जन्मपत्री बनाते समय गणना तो बाद में होती है -पहले बहुत सारी चीजें लिखीं जातीं हैं --हमारा प्रयास है आप समझें -कुण्डली बनाते समय -संवत ,शाके ,मास ,पक्ष -सूर्य की स्थिति और भी बहुत चीजें हैं क्यों लिखी जाती है --क्रम से समझाने का प्रयास करेंगें | ---अस्तु --
---खगोल में जो रिक्तता है ,वो ही 'आकाश कहलाता है | यह रिक्त और शून्य क्षेत्र अति व्यापक और विस्तृत है | भूगोल शास्त्रियों ने इस खगोल को क्रमशः तीन भागों में विभाजित किया है --{1 }-उत्तरी क्षेत्र ,--{2 }-मध्य क्षेत्र ,{3 }--दक्षिण क्षेत्र --| ---इस प्रकार सूर्य ,गति संक्रमण को बांधा है | --उत्तरी क्षेत्र में एक कल्पित रेखा खींची है --जिसे "कर्क रेखा "की संज्ञा दी है | ---मध्य क्षेत्र में "विषुवत रेखा ' दक्षिण क्षेत्र में "मकर रेखा "के नाम से विश्रुत हैं | --यह तीनों कटिबंध सूर्य की गति के आधारभूत है | जब सूर्य त्तर दिशा की ओर संक्रमण करता है ,तो उत्तरायण और दक्षिण में जानें से उसे दक्षिणायन का प्रारूप दिया जाता है |
----जन्मपत्री बनाते समय --उत्तरायण या दक्षिणायन का जिक्र होता है ---इससे क्या लाभ और हानि होती है इसकी चर्चा आगे कहीं करेंगें | --जबसे नेट के माध्यम से कुण्डली बनने लगी ,तब से ज्योतिष की गणित सीमित हो गयी है --फलित भी संस्कृत ग्रन्थों के आधार पर नहीं होता है --मेरा एक छोटा सा प्रयास है --आप मेरे द्वारा लिखें तमाम लेखों को पढ़कर बढियाँ ज्योतिषी बन सकते हैं --इसके लिए केवल क्रम से निःशुल्क लेखों को पढ़ते जाएँ --अगले भाग में अयन शब्द पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगें ---भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com

