पाठकगण को यह तो ज्ञात होगा ही कि तिथियां केवल 30 होती हैं | 15 शुक्लपक्ष की और 15 कृष्णपक्ष की | तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं | किस तिथि के किस आधे भाग को कौन -सा करण कहते हैं | यह निम्न तालिका से स्पष्ट हो जायेगा ---------------
----कृष्णपक्ष ----- शुक्लपक्ष
-1 -प्रतिपदा =कौलव --1 --किंस्तुघ्न =बव
-2 -द्वितीया -तैतिल =गरज --2 -बालव =कौलव
-3 -तृतीया -वणिज =विष्टि --3 तृतीया -तैतिल =गरज
-4 चतुर्थी -बव =बालव --4 -चतुर्थी ---वणिज =विष्टि
-5 पंचमी -कौलव =तैतिल ,-पंचमी --बव =बालव
-6 -षष्ठी --गरज =वणिज ,--6 -षष्ठी ---कौलव =तैतिल
-7 -सप्तमी ---विष्टि -बव ----7 सप्तमी --गरज =वणिज
--8 --अष्टमी ---बालव =कौलव ,--8 -अष्टमी ---विष्टि =बव
--9 नवमी ---तैतिल =गरज ----9 नवमी ---बालव =कौलव
-10 -दशमी --वणिज ---विष्टि ,---10 दशमी ---तैतिल =गरज
--11 एकादशी ---बव =बालव ---11 एकादशी --वणिज =विष्टि
-12 -द्वादशी ---कौलव =तैतिल ,---12 -द्वादशी --बव =बालव
-13 त्रयोदशी -गरज =वणिज ,---13 त्रयोदशी ---कौलव =तैतिल
-14 -चतुर्दशी --विष्टि =शकुन ----14 चतुर्दशी =गरज =वणिज
-30 -अमावस्या ---चतुष्पाद -----15 --पूर्णिमा ---विष्टि =बव
----उपर्युक्त तालिका में पाठक देखेंगें कि बव ,बालव ,कौलव ,तैतिल ,वणिज ,गरज और विष्टि इन 7 कारणों की तो बारंबार पुनरावृत्ति होती है और शेष चार --शकुन ,चतुष्पाद ,नाग और किन्तुघ्न एक मास में केवल एकबार होते हैं ,विष्टि करण को ही भद्रा कहते हैं | पाठक इस बात को याद रखें ,क्योंकि आगे किन्हीं प्रकरणों में हम भद्रा पर विचार करेंगें | ---पंचांग में पहले - तिथि फिर दिन फिर नक्षत्र फिर योग और अन्तिम पांचवीं चीजें कारण -इनके आधार पर ही किसी भी शुभ या अशुभ कार्यों का निर्णय होता है ----अगले भाग में वार शब्द पर व्याख्या करेंगें ----- भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -khagolshastri.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें