ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरुवार, 14 सितंबर 2023

ज्योतिष का कला दाता " बुध"पढ़ें --ज्योतिषी झा "मेरठ

  ज्योतिष का कला दाता " बुध"पढ़ें --ज्योतिषी झा "मेरठ 

 



सूर्य के अति समीप रहने वाला ग्रह बुध ही है । सूर्य के सान्निध्य के कारण बुध का प्रकाश प्रखर और प्रवल है किन्तु अपना अस्तित्व छिपाए रखता है । बुध सबसे छोटा ग्रह है ,सूर्य की परिक्रमा करने में बुध को केवल 88 दिन लगते हैं । बुध ग्रह वायु रहित ,सूर्योदय से पहले उदित होने वाला और सूर्यास्त के बाद अस्त होता है । ---बुध -उत्तर दिशा का स्वामी ,नपुंसक एवं त्रिदोषकारी है ,श्याम एवं हरे रंग वाला ,बहुभाषी ,कृष शरीर ,रजोगुणी ,पृथ्वीतत्व वाला ,पित्त व कफ प्रकृति वाला ,शूद्र जाति और स्पष्टवादी है --ये तमाम गुण इस राशि के जातक में विद्यमान होता है । जातक की जिह्वा ,कंठ ,तालु ,बुद्घि ,शिल्प ,विद्या ,और कला का विचार बुध से ही किया जाता है । यदि कुण्डली के प्रथम भाव को बुध पूर्ण रूप से देखता हो तो -जातक को व्यापर से अपार धन का लाभ होता है । किन्तु जातक को कुटुम्ब विरोधी स्वतंत्र विचारक ,हठी और अभिमानी भी बनाता है । यही प्रभाव दूसरे भाव कुण्डली में भी होता है । तीसरे भाव को देखने पर जातक को अत्यंत भाग्यवान ,प्रवासी ,सत्संगी फल से ओत प्रोत करता है ।  चतुर्थ भाव में जातक को राज्य से लाभ ,भूमि ,वाहन -सुख ,प्रकांड पंडित और पांचवे भाव में गुणवान ,शिल्पकार ,छठे भाव में वात रोगी ,कुकर्मी ,शत्रु पीड़ित और जीवन के अंतिम दिनों में धन संचित करने वाला बनाता है । सातवें भाव में हो तो व्यक्ति सुशील पत्नी वाला ,गणित विशेषज्ञ होता है । आठवें भाव में व्याकुल ,प्रवासी ,परिवार विरोधी ,अपयश भागी ,---नवें भाव में गायनप्रिय ,विलासी ,मातृद्रोही ,सुखभोगी ,दशवें भाव में कीर्तिमान ,ग्यारहवें भाव में -विद्वान ,कला -विशारद बनाता है । परन्तु जब बारहवें भाव को बुध देखता है पूर्णदृष्टि से तो व्यक्ति को अपंग ,निर्धन ,बुद्धि हीन और दूसरे के धन का लोभी भी बना देता है । -----सच तो कुण्डली का सही आकलन से ही जाना जा सकता है फिर भी चाहे कोई भी कुण्डली क्यों न हो बुध की स्थिति ऐसी होने पर फलादेश अवश्य मिलेगा परखकर देखें !---- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें ---------https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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सेनापति "मंगल-ग्रह"स्त्रियों के प्रिय भी है -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ




      सेनापति "मंगल-ग्रह"स्त्रियों के प्रिय भी है -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ 

पृथ्वी ,रसा, गंधा,रत्नगर्भा ,वीर ,प्रसू एवं सर्वसहायक सर्व -मंगला नाम से विख्यात है -मंगल ग्रह । पौराणिक कथा है कि जब पृथ्वी को पिता ब्रह्मा ने पुत्र रूप में मेढक को दिया ,तो पृथ्वी का कष्ट और बढ़ गया तब विधाता ने मेढक को मानव रूप में बदल दिया ,पृथ्वी का उलाहना कष्ट तो मिट गया किन्तु मेढक मानव का नाम भौमासुर हुआ ,उसने अपने अत्याचारों से पृथ्वी -मंडल को मथ डाला अर्थात त्रसित -पीड़ित कर डाला ,तब पृथ्वी ने फिर ब्रह्मदेव से पुकार की । --इसबार पिता ब्रह्मा ने भौम नाम का एक पुत्र और दिया और कहा "पुत्री "यह भौम भौमासुर की तरह किसी को कष्ट नहीं देगा । पृथ्वी पर सबको सुख प्रदान करेगा ,सबके दुःखों को हर लेगा ,इसे पुरुष ही नहीं स्त्री भी स्नेह करेंगी साथ ही अपने शीश पर बिताएंगी । इसलिए आज भी मंगलसूत्र नाम का आभूषण नारियों के सुहाग का प्रतीक बना हुआ है ।यही वो भौम {मंगल }है जो धर्म और मर्यादा ,धर्म और सत्य के लिए संसार के पृथ्वी जगत में विहार करता है । --अस्तु --मंगल दक्षिण दिशा का स्वामी ,पुरुष जाति ,पित्त -प्रकृति ,रक्त वर्ण और अग्नितत्व है । यह स्वभाव से पापी ग्रह है ,धैर्य एवं पराक्रम का स्वामी है । तीसरे और छठे स्थान में बली दूसरे स्थान में निष्फल होता है । दशम भाव में दिग्बली और चन्द्रमा के साथ चेष्टाबली होता है । भाई -बंधुओं का कारक एवं शास्त्रीय नाम -अस्र ,आर ,कुंज ,भौम ,वक्र ,अंगार ,अराल ,अरुण ,इराज ,कुपुत्र ,क्षमा ,जन्मा ,रोहित ,लोहित ,अवनीभू और विपुलातनुजात है । ----ज्योतिषाचार्यों के मत से मंगल सेनापत्ति ,नेता ,अधिपति ,देवता और बलविक्रम का प्रतिनिधि करने वाला ग्रह कहलाता है । मंगल युद्ध का निर्झर है ,शक्ति का विधाता है ,तरुणाई का मूलाधार है ,भयानकता और क्रूरता का खजाना है । अतिचपल एवं चंचल है ,देश प्रेम और साहस का निधि है । इसे विजय का सेतु भी कहा जाता है । एक राशि पर डेढ़ मास रहता है ,इसकी स्वराशि -1 +8 है  मकर में उच्च एवं कर्क में नीच का माना जाता है । मित्र -सूर्य ,चन्द्र और गुरु हैं । चतुर्थ, सप्तमऔर अष्टम  भावों पर पूर्ण दृष्टि रखता है । यह अनैतिक प्रेम करने वाला भी है ,पुलिस ,सेना ,शास्त्रागार ,शल्योपचार जातक को बनाता है । इसके अनुयायी चोर भी होते हैं ,अधिकार को मुठ्ठी में रखने वाला ,और आदेश का पालन कराने वाला बनाता है । साथ ही इन तमाम बातों के बाद मंगल ग्रह से युक्त जातकों को राजनीति में प्रवेश करके नेतृत्व भी करने वाला बनाता है ।-- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें ---https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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चन्द्रमा ग्रह मस्तिष्क का द्योतक है -कैसे -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ





   चन्द्रमा ग्रह मस्तिष्क का द्योतक है -कैसे -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ 

यदि हम जानना चाहें कि व्यक्ति का मस्तिष्क किस प्रकार का है -तो हमें उसकी जन्मपत्री में चन्द्र की स्थिति का अवलोकन करना होता है । कर्क राशि के व्यक्ति या उत्तम चन्द्रमा के प्रभाव में रहने वाले व्यक्ति -शांत ,संग्रहीत ,न्याय एवं क्षमाशील अवश्य होते हैं । इन्हें शीघ्र अपनी ओर कोई भी कर सकता है -क्योंकि ये लोग ह्रदय से दयालु होते हैं -क्षमा करना और भूल जाना ही इनका सिद्धांत होता है -ऐसे व्यक्ति की मानस रचना में  दया विशेष गुण होता है । ईंट का जबाब पत्थर से देना या पुरानी दुश्मनी को याद रखना इनका स्वभाव नहीं होता है । ---अस्तु ---ऐसे व्यक्ति कभी भी कठोर या क्रूर नहीं होते परन्तु न्याय और ओचित्य के क्षेत्र में घोर संकल्पित प्रदर्शित करते हैं , और  प्रायः शांत,निर्बाध व सुविधाजनक जीवन व्यतीत करते हैं । ऐसे व्यक्तियों का जीवन तूफानों और आघातों से अछूता रहता है । वो धीरे -धीरे प्रगति करते हैं ,समृद्ध होते हैं ,साथ ही धर्मार्थ कामों में योगदान करना पसंद करते हैं । स्वभाव से मिलनसार और अश्लील या अशिष्टता से दूर भी रहते हैं । ---ज्योतिष विज्ञानं के दक्ष आचार्यों के विचार से समस्त कलाओं से युक्त ,पश्चिम दिशा का स्वामी ,स्त्री जाति ,श्वेत वर्ण एवं जल युक्त ग्रह है । यह रक्त का स्वामी ,माता -पिता ,चित्तवृत्ति ,शारीरिक पुष्टि ,राजनुग्रह ,संपत्ति और चतुर्थ स्थान का कारक है । चतुर्थ स्थान में चन्द्रमा बली और मकर से 6 राशि में चेष्टाबली होता है । शारीरिक रंग ,पांडुरोग ,जलन ,व्यर्थ भ्रमण ,उदर,कफज रोग ,पीनस ,मूत्रकच्छ ,स्त्रीजन्य रोग ,मानसिक रोग  एवं मस्तिष्क का विचार किया जाता है या ऐसे व्यक्ति इन पीड़ाओं से पीड़ित अवश्य ही होते हैं । ---चन्द्र --मन की भावनाओं तरह अत्यंत गतिशील ग्रह है । यह व्यक्ति के गले से ह्रदय तक एवं अंडकोष तथा गर्भ आदि पर पूर्ण प्रभाव डालता है - साथ ही पिंगल और नाड़ी का प्रतीक भी माना जाता है । आचार्यों ने चन्द्रमा को स्वप्न की सुंदरी एवं शिशुओं की माता कहा है । यही नाविकों एवं पर्यटनशील व्यक्तियों का प्राणधार एवं घुमक्कड़ पुरुषों का सुषमागार है । मन की गति ,हाव -भाव एवं मानसिक घात -प्रतिघात एवं विभोरता का परिचायक भी है । --वास्तव में चन्द्रमा से प्रभावित व्यक्तियों का प्रतिनिधि करता है -जो भावुक हैं  ,तरंगी हैं  ,मनचले हैं,भावावेश में आकर बिना मूल्य बिक जाते हैं -इसके अलावा यह भी कह सकते हैं कि चन्द्र ग्रह व्यक्तियों को छवि नाथों का लोकप्रिय देवता भी बना देता है । आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें ----https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




ज्योतिष का सम्राट "सूर्य "पढ़ें --ज्योतिषी झा "मेरठ "


 ज्योतिष का सम्राट "सूर्य "पढ़ें --ज्योतिषी झा "मेरठ "

 



सूर्य विश्व का सम्राट है ,तेजस्विता और ओज का प्रतीक है । सभी के जीवन पर अपना प्रभाव रखता है । रक्त और व्यक्ति के रक्त प्रवाह पर अपना अनुशासन रखता है । सूर्य की राजसी प्रवृत्ति है --सिंह राशि के लोग अपमान सहन नहीं करते हैं ,उदासीनता इन्हें पसंद नहीं ,प्रतिष्ठा में अपना पूर्ण भाग चाहते हैं । सिंह राशि के जातक तड़क -भड़क का प्रेमी होता है और छोटी -छोटी बातें भी बड़े शिष्टाचार से बोली जाय ,साथ ही सम्मान ,संपत्ति ,धन -दौलत एवं आदर -सत्कार में अपनी सर्वाधिक प्रतिष्ठा चाहते हैं । वो राजसी भोजन तथा भव्य परिवेश को अधिक पसंद करते हैं । अपने साथ अनुयायी वर्ग रखना उन्हें अच्छा लगता है । वो चापलूसी पसंद करते हैं एवं अपने अत्यधिक चाटुकारों को बड़े -बड़े उपहार देने में तनिक भी संकोच नहीं करते हैं । -----अस्तु ---सूर्य ग्रह की राशि वाले लोग तत्काल क्रोध में आ जाते हैं ,किन्तु उतनी जल्दी ही चापलूसी सम्मान से शांत भी हो जाते हैं -परन्तु आसानी से जल्दी क्षमा नहीं करते हैं । वास्तविक में सूर्य ग्रह पुरुष जाति रक्त वर्ण ,पित्त- प्रकृति एवं पूर्व दिशा का स्वामी है  जिस कारण इस राशि के जातक इन तमान गुण से युक्त अवश्य होते हैं । यह आत्मा ,आरोग्य ,स्वभाव ,राज्य ,देवालय का सूचक एवं पितृकारक है । सिंह राशि के लोगों को मंदाग्नि ,अतिसार ,सिरदर्द ,क्षय ,मानसिक रोग ,नेत्र विकार ,उदासी ,शक ,कलह ,अपमान ,इन तमाम बातों के घेरे में आना अवश्य पड़ता है । सिंह राशि के जातक का सूर्य जितना उत्तम होगा उतना ही इस राशि के जातकों के -मेरुदण्ड ,स्नायु ,कलेजा ,नेत्रादि अवयव मजबूत होंगें । सिंह राशि के जातक एक सक्षम अभिभावक सूर्य की सही स्थिति होने पर ही होते हैं अन्यथा पिता -पुत्र सुख से वंचित रहते हैं । --ध्यान दें -सूर्य लग्न से सप्तम स्थान में बली तथा मकर राशि से 6 राशियों तक चेष्टाबली होता है -और सूर्य को पापग्रह माना जाता है । -----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें ---https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut |आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई


वायुकोण और उत्तरदिशा= विचार वास्तु का कैसे करें --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 वायुकोण और उत्तरदिशा= विचार वास्तु का कैसे करें --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 --यूँ तो वास्तु शास्त्र एक अथाह सागर की तरह है फिर भी कुछ न कुछ तो मनोनुकूल निर्माण के समय कर ही सकते हैं | ---वायुकोण ---पश्चिम और उत्तर के मध्य भाग को वायुकोण कहते हैं ---निर्मित भवन की इस दिशा -के देवता "वायुदेव" हैं तथा स्वामी -ग्रह चंद्रमा हैं | यहाँ का तत्व "वायु " है | यह दिशा -मित्र ,राज्य ,रिश्तेदारों के लिए सुख कारक होती है अर्थात भवन में यदि यह दिशा दोष रहित होगी तो ये तमाम सुख मिलेंगें रहने वालों को अन्यथा इन सुखों से रहित हो जाते हैं निवास करने वाले लोग | --इस स्थान का खुला होना उत्तम होता है ,यहाँ के फर्श पर वायु का स्पर्श होना चाहिए | इस दिशा में बगीचा लगाने से लाभ होता है |--- ------उत्तरदिशा ----के देवता -धन के स्वामी श्री कुबेरजी हैं तथा स्वामी ग्रह बुद्धिदाता "बुद्धदेव हैं| यह दिशा भवन में अच्छी होने पर -रहने वालों को धन ,ऐश्वर्य ,संपदा देती है | इस दिशा का फर्श लेवल एवं भवन की ऊँचाई दक्षिण की तुलना में नीची होनी चाहिए | इस दिशा में ढलान होना शुभ रहता है | इस दिशा में दक्षिण के मुकाबले अधिक खाली जगह के साथ -साथ हल्का निर्माण और नदी आदि का जलस्रोत होने से सम्पन्नता बनी रहती है | -------भाव ---अगर हम भवन का निर्माण कर रहें हैं या करने वाले हैं तो क्यों न वास्तु शास्त्र के अनुकूल करें जो हमें सुखद एवं शांति जीवन प्रदान करें 1 ज्योतिष अगर भविष्य द्रष्टा है तो वास्तु अलौकिक सुख प्रदाता है | --- --प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"नैऋत्यकोण एवं पश्चिम दिशा" भी वास्तु के योग्य बनायें --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "नैऋत्यकोण एवं पश्चिम दिशा" भी वास्तु के योग्य बनायें --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

 --भवन - निर्माण के समय "नैऋत्यकोण "अर्थात दक्षिण एवं पश्चिम जे बीच का भाग -के देवता नैऋति हैं तथा स्वामी ग्रह राहु एवं केतु हैं |यहाँ का तत्व पृथ्वी है | यह दिशा नेतृत्व ,कंट्रोल ,स्थायित्व प्रदान करती है अर्थात -वास्तु का स्थान यही है | यहाँ सबसे भारी ,सबसे ऊँचा निर्माण ,सबसे ऊँचा फर्श का लेवल होना चाहिए | इस दिशा का पूरी तरह ढका एवं बंद होना स्थिरता के साथ -साथ भाग्य को भी बुलंद करता रहता है |
  नोट -इस दिशा में सही निर्माण नहीं होने से लोग अस्थिर रहते हैं एवं भाग्य भी सही साथ नहीं देता है -अतः निर्माण के समय अवश्य ध्यान दें |
--------पश्चिम दिशा ---के देवता -वरुण हैं तथा स्वामी ग्रह "शनिदेव "हैं | यह दिशा सामंजस्य ,प्रेमप्रदाता और न्याय बुद्धि के दाता होती है| यहाँ के फर्श का लेवल तथा भवन की ऊँचाई पूर्व दिशा के अनुपात ऊँचा होना सही रहता है | पूर्व दिशा की अपेक्षा भारी निर्माण होना चाहिए | साथ ही साथ पूर्व दिशा की अपेक्षा कम खुली जगह वास्तु सम्मत है |-----भाव -जब भी निर्माण भवन का करना हो तो ये शायद काम आये -पश्चिम दिशा में निर्माण करते समय इस बात पर ध्यान देने से मन शांत और सही राह चलने की क्षमता रहने वालों को सदा मिलती रहती है |----प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




"वास्तु के अनुकूल हैं " अग्नि कोण +दक्षिण दिशा"-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "वास्तु के अनुकूल हैं " अग्नि कोण +दक्षिण दिशा"-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

 -अग्निकोण -के स्वामी "अग्निदेवता " हैं ,और स्वामी ग्रह सौन्दर्य एवं भौतिक सुखों के दाता "शुक्रदेव "हैं | यहाँ अग्नि सम्बंधित कार्य ,रसोई ,जनरेटर ,भट्ठी का होना शुभ रहता है | इस दिशा में अंडरग्राउंड जलाशय ,बोरिंग ,नलकूप होने से रहने वाले लोंगों पर बुरा असर पड़ता है --अतः जब भ भवन का निर्माण करें इसका विचार अवश्य करें |
     -------दक्षिण दिशा ----के स्वामी यम देवता हैं 1 स्वामी ग्रह और सेनापति मंगलदेव हैं | यहाँ का फर्श का लेवल एवं मकान की ऊँचाई उत्तर की अपेक्षा ऊँची ,और उत्तर की अपेक्षा कम खुला स्थान के साथ -साथ भारी निर्माण लाभप्रद होता है |
 ---अस्तु ----किसी भी भवन के निर्माण के समय अग्निकोण में अग्निके के सिवा जल का स्थान नहीं होना चाहिए और साथ ही दक्षिण दिशा खाली नहीं होनी चाहिए क्योंकि दिक्षिण की हवा जब घर में प्रवेश करती है तो रोग उत्पन्न होते हैं इसलिए दक्षिण दिशा में भारी वास्तु रखनी चाहिए |----प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




भवन- की पूर्व दिशा का प्रभाव जानते हैं -"वास्तु शास्त्र" - ज्योतिषी झा "मेरठ


  भवन- की पूर्व दिशा का प्रभाव जानते हैं -"वास्तु शास्त्र" - ज्योतिषी झा "मेरठ 

"वास्तु शास्त्र" --महल ,कोठी ,भवन - के निर्माण के समय वास्तु शास्त्र का सदियों से विचार किया जाता है दश दिशाएँ होतीं हैं -सभी दिशाओं के अलग -अलग प्रभाव होते हैं अगर दिशा के अनुकूल निर्माण करते हैं तो सुख भी उसी अनुकूल रहने वालों को प्राप्त होता है --जहाँ -जहाँ दिशाओं में दोष होगा रहने वाले लोग उन -उन सुखों से वंचित रह जाते हैं ! -----अस्तु ----पूर्वदिशा --के स्वामी देवराज इन्द्र हैं तथा स्वामी ग्रह सौर मण्डल के राजा "सूर्यदेव हैं | इस दिशा से प्रभात सूर्य किरणों द्वारा --जीवनीशक्ति ,उत्साह ,निरोगता ,यशश्री,कीर्ति ,राज्यलाभ तथा उत्पादन क्षमता इस दिशा से ही प्राप्त होती है1पश्चिम दिशा की तुलना में यहाँ हल्का नीचा निर्माण ,ईशान कोण से छूता हुआ उत्तर व पूर्व से खुला स्थल साथ ही इस दिशा का दरवाजा -खिड़की जली द्वारा अधिक से अधिक खुला रखना शुभ होता है !अगर निर्माण हो चुका है तो प्राचीन सिद्धांत के अनुसार "वास्तुपीठ "की पूजा के द्वारा चाहे कितना भी दोष क्यों न हो जाप +पूजन से दोष को दूर कर सम्पन्नता मिल जाती है !-------ज्योतिष या कर्मकाण्ड विषय से सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज में- https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut  उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - "खगोलशास्त्री" ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई



बुधवार, 13 सितंबर 2023

"वास्तु और दिशा-ब्रह्मस्थल {ज्योतिष -विशेष }?"--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "वास्तु और दिशा-ब्रह्मस्थल {ज्योतिष -विशेष }?"--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


----वास्तु अर्थात -निवास स्थान ----दश दिशायें होती हैं उन सभी दिशाओं का अपना -अपना प्रभाव होता है | एक आम व्यक्तियों के लिए वास्तु के अनुकूल भले ही भवन न निर्माण हो सके किन्तु एक कोशिश अवश्य हो सकती है जिस प्रकार से ज्योतिष शास्त्र में भाग्य का परिवर्तन भले ही न हो सके किन्तु कर्मकांड के द्वारा रक्षा अवश्य हो सकती है |
अस्तु -----ब्रह्मस्थल --अर्थात --भवन का "आंगन "---के देवता स्वयं ब्रह्माजी हैं तथा तत्व आकाश है | इस स्थान पर अर्थात "ब्रह्मस्थल " पर आँगन अवश्य होना चाहिए साथ ही ऊपर से खुला जाल होना भी चाहिए जिससे आँगन में धुप -हवा का आना उत्तम रहता है | भवन का साफ सुथरा निर्माण एवं भार रहित होना निवासियों को विशाल हृदय के साथ -साथ विशाल बुद्धि मिलती है |--- -----निवास और कार्यालय का अकार वर्गाकार एवं -21 %1 अनुपात तक आयताकार शुभ होता है | प्रवेशद्वार शुभ जगह होना चाहिए | निर्माण एवं गृहप्रवेश शुभ मुहूर्त  में होना अति आवश्यकहोता है |भवन की उत्तर दिशा एवं पूर्व दिशा में सड़कऔर खुला होने से शुभ रहता है| छत पर कबाड़ नहीं होना चाहिए | बंद घड़ियाँ ,बेकार मशीन भी घर में नहीं रखने से वास्तु देवता प्रसन्न रहते है ,घर में रहने वाले सभी लोग प्रसन्न रहते हैं|
भाव ---जीवन में जितनी जरुरत ज्योतिष की होती है शायद अगर माने तो वास्तु भी बहुत ही जरुरत की चीज है -जिसे हम परखकर देख सकते हैं --हम अपने संस्कार और संस्कृति जीवित रखने के लिए सदियों से वास्तु का भी अनुसरण करते आये हैं जभी तो दूर से ही तुलसी ,ॐ ,स्वस्ति की अलौकिक छवि भवन के द्वार पर पहले ही दिखाई देती है यही तो वास्तु शास्त्र की वास्तविकता है |--प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

वास्तु -अर्थात निवास स्थान की शुद्धि --ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 वास्तु -अर्थात निवास स्थान की शुद्धि --ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

जिस भूमि पर जीव निवास करते हैं -उसे वास्तु कहा जाता है | वास्तु के शुभाशुभ फल प्राप्ति के लिए -"मत्स्य पुराण-अ०-२५१ में लिखा है कि अंधकासुर के वध के समय भगवान् शंकर के ललाट से -पृथ्वी पर जो स्वेदबिंदु गिरे उनसे एक भयंकर आकृति का पुरुष प्रकट हुआ | जिसने अन्धकगणों का रक्त पान किया-फिर भी अतृप ही रहा | अतृप्त होने के कारण-त्रिलोकी को भक्षण करने के लिए चल दिया | जिसे महादेवादि देवों ने पृथ्वी पर सुलाकर -वास्तु देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया और उसके शरीर में सभी देवताओं ने वास किया ,इसलिए वह वास्तुपुरुष या वास्तुदेवता कहलाने लगे | देवताओं ने वास्तुको-गृहनिर्माण आदि के वैश्वदेव बलि के तथा पूजन ,यग्य, यागादी के समय पूजित होने का वर देकर कहाकि -वापी ,कूप ,तड़ाग ,गरी ,मंदिर ,बाग़ बगीचा जीर्णोंधार ,यग्य मंडप ,निर्माणदि के समय -जो तुम्हारी पूजा प्रतिष्ठा अर्चना करेंगें उन्हें सभी प्रकार की सौख्य समृद्धि मिलेगी ||
भाव -आजकल वास्तु दोष का निदान हमलोग अपने तरीके से करने लगे हैं ,जो उचित नहीं है | वास्तु का सही निदान पूजन ही है न कि चमक -धमक | यदि वास्तु अर्थात भूमि कि वो जगह जहाँ हम निवास करते हैं -को ठीक रखना है तो आधुनिक निदान नहीं प्राचीन निदान करें -जो सहज के साथ -साथ लाभदायक भी है ||
भवदीय -ज्योतिष सेवा सदन"झा शास्त्री "{मेरठ -उत्तर प्रदेश }---





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निवास की जगह सोचकर लें?-ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 


निवास की जगह सोचकर लें?-ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

निवास की कामना सबको होती है । कुन्तु निवास की कोंनसी दिशा हो ,एवं कहाँ लें, यह सभी सोचते जरुर हैं । -निवास के स्थान को {वास्तु }शास्त्रों में कहा गया है ।--स्थान बलबती राजन ? अर्थात स्थान मजबूत हो तो स्थान पर रहने वाले बहुत ही मजबूत हो जाते हैं ।

   आइये हम आपको भवन या जगह लेने में कुछ सुझाव देते हैं---?--{1}-मेष -राशि वालों को -नगर अथवा  भूखंड के उत्तर  भाग की पहली जगह या मकान नहीं लेने चाहिए ।

{२}-वृष-मिथुन सिंह और मकर राशिवालों को नगर या भूखंड के मध्य भाग की जगह या मकान अत्यधिक रास नहीं आते  हैं।।

{३}-वृष एवं मिथुन राशि के लोग -भूखंड के मध्य भाग में न वसें ।

{४}-वृश्चिक राशि के लोग -भूखंड के पूर्व भाग में न वसें ।

{५}-मीन राशि के लोग -भूखंड के अग्निकोण में निवास न लें ।

{6}-कन्या  राशि के लोग भूखंड के दक्षिण भाग में न वसें ।-{७}-कर्क राशि के लोग भूखंड के नैरित्य कोण अर्थात दक्षिण एवं पश्चिम के कोण में निवास न लें ।

{८}-धनु राशि के लोग भूखंड के पश्चिम भाग में निवास न करें ।

{९}-तुला राशि के लोग भूखंड के वायव्य कोण अर्थात उत्तर एवं पश्चिम के कोण में निवास स्थान न लें ।

{१०}-मेष राशि के लोग भूखंड के उत्तर भाग में निवास स्थान न लें ।

{११}-कुम्भ राशि के लोग ईशान कोण में अर्थात उत्तर और पूर्व के भाग में निवास न लें ।--   --प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"भवन निर्माण में शेषनाग का विचार अवश्य करें ---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 भवन निर्माण में शेषनाग का विचार अवश्य करें ---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ  

 




--एन्द्रियाम सिरों भाद्रपदः  त्रिमासे। याम्याम शिरो मार्ग शिरस्त्रयम च । फाल्गुनी  मासाद दिशि पश्चिमीयाम।ज्येष्ठात त्रिमासे च तिथोत्तरेशु ।।

-----{१}भाव -भाद्रपद ,आश्विन ,एवं कार्तिक {सितम्बर ,ओक्ट्बर ,नवम्बर }इन तीन महीनों में शेषनाग का सिर पूर्व दिशा में रहता है ।
---{२}-मार्गशीर्ष ,पौष ,एवं माघ {दिसंबर ,जनवरी ,फरवरी }इन तीन मासों में शेषनाग का सिर दक्षिण दिशा में रहता है ।।
---{३}-फाल्गुन ,चैत्र ,वैशाख { मार्च ,अप्रैल ,मई }-इन तीनों मासों में शेषनाग का सर पश्चिम दिशा  में रहता है ।
----{४}-ज्येष्ठ ,आषाढ़ ,एवं श्रावण{जून ,जुलाई ,अगस्त }इन तीनों मासों में शेषनाग का सिर" उत्तर दिशा में रहता है ।।
---   "शिरः खनेत  मात्री पितरोश्चा हन्ता खनेत पृष्ठं भयरोग पीड़ा । तुछ्यम खनेत त्रिशु  गोत्र हानिः स्त्री पुत्र लाभों वाम कुक्षो ।
---अर्थात -जो कोई शेषनाग के सिर [मुख } पर से मकान की नीव रखकर चिनाई शुरू कर दे -तो उस मकान मालिक के माता पिता को हानी पहुँचती है । पीठ पर चिनाई करने से भय एवं रोग से पीड़ित रहते हैं भूमिपत्ति।पूंछ पर चिनाई करने से वंशावली दोष से पीड़ित हो जाते हैं मकान के स्वामी ।और खली जगह पर चिनाई करने से पत्नी को कष्ट होता है ,एवं पुत्र ,धन की भी हानी होती है ।।
अतः ----जब सूर्यदेव-सिंह ,कन्या,तुला राशि में हों तो--अग्नि दिशा में खोदें एवं चिनाई शुरू करें ।
------जब सूर्य देव -वृश्चिक ,धनु ,या  मकर राशि में हों तो -ईशान कोण में चिनाई शुरू करनी चाहिए ।
-------जब सूर्यदेव -कुम्भ ,मीन या मेष राशि में हों तो वायव्य कोण में चिनाई शुरू करनी चाहिए ।   ------आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

वास्तु दोष या चमक धमक -ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 वास्तु दोष या चमक धमक -ज्योतिष -विशेष --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

 

  "वास्तु दोष या चमक धमक ?"

परिवर्तन तो प्राकृतिक देन है | वो सबका होता रहता है ,किन्तु वास्तविकता ही बदल जाये ,तो कुछ आश्चर्य होता है | आइये अवलोकन करते हैं ,उन ग्रंथों का - कर्मकांड का प्रतिपादन सर्वप्रथम "शांडिल्य "नामक ऋषि ने किया ?भाव था - आने वाले समय में "द्विज" का भरण पोषण किस प्रकार से हो ? जिस भूमि पर हम निवास करते हैं ,वहाँ यदि किसी प्रकार के भवन का निर्माण करते हैं तो "भूमि दोष " लगता है ,अर्थात  परिवार की प्रसन्नता के लिये हमें वास्तु का विचार करने चाहिए ,पर आज आबादी इतनी हो गयी है कि, आप चाहकर भी दोष मुक्त भूमि का चयन नहीं कर सकते हैं ,तो आपको वास्तु का निवारण करना चाहिए |---शास्त्रों का मत है कि "वास्तु" नाम का कोई असुर उत्पन्न हुआ ,वो इतना बलशाली था ,कि किसी भी देबता से पराजित नहीं हुआ ,अंत में "भगवान विष्णु " ने बरदान दिया ,कि किसी भी शुभ कार्ज़ में आपकी भी पूजा होगी ,और यदि भवन का निर्माण होगा तो "प्रधान देबता उस यग्य के आपही होंगें | अतः -वैदिक परम्परा में कोई भी संस्कार धार्मिक हो   तो उसमें  "नाग  की पूजा अवश्य  होती  है | -मकान  के निर्माण में यदि कोई दोष रह  जाता  है, और आज के युग  में  तो दोष ही दोष रहते  हैं , तो इस  पूजा से आप दोष से मुक्त हो जाते  हैं -परन्तु  आज हम भवन  के निर्माण में अत्यधिक रुपयों  का व्यय करते हैं ,पर जिससे  हमारा  कल्याण  होगा, उसके  प्रति विचार न  कर ,हम भव्यता  का अत्यधिक  विचार करते हैं|--भाव -हमें मकान में ये दोष तो देखना ही चाहिए, केवल भव्यता से ही आप प्रसन्न नहीं रहेंगें ,प्रसन्नता  के लिये इन बातों का भी समाधान  करना चाहिए |-----प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


संतान और संतति आपके अनुसार भी संभव है--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


  संतान और संतति आपके अनुसार भी संभव है--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

 संतान और संतति की उत्सुकता सबको होती है -और होनी भी चाहिए -किन्तु हम या तो अनभिज्ञता वश ,या विवेक हीन होने के कारण दो चीजें अनुकूल प्राप्त नहीं कर पाते हैं |-हमारे वेद में सभी कला विद्यमान है ,परन्तु -आधुनीक तकनिकी के आगे या तो हम सात्विक प्रयत्न नहीं करते ,या मजबूरी में मानते हैं - आइये अपने जीवन में संतान एवं संतति से सभी युक्त हों -जानने का प्रयास करते हैं ||-भगवान "मनु "ने -उत्तम संतान एवं पुत्र या पुत्री की कामना रखने वाले लोगों के लिये कुछ प्रयोग बताये हैं जिसे हम जानते नहीं है और जानते हैं तो उस प्रकार से चलते नहीं हैं -जब हमें संतान की कामना हो तो-आप पुत्र चाहते हो तो -पत्ती और पतनी का मिलन यदि सम तिथियों में हो अर्थात -द्वितीया,चतुर्थी ,षष्ठी,अष्टमी ,दशमी ,द्वादशी ,चतुर्दशी तिथियों में तो पुत्र की प्राप्ति होगी || पुत्री की कामना रखने वाले -विषम तिथियों का प्रयोग कर सकते हैं अर्थात -प्रतिपदा ,तृतीया ,पंचमी ,सप्तमी ,नवमी ,त्रयोदशी || एकादशी में मिलन होने पर कलंकित संतान होती है || अमावस्या -में मिलन होने पर भी पुत्री की प्रप्ती होती है | पोर्णिमा तिथि -में भी मिलन होने पर पुत्री की प्राप्ति हो सकती है ="मनुस्मृति" का -मत है की -एकादशी ,अमावस एवं पूर्णमासी -को मिलन नहीं होना चाहिए ,इन तिथियों में देवता, पितरो की ही आराधना करनी चाहिए ||--भाव -मित्र बन्धुगन-आज हमलोग पुत्र प्राप्ति के लिये कुछ भी करते हैं ,किन्तु हमारा थोडा सा सात्विक विचार [सात्विक प्रयास ] से मनोनुकूल संतान भी मिलेगी और महिला पक्षको आत्म खिन्नता का अहसास भी नहीं कराएगी ||-----कर्मकांड में षोडश संस्कार होते हैं -गर्भाधान संस्कार ,पुंसवन संस्कार और सीमंत संस्कार ये तीनों संस्कार हमें अच्छी संतान देते हैं इन संस्कारों को भूलने के कारण ही हमलोग अपनी संतानों से दुखी होते हैं ---इन संस्कारों से हम अपनी ईच्छानुसार संतान प्राप्त आज भी कर सकते हैं --इन संस्कारों में धन नहीं मन और नियम करने पड़ते हैं ।---- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


विवाह में विलम्ब क्यों होता है -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ


विवाह में विलम्ब क्यों होता है  -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ

----बालक के विवाह का कारक ग्रह "शुक्र "और कारक  सप्तम भाव होता है 1यदि बालक की कुण्डली में "शुक्र "कमजोर ,नीच ,पापी ग्रहके प्रभाव में होगा तो निश्चित विवाह में बिलम्ब के साथ -साथ बाधा भी उत्पन्न होगी !---------यदि "शुक्र "बालक की कुण्डली में बलवान ,मित्र या उच्च राशिमें है ,किन्तु सप्तम अथवा सप्तमेश पर पापी ग्रहों का प्रभाव है ,अथवा सप्तमेश नीच का है तो भी विवाह होने में देर होगी -अथवा विवाह में बाधा होगी !
-------इसी प्रकार बालिका की कुण्डली में "गुरु "पतिकारक ग्रह तथा सप्तमभाव व सप्तमेश विवाह कारकहोता है !---बालिका की कुण्डली में "गुरु "शत्रुराशि ,नीच ,अस्त या पापी ग्रह के प्रभाव में होगा तो बालिका के विवाह में दिक्कत का सामना करना पड़ेगा !-----बालिका की कुण्डली में "गुरु "के साथ सप्तमभाव एवं सप्तमेश को मित्र राशि,उच्चराशि के साथ -साथ शुभ प्रभाव में होना जरुरी है !----
   -----यदि "शुक्र एवं "गुरु "शुभ या मित्र राशि में हो या अपनी उच्च राशि में हो लेकिन सप्तम भाव अथवा सप्तमेश पापी प्रभाव में हो या नीच राशि के साथ -साथ अस्त हो तो विवाह तो होगा ,किन्तु विरोधाभास {परस्पर विरोध }या अस्वस्थता तो रहेगी ही वैवाहिक जीवन के सुख में अशांति रहेगी !-------नोट ---दाम्पत्य सुख में सप्तम भाव और सप्तमेश साथ ही सप्तमेश और द्वादश भाव का स्वामी ग्रह कमजोर ,नीच ,पापी ग्रह के प्रभाव में हो तो विवाह सुख में बाधा आती है !----ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज में उपलब्ध हैं कृपया इस लिंक पर प्रवेश करें और अपने अनुकूल फ्री में पढ़ते रहें -अगर किसी भी लेखों से आपका कल्याण होता है यही मेरी दक्षिणा होती है । = --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




मंगलसूत्र का मंगल ग्रह से सम्बन्ध -पढ़ें ----ज्योतिषी झा मेरठ


मंगलसूत्र का मंगल ग्रह से सम्बन्ध -पढ़ें ----ज्योतिषी झा मेरठ


खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मंगली दोष युक्त विवाह उत्तम नहीं होता है --ज्योतिष विशेष---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "मंगली दोष युक्त विवाह उत्तम नहीं होता है --ज्योतिष विशेष---पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

  --------यद्यपि  मंगली
दोष के जातक एवं जातिका हों ,तो मंगली दोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है|
यदि एक मंगली दोष से युक्त हो और दूसरा मंगली दोष विहीन हो तो दोष लगता है |
मंगली दोष का शाब्दिक अर्थ है -दो से अत्यधिक  शरीर का मिलन [आज के युग
में ये बात खड़ी नहीं उतरती है]क्योंकि जब हमारा रहन सहन आधुनिक है तो
व्यवहार भी आधुनिक भी होगा !-फिर भी जब हम शास्त्र सम्बंधित बातें करते हैं
-तो बतायेंगें जरुर | मंगली दोष युक्त होने पर विवाह देर से होता है और
दाम्पत्य जीवन में हमें बहुत ही कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है | [१]-कुंडली--के द्वादश भाव होते हैं इनमें ,१,४,७,८,१२ इन भावों में यदि मंगल ग्रह
विराजमान हो तो मंगली दोष होता है,किन्तु -यदि १,४,७,८,१२ इन भावों में शनि
ग्रह विराजमान हो तो स्वतः ही दोष समाप्त हो जाता है | कभी -कभी प्रश्न
उठता है -यदि कुंडली के १२ भाव होते हैं -इन्हीं भावों से संसार की गणना
होती है -तो क्या ५ भावों का अर्थ है ४५ प्रतिशत लोगों  के दाम्पत्य सुख
कठिनाइयों से भरे होंगें !-शास्त्रकारों का मानना है -कि सच तो यही है ,या
तो इस योग से पीड़ित लोग ,दाम्पत्य जीवनको झेलते हैं ,या अपने भाग्य के
अनुसार स्वीकार कर लेते हैं || मेरे विचार से -आत्मा से जो लोग प्रेम करते
हैं उनके लिये रंग रूप से अत्यधिक व्यवहार कुशलता को सही मानते हैं उनकी
गिनती ५५ प्रतिशत होती है और जो रंग रूप को दाम्पत्य जीवन में सही मानते---हैं उनकी संख्या ४५ पर्तिशत होती है [ये धर्म संबधित बाते हैं ,पुराकाल
की-----



भाव -हमारी

संस्कृति और संस्कार तभी सार्थक होंगें जब दाम्पत्य सुख उत्तम होगा ,तभी
हमारी संताने इस संस्कृति और संस्कार से जुडेंगें ||----

----प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सम्मुख "शुक्र "का विचार कब करें -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ "


 सम्मुख "शुक्र "का विचार कब करें -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ "


जिस दिशा में 'शुक्र "सम्मुख एवं जिस दिशा में दक्षिण हो ,उन दिशाओं में बालक ,गर्भवती स्त्री तथा नूतन विवाहिता स्त्री को यात्रा नहीं करनी चाहिए ?-यदि बालक यात्रा करे तो --विपत्ति पड़ती है ।नूतन विवाहिता स्त्री यात्रा करे तो --सन्तान को दिक्कत होती है ।गर्भवती स्त्री यात्रा करे तो --गर्भपात होने का भय होता है ।यदि पिता के घर कन्या आये तथा रजो दर्शन होने लगे तो --सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है ।----यथा --भृगु ,अंगीरा ,वत्स ,वशिष्ठ ,भारद्वाज -गोत्र वालों को सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है ।-----सम्मुख "शुक्र "तीन प्रकार का होता है ------{1}-जिस दिशा में शुक्र का उदय हो ।---{2}--उत्तर दक्षिण गोल -भ्रमण वशात जिस दिशा शुक्र रहे ।---{3}--अथवा --कृतिका आदि नक्षत्रों के वश जिस दिशा में हो -उस दिशा में जाने वालों को शुक्र सम्मुख होगा ।---जिस उदय में हो -उस दिशा में यात्रा न करें ।-{1}-यदि पूर्व में शुक्र का उदय हो -तो पश्चिम और दक्षिण दिशाओं तथा नैरित्य तथा अग्निकोण विदिशाओं को जाना शुभ होगा ।{2}-यदि पश्चिम में उदय हो -तो पूर्व एवं उत्तर दिशाओं तथा ईशान ,वायव्य विदिशाओं में जाना शुभ रहेगा ।-{3}-जब गुरु अथवा शुक्र अस्त हो गये हों -अथवा सिंहस्त गुरु हो ,कन्या का रजो दर्शन पिता के घर में होने लगा हो ,अच्छा मुहूर्त न मिले तो --दीपावली के दिन कन्या पति के घर जा सकती है ।{4}--गुरु उपचय में हो ,शुक्र केंद्र में हो एवं लग्न शुभ हो तथा शुभ ग्रह से युक्त हो --तब स्त्री पति के घर की यात्रा कर सकती है ।{5}--जब चन्द्र रेवती से लेकर कृतिका नक्षत्र के प्रथम चरण के बीच में रहता है --तब तक शुक्र अन्धा हो जाता है --इसमें सम्मुख अथवा दक्षिण शुक्र का दोष नहीं लगता है ।{6}-एक ही ग्राम या एक ही नगर में ,राज्य परिवर्तन के समय -विवाह तथा तीर्थयात्रा के समय शुक्र का दोष नहीं लगता है ।--नोट समय का वेशक आभाव हो -किन्तु सम्मुख शुक्र का अवश्य विचार करके शुभ यात्रा करें ?"- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"मंगली" दोष विवाह में क्यों लगता है -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ


 "मंगली" दोष विवाह में क्यों लगता है -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ

 "लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजः ,कन्या भर्तु विनाशाय भर्तु कन्या विनाशकः ||




भाव -यदि जन्मकुण्डली के -1,4 ,7 ,8 ,12 इन स्थानों में से किसी एक स्थान में मंगल हो तो मंगली योग माना जाता है | यदि लड़की की कुंडली में मंगली योग हो तो उसके पति के लिए तथा लड़के की कुंडली में मंगली दोष हो तो पत्नी के लिए कष्टकारी होता है |--- अस्तु --जन्मकुण्डली का सातवाँ भाव अर्थात जामित्र स्थान दाम्पत्य जीवन में मिलने वाले दुःख -सुख से सम्बन्ध रखता है| दाम्पत्य जीवन कैसा रहेगा यह निर्णय सप्तम भाव से करते हैं साथ ही उक्त भाव स्थित ग्रहों से तथा ग्रहों की दृष्टि से अनुभव किया जाता है | मंगल ग्रह अग्नितत्व कारक स्वभाव से उग्र होता है | अगर कुण्डली के 1 ,4 ,12 वें भावों में बैठा हो तो तब सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है सातवें +आठवें भाव में होने उन्हें विशेष पीड़ित करता है | मंगल का तीक्ष्ण प्रभाव ही दुःख का कारण बनता है | फलित के प्रणेता कार आठवें भाव को भी दाम्पत्य जीवन से सम्बन्धित मानते हैं ----- जैसे----"यत्कुजस्य फलं प्रोक्तं लग्ने तुर्येव्ययेअष्टमे,सप्तमे सैंहिके यार्क सौरिणाम च तथा स्मृतं || भाव -1 ,4 ,7 ,8 ,12 वें भावों में मंगल के अतिरिक्त और भी पापक्रूर ग्रह बैठे हों तो भी मंगली दोष के समान हानि देते हैं जैसे -सूर्य ,शनि ,राहु ,केतु इत्यादि |ध्यान दें --सप्तम भाव का कारक शुक्र है और मन का कारक चंद्रमा है | अतः शुक्र +चंद्रमा से भी योग कारक ग्रहयोगों का विचार अवश्य करना चाहिए --वैसे मेरे अनुभव में यह बात सामने आयी -मंगल दोष होने पर या तो दो विवाह जातक या जातिका के होते हैं -प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष,अथवा वैवाहिक बात देर से और मनोनुकूल नहीं बन पाती है | अतः मंगली दोष होने पर या तो मंगली वर हो तो मंगली कन्या से विवाह करना चाहिए ऐसा नहीं होने पर ,मांगलिक विवाह करा देना चाहिए -इससे दाम्पत्य जीवन कष्टमय नहीं रहता है | कुछ लोगों को यह जानकारी होती है कि वर या वधु के 27 वर्ष होने पर मंगल दोष नहीं लगता है --मेरे विचार से यह सच नहीं है अतः उपचार अवश्य ही करना चाहिए अन्यथा जीवन पर्यन्त वर -वधू को कष्ट झेलना होता है | - संचालक -पंडित -के ० एल ० झा शास्त्री {शिक्षा -दरभंगा ,मेरठ ,मुम्बई }-----ज्योतिष की सेवा जानने हेतु पढ़ें - झा मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई " --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...