"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -57-ज्योतिषी झा मेरठ
आज अपनी जीवनी में कुछ कर्मकाण्ड +ज्योतिष के अनुभव पर प्रकाश डालना चाहता हूँ | --सनातन संस्कृति में -हमारेऋषि -महर्षियों ,आचार्यों ,गुरुजनों ,माता पिता के अथक योगदान हैं | आज कर्मकाण्ड जगत या ज्योतिष जगत के भूदेवों का सम्मान उन्हीं की वजह से होता है | यद्पि ऐसा नहीं है कि आज अच्छे आचार्य नहीं हैं -आज भी हैं पर सौ में एक हैं --इसलिए सभी एक जैसा ही दिखते हैं | मेरा सतत प्रयास रहता है --उन बातों को कहें जो हमने अनुभव किये हैं --क्योंकि केवल उनको ही प्रमाणिकता दी जा सकती है | ---अस्तु --हमने बहुत से यज्ञ किये एवं करायें हैं | किसी भी यज्ञ में दक्षिणा बाद में ली है | बहुत से बालक के विवाह एवं उनके बालक के विवाह कराये हैं | 1982 से 2023 तक करीब तीन पीढ़ियों से जुड़े हैं | मुझे अपने जीवन में एक भी यजमान ऐसे नहीं मिले जिन्हौनें श्रद्धा से कुछ उपहार दिया हो | अगर दिया है तो भोजन उत्तम ,सम्मान उत्तम ,व्यवहार उत्तम ,वस्त्र वो जो उन्हें अच्छे लगे -जो हमें अच्छे लगे कदापि नहीं | जीवन भर जी हजूरी करते रहे --बदले में चरण स्पर्श मिलता रहा | जब हम आधुनिक बनें ,आधुनिक यन्त्र से कार्य करने लगे तो --हमने भी नियम बदल दिए | आज काम को सलाम भी लोग करते हैं ,पैसे भी देते हैं --पर एक चीज है प्राचीनता में -सम्मान बहुत था ,आज आधुनिकता में धन तो मिलता है ,पैसे भी मिलते हैं पर गाली देने में भी देर नहीं करते हैं | मेरे बहुत से यजमान रहे जिन्हौनें दक्षिण दी नहीं ,बहुत से यजमान रहे सपने दिखाते रहे ,पुत्र की शादी हो जाएगी तो ये दूंगा ,पौत्र होगा तो वो दूंगा --पर देना तो दूर दक्षिणा भी खा गए | --इन तमाम बातों को देखते हुए नेट की दुनिया में 2010 में आया | हमने देखा आधुनिक यंत्र पर भूदेव कम थे ,जैन ,गोयल ,और भी बहुत लोग जो संस्कृत तो नहीं जानते थे पर अंग्रेजी, हिन्दी वाले बहुत थे --एक कहावत है --वचने किं दरिद्रता -'-पण्डित होहि जो गाल बजाबा " जो ज्ञानी पुरुष होते हैं वो फालतू की बातों से बेहतर हरी के सहारे चलते हैं ,जो अज्ञानी होते हैं -वो वर्तमान के सुख और सुविधा में जीते हैं | इस बात की समझ जब आती है तबतक व्यक्ति जीवन की अन्तिम धड़ी में पहुँच जाता है | --वैसे हमने वही प्रयास करने की अथक कोशिश की जो कर्मकाण्ड जगत में जो शास्त्र सम्मत थे ,नियम थे ,जो लोगों को आज भी लाभ दे और भविष्य में भी लाभ दे | बदले में धर्मसम्मत कुछ नहीं मिला | जब ज्योतिष जगत में आये तो फिर से वही कोशिश की जो धर्म सम्मत था --पर जो समय के साथ नहीं चलता है ---वो पीछे रह जाता है --अतः फ्री जैसा शब्द फ्री ही रहता है उसका वजूद क्षणिक होता है एवं अपना समय व्यर्थ करना होता है | यदि जन्मपत्री सही होती है ,ईस्वर का अस्तित्व है सृष्टि में ,सबके पालन कर्ता हैं श्रीहरि ,सभी राम नाम का सहारा लेकर ही भवसागर से पार होते हैं --और मन्त्रों में शक्ति हैं उन मन्त्रों से यजमान का भला हो सकता है -तो मेरा क्यों नहीं हो सकता है | इसके लिए वही राह चलनी चाहिए -जो शास्त्र कहते हैं ,गुरुजन कहते हैं ,माता पिता कहते हैं --देर हो सकती है विजय भी धर्म की ही होगी | कोई चले न चले हम चलें --जब हम चलेंगें तो पीछे के लोग अवश्य अनुशरण करेंगें | --अब मैं जीवनी की ज्वलंत घटनाओं को दर्शाऊँगा जो ग्रहों के खेल भी हैं ,व्यक्ति का अनुभव भी है | ---ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


