ॐ --हमारे पाठकगण --मेरी कुण्डली सिंह लग्न की है | पांचवा घर गुरु का है एवं गुरु- शुक्र राशि तृतीय घर -पराक्रम क्षेत्र में विराजमान हैं | इस पंचम घर पर गुरु की त्रिपाद दृस्टि पड़ रही है | पूर्ण दृस्टि किसी भी ग्रहों की नहीं पड़ रही है --इस पंचम घर पर | इसका अर्थ है --शिक्षा एवं बुद्धि का विशेष कोई लाभ नहीं मिलेगा | यह बात सौ प्रतिशत सही है | न तो मैं मान्यता प्राप्त ज्योतिषी ,वैदिक या फिर गायक कुछ भी नहीं हूँ --जबकि इन तीनों क्षेत्रों में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया | जब ज्योतिष की डिग्री ले रहा था --तो अनुज सर्पदंश से दिवंगत हो गया --फिर भी सभी ज्योतिष के ग्रन्थ जिह्वा पर थे | वैदिक -केवल 11 वर्ष के हुए तो रुद्राष्टाध्यायी जिह्वा पर थी -किन्तु दरिद्र योग चल रहा था -न तो किसी ने मदद की न ही मार्ग मिला ,यहाँ भी -संहिता के 20 अध्याय जिह्वा पर हुए --पर यह विद्या अधूरी रही | संगीत के दसों ठाठ केवल 13 वर्ष के थे तो जिह्वा पर थे पर गुरु का विद्यालय से निष्कसन हुआ तो यह विद्या अधूरी रही --जब हम --30 वर्ष के हुए -तो पहली कमाई से हारमोनियम खरीदा और 10 वर्ष संगीत का अध्ययन किया --एक दिन पतनी ने अपमान किया --उसके बाद यह विद्या का परित्याग कर दिया | अब देखें --गुरु की त्रिपाद दृष्टि से --तीन विद्या सफलता पूर्वक प्राप्त हुई | फिर भी अधूरे रहे | मुझे तीन संतान प्राप्त हुई -बड़ी ही ईस्वर की कृपा से पुत्र प्राप्त हुआ | दरिद्र योग में होने के बाद भी -बिहार ,उत्तर प्रदेश एवं मुम्बई में उत्तम शिक्षा मिली फिर भी अधूरे रहे | सदा धर्म पथ पर रहे ,सबकी उन्नति सदा चाही ,एक सुन्दर समाज की सोच सदा रही ,शिक्षा का महत्व सर्व प्रथम दिया ,जहाँ भी रहा उसे सदा अपना समझा फिर भी किसी का नहीं हो सका | ---अब आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा --ऐसा क्यों --तो सुनें ---भले ही ज्ञान से परिपूर्ण था ---मेरा पराक्रम क्षेत्र एवं सगे -सम्बन्धियों से कदापि लाभ नहीं मिलना था --पर मेरे कोई मार्गदर्शक नहीं थे --अगर होते तो हमें क्या करना चाहिए यह बताते --ऐसा नहीं होने पर --चूँकि मैं सिंह लग्न का हूँ एवं मंगल से युक्त सूर्य देव लग्न में हैं --अर्थात नहीं कैसे होगा कोई काम --यह जो हौसला था मेरा-- बहुत ही मजबूत था | ऐसी स्थिति में व्यक्ति की एक अलग धुन होती है -वो केवल पागल की तरह चलता रहता है कर्मपथ पर --ऐसी स्थिति में उसका विस्वास ही प्रेरणादायक बन जाता है --फिर स्वयं ऐसे अभागे को भी परमात्मा अपने दोनों हाथों से उठाते हैं | अगर मुझे ज्योतिष का ज्ञान तब होता --तो कदापि आगे नहीं बढ़ता --क्योंकि जीवन में भाग्य कर्म से ही बनता है --अतः मैं कर्म पथ पर आरूढ़ रहा --भाग्य की परवाह नहीं की -जबकि भाग्य मेरा अच्छा है --उसकी चर्चा आगे करूँगा | आप सभी से एक ही बात कहना चाहते हैं --भले ही भाग्य साथ न दे पर कर्मक्षेत्र पर हर व्यक्ति को आरूढ़ रहना चाहिए --आज मैं जहाँ हूँ -भले ही मान्यता प्राप्त एक शिक्षक नहीं हूँ किन्तु मेरी सोच सही है तो मुझे ईस्वर की कृपा प्राप्त है --हर पल वो मुझे मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करते रहते हैं | --आज के समय जबकत बालक कामयाव नहीं होता है तब तक विवाह नहीं होता है --किन्तु मेरा विवाह भी हो चूका था एक बच्ची भी थी -तब दरिद्र होकर भी मुम्बई पढ़ने गया और पढ़कर ही आया | -------भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
शुक्रवार, 12 सितंबर 2025
मेरी कुण्डली का पांचवा घर -आत्मकथा पढ़ें -भाग -119 - ज्योतिषी झा मेरठ
ॐ --हमारे पाठकगण --मेरी कुण्डली सिंह लग्न की है | पांचवा घर गुरु का है एवं गुरु- शुक्र राशि तृतीय घर -पराक्रम क्षेत्र में विराजमान हैं | इस पंचम घर पर गुरु की त्रिपाद दृस्टि पड़ रही है | पूर्ण दृस्टि किसी भी ग्रहों की नहीं पड़ रही है --इस पंचम घर पर | इसका अर्थ है --शिक्षा एवं बुद्धि का विशेष कोई लाभ नहीं मिलेगा | यह बात सौ प्रतिशत सही है | न तो मैं मान्यता प्राप्त ज्योतिषी ,वैदिक या फिर गायक कुछ भी नहीं हूँ --जबकि इन तीनों क्षेत्रों में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया | जब ज्योतिष की डिग्री ले रहा था --तो अनुज सर्पदंश से दिवंगत हो गया --फिर भी सभी ज्योतिष के ग्रन्थ जिह्वा पर थे | वैदिक -केवल 11 वर्ष के हुए तो रुद्राष्टाध्यायी जिह्वा पर थी -किन्तु दरिद्र योग चल रहा था -न तो किसी ने मदद की न ही मार्ग मिला ,यहाँ भी -संहिता के 20 अध्याय जिह्वा पर हुए --पर यह विद्या अधूरी रही | संगीत के दसों ठाठ केवल 13 वर्ष के थे तो जिह्वा पर थे पर गुरु का विद्यालय से निष्कसन हुआ तो यह विद्या अधूरी रही --जब हम --30 वर्ष के हुए -तो पहली कमाई से हारमोनियम खरीदा और 10 वर्ष संगीत का अध्ययन किया --एक दिन पतनी ने अपमान किया --उसके बाद यह विद्या का परित्याग कर दिया | अब देखें --गुरु की त्रिपाद दृष्टि से --तीन विद्या सफलता पूर्वक प्राप्त हुई | फिर भी अधूरे रहे | मुझे तीन संतान प्राप्त हुई -बड़ी ही ईस्वर की कृपा से पुत्र प्राप्त हुआ | दरिद्र योग में होने के बाद भी -बिहार ,उत्तर प्रदेश एवं मुम्बई में उत्तम शिक्षा मिली फिर भी अधूरे रहे | सदा धर्म पथ पर रहे ,सबकी उन्नति सदा चाही ,एक सुन्दर समाज की सोच सदा रही ,शिक्षा का महत्व सर्व प्रथम दिया ,जहाँ भी रहा उसे सदा अपना समझा फिर भी किसी का नहीं हो सका | ---अब आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा --ऐसा क्यों --तो सुनें ---भले ही ज्ञान से परिपूर्ण था ---मेरा पराक्रम क्षेत्र एवं सगे -सम्बन्धियों से कदापि लाभ नहीं मिलना था --पर मेरे कोई मार्गदर्शक नहीं थे --अगर होते तो हमें क्या करना चाहिए यह बताते --ऐसा नहीं होने पर --चूँकि मैं सिंह लग्न का हूँ एवं मंगल से युक्त सूर्य देव लग्न में हैं --अर्थात नहीं कैसे होगा कोई काम --यह जो हौसला था मेरा-- बहुत ही मजबूत था | ऐसी स्थिति में व्यक्ति की एक अलग धुन होती है -वो केवल पागल की तरह चलता रहता है कर्मपथ पर --ऐसी स्थिति में उसका विस्वास ही प्रेरणादायक बन जाता है --फिर स्वयं ऐसे अभागे को भी परमात्मा अपने दोनों हाथों से उठाते हैं | अगर मुझे ज्योतिष का ज्ञान तब होता --तो कदापि आगे नहीं बढ़ता --क्योंकि जीवन में भाग्य कर्म से ही बनता है --अतः मैं कर्म पथ पर आरूढ़ रहा --भाग्य की परवाह नहीं की -जबकि भाग्य मेरा अच्छा है --उसकी चर्चा आगे करूँगा | आप सभी से एक ही बात कहना चाहते हैं --भले ही भाग्य साथ न दे पर कर्मक्षेत्र पर हर व्यक्ति को आरूढ़ रहना चाहिए --आज मैं जहाँ हूँ -भले ही मान्यता प्राप्त एक शिक्षक नहीं हूँ किन्तु मेरी सोच सही है तो मुझे ईस्वर की कृपा प्राप्त है --हर पल वो मुझे मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करते रहते हैं | --आज के समय जबकत बालक कामयाव नहीं होता है तब तक विवाह नहीं होता है --किन्तु मेरा विवाह भी हो चूका था एक बच्ची भी थी -तब दरिद्र होकर भी मुम्बई पढ़ने गया और पढ़कर ही आया | -------भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ
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