त्रिशूल योग का आधार ही कालसर्पयोग है -पढ़ें --
ज्योतिषी झा मेरठ
सहपाठी मित्रप्रवर -अन्वेषण करना अच्छी बात है -हमारे महर्षियों ने हमें ज्योतिष शास्त्र प्रदान किये तप और साधना के बल पर ,इसका सही आधार देवभाषा संस्कृत ही है । हमारे आचार्यों ने पूरी तन्मयता और लगन से इसकी प्रयोगशाला बनाकर नई -नई खोज करते रहे हैं ,और नवयुवक शास्त्री ,आचार्य आज भी कुछ न कुछ खोज कर रहे हैं । आज कालसर्पयोग के ऊपर तरह -तरह की भ्रांतियाँ व्याप्त हैं क्यों न इसे हम सब मिलकर इन भ्रांतियों को दूर करें । ----अस्तु------ज्योतिषाचार्यों के पास कई बार ऐसी जन्मकुंडलियाँ आती हैं -जिसमें ग्रहों की स्थिति तो उत्तम होती है ,योग भी उत्तम दीखता है किन्तु फलित योग के अनुसार नहीं मिलता रहता है । अगर हम ऐसी कुण्डलियों का सही से आकलन करते हैं तो ये कुण्डलियाँ प्रायः शापित होती हैं । बृहत्पराशर ग्रन्थ में 14 प्रकार के शाप बताये गए हैं । जिनमें से प्रमुख -पितृशाप ,प्रेतशाप ,ब्राह्मणशाप ,मातुलशाप ,पत्नीशाप ,सहोदरशाप ,सर्पशाप -हैं । इन शापों के कारण मनुष्य की उन्नति नहीं होती है । उस व्यक्ति को अपने -अपने पुरुषार्थ का सही फल नहीं मिलता है । ऐसे व्यक्ति की संतान या तो जीवित नहीं रहती है या मृत्युतुल्य कष्ट भोगती है । प्रमाण के लिए -महर्षि भृगु -भृगुसूत्र के आठवें अध्याय के श्लोक 11 +12 में लिखते हैं --"पुत्राभावः सर्वशापात सुतक्षयः -11 ---नाग प्रतिष्ठया पुत्र प्राप्तिः -12 ,अभिप्राय -लग्न से पांचवें घर में राहु हो तो सर्प के शाप से पुत्र का आभाव रहता है । एवं नाग की प्रतिष्ठा पूजन करने से पुत्र की प्राप्ति होती है । नोट --वास्तविक बात यह है हमारे ज्योतिषाचार्यों ने अपने अनुभव की कसौटी पर परखा कि शापित जन्मकुंडलियों में जो त्रिशूल योग है उसे एक नया नाम क्यों न दिया जाय जो एकही शब्द में सभी बातों को बता दे -इसलिए कालसर्पयोग का प्रचलन बढ़ा है । -कृपया अपना -अपना मत सभी लेखों को पढ़ने के बाद दें -सभी बातों के ऊपर चर्चा करने के लिए एक माह तक हमसे सभी ज्योतिष प्रेमियों के साथ -साथ मित्र प्रवर जुड़ें रहें ।---आपका ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से ज्योतिष की विशेष जानकारी हेतु इस लिंक पर पधारें,---https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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