ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

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ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

कालसर्पयोग से क्यूँ है राहु +केतु का सम्बन्ध -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


 कालसर्पयोग से क्यूँ है राहु +केतु  का सम्बन्ध -पढ़ें ? 

  -----दोस्तों -सनातन धर्म की संस्कृति एवं आस्था, विस्वास के बल पर चलती है -जो न रुकी है न ही रुकेगी -इसी का नाम सनातन है । किन्तु प्रमाण के बिना कोई बात नहीं कही जाती है न ही मानी जाती है । - अस्तु ------ पौराणिक ग्रंथों के अनुसार "राहु " नामक राक्षस का मस्तक कट जाने पर भी जीवित रहा और उसी का धड़ केतु है । एक ही काया के दो भागों को राहु +केतु कहते हैं । चुगली करने के कारण सूर्यदेव एवं चन्द्रदेव को ग्रसित कर विस्व में भय फैलाते हैं । बृहत्संहिता ग्रन्थ के राहु -चाराध्याय में प्रमाण स्वरूप लिखा है "मुख पुच्छ विभक्तार्गंभुजङ्गकारपुमदिशन्त्यन्ये " अर्थात -मुख एवं पुच्छ से अलग शरीर जिसका सर्प का आकार है -वही राहु का आकार है । कामरत्न ग्रन्थ के अध्याय -64 श्लोक -47 में सर्प को ही काल कहा गया है । "न पश्ये द्विक्षण माणेपि काल दृष्टो न संशयः । सर्प दंशों विषं नास्ति काल दृष्टो न संशयः । । इतना ही नहीं 16 वीं शताब्दी के आचार्य मानसागर ने मानसागरी नामक ज्योतिष ग्रंथ की रचना की -ज्योतिष को पढ़ने के लिए यह ग्रन्थ सभी शास्त्री एवं आचार्यों के लिए कक्षा में आज भी अनिवार्य है । इन्होनें ने इस ग्रन्थ में अरिष्ट योगों की चर्चा करते हुए अध्याय 4 के श्लोक 10 में लिखा है -"लग्नाश्च सप्तम स्थाने शनि -राहु संयुतौ ।सर्पेण बाधा तस्योक्ता शय्यायां स्वपितोती च । । अर्थात -सातवे घर में शनि +सूर्य एवं राहु की युति हो तो बिस्तर पर सोते हुए व्यक्ति को भी सांप काट लेता है । फलित ज्योतिष के विषय पर निरंतर अध्ययन एवं अनुसन्धान करने वाले आचार्यों ने परखा है कि राहु + केतु के मध्य सभी ग्रह अव्यवस्थित होने पर जातक का जीवन ज्यादा पीड़ित रहता है । इस बात को परखने के बाद आचार्यों ने इसका नाम कालसर्प योग रखा है -सही मायने में कालसर्प योग -सर्पयोग से ही बना है -जो आचार्यों की अनुसन्धान की खोज है न कि भ्रमित करने के लिए -यह योग बताया जाता है । ध्यान दें कालसर्पयोग का निदान की प्रक्रिया भी बहुत जटिल है -जो हम क्रम से बतायेंगें । कल हम कालसर्प योग की प्राचीनता पर चर्चा करेंगें -आप दोस्तों अपना -अपना निर्णय तमाम बातों को पढ़ने समझने के बाद दें ।---- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/astrologerjha उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका -




ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

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