ज्योतिष का पहला पाठ आपने पढ़ा --ज्योतिष का वास्तविक परिचय | आज ज्योतिष जगत में दूसरी पढ़ाई सूर्य देव से करें --सूर्यदेव को जानें बिना ज्योतिष को समझ नहीं सकते हैं | -------अस्तु --सूर्य को ही वैभव का कल्प तरु माना जाता है | ऋतुओं का जन्मदाता भी सूर्य ही है ,और वायु का पिता एवं जनक भी है | इसकी कोमल रश्मियों से रस ,सुगन्धि और माधुर्य की उत्पत्ति होती है | इसी सूर्य के चारो ओर पृथ्वी भ्रमण करती है | पृथ्वी एक विशाल अन्तरिक्ष -यान है | यह अंतरिक्ष में से एक अति वेगवान गति -से संघर्षण करती है ,अर्थात --अपने शानदार पिंड पर हम सबको धारण किए हुए जब यह पृथ्वी अंतरिक्ष में चक्कर लगाती है ,तब यह सूर्य के चारो ओर वर्षावधिक दीर्घ वृत्तीय ग्रहपथ में धूमती है | किन्तु --सब समय सूर्य से यह एक ही समान अंतर पर नहीं रहती | कईबार यह अत्यन्त निकट होती है और अनेक बार सूर्य से बहुत दूर अंतरिक्ष में भटकने को चली जाती है | --{"वास्तव में सूर्य नहीं चलता है प्रत्युत पृथ्वी चलती है --"किन्तु पृथ्वी वासियों को पृथ्वी पर से यही दृष्टिगोचर होता है कि सूर्य चलता है "--}जबकि चन्द्रमा पृथ्वी के चारो ओर भ्रमण करता है | चन्द्रमा के प्रकाश और प्रभाव से पृथ्वी की सारी वनस्पति पैदा होती है | समस्त जड़ी -बूटी ,पेड़ -पौधे सब चन्द्रमा से पोषण प्राप्त करते हैं | इसी कारण चन्द्रमा को औषधिपति कहा जाता है | समुद्र में ज्वार -भाटे का कारण भी चन्द्रमा ही है | इसी कारण पृथ्वीवासी चन्द्रमा से सदा प्रभावित होते हैं |
---सूर्य मानव का सर्वप्रथम ध्यान आकर्षित करता है | नदी के तीव्र द्रव्य में जैसे भंवर पड़ते हैं --वैसे ही सूर्य के गरम द्रव्य में भी भंवर पड़ते हैं ,जो गरम वायु गैस के होते हैं | सूर्य की पृथ्वी से दूरी 9 करोड़ 30 लाख मील और सूर्य का व्यास 8 लाख 65 हजार मील है | पृथ्वी की अपेक्षा सूर्य बहुत बड़ा है | पृथ्वी का विषुवत वृत्तीय व्यास 7 ,927 मील है | पृथ्वी की परिधि 25 हजार मील है | भूमि का क्षेत्रफल 5 ,70 ,00 ,00 वर्ग मील है | पानी का क्षेत्रफल 14 ,00 ,00 ,000 वर्ग मील है और पृथ्वी का कुल भार 6 ,60 ,00 ,00 ,00 ,00 ,00 ,00 ,00 ,00 ,000 टन है | पृथ्वी वासियों को 1 लाख 86 हजार मील प्रति सैकेण्ड के हिसाब से सूर्य प्रकाश प्राप्त होता है |
----ज्योतिष शास्त्री सूर्य को तारा की संज्ञा देते हैं | --तारा उसे कहते हैं ,जिसमें वास्तविक गति उपलब्ध न हो और वो स्थिर प्रायः हो | ज्योतिष के विद्वानों ने सूर्य को काल भी कहा है | काल का पर्याय युग है | युग शब्द की विवेचना ज्योतिष के अनेक ग्रंथों में हुई है | वेदत्रयी -संहिता काल में चार युगों की कल्पना है और उनकी सृष्टि दिव्या दिव्य भावों के आधार पर की गई है ---कलि शयनो भवति सज्जीहानस्तु द्वापर ,उतिष्ठ स्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरंश्चरै वेति चरैवेति "--अगले भाग में युग शब्द की व्याख्या करें ---भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष के सभी आलेख इस लिंक पर निःशुल्क उपलब्ध हैं -khagolshastri.blogspot.com
