ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
गुरुवार, 2 नवंबर 2023
जीवन का सर्वोत्तम सुख "सुन्दर दाम्पत्य "--सुनें --?- ज्योतिषी झा मेरठ
जीवन का सर्वोत्तम सुख "सुन्दर दाम्पत्य "--सुनें --?- ज्योतिषी झा मेरठ-दोस्तों --किसी भी व्यक्ति का जीवन दाम्पत्य सुख पर निर्भर करता है --इसीलिए-- प्रिया च भार्या ,प्रिय वादिनी च --कहा गया है | ---- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
धनतेरस के दिन{अहर्निशं } लक्ष्मी – गणेश और कुबेर की पूजा की जाती है। पर इस दिन सबसे महत्वपूर्ण पूजा होती है स्वास्थ्य और औषधियों के देवता धनवन्तरी की। इन सभी पूजाओं को घर में करने से स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहती है। इस दिन लोग अपने स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कामना करते हैं। इसके लिए इस दिन धनवन्तरी की पूजा की जाती है। इसके लिए अपने घर के पूजा गृह में जाकर ॐ धं धन्वन्तरये नमः मंत्र का 108 बार उच्चारण करें। ऐसा करने बाद स्वास्थ्य के भगवान धनवंतरी से अच्छी सेहत की कामना करें। ऐसी मान्यता है कि इस दिन धनवन्तरी की पूजा करने से स्वास्थ्य सही रहता हैा धनवन्तरी की पूजा के बाद यह जरूरी है कि लक्ष्मी और गणेश का पूजन किया जाए। इसके लिए सबसे पहले गणेश जी को दिया अर्पित करें और धूपबत्ती चढ़ायें। इसके बाद गणेश जी के चरणों में फूल अर्पण करें और मिठाई चढ़ाएं। इसके बाद इसी तरह लक्ष्मी पूजन करें। इसके अलावा इस दिन धनतेरस पूजन भी किया जाता है और कुबीर देवता की पूजा की जाती है। धनतेरस पूजन के लिए सबसे पहले एक लकड़ी का पट्टा लें और उस पर स्वास्तिक का निशान बना ---इसके बाद इस पर एक तेल का दिया जला कर रख दें----दिये को किसी चीज से ढक दें--दिये के आस पास तीन बार गंगा जल छिड़कें---इसके बाद दीपक पर रोली का तिलक लगाएं और साथ चावल का भी तिलक लगाएं---इसके बाद दीपक में थोड़ी सी मिठाई डालकर मीठे का भोग लगाएं--फिर दीपक में 1 रुपया रखें। रुपए चढ़ाकर देवी लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पण करें--इसके बाद दीपक को प्रणाम करें और आशीर्वाद लें और परिवार के लोगों से भी आशीर्वाद लेने को कहें।---इसके बाद यह दिया अपने घर के मुख्य द्वार पर रख दें,----- ध्यान रखे कि दिया दक्षिण दिशा की ओर रखा हो। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इन तीनों पूजन के समापन से घर में लक्ष्मी सदैव विद्यमान रहती हैं और स्वास्थ्य बेहतर रहता है।------ ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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जीवन क्या है निर्झर है मस्ती ही इसका पानी है--पढ़ें भाग -64-ज्योतिषी झा मेरठ
" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -64-ज्योतिषी झा मेरठ
जीवन क्या है निर्झर है मस्ती ही इसका पानी है --श्री निरालाजी की यह उक्ति कभी पढ़ी थी पर जीवन जीना इतना सहज भी नहीं होता है | मैं अपने जीवन में कर्मक्षेत्र और पिता से सम्बन्ध के बारे में इतना कह सकता हूँ -सौ प्रतिशत निभाने का प्रयास किया है | क्योंकि मेरी कुण्डली में उच्च का चन्द्रमा कर्मक्षेत्र में है एवं सूर्यदेव स्वराशि के लग्न में हैं| एक शास्त्री होने के नाते धर्म सम्मत जो कार्य मुझे करने चाहिए वही किया है --इस कारण से बड़े -बड़े यजमानों को खो दिए हैं --क्योंकि यजमान बनाते तो मन्दिर हैं ,कराते तो पूजा पाठ ही हैं ,मानते तो ज्योतिष को ही हैं पर आचरण ,व्यवहार में बहुत अन्तर होता है | आज के समय कोई भी व्यक्ति अपने स्वार्थ सिद्ध हेतु चाहे भूदेव हों ,भगवान हों कोई यह कह दे ये चढाने से या ये खिलाने से ये लाभ होंगें --तो बिना देर किये ,बिना बुद्धि का उपयोग किये झट कर देगा --इससे किसी की हानि हो कोई मतलब नहीं --ऐसी स्थिति में भी धर्म को निभाने की भरसक कोशिश की है --इसका परिणाम यह हुआ धन की दुनिया में जहाँ हमें होना चाहिए --हम वहां नहीं पहुंच पाए --मुझे तो इस बात का गर्व है --पर हम अकेले नहीं हैं ,हमारे भी परिजन हैं --इसकी वजह से उन्हें दुःख सहने पड़ें --चाहे पुत्री हो या पतनी | --वैसे सम्बन्ध की बात करें तो सभी हैं ,ससुराल पक्ष में भले ही ससुर -साले शीघ्र चल बसे --पर अकेली सास ने समस्त जिम्मेदारी को निभाती रही हैं --कभी भी मुझे वीरान ससुराल महसूस नहीं हुआ | मेरा एक अनुज जब हम 18 वर्ष के थे तो चल बसा --यह नाता ऐसा रहा --ज्योतिष की खोज इस कारण से की ,आज जहाँ हूँ मेरी ज्योतिष प्रेरणा के श्रोत यह अनुज ही रहा -अतः मेरे ह्रदय पटल पर निरन्तर रहता है| हमने कभी भी अपनी कुण्डली पर उतना मंथन नहीं किया जितना अनुज की कुण्डली के लिए किया | दूसरा जो सर्वोतर सम्बन्ध ह्रदय पटल पर रहा वो पिता रहे --यह सम्बन्ध ऐसा था दिखने में कहीं पर या कहीं से महसूस नहीं किया जा सकता था --पर पिता मेरे लिए सबकुछ थे ,मेरे पिता को तनिक भी तकलीफ न हो ,मेरे पिता की शान कैसे बढ़े ,उनकी उन्नति कैसे हो यह प्रयास जीवन भर रहा --इसका एक उदहारण देना चाहता हूँ --जब पिता दिवंगत हुए तो मातृभूमि पर अनुज था ,उसके परिजन मेरठ में थे ,हम भी मेरठ में थे --दाह संस्कार की बात आयी तो मेरे बिना संभव नहीं था --पर हमने वही धर्म निभाया --जिससे पिता की आत्मा को शान्ति मिलती | सभी परिजन बोले तुम्हारे बिना दाहसंस्कार संभव नहीं है ----हमने कहा एक भाई दाहसंस्कार करें --दूसरा भाई जो मैं बहुत दूर था -अनुज के परिजनों को एवं अपने परिवार को लेकर घर देर से पहंचा ,जबकि हम दोनों भाई की शत्रुता सदियों से थी ,आजतक मुझे अपने अनुज का घर का पता नहीं है ,अनुज का नंबर मेरे पास नहीं है --फिर भी मैं वही धर्म निभाया जो शास्त्र सम्मत थे | आज मैं अगर शिक्षाविद हूँ तो पिता की देने है ,वो मेरे पिता ही थे अपने हृदय पर पथ्थर रखकर आश्रम में इसलिए दे आये --किसी तरह से मैं शिक्षाविद बनू ,मेरे पिता गरीब थे चाहते तो मजदूरी कराते पर बोले धन नहीं मेरा पुत्र विद्वान हो ,मेरठ लाने वाले व्यक्ति भी मेरे पिता के अनुयायी थे ---इतना पिता का मुझपर स्नेह था --पर मेरी कुण्डली में शुक्र कर्मेश है जो धन के क्षेत्र में नीच का है ,पिता की कुण्डली में शनि की दृष्ट्रि धन के क्षेत्र में थी -और भी बहुत से कारण थे --यद्पि सफलता मुझे पिता के सहयोग से नहीं मिली ,यद्पि इन तमाम बातों को ज्योतिष के माध्यम से जब समझ में आयी तबतक पिता भी चल बसे थे | हम पिता पुत्र जब एकत्र होते थे तो बहुत युद्ध होता था --पर मेरे बिना पिता अधूरे थे पिता के बिना मैं अधूरा था | पिताने मेरे जीवन को नरक भी बना दिया --क्योंकि वो मुझे अपने में समाना चाहते थे --मैं उन्हें अपने जैसा बनाना चाहता था -मेरे अपने बच्चे थे जिनको देखकर मुझे चलना था ,पिता के अपने परिजन थे जो मुझे लूटते थे | इन तमाम बातों के बावयुद भी पिता को मैं खोना नहीं चाहता था --उनका जाने का गम आज भी है और आजीवन रहेगा | मेरे जीवन में ये पिता रूपी पाश सदा रहती है---चाहकर भी हटती नहीं है | --अब आगे 2019 की चर्चा अगले भाग में करूँगा | आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-
जीवन क्या है निर्झर है मस्ती ही इसका पानी है --श्री निरालाजी की यह उक्ति कभी पढ़ी थी पर जीवन जीना इतना सहज भी नहीं होता है | मैं अपने जीवन में कर्मक्षेत्र और पिता से सम्बन्ध के बारे में इतना कह सकता हूँ -सौ प्रतिशत निभाने का प्रयास किया है | क्योंकि मेरी कुण्डली में उच्च का चन्द्रमा कर्मक्षेत्र में है एवं सूर्यदेव स्वराशि के लग्न में हैं| एक शास्त्री होने के नाते धर्म सम्मत जो कार्य मुझे करने चाहिए वही किया है --इस कारण से बड़े -बड़े यजमानों को खो दिए हैं --क्योंकि यजमान बनाते तो मन्दिर हैं ,कराते तो पूजा पाठ ही हैं ,मानते तो ज्योतिष को ही हैं पर आचरण ,व्यवहार में बहुत अन्तर होता है | आज के समय कोई भी व्यक्ति अपने स्वार्थ सिद्ध हेतु चाहे भूदेव हों ,भगवान हों कोई यह कह दे ये चढाने से या ये खिलाने से ये लाभ होंगें --तो बिना देर किये ,बिना बुद्धि का उपयोग किये झट कर देगा --इससे किसी की हानि हो कोई मतलब नहीं --ऐसी स्थिति में भी धर्म को निभाने की भरसक कोशिश की है --इसका परिणाम यह हुआ धन की दुनिया में जहाँ हमें होना चाहिए --हम वहां नहीं पहुंच पाए --मुझे तो इस बात का गर्व है --पर हम अकेले नहीं हैं ,हमारे भी परिजन हैं --इसकी वजह से उन्हें दुःख सहने पड़ें --चाहे पुत्री हो या पतनी | --वैसे सम्बन्ध की बात करें तो सभी हैं ,ससुराल पक्ष में भले ही ससुर -साले शीघ्र चल बसे --पर अकेली सास ने समस्त जिम्मेदारी को निभाती रही हैं --कभी भी मुझे वीरान ससुराल महसूस नहीं हुआ | मेरा एक अनुज जब हम 18 वर्ष के थे तो चल बसा --यह नाता ऐसा रहा --ज्योतिष की खोज इस कारण से की ,आज जहाँ हूँ मेरी ज्योतिष प्रेरणा के श्रोत यह अनुज ही रहा -अतः मेरे ह्रदय पटल पर निरन्तर रहता है| हमने कभी भी अपनी कुण्डली पर उतना मंथन नहीं किया जितना अनुज की कुण्डली के लिए किया | दूसरा जो सर्वोतर सम्बन्ध ह्रदय पटल पर रहा वो पिता रहे --यह सम्बन्ध ऐसा था दिखने में कहीं पर या कहीं से महसूस नहीं किया जा सकता था --पर पिता मेरे लिए सबकुछ थे ,मेरे पिता को तनिक भी तकलीफ न हो ,मेरे पिता की शान कैसे बढ़े ,उनकी उन्नति कैसे हो यह प्रयास जीवन भर रहा --इसका एक उदहारण देना चाहता हूँ --जब पिता दिवंगत हुए तो मातृभूमि पर अनुज था ,उसके परिजन मेरठ में थे ,हम भी मेरठ में थे --दाह संस्कार की बात आयी तो मेरे बिना संभव नहीं था --पर हमने वही धर्म निभाया --जिससे पिता की आत्मा को शान्ति मिलती | सभी परिजन बोले तुम्हारे बिना दाहसंस्कार संभव नहीं है ----हमने कहा एक भाई दाहसंस्कार करें --दूसरा भाई जो मैं बहुत दूर था -अनुज के परिजनों को एवं अपने परिवार को लेकर घर देर से पहंचा ,जबकि हम दोनों भाई की शत्रुता सदियों से थी ,आजतक मुझे अपने अनुज का घर का पता नहीं है ,अनुज का नंबर मेरे पास नहीं है --फिर भी मैं वही धर्म निभाया जो शास्त्र सम्मत थे | आज मैं अगर शिक्षाविद हूँ तो पिता की देने है ,वो मेरे पिता ही थे अपने हृदय पर पथ्थर रखकर आश्रम में इसलिए दे आये --किसी तरह से मैं शिक्षाविद बनू ,मेरे पिता गरीब थे चाहते तो मजदूरी कराते पर बोले धन नहीं मेरा पुत्र विद्वान हो ,मेरठ लाने वाले व्यक्ति भी मेरे पिता के अनुयायी थे ---इतना पिता का मुझपर स्नेह था --पर मेरी कुण्डली में शुक्र कर्मेश है जो धन के क्षेत्र में नीच का है ,पिता की कुण्डली में शनि की दृष्ट्रि धन के क्षेत्र में थी -और भी बहुत से कारण थे --यद्पि सफलता मुझे पिता के सहयोग से नहीं मिली ,यद्पि इन तमाम बातों को ज्योतिष के माध्यम से जब समझ में आयी तबतक पिता भी चल बसे थे | हम पिता पुत्र जब एकत्र होते थे तो बहुत युद्ध होता था --पर मेरे बिना पिता अधूरे थे पिता के बिना मैं अधूरा था | पिताने मेरे जीवन को नरक भी बना दिया --क्योंकि वो मुझे अपने में समाना चाहते थे --मैं उन्हें अपने जैसा बनाना चाहता था -मेरे अपने बच्चे थे जिनको देखकर मुझे चलना था ,पिता के अपने परिजन थे जो मुझे लूटते थे | इन तमाम बातों के बावयुद भी पिता को मैं खोना नहीं चाहता था --उनका जाने का गम आज भी है और आजीवन रहेगा | मेरे जीवन में ये पिता रूपी पाश सदा रहती है---चाहकर भी हटती नहीं है | --अब आगे 2019 की चर्चा अगले भाग में करूँगा | आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-
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दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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