"नैऋत्यकोण एवं पश्चिम दिशा" भी वास्तु के योग्य बनायें --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
--भवन
- निर्माण के समय "नैऋत्यकोण "अर्थात दक्षिण एवं पश्चिम जे बीच का भाग -के
देवता नैऋति हैं तथा स्वामी ग्रह राहु एवं केतु हैं |यहाँ का तत्व पृथ्वी
है | यह दिशा नेतृत्व ,कंट्रोल ,स्थायित्व प्रदान करती है अर्थात -वास्तु
का स्थान यही है | यहाँ सबसे भारी ,सबसे ऊँचा निर्माण ,सबसे ऊँचा फर्श का
लेवल होना चाहिए | इस दिशा का पूरी तरह ढका एवं बंद होना स्थिरता के साथ
-साथ भाग्य को भी बुलंद करता रहता है |
नोट -इस दिशा में सही
निर्माण नहीं होने से लोग अस्थिर रहते हैं एवं भाग्य भी सही साथ नहीं देता
है -अतः निर्माण के समय अवश्य ध्यान दें |
--------पश्चिम दिशा ---के
देवता -वरुण हैं तथा स्वामी ग्रह "शनिदेव "हैं | यह दिशा सामंजस्य
,प्रेमप्रदाता और न्याय बुद्धि के दाता होती है| यहाँ के फर्श का लेवल तथा
भवन की ऊँचाई पूर्व दिशा के अनुपात ऊँचा होना सही रहता है | पूर्व दिशा की
अपेक्षा भारी निर्माण होना चाहिए | साथ ही साथ पूर्व दिशा की अपेक्षा कम
खुली जगह वास्तु सम्मत है |-----भाव -जब भी निर्माण भवन का करना हो
तो ये शायद काम आये -पश्चिम दिशा में निर्माण करते समय इस बात पर ध्यान
देने से मन शांत और सही राह चलने की क्षमता रहने वालों को सदा मिलती रहती
है |----प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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