ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरुवार, 19 अक्टूबर 2023

ज्योतिष की भविष्यवाणी सत्य क्यों होती है -सुनें भाग -50 ज्योतिषी झा 'मेरठ "



 ज्योतिष की भविष्यवाणी सत्य क्यों होती है -सुनें भाग -50 -ज्योतिषी झा 'मेरठ "

ज्योतिष के जिज्ञासु पाठकगण --ज्योतिष की तमाम बातों को जाना जा सकता है --अगर गणित और फलित के साथ ईष्ट की कृपा तो --तमाम बातों को एकबार सुनें साथ ही अपनी कसौटी पर परखकर देखें | --आपके समस्त ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड के प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत पेज में हैं ---खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

विद्याअध्ययन संस्कार-क्यों -पढ़ें - ज्योतिषी झा "मेरठ"


 विद्याअध्ययन संस्कार-क्यों -पढ़ें - ज्योतिषी झा "मेरठ"

या विद्या सा विमुक्तये --वास्तवित बात तो यह विद्या ऐसी होनी चाहिए जो लोभ ,अर्थ ,काम, मोह का परित्याग कराकर मोक्ष की ओर ले चले | धयान दें ---जब आप उत्तम शिक्षा की प्राप्ति करते हैं तो उत्तम पद और उत्तम धन की जिज्ञासा अवश्य रखेंगें | जब आप उत्तम भवन की नींव रखते हैं तो भवन को भव्य अवश्य बनायेंगें | ठीक इसी प्रकार से जब उत्तम संतान की कामना करते हैं तो शिक्षा भी उत्तम होनी चाहिए | पर जिस विद्याध्ययन संस्कार का प्रतिपादन मह्रषियों ने किया उस विद्याध्ययन के लिए माता पिता परिजनों के साथ साथ उत्तम रहन -सहन का भी त्याग करना होता है तभी अलौकिक विद्या प्रभाव दे पाती है | यहाँ से दो मार्ग शुरू होते हैं सभी जातकों के -{1 }पहला -संसार में जीने हेतु या जीवन को समझने हेतु लौकिक विद्या का ज्ञान अनिवार्य है --इसके लिए किसी भी चीज का त्याग करना अनिवार्य नहीं होता बल्कि केवल समझना अनिवार्य होता है | {2 }यह संसार मोह माया से लिप्त है और जो इस धरा पर आया है उसे जाना भी होगा तो ज्ञानी पुरुष संसार चक्र से निकलने हेतु अलौकिक विद्या के साथ -साथ अलौकिक जीवन जीते हैं साथ ही दूसरे को भी इस मार्ग का अवलोकन भी कराते हैं | --यहाँ भी कोई भेद -भाव नहीं है बल्कि -जो अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति करेगा -उसे यज्ञोपवीत धारण करना होगा --क्योंकि ब्रह्म सूत्र को धारण करने वाला ही ब्रह्म को जान सकता है ---इसके साथ -साथ -संध्या -गायत्री के जाप ,सही दिनचर्या का पालन करेगा ,आचार -विचार के प्रति सजग रहेगा ,संसारिक उन्हीं वस्तुओं को अपनायेगा जो सत मार्ग पर ले जाने लायक होगी तभी -वेद वेदान्त ,पुराण ,शास्त्रों को पढ़ेगा ---ऐसा बनकर ही सभी लोगों का प्रिय हो पायेगा | -----जो सांसारिक अन्य कार्यों से जुड़ेगा उसे केवल अपने -अपने मार्गों का चयन करना होगा साथ ही सांसारिक सभी वस्तुओं से लिप्त होगा ,उसे किसी वस्तु का त्याग नहीं करना होगा बल्कि उसे केवल एक सतगुरु की बातों को अमल करनी होगी ---उन गुरु की कृपा से मोह माया में रहकर भी परमात्मा की प्राप्ति करेगा | -----यहाँ ध्यान दें ---वैरागी व्यक्ति ही अलौकिक विद्या की प्राप्ति कर सकता है और सक्षम व्यक्ति {तन -मन -धन }ही उस विद्या से लाभ प्राप्त कर सकता है ----यहाँ दोनों चीजें दोनों के पास नहीं हो सकती है अगर है तो निष्फल हो जाएगी साथ ही फिर एक दूसरे से कोई जुड़ा भी नहीं रह सकता है --इसलिए इस विद्या अध्ययन संस्कार की जरुरत होती है|आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




जीवन में लाभ + हानि ज्योतिष के महादशा पर विशेष निर्भर है -पढ़ें- भाग -50-खगोलशास्त्री झा मेरठ


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -50-खगोलशास्त्री झा मेरठ


"जीवन में लाभ और हानि ज्योतिष के मत से महादशा पर विशेष निर्भर है --जिसकी सटिक जानकारी और निदान से ही मानव का जीवन सुदृढ़ हो सकता है ---आज मैं अपनी जीवनी की प्रमुख नायिका पर प्रकाश डालना चाहता हूँ "--अस्तु --भले ही मैं शास्त्री था ,तमाम ग्रन्थ मेरी जिह्वा पर थे --पर मुझमें बदलाव --इसके लिए जब गुरु की दशा आयी तब आया -- जब हम 29 वर्ष के हुए | मेरा विवाह 19 वर्ष में हुआ और तीन दिन में ही हुआ | विवाह मुझे अपने कलंक को धोना था --न हम कामयाब थे ,न ही विवाह कब करना चाहिए यह ज्ञान था --फिर भी कभी -कभी ईस्वर आपको स्वतः ही देता है जिसकी आप उम्मीद भी नहीं करते हैं --खासकर मेरे साथ ऐसा ही हुआ | आज मैं जहाँ हूँ वो सिर्फ अपनी भार्या के कर्म और भाग्य की वजह से --यद्पि हमने ,हमारे परिवार ने ,हमारे परिजनों ने उसे दुःख ही दिए --विवाह करके तो ले आये --उस समय भले ही मेरी कुण्डली में राहु की दशा चल रही थी --जो मुझे विदित नहीं थी ,न ही अकल थी --इसके बावयुद जो संघर्ष किया मेरी भार्या ने --वो सिर्फ मैं अहसास कर सकता हूँ --मैं चाहकर भी उन दुःखों के दर्द को अब समाप्त नहीं कर सकता हूँ | --आज जब मैं एक दक्ष ज्योतिषी हूँ ,आचार्य हूँ --तो मुझे लगता है --मातृदेवो भव जो शब्द है --ये इतना सरल नहीं है --इसकी गरिमा बहुत है --बेटी ही किसी की पतनी बनती है ,पतनी ही माँ बनती है --इसलिए इन तीनों रूपों में हमें आदिशक्ति ही शास्त्र दिखाते हैं | आज माँ -तो माँ रहती है किन्तु --जो बेटी ,बहू और बहू से माँ बनती है --तो भेद भाव पुरुष नहीं करते हैं बल्कि माँ ही सिखाती है | आज किम्बदन्ति यह है -पुरुष गड़बड़ करते हैं --पर उन पुरुषों को भी तो माँ ही जन्म देतीं हैं | --ये माँ के संस्कारों पर निर्भर है माँ अपनी संतानों को क्या और कैसा बनाना चाहती है | -विवाह के बाद मैं अपने माता पिता परिजनों के पास छोड़कर आया था कमाने -वो धन भी हमने माता पिता को ही दिए थे --पर वो धन उन्हें मिला जो हकदार नहीं थे| जिस दिन ब्रत होता था तो दीदी +माँ दूसरे के आंगन में फलाहार करतीं थीं --बहू को लगे हम भी भूखे हैं --ये घटना केवल मेरी ही नहीं है --बहुत से घर आज भी हैं --जहाँ ऐसा ही होता है | मेरी भार्या का विवाह होते ही भाई ,पिता सब यकाएक गुजर गए | मंगलसूत्र बेचकर दे दिए --खाई भरने के लिए ,ससुराल की इज्जत बनी रहे ,भूखी रहकर भी मायके में नहीं गयी जबकि इतना तो धन मेरी ससुराल में आज भी है ---जिससे मेरे सभी बच्चों का भरण -पोषण हो जायेगा | स्वाभिमान बनाने के लिए इससे बड़ा त्याग क्या हो सकता है | मेरी दीदी है --ससुराल में कोई अभाव न होने के बाद भी माईके को निवास स्थान बनाया --अगर बनाया तो -मेरी भार्या को अपने हृदय की तारह समझती | 1990 में विवाह हुआ था मेरा -पतनी के सुख के दिन -2000 में आये -तबतक दो बेटियां हो चुकी थी ,दहेज में भैस बची थी --ससुर ,साले सभी गुजर गए पर -माता पिता को अपनी गरीबी मिटाने के लिए वो भी चाहिए थी --मेरी सास ने भैस भी दी --उसे भी बेचकर खा गए --खा गए कोई बात नहीं पर ह्रदय से तो लगाते --"यहाँ मैं एकबात कहना चाहता हूँ माँ से सुन्दर कुछ नहीं --इस हिसाब से तो मैं बहुत बड़ा व्यक्ति बना गया --किन्तु जब ग्रहों की चाल बदलती है --तो वही माँ भार्या काली का भी रूप धारण कर लेती है --इसका जिक्र आगे करूँगा -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

पिता बिना जीवन कैसा होता है - सुनें भाग -49 -ज्योतिषी झा मेरठ



 पिता बिना जीवन कैसा होता है - सुनें भाग -49 -ज्योतिषी झा मेरठ

प्रिय श्रोतागण --अब मैं अपने जीवन का उत्तरार्ध भाग सुनाना चाहता हूँ | पिता के बिना जीवन निरर्थक हो जाता है | पिता कैसे भी हों छत्र छाया व्यक्ति के ऊपर बनी रहती है --जो जीतेजी समझ में नहीं आती है --सम्पूर्ण बातों को सुनने का अवश्य प्रयास करें | -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --यह पेज सभी लोगों के लिए उपयोगी है --परखकर देखें ,आपका लाभ ही सेवा का आधार है | - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

जनेऊ संस्कार में विरोधाभाष क्यूं है -पढ़ें - ज्योतिषी झा 'मेरठ"


  जनेऊ संस्कार में विरोधाभाष क्यूं है -पढ़ें - ज्योतिषी झा 'मेरठ"

कर्मकाण्ड जगत में -जनेऊ संस्कार अर्थात --चयनित मार्ग पर चलना हो तो प्रत्येक जातकों को द्वीज बनना होता है | जैसे प्रत्येक छात्रों को दशवीं कक्षा के बाद अपने -अपने विषयों का चयन करना होता है जो खुद ही करना होता है --अगर आप कर्मकाण्ड करना चाहते हैं तो वेद पढ़ें | अंग्रेजी विषय में -आर्ट पढ़ें | आप ज्योतिषी बनना चाहते हैं तो ज्योतिष विषय पढ़ें | अंग्रेजी के छात्र हैं -आर्ट या और भी विषयों का चयन कर सकते हैं | आपको पढ़ाना है या नौकरी करनी है तो संस्कृत के विषय -साहित्य या व्याकरण का चयन कर सकते हैं | अंग्रेजी में साइंस विषय का चयन करते हैं | अर्थात प्रत्येक बालकों को अपने -अपने मार्ग का चयन खुद ही करना होता है | ठीक इसी प्रकार से --जनेऊ ,या उपनयन संस्कार का शाब्दिक अर्थ है उपवस्त्र या विशेष प्रकार की क्षमता प्राप्त करने हेतु यह संस्कार होना चाहिए --इस संस्कार के बिना न तो कर्मकाण्ड जानने के न ही कराने के अधिकारी हो सकते हैं | सवाल यह उठ सकता है --कोई क्यों नहीं पढ़ सकता है तो --जो संध्यावंदन करेगा ,शिखा धारण करेगा ,धौत वस्त्र पहनेगा ,सात्विक भोजन करेगा ,निष्पक्ष और निःस्वार्थ ज्ञान प्रदान करेगा साथ ही अपना व्यवहार सरल और परमात्मा के साथ रखेगा वही कर्मकाण्ड करेगा या वेद -वेदान्त का अध्ययन करेगा अध्यापन करायेगा | इसलिए प्रत्येक यज्ञ में यजमान को भी द्विज बनना होता है तभी यज्ञ सफल होते हैं | यहाँ एक बात सोचें -अगर सभी द्विज बन जायेंगें या सभी राजा ही बन जायेंगें या सभी वैश्य ही बन जायेंगें तो सामाजिक सभी कार्य कैसे चलेंगें | एक व्यक्ति ने महर्षि से पूछा अगर कोई द्विज भगवान के पास निरंतर रहेगा तो भगवान तो केवल उनके ही होंगें ,तो महर्षि ने कहा कोई द्विज भगवान के पास 24 घण्टे रहेगा उसे पूजा करने से जितना पुण्य मिलेगा अगर समाज का कोई भी कार्य करने वाला समाज के हित लिए कार्य करें और केवल भगवान का स्मरण या दर्शन दूर से भी एकबार कर लेगा तो उसको भी उतना ही पुण्य मिलेगा जितना द्विज को मिलेगा | तो फिर सभी को द्विज बनना उचित नहीं रहेगा | अतः समाज हित, देश हित ,विश्व हित के लिए सभी एक दूसरे के पूरक हैं न कि यहाँ कोई विरोधाभाष है | विरोधाभाष संस्कारों में नहीं हमारे व्यवहारों में है अतः उसे ठीक करना या ठीक से समझना हितकर रहेगा | आगे की परिचर्चा आगे करेंगें |-----ॐ आपका -




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प्रत्येक व्यक्ति का जीवन वास्तव में एक नाटक ही होता है-पढ़ें भाग-49-ज्योतिषी झा मेरठ


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -- भाग -49 -खगोलशास्त्री झा मेरठ


प्रत्येक व्यक्ति का जीवन वास्तव में एक नाटक ही होता है, किन्तु इस बात को नाटककार ही समझ सकता है | इसलिए उसे काल्पनिक कहानी कहता है | पर जब कोई भी व्यक्ति पीछे मुरकर देखता है --तो उसे खुद ही असम्भव --संभव कैसे हुआ समझ में आता है --तो उसे प्रेरणादायी कथा कहता है ---यही मुझे अनुभव हो रहा है | अस्तु ----आज मैं खुद का चित्रण करना चाहता हूँ ---जब मेरा राजयोग था -उम्र थी 5 वर्ष मुझे ज्ञात नहीं --पिताने कभी यह बात कही थी --तो एक ज्योतिषी के पास पिता गए थे --मेरा राजयोग था ,झेल सकते थे ,धन था ,मन था ,जिज्ञासा पुत्र ठीक हो की थी --मेरे बालों में अकारण आग लग जाया करती थी | --ज्योतिषी जी ने कहा एक दिन राजा बनेगा | बालक की अभी मंगल की दशा चल रही है --अमुक उपचार करें ठीक हो जायेगा | मैं ठीक भी हो गया| जिस दिन मैं ज्योतिषी बना तो सर्वप्रथम अपनी ही कुण्डली देखने की विशेष जिज्ञासा उत्पन्न हुई --तो उसमें सुख कम दुःख विशेष दिखाई देने लगा तो सोचने लगा --इससे अच्छा तो मैं ज्योतिषी ही नहीं होता तो ठीक था | यही स्थिति प्रायः सभी लोगों की होती है | आज जहाँ -52 वर्ष में हूँ एवं अब 2014 से शनि की दशा चल रही है | शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में है --नीचता ही सही भाग्य तो उत्तम रहेगा | --इसकी चर्चा मैं आगे करूँगा | जिस जातक के लग्न में सूर्य +मंगल +केतु हो सप्तम भाव में राहु विद्यमान हो साथ ही सिंह लग्न का भी हो --ऐसा जातक अहंकार ,क्रोध ,जिद्दी स्वभाव एवं क्रूर शासन करने वाला होता है | मेरे पिता भी मकर लग्न के थे उच्च का मंगल लग्न में था --तो वो भी बड़े जिद्दी स्वभाव के थे --शायद इसलिए --मेरे जैसा बालक के लिए सोच लिए पढ़ाना जरूर है ,अन्यथा मेरे जैसा बालक कहीं का नहीं होता --ऐसा एक और योग था मेरी कुण्डली में -चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में था --तो कैसा भी सही पिता का स्नेह मिलना लाजमी था --अन्यथा मैं यहाँ नहीं होता | मेरी माँ की कुण्डली उपलब्ध नहीं है --पर मेरे चौथे घर और भागयक्षेत्र का स्वामी मंगल लग्न में है ----वह योग बहुत ही उत्तम है --घर ,वाहन ,भाग्य एवं सम्पन्नता का योग है --किन्तु --चुगली ,झूठ बोलना ,झगड़ा लगाना ,विवाद बढ़ाना ,बहुत बोलना ,लज्जा विहीन ये तमाम गुण --मेरी माँ से मेरे मिलते हैं | मेरे पिता कईबार माँ पर दोष लगाया करते थे --इसका वजूद नहीं है ,इसे अपनी कमी दिखती नहीं है --जबकि ये सारे अवगुण मेरे पिता में नहीं थे | मेरे पिता जिद्दी थे अधर्मी नहीं थे ,दूसरे का अहित हो यह कदापि नहीं चाहते थे --ऐसे गुण मेरी माँ में भी थे ----पर ये सारे अवगुण मुझमें थे | मेरी कुण्डली में राहु का सप्तम भाव में होना साथ ही लग्न में सूर्य ,मंगल ,केतु का होना --विवाह सुख नहीं था --पर पतनी के आने के बाद ही सही धार्मिक बनें ,सही आचरणवान बनें ,सभी सुखों से परिपूर्ण हुए | --एक और विशेष बात --जब राहु की दशा रही --तो मैं भागा -भागा फिरता था और पतनी छत्र छाया की तरह हर पल ,हर घड़ी मेरी रक्षा में लगी रहती थी --यह थी गुरु बृहस्पति की दृष्टि | ---आज मैं इतना ही कहना चाहता हूँ --बहुत बड़ा योग लाभ या हानि उतना नहीं देता है --जितना --समभाव योग ,परस्पर सहिष्णुता की दृष्टि ,--मोठे तौर पर नवग्रहों को जानना अच्छी बात है --अगर तप का मार्ग है ,निदान का मार्ग है ,तो बड़ी -बड़ी हानियों से बचा जा सकता है |----आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...