श्रीभादव गणेश चतुर्थी की विशेष कथा -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ"
श्री
भादव गणेश चतुर्थी की विशेष कथा ---ॐ गं गणपतये नमः -शिवपुराणके अन्तर्गत
रुद्रसंहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने
स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना
द्वारपाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक
दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे
कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने
त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और
उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर
जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी
उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय
रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया।
माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और
देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया।--
ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके
अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन!
विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त
गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी
को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के
सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी।
कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा
करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए।
तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्षपर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत
करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।--भाद्रपद शुक्ल पक्ष की
चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया
है। जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक
प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश
चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए,
इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न
मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-'"सिहः प्रसेनम् अवधीत्, सिंहो
जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥'" अस्तु
----------------------------------------------------- श्रीगणेशोत्सव
की वर्तमान समय की बात करें तो --- पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया।
कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थपना शिवाजी
महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने
गणोत्सव को को जो स्वरूप दिया----उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन
गये। तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी। पूजा को
सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित
नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने
तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया और उसे एक आंदोलन का
स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में
महत्वपूर्ण योगदान दिया।लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का
जो सार्वजनिक पौधरोपण किया था वह अब विराट वट वृक्ष का रूप ले चुका है।
वर्तमान में केवल महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेशोत्सव
मंडल है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और
गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है।--सभी मित्रों को श्री
गणेशोत्सव की हार्दिक शुभ कामनायें ---भवदीय निवेदक - ज्योतिषी झा "मेरठ
,झंझारपुर,मुम्बई " {भारत }ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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होती है ।

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