आत्मकथा में आज सत्य और असत्य पर प्रकाश डालना चाहता हूँ | 1997 - शिव चौक बागपत गेट शिव मन्दिर में अनुज के साथ रहते थे | केवल 18 माह रहे थे -तब मेरा जीवन पराधीन था ,शिक्षाविद थे ,विदेश मुम्बई से जाना था ,पर राहु की दशा चल रही थी साथ ही परिपक्वत्व ज्योतिषी नहीं थे --तमाम शास्त्र ,डिगरियां तो थी | शादी हो चुकी थी एक पुत्री भी थी ,घर की माली हालत थी --पिता का एक निर्णय --कर्या तुम्हारा --ऐसी स्थिति में पतनी का मंगलसूत्र बेचकर कर्य चुकाया था ,नौकरी की तलाश में में मेरठ आये थे | मेरा अनुज दक्ष था धन के मामले में और अविवाहित था ,माता पिता एवं परिजनों के प्रिय था | मैं शिक्षाविद होने के बाद काम की तलाश में दर -दर भटक रहा था --इसका कारण था किसी काम का अनुभव नहीं था न ही कोई मददगार या परिजन थे ,ससुराल में ससुर ,साले सभी अकाल मृत्यु को अनायास प्राप्त हो गए थे | पतनी -पुत्री का वजन सभी परिजनों पर भारी था | जो भी धन था सभी परिजन आनन्द उठा चुके थे | अनुज अपने साथ बड़ा या अपना न समझकर सेवक के रूप में मुझे रखा था | सत्य ,धर्म ,नियम ,संस्कार मुझे ये सभी अन्दर ही अन्दर अग्नि की ज्वाला प्रदान कर रहे थे | इसके बावयुद भी मेरी ममता अनुज के साथ रहने को विवस कर रही थी ,एक अनुज पहले ही खो चूका था ,इस अनुज को भी शिक्षाविद बनाने की इच्छा थी पर --कालचक्र के आगे किसी की नहीं चलती है | ---मुझे रोजगार के अनन्त कार्य मिल रहे थे पर पराधीन रहने को लाचार था ---इसी स्थान पर एक व्यक्ति मिला --हमने उसके रूप और व्यवहार को जाना था --इन दोनों मामलों में पिता की तरह यह व्यक्ति था | मेरे भाग्य क्षेत्र में नीच का शनि है साथ ही गुरु की पूर्ण दृष्टि है --इसका भावार्थ जो आज मेरी समझ में आ रही है --वो -- यजमान जो आचरणवान होंगें वो हमारे यजमान या दाता नहीं होंगें ,जो संस्कार हीन या अनैतिक कार्य करने वाले होंगें वो पूर्णरूपेण मेरे दाता होंगें | यह बात मेरे जीवन में सौ प्रतिशत उत्तरी है --साथ ही -मैं स्वयं धर्मानुरागी ,आचरणवान ,धर्म सम्मत कार्य करूँगा क्योंकि गुरु की पूर्ण दृस्टि भाग्य के क्षेत्र में है --अतः भले ही यजमान कैसे भी हों पर मुझे सभी धर्म के कारण आदर सम्मान करेंगें | इस व्यक्ति का नाम नहीं लिखना चाहता हूँ --क्योंकि मुझसे किसी व्यक्ति को ठेंस पहुंचे ये कदापि मैं नहीं कर सकता | --यह व्यक्ति मेरठ से दूर राजस्थान धौलपुर के रहने वाले थे ,जिनका साम्राज्य ,मेरठ ,मुम्बई में था | भगवन शिव की पूजा करने नित्य मन्दिर में आते थे --राम राम नित्य हुआ करती थी ,धीरे -धीरे हम दोनों का सम्बन्ध यजमान पुरोहित का आगे बढ़ने लगा | एक दिन हमने कहा लालाजी आज का दिन अच्छा नहीं रहेगा --संयोग से पुलिस ने 2000 ले लिए --फिर जब मेरी बात याद आयी तो उन्हें लगा --मैं योग्य पण्डित जी हूँ | धीरे -धीरे उनकी नजर में मैं बहुत बड़ा पण्डित होने लगा --मेरी दक्षिणा का मूल्य बढ़ता गया | अब यजमान मुझसे होने वाली घटनाओं नित्य जिक्र करते और हम समाधान का रास्ता बताते रहते थे | 1999 में मुझे ज्ञात हुआ यह यजमान मेरे अनुकूल नहीं है | तब तक मेरी रग -रग में यजमान का अन्न -पानी पहुंच चूका था | अब न तो उल्टी कर सकता था न ही दूर हो सकता था --मेरी गरीबी चरम सीमा पर थी | पुत्री -पतनी को बहुत तिरस्कार माता पिता परिजन करते थे --सारा धन उनके हाथों में जा रहा था | स्वयं का अपना कोई अस्तित्व नहीं था | -आगे का --उल्लेख आगे के भाग में करेंगें ----खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut