---किसी भाव का स्वामी पापग्रह "दुष्ट ग्रह " हो और वो लग्न से तृतीय भाव में बैठा हो तो उत्तम फल देता है ,किन्तु जिस भाव का स्वामी शुभ ग्रह हो ,वो यदि उस भाव से तृतीय स्थान में बैठे ,तो मध्यम फल देता है |
--जिस भाव में शुभ ग्रह बैठा हो ,उसका फल उत्तम होता है तथा जिसमें पाप ग्रह रहता है ,उस भाव के फल की हानि होती है |
--जिस भाव में उसका अधिपति ग्रह अथवा शुक्र ,बुध या गुरु बैठा हो अथवा इनकी दृष्टि पड़ रही हो अथवा वो अपने भाव के स्वामी के अलावा किसी अन्य ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो ,तो वो शुभ फल देता है |
--जिस भाव का अधिपति शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो ,अथवा जिस भाव में शुभ ग्रह बैठा हो अथवा जिस भाव को शुभ ग्रह देख रहा हो ,वो शुभ फल देता है |
--जिस भाव में कोई पाप ग्रह बैठा हो अथवा उसके अधिपति के साथ कोई पाप ग्रह बैठा हो अथवा उसके अधिपति पर पापग्रह की दृष्टि पड़ रही हो अथवा उस भाव को ही कोई पापग्रह देख रहा हो ,तो फल अशुभ होता है |
--जिस भाव का अधिपति उच्च राशि का स्वक्षेत्री ,मित्र क्षेत्री या मूल त्रिकोण स्थित हो ,उस भाव का फल शुभ होता है |
--सूर्य ,मंगल ,शनि तथा राहु क्रम से एक दूसरे से अधिक पापी होते हैं अर्थात अधिक अशुभ फल प्रदान करते हैं | यही ग्रह यदि अपने मित्र की राशि अथवा अपनी उच्च राशि में बैठे हुए हों ,तो अल्प पापी होते हैं --अर्थात अशुभ फल न्यून मात्रा देते हैं |
--चंद्र ,बुध ,शुक्र ,केतु तथा गुरु ये सब क्रम से एक दूसरे से अधिक शुभ ग्रह हैं | फल का विचार करने में केतु प्रायः पापग्रह माना गया है ,किन्तु वैसे केतु की गणना शुभ ग्रहों में की जाती है | यह ग्रह यदि अपनी राशियों में बैठे हों तो अधिक शुभ फल प्रदान करते हैं और यदि पापग्रहों -सूर्य ,मंगल ,शनि और राहु -की राशि में बैठे हों तो अल्प सुख प्रदान करते हैं | -------भवदीय निवेदक खगोलशास्त्री झा मेरठ -ज्योतिष की समस्त जानकारी के लिए इस लिंक पर पधारें khagolshastri.blogspot.com
