जगत की रचना क्यों हुई एवं नियमावली क्या थी -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
--वत्स --तुमने उत्तम प्रश्न किया- क्योंकि प्रत्येक निर्माणकर्ता की उत्सुकता रहती है -कि हमारी बातें या चीजें जन -जन तक पंहुचे तभी कार्य की सार्थकता मानी जाती है | ----अस्तु --जैसे प्रत्येक माता पिता संतानों के बिना अधूरे रहते हैं ,या प्रत्येक गुरु उत्तम शिष्य के बिना अधूरे रहते हैं ठीक इसी प्रकार से -जगतपिता भी जगत रचना के बिना अधूरे थे | क्योंकि परमतत्व और परमात्मा की पहचान तो केवल मानव से ही संभव था | संसार में तीन प्रकार के जीव हैं --अण्डज --जो अण्डों से उत्पन्न होते हैं | स्वेदज -जो पसीनों से उत्पन्न होते हैं | उद्भिज --जो उदर से जन्म लेते हैं | इनमें सभी जीव कहलाते हैं सबकी जीने की प्रक्रिया एक जैसी होती हैं किन्तु उदर में भी जो मनुष्य योनि है -उससे अवतरित होने वाले ही परमतत्व को जानने वाले होते हैं | यहाँ यह समझने वाली बात है कि प्रत्येक माता पिता या गुरु अपने से उत्तम पुत्र या शिष्य पाकर ही गदगद होते हैं अन्यथा ये असंतुष्ट रहते हैं | ऐसे ही जगत रचयिता ब्रह्मा ,पालनकर्ता श्रीहरि या संहारकर्ता शिव भी जगत के बिना अधूरे थे साथ ही उन देवों की भी मनसा थी हमें चुनौती देने वाले या हमारी प्रसन्नता को देने वाले केवल मानव ही है | अतः जगत में चौरासी लाख हजार योनियों में नियंत्रण करने की शक्ति केवल मनुष्य को मिली | आज भी प्रत्येक व्यक्ति अपनी अंगुली से चौरासी
अँगुलियों का होता है | साढ़े तीन हाथ का प्रत्येक व्यक्ति होता है | ---इस जगत का नियंत्रण एक छोटा कद का व्यक्ति कैसे करें --इसके लिए मन्त्रों के निर्माण हुए जो अदृश्य शक्ति के रूप में मानवों की सहायता करते हैं | बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सामना करने में मदद करते हैं | यह मन्त्र भी तीन प्रकार के हैं -तंत्र -अर्थात असंभव को संभव बनाने में काम आते हैं | यंत्र --जो कम श्रम से शीघ्र कार्य करें | मन्त्र -ये भी तीन प्रकार के हैं --वैदिक मन्त्र जो केवल सत्य पर आधारित हैं --इनको पाने के लिए अत्यधिक कठिनाइयां झेलनी होती हैं | इसे पाने के लिए सत्पात्र बनना होता | इसका प्रभाव अचूक होता है यह निष्फल नहीं होते हैं | पौराणिक मन्त्र का प्रयोग यंत्रों में होते हैं इसे कोई भी साध सकते हैं | तांत्रिक मन्त्र -ये केवल कुमार्गगामी ही इन मन्त्रों को अपनाते हैं ये तत्काल तो कार्य सिद्ध करते हैं किन्तु अंतिम परिणाम हानि भी पंहुचाते हैं | ---यथा राजा तथा प्रजा ---जैसा राजा होगा प्रजा भी वैसी ही होगी | जगत में उपभोग की अत्यधिक चीजें पतन की ओर ले जाती हैं | बिना उपभोग किये जीव रह भी नहीं सकते -इसलिए दिनों दिन नियमावली बदलती गई |--जो परमात्मा की ओर बढ़ता है उसे परमात्मा गोद में बिठाते हैं जो अधम की ओर बढ़ता है उसे पुनः इसी संसार में भटकते रहना पड़ता है | ध्यान दें --हम प्रत्येक चीजों का अविष्कार कर सकते हैं किन्तु -विधाता के मन्त्रों का पुनः अविष्कार नहीं कोई कर सकता वो अभेद्य हैं अडिग हैं वो अचल हैं यही नियमावली में जगत के जन -जन को अपने में समेटे हुए हैं तभी तो संसार में जब हम आये तभी परमात्मा थे जब चले जायेंगें तब भी रहेंगें | जब हम आये तो तमाम सगे सम्बन्धी मिलते गए और छूटते गये पर वो परमात्मा सदा हमारे साथ थे हैं और रहेंगें यही जगत की नियमावली है | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें "ॐ "--दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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