मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -73 ज्योतिषी झा मेरठ
यूँ तो बाल्यकाल और युवावस्था दरिद्रयोग में ही रहे | जब हम गुरुकुल में पढ़ रहे थे 1984 चौदह वर्ष के थे तो दसों ठाठों का अभ्यास करा दिया था गुरूजी ने पर गुरूजी को नौकरी नहीं मिली तो यह शिक्षा तभी छूट गयी थी | 1999 जब हम 29 वर्ष के हुए राजयोग शुरू हुआ --किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ में निवास था तो पहली कमाई से एक हारमोनियम ख़रीदा --इसके पीछे एक रहस्य था -कर्मकाण्ड की दुनिया में बहुत मजबूत थे ,सभी यज्ञों का पूर्ण अनुभव था ,तमाम मन्त्र मेरी जिह्वा पर थे --ये सारा ज्ञान मुझे आश्रम की शिक्षा में ही प्राप्त हो चुके थे -1981 से 1986 के बीच ,पर बिना किसी की सहायता या प्रेरणा के बिना व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता है | यह कला मुझे मेरठ और मुम्बई के अनुभव से प्राप्त हुयी अतः बहुत सारे मित्रों को कर्मकाण्ड में अपने साथ ले जाते रहे | जब किसी मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा कराते थे तो मेरा प्रयास रहता था --जरुरत मन्द जो शिष्य हैं उन्हें मन्दिर दिलाएं | साथ ही शिक्षित भी करें | मेरठ में एक मन्दिर बांस वाली गली एवं जुनेजा मार्किट कबाड़ी बाजार में प्राण प्रतिष्ठा कराने का अवसर प्राप्त हुआ --ये दोनों मन्दिर अपने शिष्यों को दिलवाये ,साथ ही एक शिष्य हीरानन्द ठाकुर से हमने कहा संगीत सिख लो --तो वहीँ कबाड़ी बाजार में जय हिन्द बैण्ड के संचालक श्री जगदीश धानक रहते थे | उनसे निवेदन किया इस बालक को संगीत सीखा दो --बालक सीखने लगा --एक दिन मैं देखने गया ये क्या और कैसे सीखता है | जब मैं गया और बालक को हारमोनियम बजाते देखा --तो हमने कहा ये सरगम ऐसे नहीं बजाते हैं --इस प्रकार से बजाओ --वो बालक फिर कभी सीखने नहीं गया हम खुद सीखने लगे | अब मेरी सोच थी संगीतमय कथा वाचक बनने की | संगीत की दुनिया में भी उस योग्य बन चूका था --1999 से 2009 तक संगीत भी सीखता रहा ,अपने बच्चों को सही शिक्षा दीक्षा देने का प्रयास करता रहा | दो बेटियां थीं हमने कभी नमक भी बाजार से लाने को नहीं कहा ,पतनी घर संभालती थी मैं संगीत कर्मकाण्ड के क्षेत्रों में मस्त था | मेरे साथ इतना होने के बाद भी बहुत समस्या थीं | गृहकलेश भयंकर था ,सभी परिजन शत्रु थे ,अपना कोई था नहीं ,जहाँ जाते बच्चों को अपने साथ ले जाते ले आते ,बच्चों को छोड़कर कहीं जाना असंभव था | साइकिल से हीरो पूक पर आ गए --एक यजमान मित्र थे उन्होनें यह हीरो पुच दी | अपना भवन मेरठ में हो चूका था | जब हम प्रेम विहार मेरठ -यहाँ के भवन -2003 में गए --यहाँ के पड़ौसी बहुत परेशान करते रहे ,कोई क्रिकेट की बॉल से दरवाजे ठोकता तो कोई ---अपशब्द कहता ,दिन रात मेरे मकान के सामने नौ जवानों का ताता लगा रहता था | बेटियां डरी -सहमी सदा रहती थी ,कोई वाहन दरवाजे के सामने लगा देता ,तो कोई पतनी को तू तड़ाक से बात करता ,दिन रात पतनी इन तमाम बातों को कहती रहती थी | सबकुछ होते हुए भी मैं असहाय रहता था | कभी होली में सभी लोग मेरे घर के आगे शोर- शराबा करते तो कभी दिवाली में पटाके जान बूझकर मेरे घर के आगे फोड़ते थे ,मानों यह मुहल्ला नहीं --कोई चौराहे पर घर ले लिया था | हमारी रक्षा सिर्फ परमात्मा ही कर सकते थे | सभी की नजर में हम धनिक थे ,शास्त्री थे --पर मैं सबसे बड़ा अपने आप में असहाय थे | संगीत के सुर उत्तम तब बनते हैं जब व्यक्ति प्रसन्न होता है --मैं दिनों दिन मन से पतन की और जा रहा था | यह मकान कईबार बेचने को सोचा पर बेच नहीं पाया क्योंकि इस मकान का दाम उतना देने को तैयार नहीं था --साथ ही कई अवगुण गिना देते थे लोग | साथ ही बढियाँ मकान लेने की परिस्थिति नहीं थी | बेटियां बड़ी हो रही थीं | उन बच्चों का भविष्य कैसे ठीक हो यही सोचता रहता था | दिन -रात मेरी पतनी से कहा सुनी हो जाती --बात वहीँ से शुरू होती थी --जेवर बेच दिए ,भैस बेच दी ,सारे पैसे माँ बाप को दे दिए --मुझे और बच्चों को सड़क पर छोड़ दिए | ऐसा लगता था जैसे मृत्यु का दामन मेरे साथ -साथ चलता हो | पर फिर भी पत्थर की तरह जीता रहा --------अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

