"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -- भाग -52-खगोलशास्त्री झा मेरठ
" हमारी जीवनी में अनन्त गुरुजनों की कृपा रही है --जो भेद भाव रहित रही है | चाहे देव -दानव हों ,चाहे पशु -पक्षी हों सब में युद्ध होते हैं किन्तु जरुरत पड़ने पर सब एक भी होते हैं | यह अखण्ड भारत भूमि है --जिसमें राजा हों ,सन्त हों ,ऋषि महर्षि हों ,समाज हो ,या कोई भी व्यक्ति सबने अनन्त योगदान दिए हैं --जिस पर मुझे गर्व है --और आशा है --आने वाले सदियों तक --अक्षुण्ण यह भारत भूमि रहेगी "--- मेरी पांचवी तक शिक्षा एक सरकारी स्कूल में मिली है --जिसमें मेरे मित्र -कोई मोची था ,कोई डोम था ,कोई साधु था ,कोई टिबरेवाल था ,कोई पासमान था ,कोई धानक था --पर हम सभी एक साथ भेद भाव रहित पढ़ते थे --1980 तक ऐसी ही शिक्षा मिली थी | 1983 से 1988 तक श्रीजगदीश नारायण ब्रह्मचर्याश्रम लगमा में पढ़ें --यहाँ एक कुर्मी संगीत गुरूजी थे --भले ही मेरी दयनीय स्थिति थी --मेरे गले में हलवा बांधा करते थे अपने घर से ताकि मैं उत्तम गायक बन सकूँ --पर उस हलवा को मैं खा जाया करता था | इसके बाद मेरठ महाविद्यालय में पढ़ें -1988 से 1991 तक -मेरे प्राध्यापक -जाटव थे -हम सभी से बहुत स्नेह करते थे | इसके बाद श्रीमुम्बादेवी संस्कृत महाविद्यालय गिरिगांव चौपाटी में पढ़े --मेरे अध्यापक एक यादवजी थे बहुत स्नेह करते थे --एकबार बोले इस पत्रिका का नाम बता दोगे -तो तुम्हें फ्री में दे दूंगा --उन्हें लगता था मुझे अंग्रेजी नहीं आती है --जब हमने कहा "नेक्टर इन ए शिव ' --इसका भावार्थ है --अमृत और चालन --इतने खुश हुए --यह पत्रिका मुझे दे दी | जब हम -30 वर्ष के हुए 2000 सन में --तो अधूरी संगीत शिक्षा को पूर्ण करने हेतु पढ़ने गए --मेरठ -जय हिन्द बैण्ड के प्रमुख श्री जगदीश धानकजी के पास --तो मुझसे इतना स्नेह करते थे --खुद मुझसे पैर नहीं छुआते थे पर तबला वादक --जो मुस्लिम थे उनके हम पैर जरूर छूते थे --और अपना पूर्ण आशीष मुझे देते थे | --जब हम रेडियो स्टेशन नई दिल्ली --1990 में गए --तो एक माथुर साहब थे --भले ही मुझे बहुत लताड़ा पर हिन्दी पर मेरी पकड़ आज उनकी ही देन है | भारत भूमि तपो भूमि है ,इस तपो भूमि की सस्कृति की रक्षा करना हम सबका दायित्व है --ये तभी संभव है -जब हम किसी की न सुनकर अपने -अपने हृदय की सुनेंगें --ह्रदय से सच्ची आवाज आएगी | --मैं एक ज्योतिषी हूँ --मेरे पास समाज के हर वर्ग के लोग आते --हमारा धर्म भेद भाव रहित होकर उन्हें सही राह बताने और समझाने का होता है --यही हमनें गुरुजनों से सीखा है ,यही हमारे शास्त्र -पुराण कहते हैं | ---जिस प्रकार से मन्दिर के भगवान सबके होते हैं --वैसे ही एक ज्योतिषी सम्पूर्ण भूमि का होता है | --सर्वे भवनु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामया ,सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत --सभी सुखी हों ,सभी रोगों से मुक्त हों ,सभी को हम एक समान तभी देख सकते हैं --जब हम अपने आपको ठीक से देखने का प्रयास करेंगें | -----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -- https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut