मेरी चाची इतनी ताकतवर कैसे हुई --इस पर प्रकाश डालना चाहता हूँ |
मेरा समाज चाहे शिक्षा हो ,संस्कार हो ,रोजगार हो या फिर उन्नतिशील --ऐसा कुछ भी नहीं था ऐसा आज भी नहीं है | सिर्फ है तो नाम बड़े और दर्शन छोटे --झंझारपुर शहर था आज भी है | --अस्तु --मेरे समाज में गिने चुने चार लोग धनाढ्य थे | इसमें एक मेरे दादा भी थे ,उनके सात पुत्र हुए ,मेरे पिता पांचवें और चाची छठे नंबर | मेरे दादा बैद्य थे प्रख्यात थे और समाज में उनका अस्तित्व था --जब मैं 8 वर्ष का था तभी दादाजी चल बसे | सातो पुत्र अनपढ़ और रोजगार विहीन हो गए | कुछ जमीन चाचा ने छीन ली --सभी सातों पुत्रों को जमीन जायदाद दादा ने अपने सामने बाँट दी | मेरे पिता को एक बंजर भूभाग मिला था --वहां रहने को कहा था- जिस पर आज भी हमलोग हैं | मेरे पिता मल्ल युद्ध में दक्ष और प्रवीण थे --दादाजी के अंगरक्षक सदा रहे थे | उस बंजर भूमि को शारीरिक श्रम से सुन्दर बनाया मेरे पिता ने | हमारे चाचा अनपढ़ तो थे ही लाडले भी थे इसलिए दादा के साथ रहते थे |--दादा के देहावसान के बाद जो जमीन थी उसे बेचकर गुजारा किये | गरीबी और अनपढ़ता की वजह से भिक्षाटन से गुजारा करने लगे | चाची का सत्संग एक ऐसे व्यक्ति से हुआ जो राज्य सभा सांसद का चाकर था | एक रात रंगे हाथ समाज के लोगों ने देख लिया -उसी समय घर में आग लगा दी | घर तो जल गया चाची बच गयी | इसके बाद जो काम छुपके होता था --वो सबके सामने होने लगा | उस व्यक्ति ने चाची का संपर्क एक वकील से कराया -अब पुलिस का भी रोल शुरू हो गया | अब समज में एक ही काम था जो बोले उसे जेल में डाल दो | मैं बहुत छोटा था एवं गांव से 1981 में ही चला गया था | चाचा रोज भिक्षाटन से अच्छा कमा लेते थे | सारा धन चाची उड़ाने लगी और -कभी थाना तो कभी वकील साहब के साथ तो कभी लोगों के साथ रमन करती रही --सारा समाज मूक दर्शक बनकर देखता रहा | एक सरकारी साहब थे सबसे पहले इनसे युद्ध शुरू हुआ --बहुत ही धनाढ्य ,संगठित परिवार था पर नाको चने चबा दिए --चाची ने -हार मान ली अमीन साहब ने बदले में जमीन भी देनी पड़ी | इसके बाद नंबर चार ताऊ के नाको चने चबा दिए --कारण दोनों का घर आमने सामने था --चाची से जो मिलने वाले आते थे --वो ताऊ देख लेते थे --अतः ताऊ भी बर्बाद हो गए अंत में घर छोड़कर बहुत दूर चले गए | इसके बाद उस परिवार में मेरे पिता धनिक थे --पहले तो कभी राशन तो कभी कपडे तो कभी व्याज पर पैसे लिए चाची ने देना तो दूर --वकील जो मुस्लिम था ,सहायक जो कियोट {धानक }था ,--पुलिस का पता नहीं सभीने उकसाया -और पिता से लड़ाई शुरू हुई | मेरी माँ ठीक होती तो शायद 24 मुकदमें नहीं होते पर अन्दर ही अन्दर देनी -लेनी चलती रही | हम भी कमाते थे ,माता पिता की आय बढियाँ थी ,अनुज की कमाई भी अच्छी थी ,दीदी के पैसे भी बहुत चाची ने खा लिए | जब मुझे यह ज्ञात हुआ तो हमने समझौता करना उचित समझा --50000 देकर | पर मुझे तो अपनों ने ही मारा --इसलिए चाहकर भी अपनी हिफाजत नहीं कर सका और अलग रहने में ही भलाई समझा | किन्तु --दुनिया को समझना इतना सरल नहीं होता है | मेरे परिजन मेरे ही पीछे पड़ गए | -जिनका उल्लेख आगे के भाग में करेंगें ----खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
मेरा समाज चाहे शिक्षा हो ,संस्कार हो ,रोजगार हो या फिर उन्नतिशील --ऐसा कुछ भी नहीं था ऐसा आज भी नहीं है | सिर्फ है तो नाम बड़े और दर्शन छोटे --झंझारपुर शहर था आज भी है | --अस्तु --मेरे समाज में गिने चुने चार लोग धनाढ्य थे | इसमें एक मेरे दादा भी थे ,उनके सात पुत्र हुए ,मेरे पिता पांचवें और चाची छठे नंबर | मेरे दादा बैद्य थे प्रख्यात थे और समाज में उनका अस्तित्व था --जब मैं 8 वर्ष का था तभी दादाजी चल बसे | सातो पुत्र अनपढ़ और रोजगार विहीन हो गए | कुछ जमीन चाचा ने छीन ली --सभी सातों पुत्रों को जमीन जायदाद दादा ने अपने सामने बाँट दी | मेरे पिता को एक बंजर भूभाग मिला था --वहां रहने को कहा था- जिस पर आज भी हमलोग हैं | मेरे पिता मल्ल युद्ध में दक्ष और प्रवीण थे --दादाजी के अंगरक्षक सदा रहे थे | उस बंजर भूमि को शारीरिक श्रम से सुन्दर बनाया मेरे पिता ने | हमारे चाचा अनपढ़ तो थे ही लाडले भी थे इसलिए दादा के साथ रहते थे |--दादा के देहावसान के बाद जो जमीन थी उसे बेचकर गुजारा किये | गरीबी और अनपढ़ता की वजह से भिक्षाटन से गुजारा करने लगे | चाची का सत्संग एक ऐसे व्यक्ति से हुआ जो राज्य सभा सांसद का चाकर था | एक रात रंगे हाथ समाज के लोगों ने देख लिया -उसी समय घर में आग लगा दी | घर तो जल गया चाची बच गयी | इसके बाद जो काम छुपके होता था --वो सबके सामने होने लगा | उस व्यक्ति ने चाची का संपर्क एक वकील से कराया -अब पुलिस का भी रोल शुरू हो गया | अब समज में एक ही काम था जो बोले उसे जेल में डाल दो | मैं बहुत छोटा था एवं गांव से 1981 में ही चला गया था | चाचा रोज भिक्षाटन से अच्छा कमा लेते थे | सारा धन चाची उड़ाने लगी और -कभी थाना तो कभी वकील साहब के साथ तो कभी लोगों के साथ रमन करती रही --सारा समाज मूक दर्शक बनकर देखता रहा | एक सरकारी साहब थे सबसे पहले इनसे युद्ध शुरू हुआ --बहुत ही धनाढ्य ,संगठित परिवार था पर नाको चने चबा दिए --चाची ने -हार मान ली अमीन साहब ने बदले में जमीन भी देनी पड़ी | इसके बाद नंबर चार ताऊ के नाको चने चबा दिए --कारण दोनों का घर आमने सामने था --चाची से जो मिलने वाले आते थे --वो ताऊ देख लेते थे --अतः ताऊ भी बर्बाद हो गए अंत में घर छोड़कर बहुत दूर चले गए | इसके बाद उस परिवार में मेरे पिता धनिक थे --पहले तो कभी राशन तो कभी कपडे तो कभी व्याज पर पैसे लिए चाची ने देना तो दूर --वकील जो मुस्लिम था ,सहायक जो कियोट {धानक }था ,--पुलिस का पता नहीं सभीने उकसाया -और पिता से लड़ाई शुरू हुई | मेरी माँ ठीक होती तो शायद 24 मुकदमें नहीं होते पर अन्दर ही अन्दर देनी -लेनी चलती रही | हम भी कमाते थे ,माता पिता की आय बढियाँ थी ,अनुज की कमाई भी अच्छी थी ,दीदी के पैसे भी बहुत चाची ने खा लिए | जब मुझे यह ज्ञात हुआ तो हमने समझौता करना उचित समझा --50000 देकर | पर मुझे तो अपनों ने ही मारा --इसलिए चाहकर भी अपनी हिफाजत नहीं कर सका और अलग रहने में ही भलाई समझा | किन्तु --दुनिया को समझना इतना सरल नहीं होता है | मेरे परिजन मेरे ही पीछे पड़ गए | -जिनका उल्लेख आगे के भाग में करेंगें ----खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

