ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरुवार, 5 अक्टूबर 2023

नामकारण संस्कार का अभिप्राय क्या है -सुनें -भाग -29- ज्योतिषी झा मेरठ



 
नामकारण संस्कार का अभिप्राय क्या है -सुनें -भाग -29- ज्योतिषी झा मेरठ
नाम कारण संस्कार -अर्थात -नाम से ही व्यक्ति की पहचान होती है | इस सृष्टि में प्रत्येक चीजों के अलग -अलग नाम होते हैं साथ ही नामों से ही सभी चीजों के प्रभाव समझ में आ जाते हैं | ज्ञानी पुरुष प्रायः नामो से ही अच्छा बुरा का भान कर लेते हैं | यहाँ यह ध्यान देने वाली बात --सृष्टि के तमाम चीजों के नाम ज्ञानी पुरुषों ने अथक परिश्रम से रखे -तभी प्रत्येक व्यक्ति को यह समझ में आती है कि कौन सी चीज हमारे अनुकूल रहेगी या कौन सी चीज हमें हानि पंहुचायेगी | इसी प्रकार से महर्षियों ने प्रत्येक व्यक्तियों के कैसे -कैसे नाम रखें या किस नाम से यह जीवन में विख्यात होगा --इसके लिए जन्म पत्रिका का निर्माण किया गया है | वास्तव में ज्योतिष की जरुरत प्रत्येक व्यक्तियों के जीवन में नाम कारण संस्कार से शुरू होती है | यहाँ भी उत्तम पुरोहित यानि एक सक्षम आचार्य की जरुरत होती हैं | जातक का एक ऐसा नाम रखा जाता है जो जीवन पथ को तत्काल दर्शाता है | कुछ लोगों के मत से देवों के ऊपर नाम रखने से जातकों में वैसा ही स्वभाव और प्रभाव देखने को मिलते हैं | जबकि सत्य यह है जिस नक्षत्र में जातकों के जन्म होते हैं उन्हीं नक्षत्रों के चरणों से नामकरण का विधान है साथ ही अगर हम देवों के नाम अपने -अपने बच्चों के रखते हैं तो सबसे पहला फायदा -बुलाने वाले लोगों को मिलता है -जिन -जिन नामों से किसी को पुकारते हैं तो उन -उन नामों में देवों के अंश दिखाई देते हैं --इस कारण परमात्मा का भी स्मरण हो जाता है | दूसरा ---सभी बालकों को इन नामों से यह प्रेरणा मिलती है कि हम कम से कम नामों के अनुकूल कार्य करें | अतः नाम कारण संस्कार उत्तम प्रकार से सभी के होने चाहिए | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सर्पदेव का कालसर्पयोग से क्यूँ है सम्बन्ध -पढ़ें ?--ज्योतिषी झा मेरठ


 सर्पदेव का कालसर्पयोग से क्यूँ है सम्बन्ध -पढ़ें ?--ज्योतिषी झा मेरठ 

  यूँ तो सनातन धर्म की संस्कृति हर जीव का सम्मान करती है -यहाँ तो सर्पों को माना जाता है देव हैं -जिनकी कृपा समस्त पृथ्वी वासी पर है -चाहे पृध्वी का धारण करना हो ,समुद्र मंथन करना हो या फिर आशीर्वाद ही क्यों न प्राप्त करना हो ,सर्पदेव की चर्चा के बिना सनातन धर्म की शुरुआत हो ही नहीं सकती है । -- अस्तु ------एकबार महर्षि सुश्रुत ने वैद्य धन्वन्तरि से पूछा कि हे प्रभु !सर्पों की संख्या और उनके भेद बतायें ?वैद्य धन्वन्तरिजी ने कहा कि सर्पदेव के समूहों में वासुकि सर्वश्रेष्ठ हैं ,ऐसे तक्षकादि सर्पदेव असंख्य हैं । ये सर्पदेव अंतरिक्ष एवं पाताल के भी वासी हैं ,तथा धरातल पर पाये जाने वाले नामधारी सर्पदेवों की संख्या प्रजाति करीब अस्सी प्रकार के हैं । हम सभी लोग जानते हैं कि सनातन धर्म की संस्कृति में सर्पदेवों की पूजा भी होती है । सनातन धर्म में सर्पों को मारना अनुचित माना जाता है एवं जहाँ -तहाँ सर्पदेव के मंदिर भी विद्यमान हैं । नागपंचमी को विधिवत सर्पदेवों की विशेष पूजा भी की जाती है । कथा ,पुराणों में सर्पदेवों का वर्णन भी मिलता है । भगवान वासुदेव ने यमुना नदी से कालिया नाग को नाथा भी था । सर्पों के बारे में लोकमत में भी अनंत कथाएँ सुनने को मिलती रहतीं हैं । सर्पों को देवयोनि का प्राणी भी माना जाता है। नूतन भवन के निर्माण में नीव रखते समय चाँदी ,स्वर्ण ,के सर्पों की पूजाकर रखा जाता है । वेदों के अनेक मन्त्रों का सर्पदेवों से सम्बन्ध हैं । नाग की हत्या जन्म जन्मान्तर तक पीछा करती है -इस कारण इसकी पहचान कालसर्प दोष के रूप में फलित +गणित ज्योतिष शास्त्रों में मिलता है । कई जगहों पर नागवध शाप को दूर करने के लिए "पिष्टमय "नागदेव का विधिवत पूजन करके दहन किया जाता है -और उस नागदेव की भस्मी बराबर स्वर्णदान किया जाता है -जो कर्मकाण्ड शास्त्र बताते हैं । शास्त्रों में सर्प को काल की संज्ञा दी गयी है । काल आदि ,मध्य ,अन्त से रहित होता है । सभी जीवों का मरण काल के अधीन ही रहता है । काल निरंतर अपनी गति से चलता रहता है । काल किसी का इन्तजार नहीं करता है । मेरे विचार से जब इन तमाम बातों पर विचार करते हैं -तो कालसर्पयोग अनुचित नहीं दीखता है -और संभवतः कालसर्पयोग -समय की गति से ही जुड़ा हुआ योग है -जिसे नकारा नहीं जा सकता है । आगे राहु +केतु का सर्पयोग से सम्बन्ध पर परिचर्चा कल करेंगें ।--- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut





मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -29 ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - "भाग "-{29} ज्योतिषी झा मेरठ

- 2012 --यह मानों हमें बहुत कुछ देना चाह रहा था | पहली पुत्री -20 वर्ष की हो चुकी थी | मैं भले ही दरिद्र नारायण रहा पर मेरी पुत्री बड़े घर में रहे यह सबकी कामना होती है मेरी भी थी ---अस्तु --आज विवाह की परिभाषा बदल चुकी है -आज रूप सुन्दर ,धन उत्तम ,शिक्षा उत्तम ,कार्यरत कन्या ,माता पिता भी उत्तम दर्जे के होने चाहिए --भला ये सारी बातें मेरे जैसे साधारण पंडित के यहाँ कैसे संभव है | मेरे पास तो सुन्दर कन्या थी ,पढ़ी लिखी थी ,धन भी था पर कन्या की नौकरी नहीं थी ,कन्या नौकरी क्यों करें ,अगर कन्या नौकरी करें -तो वर घर क्यों न संभाले -साथ ही भारत नौकरी का तो निरंतर अभाव रहेगा ,जब सभी नौकरी ही करेंगें तो और कार्य कौन करेगा | खैर मत पूछिए ---मेरी सोच है -माता पिता अपनी -अपनी मातृ भूमि से जुड़े हों ,वर शिक्षा युक्त और कार्यरत हों ,कोई भी किसी के सहारे न हों पर प्रेम से ओत -प्रोत हों --तभी तो समधी का प्रेम समधी से वर का प्रेम कन्या से और संतान के संस्कार मातृ भूमि से जुड़े होंगें | --बहुत कठिनाई के बाद यह मुराद पूरी हुई | पुत्री बेंगलुरु में रहती है समधी मातृभूमि पर और संतान अब दोनों संस्कारों को समझेगी | मेरा जनेऊ संस्कार पिताने बड़े धूम -धाम से कराया था -आज यह मेरे लिए सुभाग्य की बात है पुनः उस मातृ भूमि पर जब हम 42 वर्ष के हुए तो जिस घर में अन्न ,वस्त्र के बिना बाल्यकाल बीता था वहां पहलीबार पिता को एक मुस्कुराहट दे पाया |अगर मुझको दान लेना होता तो मेरठ जैसे शहर में बहुत दानी हैं जिनके बदौलत उत्तम प्रकार से चिंता मुक्त विवाह संस्कार होते -पर --जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसे ---माता पिता और समाज के साथ -साथ अपनी मातृ भूमि के भी हम ऋणी हैं --उनका सम्मान हमारे ह्रदय में पहले होने चाहिए | ----आगे की चर्चा कल करेंगें --ॐ |-----आपका -खगोलशास्त्री झा मेरठ --ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut में उपलब्ध हैं |

जातक संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु --सुनें -भाग -28- ज्योतिषी झा मेरठ


 


जातक संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु --सुनें -भाग -28--खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ----------------------------------
कर्मकाण्ड जगत में "जातक "संस्कार -यह प्रत्येक जातकों का चौथा संस्कार होता है | अभी तक के जितने भी संस्कारों को आपने जाना है -इन सभी संस्कारों में सभी के माता पिता अपनी -अपनी संतानों को एक जैसा प्रारूप दे सकते हैं | प्रत्येक माता पिता चाहें तो -राम जैसा मर्यादापुरुषोत्तम ,श्री कृष्ण जैसा निति निपुण ,माँ सरस्वती जैसी शिक्षा की अधिष्ठात्री ,श्री हनुमान जैसा बुद्धिवान -ज्ञानी ,शक्तिशाली संतानों को जन्म दे सकते हैं | माता पिता चाहें तो कुमार्ग गामी या धर्म विरोधी संतानों को जन्म दे सकते हैं | यहाँ न तो शास्त्रों ने भेद भाव किया न ही शास्त्रकारों ने न ही महर्षियों ने --ये केवल अफवाह या अनसुनी बातों के कारण हम आप में भ्रम है कि ऐसी संतानों को केवल धनाढ्य या बड़े लोग ही जन्म दे सकते हैं | इस बात को ऐसे समझें --प्रत्येक छात्रों को प्राथमिक शिक्षा एक जैसी ही मिलती है अंतर तो केवल छात्रों को निखारने का होता है --जो शिक्षकों और माता पिता या संगति के कमियों के कारण कोई उत्तम छात्र या अधम बन जाते हैं | एक और उदहारण देखें -प्रत्येक छात्रों को दशवीं कक्षा तक सभी विषयों को पढ़ना अनिवार्य होता है -उसके बाद अपनी -अपनी समझ के अनुसार विषयों का चयन करना होता है | जब पढ़ाई की ऐसी ही व्यवस्था है तो फिर जातिबाद या बड़े छोटे की बात कहाँ से आयी -इसे हमें ठीक से समझना चाहिए | ----अस्तु --प्रत्येक जातक जब छे दिन के होते हैं -तो षष्ठी पूजन होता है -इस दिन स्वयं विधाता जातकों को दर्शन देते हैं और जातकों -की आयु ,कर्म ,वित्त ,विद्या और निर्धनता का आशीर्वाद देकर चले जाते हैं तथा पुनः जीवन में कभी दर्शन नहीं देते हैं | दशवें दिन शुद्धिकरण होता है तब जातकों को सभी को देखने का और आशीर्वाद लेने का दिन होता है |---आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका -
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"शेषनाग "नामक कालसर्प योग की विशेषता -जानने हेतु -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ "


 "शेषनाग "नामक कालसर्प योग की विशेषता -जानने हेतु -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ "

 किसी भी जन्मकुण्डली में राहु द्वादश भाव भाव में हो एवं केतु छठे {षष्ठ }भाव में हो साथ ही सूर्यादि सातों ग्रह इन दोनों के मध्य स्थित हों तो "शेषनाग "नामक कालसर्प योग बनता है । शेषनाग नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले लोग देश --प्रदेश एवं विदेश कहीं भी एक जैसी परिस्थितियों में रहते हुए व्यक्तित्व के विकास ,खान -पान एवं रहन -सहन पर अधिक ध्यान देते हैं । ऐसे जातक के शत्रु तांत्रिक -यांत्रिक क्रियाओं द्वारा हानि पंहुचाने का षड्यंत्र करते रहते हैं । ऐसे जातक को मित्रों की भागीदारी में नुकसान उठाना पड़ता है । ऐसे जातक देश -विदेश के संपर्क से लाभ पाते हैं । ऐसे जातक को खूब सोच समझकर किये गये कामों में अक्सर हानि होती है । परन्तु अनायास या अचानक किया गया काम लाभ देता है । ----निदान ---- वैसे अपने -अपने आचार्य से कुण्डली की जानकारी करें ,फिर भी धनाभाव हो तो -शनिवार को तेल का दान एवं शरीर पर तेल मर्दन से लाभ होगा । माँ काली की उपासना या अष्टमी ,नवमी एवं चतुर्दशी की तिथियों में निम्बू +प्रसाद एवं दक्षिणा माँ को भेंट करने से रोग ,शत्रुता एवं खर्च में राहत मिलती है । ------ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




मेरा" कल आज और कल -पढ़ें -भाग -28--ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?-"भाग -{28}--ज्योतिषी झा मेरठ

2012--में- हमारी फ्री ज्योतिष सेवा को बिना धन के प्रचार का लाभ मिलने लगा | टीकमगढ़ {मध्यप्रदेश }के श्री निखिल शर्मा जी ने अपनी पत्रिका -"यदुवंश गंगा " में साथ ही वहीँ से प्रसारित होने वाले अखबार में हमारे लेखों को जगह मिलने लगी, साथ ही-इन्होंने -मुझ जैसे अनभिज्ञ व्यक्ति को पत्रकार भी बनाया | बिना धन लिए अपने पैसों से मेरा पहचानपत्र मुझतक भिजवाये | हम आभार व्यक्त करना चाहते हैं | अब हम चैनलों पर आना चाहते थे -संस्कार या आस्था पर | एकदिन हमने आस्था चैनल को फ़ोन किया -उन्होंने कहा धन के बिना संभव नहीं है साथ ही जगह खाली होने के बाद आपको नंबर मिलेगा | इसी बीच जम्मू से एक व्यक्ति ने कहा सर आप 10 लाख तो खर्च कर लेंगें | न जाने कितने मिडिया जगत से लोग हमसे संपर्क करने लगे पर धन के बिना कुछ संभव नहीं था | फिर हम निराश हुए कि आगे कैसे बढ़ें | ---जब भी हम निराश हुए या तो मेरे सहायक मेरे आराध्य गुरु सरकार थे, जिनको प्रत्यक्ष तो बाल्यकाल में ही देखा था पर जरुरत पड़ने पर उनसे याचना करता था, या मेरे परमपिता भोलेनाथ जिनकी शरण में अपना दुखड़ा सुनाता था और यहीं मुझको मार्ग दिखाते रहे | --अतः फिर एकबार मन में विचार आया क्यों न हम अपनी लेखनी से बढियाँ से बढियाँ लेखों को लिखें साथ ही जितने पैसों से चैनलों ,अखबारों में आयेंगें उतने पैसों को फ्री सेवा में लगायें तो --दो फायदे होंगें --पहला लोगों से व्यक्तिगत रूबरू होने से बोलने की क्षमता बढ़ेगी ,और लोगों को मेरे प्रति श्रद्धा बढ़ेगी | दूसरा -जीवन भर कामना रही विद्या दान करने का क्योंकि कोई भी गुरु विद्या दान के बिना अधूरा रहता है साथ ही पत्ता नहीं आजीवन धन और विद्या दान में मिली तो कुछ परमार्थ का काम करें | यही सोचकर फ्री सेवा की शुरुआत हुई थी और जबतक लेखनी चलती रहेगी यह सेवा भी चलाने की कोशिश करते रहेंगें | --हमने एकलाख रूपये लगाकर नेट की तमाम चीजों को ख़रीदे -जैसे लेपटॉप ,प्रिन्टर ,स्केनर ,आधुनिक कीबोर्ड माउस -अब हम सक्षम हो चुके थे नेट के सभी कार्यों को करने में | हमने सोचा एकलाख रूपये जो खर्च हुए हैं देना तो पब्लिक को ही होगा -अतः हमने फिर एक भूल की -1100 रूपये आजीवन शुल्क का प्लान शुरू किया --इसका असर यह हुआ देश में कम विदेशों में यह सेवा काफी प्रचलित हो गई ---सभी लोग पैसे देने लगे इतने सदस्य बनें -जिससे मेरे एकलाख रूपये तो मुझको मिल गये पर हम परेशान होने लगे क्योंकि एक व्यक्ति का कई -कई बार फोन आना यह हमें और कार्यों को करने में दिक्क्त देने लगे -अतः यह सेवा भी बंद करनी पड़ी | --जिन्होंने पैसे दिए थे उनको तीन वर्षों तक सेवा दी और हाथ जोड़ लिए मेरे भारतीय लोग बड़े ही दयालु होते हैं --मेरे जैसे व्यक्ति को क्षमा भी कर दी और अपना -अपना स्नेह भी बनाये रखा --हम फिर से आप सभी का आभार व्यक्त करते हैं | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें |---ॐ |----आपका -खगोलशास्त्री झा मेरठ --ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut में उपलब्ध हैं |

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...