमार थी | एक शतचण्डी 1996 वे में की थी तब उम्र 26 वर्ष थी ,राहु का दरिद्र योग चल रहा था --तो रोजगार का साधन मिलने लगा | दूसरी शतचण्डी किसी यजमान की की थी --1999 में तो निवास और मन्दिर मिले ,रोजगार बहुत ही ठीक था ,सभी जगह प्रख्यात हो रहे थे ,सभी सहकर्मी मित्रों को मनोनुकूल दक्षिणा के साथ सम्मान दिलाने का भरसक प्रयत्न करते थे | पर विध्न अनन्त थे --पिताजी को किसीने कहा होगा ये काला कपडा अपने साथ मेरठ बड़े पुत्र के पास ले जाओ तुम्हारा काम बन जायेगा ,उनका काम बन गया --अनुज का हिस्सा मुझसे 15000 ले गए | हम बहुत बीमार रहने लगे ,छोटी बेटी बहुत बीमार हो गयी ,पहले टाइफाइड हुआ फिर टीबी हुई फिर अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ | मेरा भी छोटा सा ऑपरेशन हुआ -आँख के ऊपरी भाग में अनायास गांठ बन गयी थी | कोई भी परिजन देखने नहीं आये | -आज के युग में बेटियां हों पतनी हो पराधीन जीवन हो तो अहसास वही व्यक्ति कर सकता है -जो धर्मानुरागी हो अन्यथा जीवन मान से जीएं या अपमान से क्या फर्क पड़ता है | मुझे मन्दिर और निवास तो मिले ,रोजगार बहुत थे पर गंदगी बहुत थी --इसलिए हम सब बीमार हो रहे थे | किसी तरहअपना निवास लेना चाह रहे थे | अपना तो कोई था ही नहीं {सब होते हुए भी } एक यजमान मित्र थे उनसे निवेदन किया --भवन छोटा सा दिला दो --बोले जरूर -जहाँ बात करके आये --उस समय मेरठ में कांग्रेस के युवा अध्यक्ष श्री रोहतास भैय्या माधवपुरम प्रेम विहार मेरठ हुआ करते थे | उनकी इनसे बात हुई -20000वयाना दिए -दस मेरे दस यजमान मित्र के --बिना कागजात के फिर क्या था --श्री रोहतास भैय्या उनको पीटा भी और रूपये भी खा गए --हम मुंह देखते ही रह गए | ये 2002 की बात है | अब हम निराश हो गए ,गांव में पैसा देने के बाद माता पिता जीना मुश्किल कर चुके थे वहां भवन का सुख नहीं मिला यहाँ मेरठ में जिन पर उम्मीद थी वो भी ले डुबे | पतनी बीमार हो गयी मकड़े के घाव से --यहाँ धन तो था ,न शुद्ध जल था न शुद्ध वातावरण था स्थान किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ ,बीड़ी ,सिगरेट ,शराब की भरमार थी | भगवन शिव की आराधना में लग गए --एक और मित्र मिले किशनपुरी के ही -धन तो नहीं दिया पर तन से सहायता बहुत की | --चाहे बेटी हो ,पतनी हो या मेरा खुद का ऑपरेशन तन मन से सहायता की | अब हम फिर कैसे भी करके मकान लेना चाह रहे थे ,किराये के मकान में नहीं रहना चाहते थे | ये मित्र यजमान ने एक मकान दिखाया -प्रेम बिहार गली नंबर 2 माधवपुरम मेरठ --40 गज का अभी बन ही रहा था किम्मत सवा दो लाख --मेरे पास थे सवा लाख --उस समय एक मित्र डालम पाड़ा मेरठ में रहते थे ,उनसे कर्य लिए एक लाख --मेरे यजमान मित्र को लगा इतने पैसे कैसे कर्य दे दिया | हमने दो लाख पैंतीस हजार जहाँ -तहाँ से कर्य लेकर यजमान मित्र के हाथ में दे दिए | जहाँ भवन लेने की बात हो चुकी थी कल रजिस्ट्री होगी --उससे लड़ाई करके रात में यजमान मित्र आये बोले --गुरूजी ये मकान मत लो -इन पैसों से व्यापार करेंगें ,बढियाँ मकान लेंगें ,ये घटिया मकान है | मेरी जो परिस्थिति थी वो हम जानते थे या भगवान ,अब तो हम फस गए ,कर्य भी ले लिया मकान भी नहीं मिला धन लालाजी के हाथ चला गया | पतनी ने राय दी ,मकान वाले से बात करो जो भी है ,जैसा भी है लेना है ,मकान मालिक तैयार हो गया --अब लालाजी बोले -और पैसे कहाँ से आयेंगें -जबकि साढ़े आठ हजार रजिस्ट्री में दो लाख अठारह हजार मकान का दाम ---हमने लालाजी को दिए थे दो लाख पैतीस हजार | खैर जैसे- तैसे करके यह मकान मिला -10 /01 /2003 को "भारत भूमि पर पुरुष की अपेक्षा महिला पक्ष दयालु होता है --यह मकान मिला तो इसमें लालाजी की अर्धांगिनी न होती तो शायद हमें मकान तो मिलता ही नहीं धन भी नहीं मिलता | ----अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

जानिए गोवर्धन पूजा का महत्व-ज्योतिषी झा "मेरठ "



 जानिए गोवर्धन पूजा का महत्व-ज्योतिषी झा "मेरठ "

हमारे कृषि प्रधान देश में गोवर्धन पूजा जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत आवश्यकता है। इसके पीछे एक महान संदेश पृथ्वी और गाय दोनों की उन्नति तथा विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा प्रयत्नशील होना छिपा है। अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।

-----अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है। उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र की ही उस दिन पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई है। धर्मग्रंथों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है।
---ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के लिए किया जाता है। बालखिल्य ऋषि का कहना है कि अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव श्रीविष्णु भगवान की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए। इन पर्वों से गायों का कल्याण होता है, पुत्र, पौत्रादि संततियां प्राप्त होती हैं, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त होता है। कार्तिक के महीने में जो कुछ भी जप, होम, अर्चन किया जाता है, इन सबकी फल प्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए।
गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभ कामनाएं-------दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

महालक्ष्मी स्त्रोत्र -सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ


 


महालक्ष्मी स्त्रोत्र -सुनें !ज्योतिषी झा {मेरठ }

दोस्तों -प्रत्येक देवता के पंचांग पूजन होते हैं और तभी कामना पूरक देवता की कृपा प्राप्त की जा सकती है -जैसे प्रथम -न्यास ,दूसरा -ध्यान ,तीसरा -पूजन ,चौथा -जाप और पांचवा -स्तुति । हम किसी भी देवता को प्राप्त करने हेतु पंचांग विधि अपनाते हैं -तभी मनोकामना की पूर्ति इष्ट देव प्रदान करते हैं । इन पांचों में स्तुति सर्वोपरि है -स्तुति के द्वारा किसी को भी रिझाना अति सरल होता है -तो सुनें माँ लक्ष्मी की स्तुति । --- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

ऋणमोचन मंगल स्त्रोत्र -सुनें-ज्योतिषी झा मेरठ



 ऋणमोचन मंगल स्त्रोत्र -सुनें !ज्योतिषी झा {मेरठ }

दोस्तों -जीवन में जब ऋणी या कर्जदार हो जाय ,संतान की कामना हो ,भवन की लालसा हो ,योद्धा की भांति जीना हो ,मैदान में जीत की कामना हो या फिर सरकारी सेवा प्राप्त करनी हो तो इस ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का नित्य पाठ एक समय ,दोनों समय या त्रिकाल पाठ से अवश्य कामना की पूर्ति होती है । --- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र -का महत्व सुनें -ज्योतिषी झा {मेरठ }


 कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र का महत्व  -सुनें !ज्योतिषी झा {मेरठ }

दोस्तों -एकबार श्रीशंकराचार्यजी ने एक गरीब महिला से भिक्षा मांगी ,धनाभाव के कारण वो महिला घर में रखें आंवला भिक्षा में दिए । भगवान शंकराचार्य को उस महिला पर दया आगयी --तभी उसके आँगन में इस कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया -जिसके प्रभाव से वही आवला स्वर्ण रूप में परिवर्तित हो गए । तब से कोई भी व्यक्ति इस स्तुति के पाठ से धन से युक्त जाता है । ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.

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कनकधारा स्तोत्र {लक्ष्मी स्तुति } सुनें --खगोलशास्त्री झा मेरठ



 कनकधारा स्तोत्र {लक्ष्मी स्तुति } सुनें --खगोलशास्त्री झा मेरठ

कनकधारा वह स्तुति है --जिसे श्री आदिशंकराचार्य ने रचना भी की और तत्काल आवला स्वर्ण रूप में परिवर्तित हो गए थे | यह संस्कृत भाषा हैं --सुनने से भी लाभ होता है एवं पाठ करने से भी लाभ होता है | अपने शिष्य को तमाम कसौटी पर परखने का प्रयास करता रहता हूँ | --जिसे देखकर और सुनकर विस्वास संभव है | ----भवदीय निवेदक --ज्योतिषी झा मेरठ --आपके अनन्त ज्योतिष+कर्मकाण्ड जिज्ञासा का केंद्र --यह पेज है ,पधारें अपना लाभ अपने अनुसार उठायें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"पात्रता से ही लक्ष्मी स्थिर होती है -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


 



"पात्रता से ही लक्ष्मी स्थिर होती है ?"----मित्रप्रवर ,राम -राम ,नमस्कार ||


लक्ष्मी के बिना जीवन अधूरा सा रहता है,इसके लिए हमलोग अथक परिश्रम भी करते हैं ,धर्म अधर्म का विचार भी नहीं कर पाते हैं-परन्तु यदि कुपात्रता से धन का संचय किया गया हो-तो "लक्ष्मी "हमें परित्याग करने में संकोच नहीं करती हैं -आइये हम आपको एक कथा सुनाते हैं,और कहाँ निवास नहीं करती है "लक्ष्मी "प्रकाश डालने की कोशिश भी करते हैं -शास्त्रोक्त [शास्त्रों से ]?-----अस्तु -श्रीमार्कंडेयपुराण-में एक कथा आती है क़ि शचिपति "इंद्र" दैत्येन्द्र जम्भ से पराजित होकर निराश हो गए | देवगुरु ने इंद्र को श्री विद्या के परमाचार्य "श्री द्त्त्तात्रेय "की शरण में जाने की सम्मति दी |जब इंद्र समेत सब देवता श्री दत्तात्रेय जी के आश्रम पर पहुंचे ,तब उन्होंने उन्हें कुछ विकृत वेषाव्स्था में साक्षात् भगवती लक्ष्मी के साथ आसीन देखा |उनकी प्रेरणा से देवताओं ने पुनः युद्ध छेड़ दिया और जब दैत्य उन्हें मारने लगे ,तब वे भागते हुए दत्तात्रेय जी के आश्रम पर पुनः पहुँच गए और पीछे से खदेड़ते हुए देते भी वहीँ जा पहुंचे|---दैताय्गन वहां उनकी पत्नी भगवती ल्स्ख्मीी को देखकर अपने मनोवेग को न रोक सके और झट सब कुछ छोड़कर ,उस श्री को ही बलात एक पालकी में डालकर सर पर ढ़ोते हुएअपने वासस्थल को चल पड़े | इस पर भगवान दत्तात्रेय ने देवताओं से कहा -"यह आप लोगों के लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है ,क्योंकि ये लक्ष्मी इन दैत्यों के सात स्थानों को लांघकर आठवे स्थान [मस्तक ] पर पहुँच गयी है |सर पर पहुँचते ही ये तत्काल अपने आश्रय का परित्याग करके अन्यत्र चली जाती है ||शारडगधर पद्धति -६५७ में -के भावों को भी समझते हैं ---"कुचैलिनम दन्तमलोपधारिनम ब्रह्मशिनं निष्ठुर वाक्य भाषिनाम |सूर्योदय हस्त्म्येअपी शयिनम विमुन्चती ,श्रीरपि चक्रपनिनम ||----भाव -जिसके वस्त्र तथा दांत गंदे हैं ,जो बहुत खाता तथा निष्ठुर भाषण करता है,जो सुर्यास्त्काल में भी सोया रहता है,वह चाहे चक्रपाणी "विष्णु " ही क्यों न हो ,उसका लक्ष्मी परित्याग कर देती है |और भी कुछ शास्त्रकारों ने लिखा है .---..परान्नम परवस्त्रं च परयानम परस्रीयह|पर वेस्वा निवासस्चा शंक्स्यापी श्रियः हरेत ||--भाव -पराया अन्न ,दूसरे का वस्त्र,पराया यान [वाहन ],परायी स्त्री और परग्रिह्वास[दूसरों के घर में रहना ] ये "इंद्र "की स्री संपत्ति को भी हरण कर लेते हैं ||ब्र०-रंजनन -१६८ के अनुसार -असुरराज भक्त प्रह्लाद ने एक ब्राहमण को अपना शील दान कर दिया |उसके कारण लक्ष्मी ने उन्हें -तत्काल छोड़ दिया ,तत्पश्चात अनेक प्रकार से प्रार्थना करने पर करुणामयी लक्ष्मी ने साक्षात् दर्शन देकर उपदेश दिया कि-हे प्रह्लाद ! तेज ,धर्म,सत्य ,व्रत ,बल ,एवं शील आदि मानवी गुणों में मेरा निवास है |इन गुणों में शील अथवा चरित्र मुझे सबसे अधिक प्रिय है ,इस कारण मैं सच्चिल व्यक्ति के यहाँ रहना सबसे अधिक पसंद करती हूँ ||महा ० शा ०-१२४ के अनुसार ----दानवीर दैत्यराज "बलि " ने एकबार उच्छिष्ट भक्षण कर ब्राह्मणों का विरोध किया| श्री ने उसी समय बलि का घर छोड़ दिया |--लक्ष्मीजी ने कहा चोरी ,दुर्वसन,अपवित्रता एवं अशांति से घृणा करती हूँ | इसी कारण आज में बलि का त्याग कर रही हूँ ,भले ही वह मेरा अत्यंत प्रिय है ||महा ०शन्ति ०२२५ के अनुसार -------इसी प्रकार लक्ष्मीजी रुक्मिनिजी से कहती है ,कि हे सखे !निर्लज्ज ,कलहप्रिय ,निंदाप्रिय,मलिन ,अशांत एवं असावधान लोगों का मैं अतीव तिरस्कार करतई हूँ ,तथा इनमें से एक भी दुर्गुण व्याप्त होने पर मैं उस व्यक्ति का त्याग कर देती हूँ ||महा ०अनु ० ११ के अनुसार ------अनपगामिनी सुस्थिर लक्ष्मी के लिए --शर्दादी तिलक --८/१६१ में निर्देश हैभुयसीम श्रीयमाकन्क्षण सत्यवादी भवेत् सदा |प्रत्यगाशामुखोश्रीयत स्मित पुव प्रियं वदेत ||--अर्थात -अधिक श्री [लक्षी ] की कामना करने वाले व्यक्ति को सदा सत्यवादी होना चाहिए ,पश्चिम मुह भोजन तथा हसकर मधुर भाषण करना चाहिए ||-{-भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री" मेरठ---आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

ऋणमोचन मंगल स्तुति सुनें और नित्य पाठ करें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



 ऋणमोचन मंगल स्तुति सुनें और नित्य पाठ करें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

--जब धन की जरूरत हो या ऋण से उऋण होना हो या फिर संतान की कामना हो तो ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिए |आपका ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से ज्योतिष की विशेष जानकारी हेतु इस लिंक पर पधारें--https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मेरे पिता की कुण्डली में शनि नीच का पंचम भाव में था -पढ़ें - भाग -70 ज्योतिषी झा मेरठ


 


मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -70 ज्योतिषी झा मेरठ

मेरे पिता की कुण्डली में शनि नीच का पंचम भाव में था --जिसकी दृष्टि से दाम्पत्य सुख प्रभावित रहा | आय का क्षेत्र प्रभावित रहा एवं अन्तिम दृष्टि सम्पत्ति के क्षेत्र में थी सो कुछ नदी में समा गयी ,कुछ बिक गयी ,कुछ परिजनों ने कब्जा कर ली ,कुछ विवाद में धन चला गया तो कुछ अपनों ने ले ली --अन्तिम सांस के समय अनुज और माँ ने वो भी धन खर्च नहीं किये जिसपर अधिकार था | माँ का भी धन अनुज ने समेट लिए बदले में माँ को भी शून्य हाथ लगा | वैसे अनुज का विवाह होते ही हम अलग हो गए -माता पिता हमारे साथ न आकर अनुज के साथ रहे | हमने 2003 से विशेष धन देना बन्द कर दिए | हमारे माता - पिता अनुज को धनाढ्य बनाना चाहते थे | मकान में किरायेदार रहने लगे ,रूपये व्याज पर चलने लगे | अनुज की प्रगति होने लगी | 2003 में मेरठ निवास अपना हुआ तो हम भी अपने बच्चों को सही शिक्षा देने में लग गए | मतृभूमि पर सभी परिजन हमें तिरस्कृत भाव से देखने लगे | अब कोई चाय सर्बत का भण्डारा नहीं होता था | बल्कि जब भी हम घर जाते तो हमारा सबसे ज्यादा तिरस्कार पिता ही करते थे | हम अपने पैसों से चाय भी पीते थे | मेरे कमरों में किरायेदार रहते थे वो पैसे भी पिता ही लेते थे ,उपज भी पिता ही लेते थे ,सभी परिजन पिता को चढ़ाते थे ,मेरी सहायता जो करता उससे माता पिता लड़ते थे | मेरी बेटियां बड़ी हो रही थी जब भी गांव जाते थे तो सबसे घटिया मांसाहार किरायेदार को रखते थे ,हमने कईबार पिता से कहा जब तक हम रहते हैं तो ऐसे किरायेदारों को मत रखो --वो कहते थे मेरी मर्जी हम कुछ भी करें | --भवन के अन्दर आने -जाने का रास्ता संकीर्ण था ,यह रास्ता मेरे हिस्से में था पर पिता नहीं चाहते थे सीढ़ी टूटे --बिना सीढ़ी टूटे रास्ता अलग नहीं हो सकता था | मकान हमारा था फायदा पिता लेते थे -जो पिता मुझे बहुत चाहते थे जबतक धन दिया हम अच्छे थे --धन देना बन्द किया सबसे बुरे हो गए | ननिहाल हो या ससुराल या फिर रिस्तेदार सभी हमारा उपहास उड़ाते थे कहते थे --माता पिता को नहीं देखते हो --यह शब्द मरने जैसा लगता था | हमारा राजयोग चल रहा था रोजगार बढियाँ था निवास मेरठ में ही मिल चूका था, धीरे -धीरे अपनी जिम्मेदारी को संभालते हुए आगे बढ़ रहे थे --पर मातृभूमि पर -माता पिता ,दीदी -जीजा ,अनुज के परिवार ,मामा -मामी सभी परिजन हमारे दुश्मन बन चुके थे | मुझे दो कन्या थी तो भगवान ने अनुज को भी दो कन्या दी | अगर माता पिता की कृपा से होता तो उसे पुत्र ही होता ---पर सबके जो माता पिता श्री हरी हैं उन्हें सब पता है | मैं धैर्य बांध चूका था पुत्र की कामना नहीं थी --पर कईबार माता पिता अपमानित कर चुके थे --तुझे पुत्र नहीं होगा | एकबार तो मेरे यजमान मेरठ में बोली -इतने बड़े पण्डित हो तो अपना ही पुत्र क्यों नहीं होता | बात मेरे साथ यह थी सन्तान तो हो सकती थी किन्तु दो पुत्रियों का पालन ही हम ठीक से नहीं कर पाये थे --अगर फिर पुत्री होती तो कहाँ से पालन करते --इस डर से अगली सन्तान की चाहत नहीं थी | --कभी -कभी शाप भी वरदान बन जाता है | --अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...