" श्राद्ध" अर्थात श्रद्धा कैसी हो -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ
इस
"लोक" में जितने भी प्राणी हैं -सभी अपने -अपने पूवजों को मानते है और यथा
सामर्थ दिवंगत आत्माओं के लिए कुछ न कुछ समर्पण करते हैं | मनुष्य सृष्टि
का एक अद्भुत प्राणी है जो अपना विनाश और अपना उथ्थान खुद करता है | संसार
में वर्तमान और भविष्य को तो ठीक किया जा सकता है किन्तु भूतकाल का केवल
स्मरण ही संभव है | व्यक्ति अपना जीवन सार्थक बनाने हेतु -यज्ञ ,दान ,हवन
,पूजा वर्तमान कर्म को करके भविष्य में प्राप्त कर सकता है किन्तु नहीं
करने पर नरक की यातनाओं को भी खुद झेलता है | ------अस्तु --"श्राद्ध" का
शाब्दिक अर्थ श्रद्धा है | जैसे माता पिता गुरुजन या शुभचिंतक लोग अपनी
-अपनी संतानों का लालन- पालन कर्तव्य समझकर करते हैं ठीक उसी प्रकार से
संतानों को भी अपने -अपने पूर्वजों के हेतु "श्राद्ध "उसी श्रद्धा से करने
या मानाने चाहिए | श्राद्ध में किसी भी वस्तु का दान करने से अपने
पूर्वजों को प्राप्त नहीं होता बल्कि उनकी आत्मा तृप्त होती है और आत्माओं
की तृप्ति ही श्राद्ध है | संसार में जैसे यज्ञ ,दान ,हवन ,गृहप्रवेश ,तमाम
संस्कार पंचांग के अनुसार करते हैं ठीक उसी प्रकार से समस्त दिवंगत
आत्माओं की तृप्ति हेतु श्राद्ध पक्ष की व्यवस्था महर्षियों ने की है |
---अपने -अपने समस्त पूर्वजों को प्रसन्न करने हेतु या अपना कर्तव्य पूरा
करने हेतु कोई भी पुत्र अपने दिवंगत पिता का पहला जो श्राद्ध करता है उसे
-"सपिण्डीकरण श्राद्ध "कहते हैं इसे इस श्राद्ध की तमाम प्रक्रियाये 13
दिनों में पूरी होती हैं | --कोई भी पुत्र अपने दिवंगत पिता का पहला
पितृपक्ष में पहला श्राद्ध करने के लिए पहले पार्वण श्राद्ध करता है इसे
पूर्वजों को प्रसन करने का दूसरा श्राद्ध कहते हैं | जो आजकल सीमित है या
ज्ञान के आभाव के कारण नहीं हो पाता है | इसी प्रकार से अपने दिवंगत पिता
का पांच साल तक श्राद्ध पक्ष में एकोदिष्ट नामक श्राद्ध करना चाहिए --इसे
पितरों की प्रसन्नता का तीसरा श्राद्ध कहा गया है --यह श्राद्ध भी सीमिति
होता जा रहा है अर्थात तेरवीं के साथ बरसी एक साथ होने लगी है जो उचित नहीं
है | ---संसार के सभी प्रकार के यज्ञ ,दान ,हवन ,गृहप्रवेश या व्यक्ति के
तमाम संस्कारों में वृद्धि यानि नान्दीमुख श्राद्ध करना चाहिए -इस श्राद्ध
के बिना कोई भी कार्य सार्थक नहीं हो सकते | अर्थात पूर्वजों के आशीर्वाद
के बिना कोई भी यज्ञ सफल नहीं हो सकता है | ----यह चौथा श्राद्ध प्रायः
विद्वानों के कारण हो रहे हैं अन्यथा यह भी श्राद्ध केवल शास्त्रों में ही
रह जायेंगें | -------ध्यान दें -अपने -अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने का
अर्थ है इस परम्परा को जीवित रखना | अगर हम पिता के लिए नहीं करेंगें तो
हमारा ही पुत्र हमारे लिए कुछ नहीं करेंगें | -ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई
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हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की
कृपा करें .|आपका -
ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई


