"मंगली" दोष विवाह में क्यों लगता है -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ
"लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजः ,कन्या भर्तु विनाशाय भर्तु कन्या विनाशकः ||
भाव -यदि जन्मकुण्डली के -1,4 ,7 ,8 ,12 इन स्थानों में से किसी एक स्थान में मंगल हो तो मंगली योग माना जाता है | यदि लड़की की कुंडली में मंगली योग हो तो उसके पति के लिए तथा लड़के की कुंडली में मंगली दोष हो तो पत्नी के लिए कष्टकारी होता है |--- अस्तु --जन्मकुण्डली का सातवाँ भाव अर्थात जामित्र स्थान दाम्पत्य जीवन में मिलने वाले दुःख -सुख से सम्बन्ध रखता है| दाम्पत्य जीवन कैसा रहेगा यह निर्णय सप्तम भाव से करते हैं साथ ही उक्त भाव स्थित ग्रहों से तथा ग्रहों की दृष्टि से अनुभव किया जाता है | मंगल ग्रह अग्नितत्व कारक स्वभाव से उग्र होता है | अगर कुण्डली के 1 ,4 ,12 वें भावों में बैठा हो तो तब सातवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है सातवें +आठवें भाव में होने उन्हें विशेष पीड़ित करता है | मंगल का तीक्ष्ण प्रभाव ही दुःख का कारण बनता है | फलित के प्रणेता कार आठवें भाव को भी दाम्पत्य जीवन से सम्बन्धित मानते हैं ----- जैसे----"यत्कुजस्य फलं प्रोक्तं लग्ने तुर्येव्ययेअष्टमे,सप्तमे सैंहिके यार्क सौरिणाम च तथा स्मृतं || भाव -1 ,4 ,7 ,8 ,12 वें भावों में मंगल के अतिरिक्त और भी पापक्रूर ग्रह बैठे हों तो भी मंगली दोष के समान हानि देते हैं जैसे -सूर्य ,शनि ,राहु ,केतु इत्यादि |ध्यान दें --सप्तम भाव का कारक शुक्र है और मन का कारक चंद्रमा है | अतः शुक्र +चंद्रमा से भी योग कारक ग्रहयोगों का विचार अवश्य करना चाहिए --वैसे मेरे अनुभव में यह बात सामने आयी -मंगल दोष होने पर या तो दो विवाह जातक या जातिका के होते हैं -प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष,अथवा वैवाहिक बात देर से और मनोनुकूल नहीं बन पाती है | अतः मंगली दोष होने पर या तो मंगली वर हो तो मंगली कन्या से विवाह करना चाहिए ऐसा नहीं होने पर ,मांगलिक विवाह करा देना चाहिए -इससे दाम्पत्य जीवन कष्टमय नहीं रहता है | कुछ लोगों को यह जानकारी होती है कि वर या वधु के 27 वर्ष होने पर मंगल दोष नहीं लगता है --मेरे विचार से यह सच नहीं है अतः उपचार अवश्य ही करना चाहिए अन्यथा जीवन पर्यन्त वर -वधू को कष्ट झेलना होता है | - संचालक -पंडित -के ० एल ० झा शास्त्री {शिक्षा -दरभंगा ,मेरठ ,मुम्बई }-----ज्योतिष की सेवा जानने हेतु पढ़ें - झा मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई " --

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