ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

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ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

रविवार, 17 सितंबर 2023

अंग्रेजी मास "दिसंबर " की रचना कैसे हुई -पढ़ें ---ज्योतिषी झा मेरठ



 अंग्रेजी मास "दिसंबर " की रचना कैसे हुई -पढ़ें ---ज्योतिषी झा मेरठ

 



लैटिन भाषा के इस शब्द का अर्थ है दसवां । जूलियस ने वर्ष के इस मास का अथान बारहवां रखा है । प्राचीन समय में इस मास का दसवां स्थान था । ईसामसीह का जन्म इसी मास में हुआ था । ---आपका ज्योतिष सेवा सदन मेरठ भारत -ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

अंग्रेजी मास "नवंबर "की रचना कैसे हुई -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ


  अंग्रेजी मास "नवंबर "की रचना कैसे हुई -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ

 


अंग्रेजी मास "का नवम्बर अर्थात नोवेम  भी लैटिन शब्द है । इस मास को रक्त मास नाम से पुकारते हैं ,क्योकि इसी मास में मुखयतः पशु संहार किया जाता था । इस कारण इसका नाम नवंबर रखा गया । 
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अंग्रेजी मास "अक्तूबर "की उत्पत्ति जानते हैं -पढ़ें ---ज्योतिषी झा मेरठ



  अंग्रेजी मास "अक्तूबर "की उत्पत्ति जानते हैं -पढ़ें ---ज्योतिषी झा मेरठ

 

अक्तूबर मास की उत्त्पत्ति में अक्तूबर यह शब्द भी लैटिन भाषा का है -जिसका मतलब आठ होता है । किन्तु जनवरी को वर्ष का प्रथम मास का स्थान देने से यह क्रम बदल गया और अब इसका क्रम दसवां हो गया है । 
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अंग्रेजी मास "सितम्बर "की रचना कैसे हुई --पढ़ें ---ज्योतिषी झा मेरठ


  अंग्रेजी मास "सितम्बर "की रचना कैसे हुई --पढ़ें ---ज्योतिषी झा मेरठ

 -----सेप्टेम्बर {सेप्टेम }--यह शब्द वास्तविक रूप में लैटिन शब्द है ,जसका अर्थ सातवां है । वर्ष का आरंभ प्राचीन समय में मार्च से हुआ करता था ,तब यह मास सातवां था । किन्तु जूलियस सीजर के जनवरी को वर्ष का प्रथम मास का स्थान देने से इस सितंबर मास का क्रम नवां हुआ ।----ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


अंग्रेजी मास "अगस्त " की उत्पत्ति जानते हैं --पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ


 अंग्रेजी मास "अगस्त " की उत्पत्ति जानते हैं --पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ


 



आक्टेवियस का ही एक रूप अगस्त है । यह नाम जूलियस के पोते का था । वो साहित्य एवं कला के क्षेत्र में विशेष विख्यात थे । अतः इन्हीं के नाम पर अंग्रेजी मास अगस्त का नाम रखा गया । 
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अंग्रेजी मास "जुलाई "की रचना कैसे हुई --पढ़ें ?-ज्योतिषी झा मेरठ


 अंग्रेजी मास "जुलाई "की रचना कैसे हुई --पढ़ें ?-ज्योतिषी झा मेरठ

 


जुलाई ---मास अर्थात वर्ष के सातवे महीने की रचना रोमन के महान शासक "जूलियस सीजर"के नाम पर हुई । अभिप्राय था जूलियस यशस्वी के साथ -साथ लोकप्रिय शासक भी थे । ---ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"अंग्रेजी मास "जून "की रचना कैसे हुई -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


  "अंग्रेजी मास "जून "की रचना कैसे हुई -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

 ----जून मास की रचना जूपिटर की पत्नी जनों के नाम पर हुई । मान्यता है कि जुपिटर की पत्नी जूनो अत्यधिक सुन्दर एवं सुकोमल थी । इनके रथ के वाहक घोड़े नहीं बल्कि मयूर थे । इस कारण वर्ष के छठे महीने कि रचना इनके नाम पर हुई ।
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"अंग्रेजी मास "मई "की रचना कैसे हुई --पढ़ें -----ज्योतिषी झा मेरठ


  "अंग्रेजी मास "मई "की रचना कैसे हुई --पढ़ें -----ज्योतिषी झा मेरठ

 



भारतीय संस्कृति में साल के प्रत्येक मासों की रचना महर्षियो ने योगयतानुसार की है और  प्रयोजन भी बताएं हैं जिसका वर्णन हम क्रम से करेंगें ---किन्तु यह परिपाटी विस्व की सभी भाषाओँ देखने को मिलती है ।
   -------अस्तु ----"मई "अंग्रेजी मास का यह नाम एटलस की कन्या "मइया "से उपलब्ध हुआ है । "मइया "अपनी सातो बहनों से अति सुन्दर थी --इसका अभिप्राय यह था वर्ष के बारहों महीनों में मई का महीना प्रकृत को सर्व सुन्दर रूप प्रदान करता है ।---- ॐ आपका ---ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


"अंग्रेजी मास "अप्रैल "की रचना कैसे हुई -पढ़ें ----ज्योतिषी झा मेरठ


  "अंग्रेजी मास "अप्रैल "की रचना कैसे हुई -पढ़ें ----ज्योतिषी झा मेरठ

 


रोमन भाषा में दो शब्द हैं ,अमोनिया और एपारि --जिनका अर्थ है ,सब कुछ खोल देना । इसी के आधार वर्ष की चौथे मास "अप्रैल"की रचना हुई -----और साथ ही यह कितना सार्थक नाम है ,क्योंकि "अप्रैल "मास में ही यूरोप की धरती पल्ल्वित होती है । यह अप्रैल मास ही है ,जो धरती पर से बर्फ और कुहासे का आवरण उठा देता  है । साथ ही नई सतरंगी चुनर में निखर उठती है । --- ॐ आपका - ---ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

अंग्रेजी मास "मार्च "की रचना कैसे हुई -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ



  अंग्रेजी मास "मार्च "की रचना कैसे हुई -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

  -----यूँ तो सबकी संस्कृति और संस्कार अपने -अपने अनुकूल होते हैं --किन्तु किसी भी विशेष कार्य में देवताओं का अनुशरण चाहे रोमन जगत हो या आंग्ल भाषा हो वहाँ भी देखने को ये बात मिलती है ।
  भारतीय संस्कृति में किसी कार्य में मंगलाचरण अवश्य ही होता है परन्तु रोमन जगत में भी यह संस्कृति देखने को मिलती है ।
-------अस्तु ------मार्च ---मास की रचना  रोमन के एक देवता का नाम मार्स था । वो देवता युद्ध का प्रतीक माना जाता था । उसी के गुणों के आधार पर वर्ष के तीसरे मास का नाम "मार्च " रखा गया ।
-ज्योतिष सेवा सदन प्रबंधक झा शास्त्री मेरठ उत्तर पदेश {भारत }-ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut



"फरवरी "अंग्रेजी में मास का नाम क्यों पड़ा -"पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


  "फरवरी "अंग्रेजी में मास का नाम क्यों पड़ा -"पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

 ----प्राचीन भाषा संस्कृत ही थी  जानते हैं --इसलिए संस्कार की बात संसार में सभी भाषा -भाषियों में देखने को अवश्य मिलती है ।
    ------अस्तु ----फरवरी मास का नामकरण ---प्राचीन रोमन जगत में फेबुआ नामक एक बहुत बड़ा भोज हुआ करता था ,जो अति पवित्र एवं पुण्यतम माना जाता था । इसी के आधार पर वर्ष के दूसरे मास का नाम फेबुरी रखा गया ।
    --ज्योतिष सेवा सदन प्रबंधक झा शास्त्री मेरठ उत्तर पदेश {भारत }---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


"अंग्रेजी मास जनवरी का नाम क्यों पड़ा -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

  "अंग्रेजी मास जनवरी का नाम क्यों पड़ा -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

 रोमन एवं अंग्रेजी भाषा साहित्य में ही नहीं ,संप्रदाय में भी उग्र संक्रांतियां हुई हैं । देवताओं को वहां भी महत्त्व और प्रधानता दी गई है । अर्थात वहाँ भी देवताओं के नाम पर प्रत्येक मास की शुरुआत हुई ।
    ------  अस्तु ----- जनवरी ---जेनस नामक एक रोमन देवता के नाम पर वर्ष के प्रथम मास का नाम जनवरी रखा गया । इस देवता के विषय में यह विदित है कि इसके दो मुख थे । एक सामने की ओर तथा दूसरा पीछे की ओर ---इसका मतलब यह है कि जब हम बीते हुए वर्ष की सफलताओं और असफलताओं पर विचार करते हैं ,तो हमें आगे आने वाले नववर्ष की नूतन योजनाओं का विवेचन करना पड़ेगा ---इसका प्रतीक जेनस आदि और अंत के देवता माने गए ।
    अभिप्राय  जेनस देवता के दो मुख से ये दोनों बातें विदित होती हैं  ---ये देवताओं को हम  ही नहीं मानते हैं सभी मानते हैं । भवदीय निवेदक -ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut





शनिवार, 16 सितंबर 2023

" श्राद्ध" अर्थात श्रद्धा कैसी हो -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ


  " श्राद्ध" अर्थात श्रद्धा कैसी हो -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ

 इस "लोक" में जितने भी प्राणी हैं -सभी अपने -अपने पूवजों को मानते है और यथा सामर्थ दिवंगत आत्माओं के लिए कुछ न कुछ समर्पण करते हैं | मनुष्य सृष्टि का एक अद्भुत प्राणी है जो अपना विनाश और अपना उथ्थान खुद करता है | संसार में वर्तमान और भविष्य को तो ठीक किया जा सकता है किन्तु भूतकाल का केवल स्मरण ही संभव है | व्यक्ति अपना जीवन सार्थक बनाने हेतु -यज्ञ ,दान ,हवन ,पूजा वर्तमान कर्म को करके भविष्य में प्राप्त कर सकता है किन्तु नहीं करने पर नरक की यातनाओं को भी खुद झेलता है | ------अस्तु --"श्राद्ध" का शाब्दिक अर्थ श्रद्धा है | जैसे माता पिता गुरुजन या शुभचिंतक लोग अपनी -अपनी संतानों का लालन- पालन कर्तव्य समझकर करते हैं ठीक उसी प्रकार से संतानों को भी अपने -अपने पूर्वजों के हेतु "श्राद्ध "उसी श्रद्धा से करने या मानाने चाहिए | श्राद्ध में किसी भी वस्तु का दान करने से अपने पूर्वजों को प्राप्त नहीं होता बल्कि उनकी आत्मा तृप्त होती है और आत्माओं की तृप्ति ही श्राद्ध है | संसार में जैसे यज्ञ ,दान ,हवन ,गृहप्रवेश ,तमाम संस्कार पंचांग के अनुसार करते हैं ठीक उसी प्रकार से समस्त दिवंगत आत्माओं की तृप्ति हेतु श्राद्ध पक्ष की व्यवस्था महर्षियों ने की है | ---अपने -अपने समस्त पूर्वजों को प्रसन्न करने हेतु या अपना कर्तव्य पूरा करने हेतु कोई भी पुत्र अपने दिवंगत पिता का पहला जो श्राद्ध करता है उसे -"सपिण्डीकरण श्राद्ध "कहते हैं इसे इस श्राद्ध की तमाम प्रक्रियाये 13 दिनों में पूरी होती हैं | --कोई भी पुत्र अपने दिवंगत पिता का पहला पितृपक्ष में पहला श्राद्ध करने के लिए पहले पार्वण श्राद्ध करता है इसे पूर्वजों को प्रसन करने का दूसरा श्राद्ध कहते हैं | जो आजकल सीमित है या ज्ञान के आभाव के कारण नहीं हो पाता है | इसी प्रकार से अपने दिवंगत पिता का पांच साल तक श्राद्ध पक्ष में एकोदिष्ट नामक श्राद्ध करना चाहिए --इसे पितरों की प्रसन्नता का तीसरा श्राद्ध कहा गया है --यह श्राद्ध भी सीमिति होता जा रहा है अर्थात तेरवीं के साथ बरसी एक साथ होने लगी है जो उचित नहीं है | ---संसार के सभी प्रकार के यज्ञ ,दान ,हवन ,गृहप्रवेश या व्यक्ति के तमाम संस्कारों में वृद्धि यानि नान्दीमुख श्राद्ध करना चाहिए -इस श्राद्ध के बिना कोई भी कार्य सार्थक नहीं हो सकते | अर्थात पूर्वजों के आशीर्वाद के बिना कोई भी यज्ञ सफल नहीं हो सकता है | ----यह चौथा श्राद्ध प्रायः विद्वानों के कारण हो रहे हैं अन्यथा यह भी श्राद्ध केवल शास्त्रों में ही रह जायेंगें | -------ध्यान दें -अपने -अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने का अर्थ है इस परम्परा को जीवित रखना | अगर हम पिता के लिए नहीं करेंगें तो हमारा ही पुत्र हमारे लिए कुछ नहीं करेंगें | -ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/astrologerjha/ उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका -
ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई



श्राद्ध पक्ष" क्यूँ और कैसे समझने हेतु -पढ़ें -खगोलशास्त्री झा "मेरठ"


 श्राद्ध पक्ष" क्यूँ और कैसे समझने हेतु -पढ़ें -खगोलशास्त्री झा "मेरठ"

  श्राद्ध के मनाने का मतलब अपने पूर्वजों को याद कर उन्हें सम्मान देना है. जिस तिथि को प्राणी की मृत्यु होती है, उसी तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है. यदि किसी व्यक्ति को अपने पितरो की मृत्यु तिथि स्मरण न हो तो वे अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध कर सकते है।
रजस्वला स्त्री को श्राद्ध का भोजन नहीं बनाना चाहिए। यदि किसी कारण से श्राद्ध के दिन घर मे भोजन न बन सके या व्यक्ति घर से बाहर हो तो वह किसी भी मंदिर मे ब्राह्मण को दूध और मावे के पेड़े दे सकता है. श्राद्ध पक्ष में अगर कोई भोजन पानी मांगे, तो उसे खाली हाथ नहीं जाने दें। कहते हैं प‌ितर किसी भी रूप में अपने पर‌िजनों के बीच में आते हैं और उनसे अन्न +पानी की चाहत रखते हैं।
श्राद्ध करने का पहला अधिकार मृतक के बड़े पुत्र का होता है परंतु यदि बड़ा पुत्र न हो अथवा वह श्राद्ध आदि कर्म न करता हो तो छोटा पुत्र श्राद्ध कर सकता है। यदि किसी परिवार में सभी पुत्र अलग-अलग रहते हों तो सभी को अपने पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। यदि किसी का कोई पुत्र न हो तो उसकी विधवा स्त्री श्राद्ध करवा सकती है तथा पत्नी के न होने पर उसका पति भी पितरों के निमित्त श्राद्ध करने का अधिकारी है।---- ॐ आपका - ज्योतिषी झा
मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


ज्योतिष का अभिप्राय क्या है --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 ज्योतिष का अभिप्राय क्या है --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

  ----ग्रह नक्षत्र हमारे जीवन को पल -पल प्रभावित करते रहते हैं ,इस बात से तो विज्ञानं भी इनकार नहीं कर सकता । ग्रहों की चाल से ही दिन -रात ,मौसम बदलते हैं । ग्रहों की गति से ही हमारा भाग्य और स्वास्थ बनता सुधरता है । ग्रहों की दशा ही सम्पूर्ण ज्योतिष ज्ञान का मुख्य विषय है । हमारे लेखों के अध्ययन से न सिर्फ आपका ज्योतिष ज्ञान चमत्कारिक रूप से बढ़ेगा बल्कि इन आलेखों को पढ़ने से आप अपना भविष्य ,ग्रह ,ग्रहों का राशि पर प्रभाव ,अपनी जन्म कुण्डली का अध्ययन तथा अनिष्टकारी ग्रहों को शान्त करने के उपाय भी सीख सकते हैं ।
   -----अस्तु  इसलिए निःशुल्क ज्योतिष के  सभी आलेख ज्योतिष प्रेमी मित्रों को दी जाती है ताकि सही ज्ञान से लाभ प्राप्त कर सकें --आपका ---ज्योतिष सेवा सदन प्रबंधक झा शास्त्री मेरठ उत्तर पदेश {भारत }---आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें ------https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


 

शुक्रवार, 15 सितंबर 2023

"ज्योतिष " की शोभा रत्न होते हैं --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "ज्योतिष " की शोभा रत्न होते हैं --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ 

 


 "ज्योतिष " की शोभा रत्न होते हैं !"
"{काव्य शोभा करान धर्मान अलन्कारान प्रचक्षते }"=
मित्र बन्धु गण -संसार में सादगी किसी को पसंद नहीं आती है-[सिवा -संतों के ]-घर हो किन्तु अलोकिक हो यह सभी चाहते हैं ,रूप हो- परन्तु मनोहारी हो ?- संसार की  कोई भी वस्तु हो हमलोगों की कामना यही रहती है ,कि दिव्य हो ?-कुछ लोगों को ऊपर वाले की कृपा से अच्छी वस्तु प्राप्त हो भी जाती है ||आईये-संस्कृत साहित्य के रचनाकार भी "साहित्य दर्पण" नामक रंथ की रचना की और उन्होंने भी  भी यही कहा -की अलंकार के बिना  काव्य की भी शोभा नहीं होती है | आप चाहे कितने भी सुयोग्य है -किन्तु सुन्दरता के विना अधूरे हैं || भला इस स्थिति में -"ज्योतिष "की भी शोभा तो रत्न ही होंगें ,प्राचीन काल में राजा महराजा लोग रत्न भव्यता के लिये धारण करते थे ,समय बदला हमलोग भी बदल गये  ,"ज्योतिष "बदली -और रत्न भी "ज्योतिष का अभिन्न अंग बन गए ||-वास्तविकता  क्या है -हम अपने कृत्य कम का फल या तो "ज्योतिष "के द्वारा जानते हैं या भोगते हैं ,प्रत्येक दंड का प्रायश्चित करना पड़ता है ,और उसके लिये-सात्विक कर्म हमें करने चाहिए ,तभी हम सही होंगें या आने वाला समय सही होगा ,परन्तु  हमलोग-उस निदान की उपेक्षा करते हैं ,जो हमें सुन्दरता तो प्रदान करते हैं -किन्तु सत्य का प्रतीक नहीं है-आइये हम उस पथ  पर चलने की कोशिश का  संकल्प लें -हमें सुन्दर कर्म करने चाहिए -और यदि भूल हो भी जाये तो -"तप" करने चाहिए ,आप रत्न जरुर पहनें ,किन्तु  देखा देखी में नहीं -स्थिति के अनुरूप चलें एवं अपने मित्रों को भी सुझाव दें|| हमलोग किसी भी कार्ज़ को करने से पहले विचार नहीं करते हैं ,कुछ अपने शरीर को कष्ट दें एवं तप करें ||------प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"अर्पण या समर्पण ,किन्तु है ये घमर्थन---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 अर्पण या समर्पण ,किन्तु है ये घमर्थन---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 ----  मित्र प्रवर ,राम -राम,नमस्कार ,प्रणाम ।
          ----संसार की सभी वस्तुएं निरर्थक है ,ये हम सभी जानते हैं ,किन्तु जीने की "कला "सबकी अलग -अलग होती है | वर्तमान ही भूत एवं भविष्य बन जाता हैं ,और सभी जीव इन तमाम बातों को जानते हुये भी उलझते रहते हैं | हमें आवश्यकता के आगे सत्य भी असत्य सा प्रतीत होता है ||
                --- अर्पण =हमारा जीवन सुखमय कैसे हो इसके लिए हम बहुत से यत्न और प्रयत्न करते रहते हैं | इसके लिए हम -अपने अभिभावक ,मार्गदर्शक एवं ऊपर वाले के ऊपर अटूट आस्था रखते हैं ,उनके बताये हुये मार्ग पर चलते हैं और अपनी संतानों को चलने की प्रेरणा भी देते हैं || किन्तु ये जो हमारा अर्पण है ,वो वास्तविक रूप से अलग हो रहा है |जैसे - माता -पिता,भाई बंधुओं ,अभिभावोकों ,शिक्षक ,तथा गुरु के ऊपर यकीन न करके -उनके ऊपर यकीन कर लेते हैं---,जिनको हम जानते तक नहीं है -उनके विचार को हम सुविचार मानते हैं -जो हमारा हित [कल्याण ] कभी नहीं कर सकते हैं ||
            ---- समर्पण =जब हम दूरदर्शन [टी, व़ी] चलचित्र [सिनेमा ] नेट -[जाल ] के आदि हो गये हैं ,तो निशचित ही मूल रूप को पहचानते हुये  भी -वही राह अपनाते हैं जो दीखता तो उत्तम है ,किन्तु है असत्य का प्रतीक -जैसे -किसी भी वस्तु का मूल रूप तो सत्य होता है -परन्तु परिवर्तन होने से नष्टकारी अर्थात बेकार हो जाता है |जैसे -गेहूं सत्य है किन्तु भोजन के लिए उसका परिवर्तन होता है -गेहूं से आटा एवं आटा से रोटी बनते ही उसका समय सीमित हो जाता है| जब हम चलचित्र देखते हैं -तो ये बातें काल्पनिक है ये हम सभी जानते हैं -किन्तु -मानते उसे सत्य हैं | यही हमारा समर्पण हमें तो भ्रमित करता ही है ,समाज को भी इसी ओर ले जा रहा है ||---   ---- घमर्थन =हम अपने जीवन के मूल रूप को  पहचानते तो हैं ,किंतु उस पथ पर चलने की कोशिश नहीं करते हैं | माता -पिता से उत्तम शुभ चिन्तक ,गुरु से उत्तम मार्गदर्शक ,अपने भाई -बंधुओं से सुन्दर प्रेम , अपने पुरोहित से उत्तम पूजा ,अपने आराध्यदेव से उत्तम देव ,अपने घर से सुन्दर घर ,अपनी संस्कृति से सुन्दर व्यवहार ,अपनी पतनी से सुदर पतनी ,कोई नहीं है ||अर्थात -ये लड़ाई ,या झगडा की चीज नहीं है -ये आत्मा से स्वीकार करने की बात है ||---

----प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

प्रचार का अभिप्राय -प्रसार है न कि शर्मसार --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 प्रचार का अभिप्राय -प्रसार है न कि शर्मसार --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


--मित्रप्रवर ,राम राम ,नमस्कार ||
 प्रचार का अर्थ प्रसार होता है ,किन्तु उसका प्रसार तभी संभव होता है ,जब अपने गुण {गुणबत्ता }के कारण लोगों के दिल में अपनी जगह बना लेता है ,किन्तु इसमें समय लगता है ,इसके लिए अपना परिश्रम ,लगन ,विस्वास ,धन के साथ -साथ उपर वाले एवं भाग्य की भी आवशयकता होती है | यदि इन तमाम बातों में से एक भी कम हो जाय तो प्रचार नहीं -शर्मसार हो जाता है ||
 ---- कभी हमलोग सादगी जीवन बिताते थे -तो कारण अनभिज्ञता थी | आज हम अलौकिक जीवन जीते हैं -तो वजह प्रचार ही है |चाहे -परिधान हो ,अलंकरण की वस्तुएं हो ,या रोजमर्रा की चीजें ही क्यों न हो -प्रचार ने हमें -अपने में समेट लिया है ,हम चाहकर भी अपने जीवन में कटोती नहीं कर पाते हैं ||--- ---ज्योतिष एवं ज्योतिषी भी अपने आपको नहीं रोक पाये  ,समय की धारा ने हमें भी अपनी और खीच ली | किन्तु यदि हम -ज्योतिष अर्थात- नेत्र ,नेत्र अर्थात -तेज ,अपने तेज ,अपनी शक्ति के बल पर लोगों के ह्रदय में जगह बना सकते हैं -इसके लिए कर्मठ होना पड़ेगा ,सहनशील भी बनना पड़ेगा ,तप और साधना के द्वरा अपनी डगर पर अडिग रहना पड़ेगा |तभी हम भी प्रचार का प्रसार करेंगें नहीं तो -शर्मसार ही करेंगें ||--यह ज्योतिष सेवा सदन -आपकी सेवा में तत्पर रहता हैं ,रात्रि ८ से ९  सम्पर्कसूत्र द्वरा |
---हम आने वाले सभी मित्रों की सदा  सेवा करेंगें ,सभी आगंतुक मित्रों का निष्पक्ष मदद करेंगें ,सही राह दिखाएंगें , हम भेद भाव रहित सेवा करते हैं ,करते रहेंगें ||----{१}-आप से जुड़कर ,आपके हित के लिए बताकर हमें प्रसन्नता होती है ,किन्तु आप के सहयोग के बिना हम अकेले यह सेवा नहीं कर पायेंगें ,इसलिए ऑनलाइन  सेवा लेने से हमें दिक्कत नहीं होती है -इसके लिए सम्पर्कसूत्र से व्हाट्सस्प पर सेवा लें, सबको सेवा मिलेगी ,देर हो सकती है ||
     {२}-किन्तु -ज्योतिष की सेवा के लिए -ज्योतिष के प्रति आस्था ,विस्वास होने चाहिए ,अन्यथा सेवा न लें ,क्योंकि आप और हम -महर्षियों की जो अद्भुत देन है ,गुरुओं की जो साधना है -उस मार्ग को धन से नहीं विस्वास से ही प्राप्त कर सकते हैं ||-

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श्रीभादव गणेश चतुर्थी की विशेष कथा -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ"


 श्रीभादव गणेश चतुर्थी की विशेष कथा -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ" 

 श्री भादव गणेश चतुर्थी की विशेष कथा ---ॐ गं गणपतये नमः -शिवपुराणके अन्तर्गत रुद्रसंहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया।-- ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अ‌र्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्षपर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।--भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है। जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-'"सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥'" अस्तु ----------------------------------------------------- श्रीगणेशोत्सव की वर्तमान समय की बात करें तो --- पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थपना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणोत्सव को को जो स्वरूप दिया----उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गये। तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी। पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया और उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का जो सार्वजनिक पौधरोपण किया था वह अब विराट वट वृक्ष का रूप ले चुका है। वर्तमान में केवल महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है।--सभी मित्रों को श्री गणेशोत्सव की हार्दिक शुभ कामनायें ---भवदीय निवेदक - ज्योतिषी झा "मेरठ ,झंझारपुर,मुम्बई " {भारत }ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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कैरियर निर्माण हेतु -कुंडली का निरिक्षण अवश्य करें -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "कैरियर निर्माण हेतु -कुंडली का निरिक्षण अवश्य करें -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ



प्राचीन कल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति होता था |विद्यार्थी किसी योग्य विद्वान के निर्देशन में विभिन्न प्रकार की शिक्षा ग्रहण करते थे |इसके  अतिरिक्त उसे शस्त्र सञ्चालन एवं विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण भी दिया जाता था |किन्तु वर्तमान समय में यह सभी प्रशिक्षण गौण हो गए हैं |शिक्षा की महत्ता बढ़ने व् प्रतिस्पर्धात्मक युग में सजग रहते हुए बालक के बोलने व् समझने लगते ही माता -पिता शिक्षा के बारे में चिंतित हो जाते हैं |कुछ वर्षों बाद सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि कौन सा विषय पढ़ायें ,जिससे उनके बच्चे का भविष्य सुखमय हो ?

----{१}-सर्वप्रथम जातक के बचपन से ही उसकी कुंडली विषय की पढाई व् कैरियर चयन में सहायक होती है |
---{२}जातक की कुंडली से तय करना चाहिए कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय |-----{३}-जातक कि २० से ४० वर्ष की उम्र के बिच की ग्रहदशा का सूक्षम अध्ययन कर यह देखना चाहिए कि दशा किस प्रकार के कार्यक्षेत्र का संकेत दे रही है |
----{४}-आगामी गोचर या दशा कार्य क्षेत्र में तरक्की का संकेत दे रही है या नहीं ? इसका भी परीक्षण कर लेना चाहिए |
कुंडली में शिक्षा का योग -----जन्म कुंडली का नवम भाव धर्म त्रिकोण स्थान है ,जिसके स्वामी देव गुरु वृहस्पति हैं | यह भाव शिक्षा में महत्वाकांक्षा व् उच्च शिक्षा तथा उच्च शिक्षा किस स्टार कि होगी इसको दर्शाती है | यदि इसका सम्बन्ध पंचम से हो जाये तो अच्छी शिक्षा मिलती है ||------शिक्षा का स्तर------जन्मकुंडली  का पंचम भाव बुद्धि ,ज्ञान ,कल्पना ,अतीन्द्रिय ज्ञान,रचनात्मक कार्य ,याददास्त व् पूर्वजन्म के संचित कर्म को दर्शाता है | यह शिक्षा के संकाय का स्तर तय करता है ||
-----शिक्षा किस प्रकार की होगी --------जन्मकुंडली का चतुर्थभाव मन का भाव है |यह इस बात का निर्धारण करता है कि आपकी मानसिक योग्यता किस प्रकार की शिक्षा में होगी |जब भी चतुर्थ भाव का स्वामी छठे ,आठवें या बारहवें भाव में गया हो या नीच राशि,अस्त राशि ,शत्रु राशि में बैठा हो व् करक ग्रह {चंद्रमा } पीड़ित हो तो शिक्षा में मन नहीं लगता है ||
-----शिक्षा का उपयोग -----जन्मकुंडली का द्वितीय भाव -वाणी ,धन ,संचय ,व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता है तथा यह दर्शाता है कि शिक्षा आपने ग्रहण कि है वह आपके लिए उपयोगी है या नहीं |यदि इस भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो जातक शिक्षा का उपयोग नहीं करता है |-- जातक को बचपन से किस विषय की पढाई करवानी चाहिए ,इस हेतु हम मूलतः निम्न चार पाठ्यक्रम{ विषय } को ले सकते हैं --गणित ,जिव विज्ञानं ,कला और वाणिज्य -----
   {१}-गणित ---गणित के करक ग्रह बुध का सम्बन्ध यदि जातक के लग्न ,लग्नेश या लग्न नक्षत्र से होता है तो वह गणित में सफल होता है ||
 {२}-शनि एवं मंगल किसी भी प्रकार से सम्बन्ध बनायें तो जातक -मशीनरी कार्य में दशा होता है ||
---जीव विज्ञानं -सूर्य का जल राशिस्थ होना ,छठे एवं दशम भाव /भावेश के बीच सम्बन्ध ,सूर्य एवं मंगल का सम्बन्ध आदि चिकित्सा क्षेत्र में पढाई के करक होते हैं
---कला ------पंचम /पंचमेश एवं करक गुरु ग्रह का पीड़ित होना कला के क्षेत्र में पढाई का करक होता है | इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पढाई प[उरी करवाने में सक्षम होती है ||
--वाणिज्य --लग्न /लग्नेश का सम्बन्ध बुध के साथ -साथ गुरु से भी हो तो जातक वाणिज्य की पढाई सफलता पूर्वक करता है ||
  आइये जानते हैं अच्छी शिक्षा के योग -----{१}-द्वितीयेश या वृहस्पति केंद्र या त्रिकोण में हों |
{२}-पंचम भाव में बुध की स्थिति अथवा दृष्टि या बृहस्पति और शुक्र की युति हो |
{३}-पंचमेश की पंचम भाव में वृहस्पति या शुक्र के साथ युति हो ?
{४}-बृहस्पति ,शुक्र और बुध में से कोई भी केंद्र या त्रिकोण में हो ?
---नोट - शिक्षा की सलाह अपने -अपने पुरोहित जी आचार्यजी से लें और अपनी -अपनी संतानों को शिक्षा की सही राह दिखाएं ||
   भवदीय निवेदक -पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री {मेरठ -उत्तर प्रदेश }---ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

परीक्षा में होंगें सफल ,दुष्ट ग्रहों के दुष्ट प्रभाव को यूँ करें निष्फल -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 परीक्षा में होंगें सफल ,दुष्ट ग्रहों के दुष्ट प्रभाव को यूँ करें निष्फल -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


अत्यधिक मेहनत, दिन रातों की कोशिश ,उत्तम शिक्षा फिर भी सफलता अनुकूल क्यों नहीं मिलती -क्योंकि -भाग्यम फलती सर्वत्र ,न विद्या न च पौरुषम --पूर्व जन्म के दोष के कारण अत्यधिक कोशिश के बाद भी हम    अपने जीवन में निरास हो जाते हैं । चाहे उसे ग्रहों के दुष्प्रभाव कहें या भाग्य ?---२०१२ में शिक्षा जगत के लिए बहुत ही उत्तम समय चल रहा है ---शुक्रस्य पञ्चवारास्यु यात्रा मासे निरंतरम । प्रजा वृद्धि सुभिक्षम च सुखं तत्र प्रवर्तते ----अर्थात पृथ्वी पर चारो प्रकार के जीवों को वृद्धि होगी ,सुख समृधि बढ़ेगी ।।-अगर आप परीक्षा देने जा रहे हैं -तो अपनी -अपनी राशि  के अनुसार कुछ यूँ प्रयोग करके देखें  असंभव सा प्रश्न भी संभव हो जायेगा --।{१}-मेष -चने की दाल एवं गुड गाय को खिलाकर जाएँ - पीला रुमाल ,या पीला कलम का प्रयोग करने से स्मरण शक्ति तेज होगी ।

{२}-वृष-कुत्ते को दूध पिलाकर परीक्षा देने जाएँ-अपनी जेब में रुद्राक्ष रखें या काली कलम का प्रयोग करें -सफलता जरुर मिलेगी ।
{३}-मिथुन -मछली के दर्शन या  मंदिर का अवलोकन करें ,हरी कलम से लिखें -एक सिक्का अपने ऊपर उतारकर पेड़ की जड़ में रखने से सफलता जरुर मिलेगी ।
{४}-कर्क - दूध का दान ,शहद का पान करके परीक्षा देने जाएँ -सफेद कलम या मोती   की माला धारण करने से सफलता जरुर मिलेगी ।      
{5}-सिंह - गाय को गुड खिलाकर -या बंदरों को फल खिलाकर परीक्षा देने जाएँ -चित्रित लेखनी का प्रयोग करें ,मन को स्थिर रखें स्मरण न आने पर दोनों हाथों को क्षण भर के लिए नेत्रों पर रखें याद आ जाएगी एवं सफलता जरुर मिलेगी ।--{६}कन्या - गाय को चारा या हरे फल भागवान को अर्पण करके परीक्षा देने जाएँ -गुरुजनों के चरण स्पर्श ,दही पान करके यात्रा करें सफलता जरुर मिलेगी ।
{७}-तुला -दर्पण का करें अवलोकन ,गणपति जी का स्मरण -काली लेखनी का प्रयोग से सफलता जरुर मिलेगी ।{८}वृश्चिक -झाड़ू का दान ,मखानो  के पान,लाल वस्त्र  के उपयोग  से सफलता  जरुर मिलेगी  ।
{9}-धनु   - केला  करें मंदिर में अर्पण एवं  पिली वस्तु -{कलम या रुमाल }करें धारण सफलता जरुर मिलेगी ।{10}-मकर - काली लेखनी ,काला रुमाल शनि देव को  कराएँ स्पर्श एवं रखें अपने पास बदले में दक्षिणा चढ़ाकर जाएँ परीक्षा  देने जाएँ सफलता जरुर मिलेगी ।
{11}-कुम्भ -नारियल शनिदेव  को करें अर्पण ,us दिन काली वस्तुओं  का करें समर्पण -सफलता जरुर मिलेगी ।
{12}-पीला चन्दन लगायें  ,पीली लेखनी एवं पीला रुमाल अपने पास रखें -भागवान विष्णु  को पीली माला अर्पण करके  परीक्षा देने जाएँ सफलता जरुर मिलेगी ।
--भवदीय पंडित के०एल० झा शास्त्री  {मेरठ }ज्योतिष परामर्श --ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"ग्रहण के समय "सूतक" का विचार जानते हैं -पढ़ें ---ज्योतिषी झा मेरठ


 "ग्रहण के समय "सूतक" का विचार जानते हैं -पढ़ें ---ज्योतिषी झा मेरठ

--सूर्य ग्रहण में -12 घंटे पहले सूतक लगता है तथा "चन्द्र ग्रहण "में 09 घंटे पहले सूतक लगता है । ग्रहण के समय धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक काल में भोजन ,शयन इत्यादि कर्म वर्जित हो जाते हैं ।इसका भाव -यह है कि ग्रहण के समय सौर मंडल में बहुत प्रदूषण होता है । इससे जड़ -चेतन सब प्रभावित होते हैं । समस्त प्राणी {जीव }भयभीत रहते हैं । प्राकृतिक दृश्य भी बदले -बदले से रहते हैं । बहुत से ज्योति-कणों प्रति सेकेण्ड सैकड़ों मील की गति से चलते हैं । ग्रहण के कारण रुक जाते हैं तथा कणों की छाया की तरह प्रतीत होने लगते हैं । भूमि पर इन कणों की छाया सी बन जाती है एवं थोड़ी ही देर में दिखने लगती है । ग्रहण के समय उन कणों का जीव के मस्तिष्क के कोमल तंतुओं पर जो प्रभाव पड़ता है --उससे प्राणी के आचार -विचार तथा स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है । इस भय से भोजन -शयन पर प्रतिबन्ध होता है तथा ग्रहण के पहले एवं बाद में नहाने की व्यवस्था है ।-- इस बात से लगता है हमारे ऋषियों ने कोई भी नियम कपोल -कल्पित नहीं बनाये हैं ।



      --प्रेषकः ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत }--ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


अपने विवेक का सतत उपयोग करें -पढ़ें ----ज्योतिषी झा मेरठ


 अपने विवेक का सतत उपयोग करें -पढ़ें ----ज्योतिषी झा मेरठ

 -{१}-मनः  एवं मनुष्याणाम कारणं बंध मोक्षयोह ?


-----भाव -मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण  उनका मन ही है ।अतः विवेक रूपी मन का प्रयोग से मोक्ष मिल सकता है । अविवेकी होकर बन्धनों के पाश में जकड़े ही रहते हैं ।।

{२} -नासमीक्ष्य परं स्थानं पुर्वमायतनं त्यजेत ?-
   ----भाव -दूसरा स्थान देखे बिना पहला स्थान नहीं छोड़ना चाहिए ।अर्थात --हमलोग किसी भी प्रलोभन में बहुत जल्दी उलझ जाते हैं --अतः विवेक से पथ का चयन करें ।
{३}-लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ?
----भाव -आँखों से रहित व्यक्ति को दर्पण क्या लाभ पहुंचा सकता है ।-अर्थात किसी भी बात को विवेक से समझे बिना प्रत्युत्तर न दें ।।
-----{४}-यांचा मोघा वरमाधिगुने नाधमे लाभ्धकामा ।
-----भाव -सज्जन से निष्फल याचना भी अच्छी,किन्तु नीच से सफल याचना भी अच्छी नहीं --अर्थात -हमें मागना अच्छे लोगों से चाहिए चाहे मिले या न मिले ,किन्तु बुरे लोगों से मांगने से कुछ मिल भी जाये तो प्रसन्न नहीं होना चाहिए ।।
-----प्रियेषु सौभाग्य फला ही चारुता ?---भाव --सुदरता प्रिय को प्रसन्न करने पर ही सार्थक है । अर्थात --- सुदरता की उपमा केवल साहित्य में प्रियतमा के लिए है ,यद्यपि सुन्दरता सबको प्रिय है ,परन्तु किसी भी सुदरता से प्रियतमा प्रसन्न हो जाये  -तो आपकी सुन्दरता सार्थक है ।।
----आपदि स्फुरति प्रज्ञा यस्य धीरः स एव  ही ?
----भाव --आपत्ति के समय जिसकी बुद्धि स्फुरित होती है ,वही धैर्यवान है----अर्थात आपत्ति के समय जो विवेक से काम लेते हैं,बिचलित नहीं होते हैं ,वही व्यक्ति विवेकवान होते हैं ।।
भवदीय -पंडित कन्हैयालाल झा-  किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ {उत्तर प्रदेश }--ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"ज्योतिषी एक "टाइम स्पेशलिष्ट "होते हैं--पढ़ें ----ज्योतिषी झा मेरठ


 "ज्योतिषी एक "टाइम स्पेशलिष्ट "होते हैं--पढ़ें ----ज्योतिषी झा मेरठ

    मैं अपने पूर्वानुमानों को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित करता हूँ --जबकि फलित ज्योतिष के अन्य विद्वान ज्योतिष के शास्त्रीय नियमों की चर्चा करते हैं ।सामान्यतः -एक ही ग्रह -स्थिति के प्रभावों को बताते हुए हम भिन्न -भिन्न निष्कर्षों पर पहुचते हैं । इसका कारण ज्योतिष के परम्परिक नियमों की अपनी -अपनी व्याख्या है -----जो  सैधांतिक होते हुए भी प्रमाणिक नहीं कही जा सकती है ।
     ------मेरे विचार से ज्योतिषी टाइम {समय  }का विशेषग्य होता है । वह अनुमानों पर नहीं अपितु परिणामों पर आनेवाले कल की व्याख्या करते हैं --इसलिए मैं स्वयं को वैज्ञानिक ज्योतिषी अथवा "टाइम स्पेशलिष्ट "कहता हूँ  ।।--भवदीय ---ज्योतिष एवं कर्मकांड विशेग्य {पंडित कन्हैया लाल झा शास्त्री "} किशन पूरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ {उत्तर प्रदेश }-ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut



"ज्योतिष क्या है ,क्यूँ मानें हम ज्योतिष को --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "ज्योतिष क्या है ,क्यूँ मानें हम ज्योतिष को --पढ़ें  -ज्योतिषी झा मेरठ 


---ज्योतिष शास्त्रों में --अज्ञात -अलौकिक शक्ति के परिचायक अनंतकोटि तारों एवं ग्रहों के अदृश्य संकेत से संचालित ब्रह्माण्ड में ---कभी भूकंप ,समुद्री -बर्फानी तूफान ,ज्वालामुखी -विस्फोट तथा जनजीवन में उग्र -विनाशक घटनाएँ स्पष्ट अनुभव की गई है ।
      -----अस्तु -----सभी शुभाशुभ घटनाएं मनुष्य की पंहुंच से बाहिर समझी जाती है ,लेकिन जो रहस्य साधारणतः इन्द्रियों की पंहुंच से बाहर है -अथवा भूत ,भविष्य के गर्भ में निहित है ,वे ज्योतिषशास्त्र द्वारा प्रत्यक्ष जान लिए जाते हैं । हमारे ऋषियों -महर्षियों ने उसी ज्योतिष -शास्त्र की रचना की है ,जो कि भारत के लिए गौरव की बात है -------"ज्योतिषा मयनम साक्षाद यत्तदज्ञान मतींद्रियम ।
                                           प्रणीतम भवता येन पुमान वेद परावरम ।-----{श्रीमदभागवतपुराण}

---दोस्तों ----इस प्रकार जगत्पिता की अदृश्य अलौकिक शक्ति ग्रहों के आकर्षण -विकर्षण के आधार पर ब्रह्माण्ड को प्रभावित करती है --संचालित करती है । ग्रहगतिजन्य--इस परिणाम को हम ईस्वर की इच्छा कहकर स्वीकार करते हैं ।---------ग्रहगतिजन्य---प्रभाव से प्रताड़ित समस्त समाज ,व्यक्ति अथवा देश की स्थिति ठीक उस तिनके की भांति ही अनुभव की गई है --जो वायुवेग से प्रताड़ित होकर अपने अस्तित्व को खोकर इधर -उधर भागता फिरता है ।  ये तो सत्य है --आकाशीय पिंडों {ग्रहों } का विश्व में घटनाचक्र से कुछ न कुछ सम्बन्ध अवश्य है -इस तथ्य को वैज्ञानिक ,विचारक एवं बुद्धि जीवियों का एक बड़ा वर्ग स्पष्ट स्वीकार करता है ।
-----इस पृथ्वी पर जो कुछ भी घटित होता है उसे हम अनुभव करते हैं ,वह सब ग्रहों के वक्र -मार्ग आदि का ही परिणाम है ।
     प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत }
                 पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री -हेल्प लाइन -9897701636-----ॐ -आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"पात्रता से ही लक्ष्मी स्थिर होती है -पढ़ें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 "पात्रता से ही लक्ष्मी स्थिर होती है -पढ़ें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ 

 


----मित्रप्रवर ,राम -राम ,नमस्कार ||

लक्ष्मी के बिना जीवन अधूरा सा रहता है,इसके लिए हमलोग अथक परिश्रम भी करते हैं ,धर्म अधर्म का विचार भी नहीं कर पाते हैं-परन्तु यदि कुपात्रता से धन का संचय किया गया हो-तो "लक्ष्मी "हमें परित्याग करने में संकोच नहीं करती हैं -आइये हम आपको एक कथा सुनाते हैं,और कहाँ निवास नहीं करती है "लक्ष्मी "प्रकाश डालने की कोशिश भी करते हैं -शास्त्रोक्त [शास्त्रों से ]?-----अस्तु -श्रीमार्कंडेयपुराण-में एक कथा आती है क़ि शचिपति "इंद्र" दैत्येन्द्र जम्भ से पराजित होकर निराश हो गए | देवगुरु ने इंद्र को श्री विद्या के परमाचार्य "श्री द्त्त्तात्रेय "की शरण में जाने की सम्मति दी |जब इंद्र समेत सब देवता श्री दत्तात्रेय जी के आश्रम पर पहुंचे ,तब उन्होंने उन्हें कुछ विकृत वेषाव्स्था में साक्षात् भगवती लक्ष्मी के साथ आसीन देखा |उनकी प्रेरणा से देवताओं ने पुनः युद्ध छेड़ दिया और जब दैत्य उन्हें मारने लगे ,तब वे भागते हुए दत्तात्रेय जी के आश्रम पर पुनः पहुँच गए और पीछे से खदेड़ते हुए देते भी वहीँ जा पहुंचे|---दैताय्गन वहां उनकी पत्नी भगवती ल्स्ख्मीी को देखकर अपने मनोवेग को न रोक सके और झट सब कुछ छोड़कर ,उस श्री को ही बलात एक पालकी में डालकर सर पर ढ़ोते हुएअपने वासस्थल को चल पड़े | इस पर भगवान दत्तात्रेय ने देवताओं से कहा -"यह आप लोगों के लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है ,क्योंकि ये लक्ष्मी इन दैत्यों के सात स्थानों को लांघकर आठवे स्थान [मस्तक ] पर पहुँच गयी है |सर पर पहुँचते ही ये तत्काल अपने आश्रय का परित्याग करके अन्यत्र चली जाती है ||शारडगधर पद्धति -६५७ में -के भावों को भी समझते हैं ---"कुचैलिनम दन्तमलोपधारिनम ब्रह्मशिनं निष्ठुर वाक्य भाषिनाम |सूर्योदय हस्त्म्येअपी शयिनम विमुन्चती ,श्रीरपि चक्रपनिनम ||----भाव -जिसके वस्त्र तथा दांत गंदे हैं ,जो बहुत खाता तथा निष्ठुर भाषण करता है,जो सुर्यास्त्काल में भी सोया रहता है,वह चाहे चक्रपाणी "विष्णु " ही क्यों न हो ,उसका लक्ष्मी परित्याग कर देती है |और भी कुछ शास्त्रकारों ने लिखा है .---..परान्नम परवस्त्रं च परयानम परस्रीयह|पर वेस्वा निवासस्चा शंक्स्यापी श्रियः हरेत ||--भाव -पराया अन्न ,दूसरे का वस्त्र,पराया यान [वाहन ],परायी स्त्री और परग्रिह्वास[दूसरों के घर में रहना ] ये "इंद्र "की स्री संपत्ति को भी हरण कर लेते हैं ||ब्र०-रंजनन -१६८ के अनुसार -असुरराज भक्त प्रह्लाद ने एक ब्राहमण को अपना शील दान कर दिया |उसके कारण लक्ष्मी ने उन्हें -तत्काल छोड़ दिया ,तत्पश्चात अनेक प्रकार से प्रार्थना करने पर करुणामयी लक्ष्मी ने साक्षात् दर्शन देकर उपदेश दिया कि-हे प्रह्लाद ! तेज ,धर्म,सत्य ,व्रत ,बल ,एवं शील आदि मानवी गुणों में मेरा निवास है |इन गुणों में शील अथवा चरित्र मुझे सबसे अधिक प्रिय है ,इस कारण मैं सच्चिल व्यक्ति के यहाँ रहना सबसे अधिक पसंद करती हूँ ||महा ० शा ०-१२४ के अनुसार ----दानवीर दैत्यराज "बलि " ने एकबार उच्छिष्ट भक्षण कर ब्राह्मणों का विरोध किया| श्री ने उसी समय बलि का घर छोड़ दिया |--लक्ष्मीजी ने कहा चोरी ,दुर्वसन,अपवित्रता एवं अशांति से घृणा करती हूँ | इसी कारण आज में बलि का त्याग कर रही हूँ ,भले ही वह मेरा अत्यंत प्रिय है ||महा ०शन्ति ०२२५ के अनुसार -------इसी प्रकार लक्ष्मीजी रुक्मिनिजी से कहती है ,कि हे सखे !निर्लज्ज ,कलहप्रिय ,निंदाप्रिय,मलिन ,अशांत एवं असावधान लोगों का मैं अतीव तिरस्कार करतई हूँ ,तथा इनमें से एक भी दुर्गुण व्याप्त होने पर मैं उस व्यक्ति का त्याग कर देती हूँ ||महा ०अनु ० ११ के अनुसार ------अनपगामिनी सुस्थिर लक्ष्मी के लिए --शर्दादी तिलक --८/१६१ में निर्देश हैभुयसीम श्रीयमाकन्क्षण सत्यवादी भवेत् सदा |प्रत्यगाशामुखोश्रीयत स्मित पुव प्रियं वदेत ||--अर्थात -अधिक श्री [लक्षी ] की कामना करने वाले व्यक्ति को सदा सत्यवादी होना चाहिए ,पश्चिम मुह भोजन तथा हसकर मधुर भाषण करना चाहिए ||-{-भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री" मेरठ---आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"सफलता का सोपान आपही हैं --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "सफलता का सोपान आपही हैं --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ 

"आत्म स्थानम मंत्र द्रव्य देव शुद्धिस्तु |पंचमी यावनय कुरुते देवी तस्य देवार्चानम कुतः "



||--मानव शरीर में स्वयं शक्ति का निवास होता है | तंत्र -मंत्र -यन्त्र तो माध्यम है ,सुप्त शक्ति को जागृत करने के लिए और बनाये रखने के लिए | ईस्वर में श्रद्धा और विस्वास के बिना कोई साधना सफल नहीं होती है |---अस्तु -तंत्र साधना के लिए पांच शुद्धियाँ अनिवार्य हैं -[१]-भाव शुद्धि [२]-देह शुद्धि [३]-स्थान शुद्धि [४]-द्रव्य शुद्धि [५]-और -मंत्र शुद्धि |----पुरश्चरण के बिना कोई भी मंत्र फलदायी नहीं हो सकता है | -[जिस मंत्र के जितने अक्षर होते हैं -उतने लाख मंत्र के जापों को -पुरश्चरण कहते हैं | पुरश्चरण के बाद मंत्र कामधेनू के सामान सभी सिद्धियों को देने वाले बन जाते हैं | चरण के पांच अंग हैं-जप ,हवन, तर्पण ,मार्जन और ब्राहमण भोजन |यदि किसी साधक का पर्योग एक बार में सफल नहीं होता -तो शांति पाठ करके पुनः करना चाहिए |असफलता के कई कारण हो सकते हैं |-----अशुद्ध मन्त्र ,मंत्र का अशुद्ध उच्चारण ,साधना में विघ्न ,अखंड दीप का बुझना,ब्रहमचर्य का खंडन,साधक द्वारा मंत्र साधना के नियमों का पूर्ण रूप से पालन न करना और -गुरु ,मंत्र देवता में श्रद्धा और विस्वास का न होना | इसके आलावा देव शुद्धि न होना भी एक कारण होता है | देव शुद्धि के लिए गुरु की आज्ञानुसार पाठ करना चाहिए ||----मंत्रोचारण,जप साधना के लिए कार्ज -भेद -अनुसार समय दिशा ,मौसम,स्थान ,पहनेवाले वस्त्रों व् पूजा करने के आसन के रंग में भी अंतर होता है | भोग लगाने के सामन में भी अंतर होता है |कई बार मंत्र एक होता है ,परन्तु मंत्र के पल्लव में फर्क होता है ,कार्यानुसार जिस भावना से मंत्रोंचारण किया जय ,उसका फल उसी रूप में मिलता है | मंत्र का उच्चारण अगर ग्यारह ,इक्कीस या इक्यावन हजार बार बताया गया हो और निश्चित अवधि में पूरा करने पर ही फल प्राप्ति होती है |यह बात और है कि साधक अपनी सुविधा और जरुरत के अनुसार जप की संख्या में ग्यारह इक्कीस ,इकतालीस दिनों में विभाजित कर लें |---इस सबके बावयूद एक बात ध्यान रखने योग्य है कि गुरु कृपा ,गुरु निर्देश ,गुरु नियमों का पालन ,गुरु आगया सर्वोपरि मानकर साधक चले ,तो उसकी सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है ||---अक्षय -त्रीतिया" हो या कोई और उत्सव-न क्षयः अक्षयः सा एक तृतीया -जिसका नाश नहीं होता है ,जो अमिट होता है -तो ध्यान दें ये धर्म भी हो सकता है और अधर्म भी -ये तो आपके कर्म के ऊपर ही निर्भर करेगा ||-----ॐ -आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...