श्राद्ध पक्ष" क्यूँ और कैसे समझने हेतु -पढ़ें -खगोलशास्त्री झा "मेरठ"
श्राद्ध
के मनाने का मतलब अपने पूर्वजों को याद कर उन्हें सम्मान देना है. जिस
तिथि को प्राणी की मृत्यु होती है, उसी तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है.
यदि किसी व्यक्ति को अपने पितरो की मृत्यु तिथि स्मरण न हो तो वे अमावस्या
के दिन उनका श्राद्ध कर सकते है।
रजस्वला स्त्री को श्राद्ध का भोजन
नहीं बनाना चाहिए। यदि किसी कारण से श्राद्ध के दिन घर मे भोजन न बन सके या
व्यक्ति घर से बाहर हो तो वह किसी भी मंदिर मे ब्राह्मण को दूध और मावे
के पेड़े दे सकता है. श्राद्ध पक्ष में अगर कोई भोजन पानी मांगे, तो उसे
खाली हाथ नहीं जाने दें। कहते हैं पितर किसी भी रूप में अपने परिजनों के
बीच में आते हैं और उनसे अन्न +पानी की चाहत रखते हैं।
श्राद्ध करने का
पहला अधिकार मृतक के बड़े पुत्र का होता है परंतु यदि बड़ा पुत्र न हो अथवा
वह श्राद्ध आदि कर्म न करता हो तो छोटा पुत्र श्राद्ध कर सकता है। यदि
किसी परिवार में सभी पुत्र अलग-अलग रहते हों तो सभी को अपने पितरों का
श्राद्ध करना चाहिए। यदि किसी का कोई पुत्र न हो तो उसकी विधवा स्त्री
श्राद्ध करवा सकती है तथा पत्नी के न होने पर उसका पति भी पितरों के
निमित्त श्राद्ध करने का अधिकारी है।---- ॐ आपका - ज्योतिषी झा
मेरठ,
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