ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
रविवार, 14 जुलाई 2024
मेरी आत्मकथा पढ़ें भाग -99 - खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
हर व्यक्ति का जीवन कैसा रहेगा यह पृथ्वी पर आगमन से लेकर 18 वर्ष उम्र तक निर्धारित हो जाता है | यह बात जन्मपत्रिका में निर्धारित रहती है | भले ही किसी कारण बस सही मार्गदर्शन समयानुसार न हो किन्तु ज्यों -ज्यों उम्र बढ़ती जाती है -उसी प्रारूप में व्यक्ति ढलता जाता है --इसे वह ईस्वर की कृपा मानता है या प्रारब्ध की घटना | ---अस्तु --मुझे अपने जीवन की सही यादें -10 वर्ष के बाद की हैं --जिन्हें सच मानता हूँ | मेरे पिता अनपढ़ थे -किन्तु हिम्मत के बहुत ही बलवान थे | तार्कित बुद्धि से सबको पराजित कर देते थे | उत्तम दर्जे का रहन -सहन था जबकि जेब में कुछ नहीं होता था | मेरा राजयोग दस वर्ष तक था तभी तक जो मिला सो मिला | मेरा दारिद्र योग शुरू हुआ तो लबे समय समय तक पतन का योग चलता रहा | किसी तरह गुजर -बसर करते रहे | घर में भले ही दरिद्र योग चल रहा था --मेरा घर से गमन दस वर्ष में ही हो गया | शिक्षा -के साथ धन का उपार्जन बाल्यकाल 10 वर्ष से ही मेरा शुरू हो गया | मेरी शिक्षा दीक्षा में पिताजी का कोई योगदान नहीं रहा --फिर भी मेरा सदा समर्पण भाव घर के प्रति रहा | अपने घर में केवल मैं ही सशक्त था -चाहे शिक्षा हो या सोच --पर हमारी कभी चलती नहीं थी | अपने सामने पिता को कई ऐसे फैसले लेते देखा जिसका परिणाम पतन की और ले गया | दीदी की शादी की जीजा को पढ़ाने का बोझ उठा लिया --जबकि हमारे घर में दरिद्र योग चल रहा था --हमने युद्ध किया तब जीजा अपने घर से पढ़ने लगे पर फ्री की खाने की सदा आदत पड़ गयी --जो आजतक नहीं बदली | हमारा एक बगीचा था -जिसे एक ताऊ को दिया बदले में घर के बगल की जमीन ली --किन्तु एकदिन ऐसा आया -वह जमीन भी लेली और बगीचा युद्ध का अखाडा बन गया | पिता के साथ सदा युद्ध होता रहा --और मैं देखता रहा | मेरे पिता चाहते तो शारीरिक श्रम से धन का उपार्जन करते किन्तु --जीवन भर युद्ध करने का निर्णय लेते रहे ---एक दिन ऐसा आया हम एक शास्त्री थे , मुझे शास्त्र की जगह --शस्त्र उठाने पड़े | मुझे क्रम से सभी परिजनों का शत्रु बनना पड़ा | हमने माता पिता के होते हुए --मामा से शत्रुता करनी पड़ी --क्योंकि सक्षम और शिक्षित होते हुए मेरे घर को सही दिशा नहीं दी | मुझे दीदी +जीजा से शत्रुता करनी पड़ी --ये भी सक्षम और शिक्षित थे पर मेरे घर को सही दिशा नहीं दी | अंत में जिस अनुज को पुत्र की तरह मानते थे --माता पिता ने --उसे ही मेरा शत्रु बना दिया --पर यह अशिक्षित था और मैं शिक्षित --हम दोनों के बीच धन का ऐसा युद्ध शुरू हो गया --जिसका समाधान मेरे पास नहीं था --और हमने पलायन करना बेहतर समझा | एक शास्त्री होने के नाते माता पिता से अनन्त प्रकार के यज्ञ कराये --जिसका परिणाम बहुत जल्दी मिला --माता पिता धनाढ्य हुए | फूस का घर महल में बदल गया | ब्याज का कारोबार लाखों में चलने लगा | मकान से किराये आने लगे | सभी शत्रु परिजन माता पिता के सान्निध्य में रहने लगे | एक तरफ मैं था --दूसरी तरफ -दीदी -जीजा ,माता पिता ,अनुज ,मां -मामी --इनके साथ -साथ सभी परिजन | फिर क्या था --जन्मदाता होने के बाद भी ऐसा लगता था --मानों माँ की कोख से मैं पैदा ही नहीं हुआ | मेरे सामने एक जहर खाने का रास्ता था ---इससे मेरे बच्चे अनाथ हो जाते | दूसरा पलायन का -- सबकुछ छोड़कर किसी शहर में रहने लगते | यह सभी चाहते भी थे | पर यहाँ एक समस्या थी --पतनी के गहने बेचकर पिता का कर्ज चुकाया था | सारी कमाई पिता को दे चूका था , भवन निर्माण में मेरे भी पैसे लगे थे | पलायन मेरी पतनी को मंजूर नहीं था | इसका परिणाम यह हुआ --माता पिता और अनुज के मुँह से अपशब्द तो बहुत छोटी बात थी ---पतनी और बच्चों को बहुत ही प्रताड़ित करते थे | हमने शत्रु संहार के लिए बहुत यज्ञ यजमानों के लिए कराये जीवन में --किन्तु अपने परिजन के लिए ऐसा सोच भी नहीं सकता था | क्योंकि भले ही परिजन मुझे अपमानित कर रहे थे किन्तु विवेक मेरा सदा जागृत रहा | ऐसी स्थिति में -मुझे कईबार बहुत ही भयानक दृश्य देखने को मिलता था | -पिता और पतनी का युद्ध ,माँ और पतनी का युद्ध ,अनुज और पतनी का युद्ध ,मामा और पतनी का युद्ध ,दीदी और पतनी का युद्ध ---यह दृश्य मुझे बारबार कायरता को दर्शाता था | कईबार मैं जीते जी मरा ----पर पाषाण की तरह जीता रहा | मुझे नहीं चाहिए ऐसा युद्ध जो अपनों से करना पड़े ---पर होनी बलवान होती है | आज मैं जहाँ खड़ा हूँ --वो भिक्षा में मिला हुआ जीवन है | आज मेरे पास धन भी है ,भवन भी है ,मान है सम्मान है --पर यह उपकार भार्या का है | भले ही मैं कहूं ये है वो है --पर मेरी आत्मा सदा धिक्कारती रहती है | आगे की चर्चा अगले भाग में करेंगें | --भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ --जीवनी की तमाम बातों को पढ़ने हेतु इस ब्लॉकपोस्ट पर पधारें ---khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
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