ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

यूँ तो बाल्यकाल और युवावस्था दरिद्रयोग में ही रहे --पढ़ें - भाग -73 ज्योतिषी झा मेरठ




मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -73 ज्योतिषी झा मेरठ
यूँ तो बाल्यकाल और युवावस्था दरिद्रयोग में ही रहे | जब हम गुरुकुल में पढ़ रहे थे 1984 चौदह वर्ष के थे तो दसों ठाठों का अभ्यास करा दिया था गुरूजी ने पर गुरूजी को नौकरी नहीं मिली तो यह शिक्षा तभी छूट गयी थी | 1999 जब हम 29 वर्ष के हुए राजयोग शुरू हुआ --किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ में निवास था तो पहली कमाई से एक हारमोनियम ख़रीदा --इसके पीछे एक रहस्य था -कर्मकाण्ड की दुनिया में बहुत मजबूत थे ,सभी यज्ञों का पूर्ण अनुभव था ,तमाम मन्त्र मेरी जिह्वा पर थे --ये सारा ज्ञान मुझे आश्रम की शिक्षा में ही प्राप्त हो चुके थे -1981 से 1986 के बीच ,पर बिना किसी की सहायता या प्रेरणा के बिना व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता है | यह कला मुझे मेरठ और मुम्बई के अनुभव से प्राप्त हुयी अतः बहुत सारे मित्रों को कर्मकाण्ड में अपने साथ ले जाते रहे | जब किसी मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा कराते थे तो मेरा प्रयास रहता था --जरुरत मन्द जो शिष्य हैं उन्हें मन्दिर दिलाएं | साथ ही शिक्षित भी करें | मेरठ में एक मन्दिर बांस वाली गली एवं जुनेजा मार्किट कबाड़ी बाजार में प्राण प्रतिष्ठा कराने का अवसर प्राप्त हुआ --ये दोनों मन्दिर अपने शिष्यों को दिलवाये ,साथ ही एक शिष्य हीरानन्द ठाकुर से हमने कहा संगीत सिख लो --तो वहीँ कबाड़ी बाजार में जय हिन्द बैण्ड के संचालक श्री जगदीश धानक रहते थे | उनसे निवेदन किया इस बालक को संगीत सीखा दो --बालक सीखने लगा --एक दिन मैं देखने गया ये क्या और कैसे सीखता है | जब मैं गया और बालक को हारमोनियम बजाते देखा --तो हमने कहा ये सरगम ऐसे नहीं बजाते हैं --इस प्रकार से बजाओ --वो बालक फिर कभी सीखने नहीं गया हम खुद सीखने लगे | अब मेरी सोच थी संगीतमय कथा वाचक बनने की | संगीत की दुनिया में भी उस योग्य बन चूका था --1999 से 2009 तक संगीत भी सीखता रहा ,अपने बच्चों को सही शिक्षा दीक्षा देने का प्रयास करता रहा | दो बेटियां थीं हमने कभी नमक भी बाजार से लाने को नहीं कहा ,पतनी घर संभालती थी मैं संगीत कर्मकाण्ड के क्षेत्रों में मस्त था | मेरे साथ इतना होने के बाद भी बहुत समस्या थीं | गृहकलेश भयंकर था ,सभी परिजन शत्रु थे ,अपना कोई था नहीं ,जहाँ जाते बच्चों को अपने साथ ले जाते ले आते ,बच्चों को छोड़कर कहीं जाना असंभव था | साइकिल से हीरो पूक पर आ गए --एक यजमान मित्र थे उन्होनें यह हीरो पुच दी | अपना भवन मेरठ में हो चूका था | जब हम प्रेम विहार मेरठ -यहाँ के भवन -2003 में गए --यहाँ के पड़ौसी बहुत परेशान करते रहे ,कोई क्रिकेट की बॉल से दरवाजे ठोकता तो कोई ---अपशब्द कहता ,दिन रात मेरे मकान के सामने नौ जवानों का ताता लगा रहता था | बेटियां डरी -सहमी सदा रहती थी ,कोई वाहन दरवाजे के सामने लगा देता ,तो कोई पतनी को तू तड़ाक से बात करता ,दिन रात पतनी इन तमाम बातों को कहती रहती थी | सबकुछ होते हुए भी मैं असहाय रहता था | कभी होली में सभी लोग मेरे घर के आगे शोर- शराबा करते तो कभी दिवाली में पटाके जान बूझकर मेरे घर के आगे फोड़ते थे ,मानों यह मुहल्ला नहीं --कोई चौराहे पर घर ले लिया था | हमारी रक्षा सिर्फ परमात्मा ही कर सकते थे | सभी की नजर में हम धनिक थे ,शास्त्री थे --पर मैं सबसे बड़ा अपने आप में असहाय थे | संगीत के सुर उत्तम तब बनते हैं जब व्यक्ति प्रसन्न होता है --मैं दिनों दिन मन से पतन की और जा रहा था | यह मकान कईबार बेचने को सोचा पर बेच नहीं पाया क्योंकि इस मकान का दाम उतना देने को तैयार नहीं था --साथ ही कई अवगुण गिना देते थे लोग | साथ ही बढियाँ मकान लेने की परिस्थिति नहीं थी | बेटियां बड़ी हो रही थीं | उन बच्चों का भविष्य कैसे ठीक हो यही सोचता रहता था | दिन -रात मेरी पतनी से कहा सुनी हो जाती --बात वहीँ से शुरू होती थी --जेवर बेच दिए ,भैस बेच दी ,सारे पैसे माँ बाप को दे दिए --मुझे और बच्चों को सड़क पर छोड़ दिए | ऐसा लगता था जैसे मृत्यु का दामन मेरे साथ -साथ चलता हो | पर फिर भी पत्थर की तरह जीता रहा --------अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

ज्योतिष के अनुसार कितने लोक हैं - -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ





ज्योतिष के अनुसार कितने लोक हैं - -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

--अंतरिक्ष और पृथ्वी जगत के 3 भाग माने गये हैं । वेदों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि मेघ ,विदयुत और नक्षत्रों का आक्रमण -प्रदेश पृथ्वी से बहुत दूर है । इसी प्रमाण पर पौराणिक ग्रंथों में जगत {संसार }को लोक की संज्ञा दी गई है । तथा उनमें प्रमाणित वर्णित लोक इस प्रकार से हैं । --1 -भूलोक ,2 -भुवर्लोक ,3 -महलोक ,4 जनलोक ,5 -सत्यलोक ,6 -तपोलोक ,7 -स्वर्गलोक । ------स्वर्ग ,मृत्य अर्थात पृथ्वी और पतालात्मक विभाग वेदों में नहीं मिलते । पुरातन ऋषि -मिनियों ने ये लोक इन लोकों से ऊपर माने हैं । उनकी की दृष्टि में नीचे के सात लोक ---1 -तल ,2 -अतल, 3-सुतल ,4 -वितल ,5 -तलातल ,6 -रसातल ,और 7 पाताल हैं । नोट --ज्योतिष को नेत्र की उपाधि मिली है ये केवल जीव के लिए है इसलिए जब तक चराचर जगत के बाह्य एवं आभ्यन्तर को नहीं जानेंगें तब तक एक सच्चा ज्योतिषी नहीं बन सकते हैं --क्योंकि जीव के आने से लेकर जाने तक की बातों को ज्योतिष बताता है । ---प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut- 

बगलामुखी स्तोत्र--- सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ


 बगलामुखी स्तोत्र---?

मां आदिशक्ति के भी दस अवतार हैं ,इनकी स्तुति भी एक साथ होती है ,इस बगलामुखी स्तोत्र के द्वारा हमलोग अपनी -अपनी विजय रथ पर आरूढ़ हो सकते हैं ,यह स्तुति हमने 2014 में गायी थी ,आज फिर मुझे मां आदिशक्ति की कृपा की जरूरत है तभी हम अपने पथ पर आरूढ़ हो सकते हैं ,स्तुति के बोल हैं ,आदि शक्ते त्वमसि काली मुण्ड माला धारिणी,त्वमसि तारा मुण्ड हारा विकट संकट हारिणी ,,---------- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरुवार, 9 नवंबर 2023

"तंत्र ,मन्त्रों से स्वास्थ लाभ भी संभव है --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ






"तंत्र ,मन्त्रों से स्वास्थ लाभ भी संभव है --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
------"तंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत कुछ सिद्धि प्राप्त करने के लिए ---जैसे अपने शरीर को स्वस्थ रखने एवं जन्म -मरण से छुटकारा पाने हेतु प्राचीन विद्वानों ,ऋषि -मुनियों द्वारा मन्त्रों की रचना की गयी । हर मन्त्र की रचना इस प्रकार होती है जिससे हर शब्द स्वर -व्यंजनों के जोड़ से सही बैठता है । अतः उन मन्त्रों के शुद्ध उच्चारण से कंठ से निकले हर मन्त्र के शब्दों के स्वर से ऐसा कम्पन पैदा होता है -----जिससे मस्तिष्क को जाती हर नाडी प्रभावित होती है । अतः इन उत्पन्न तरंगों द्वारा अन्तः स्रावी ग्रंथियां जैसे ---पिय्युटरी,पीनियल ,थाइराइड और पेरा थाइराइड तक पहुंच इनको उत्तेजित करती है । इस उत्तेजना से हर ग्रंथि अपना कार्य कुशलता पूर्वक कर शरीर के हर अंग में अपना योगदान देती है । जिससे स्वास्थ बना रहता है तथा शरीर सुचारू रूप से अपनी प्रतिरोध-क्षमता बढ़ता रहता है ।
---इससे न केवल प्रतिरोध क्षमता बढती है ,बल्कि सामान्य बिमारियों से भी बचा जा सकता है । चार -वेद हैं । महामृत्युंजय मन्त्र ऋग्वेद से और गायत्री मन्त्र यजुर्वेद से हैं ।
आलेख ---- खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
-भवदीय निवेदक -- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मेरा राजयोग था उससे कई सौ गुना अनुज का राजयोग चल रहा था -पढ़ें भाग -72 ज्योतिषी झा मेरठ




मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -72 ज्योतिषी झा मेरठ
2005 -मेरा जितना बड़ा राजयोग था उससे कई सौ गुना अनुज का राजयोग चल रहा था | मेरठ में उसका भी भवन बना ,माता पिता बड़े पूंजी पति हो गए थे | माता पिता अपने पैसों से दो कमरे और बनाकर दे दिए | सभी प्रजाओं का आशीष था ,माता पिता की छत्रछाया थी -ईस्वर की कृपा थी ,व्याज से खूब रूपये बरस रहे थे | समाज के लोगों के बीच माता पिता साहूकार बन चुके थे | मुझे सभी अनादर कर रहे थे ,मैं खुद ही अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित रहता था ,जब माता पिता ,परिजन नाराज हों तो आशीर्वाद नहीं अभिशाप मिलता है | इस बात का फायदा चाची ने उठाया -खूब मुकदमें -माता पिता ,अनुज +बधू पर किये जेल भी भेजबा दिए | जब धन हो सद्बुद्धि न हो तो विनाश भी होता है --इस मामले में मेरी कोई राय नहीं ली गयी बल्कि मामा ,जीजा की सलाह पर युद्ध लड़ें | चाची के पास वकील की कृपा थी ,पुलिस की सहायता थी साथ ही युवा अवस्था थी --इन लोगों ने भरपूर आनन्द लिए | समाज में किसी को कोई भय या लज्जा नहीं थी | हम मूक दर्शक बने रहे | अब माता पिता चाहते थे मुकदमें में जो खर्च हो रहा है उसका आधा हिस्सा दे --इसके बदले में अनुज को भरका रहे थे माता पिता कि बिना हिस्सा दिए यहाँ मुझको टिकने नहीं देंगें | ऐसा ही हो रहा था -हम भाई -भाई के दुश्मन बन गए --सुनी -सुनाई बातों पर ,कभी न अनुज पूछा न ही हम उससे बात करना चाहते थे क्योंकि अनपढ़ था ,धन का गरुड़ था साथ ही सभी परिजन उसके साथ थे --एवं अगर मैं सच बोलता भी तो भी उसके गले के नीचे हमारी बातें नहीं उतरती --अतः चुप रहना ही उचित समझते थे | मेरी पतनी भी हिस्सा लेने को आतुर थी ,इसने भी वही रूप धारण किया जो हमारी माँ ने धारण किया था | माँ क्या रेल में कटती उससे पहले मेरी पतनी ही तैयार हो जाती ,समाज के लोग बहुत हमारी मदद करना चाहते थे पर माँ आग में घी डालने का काम करती थी | उन लोगों से पिता लड़ने लगते थे |-- नित्य हमलोगों को माता पिता शाप देते थे | जब हम धन देना बन्द कर दिए तो दीदी का साम्राज्य भी पटना शहर चला गया ,वहीँ जीजा रहते थे ,अब कोई दीदी का मेरे घर नहीं रहता था --क्योंकि गरीब मुझे बनाना चाहते थे --अनुज को तो धनिक बनाने का ही सपना था सो अब मामा का भी साम्राज्य नहीं था | सबसे माता पिता यही कहते थे --बड़ा पढ़ा लिखा था ,धनिक था ,अब घर कैसे चलेगा ,छोटा अनपढ़ है अज्ञानी है पर यह सच नहीं था -व्याज का कारोबार लाखों में था ,किराये से अच्छी कमाई थी ,खेती से उपज आ रही थी --हम भी कुछ न कुछ देते ही थे ---जब अनुज ने देखा बड़ा अलग हो गया है तो उसने भी अपना नया रूप बनाया ,मेरठ में जमीं ली ,मकान बनाया ,पैसों को गुप्त रखा --साथ ही उलटे माता पिता से ही रूपये मंगाने लगा --अच्छा माता पिता को भी लगता था यही सच है | अगर हम इस बात को बताते माता पिता से तो बोलते तू तो उसका शत्रु है अतः चुप रहना ही उचित समझते थे | अब सारे मुकदमें माता पिता को ही लड़ने थे अपने बल पर --और लड़ते भी रहे | अब माता पिता अनुज के लिए इतना तो कर ही रहे थे --अब चाहते थे किसी तरह से एक पुत्र हो जाय अनुज को बड़े को न हो क्योंकि ये बेईमान है | -----अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

बुधवार, 8 नवंबर 2023

सफलता का सोपान आपही हैं --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ




"सफलता का सोपान आपही हैं --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
"आत्म स्थानम मंत्र द्रव्य देव शुद्धिस्तु |पंचमी यावनय कुरुते देवी तस्य देवार्चानम कुतः ||--मानव शरीर में स्वयं शक्ति का निवास होता है | तंत्र -मंत्र -यन्त्र तो माध्यम है ,सुप्त शक्ति को जागृत करने के लिए और बनाये रखने के लिए | ईस्वर में श्रद्धा और विस्वास के बिना कोई साधना सफल नहीं होती है |---अस्तु -तंत्र साधना के लिए पांच शुद्धियाँ अनिवार्य हैं -[१]-भाव शुद्धि [२]-देह शुद्धि [३]-स्थान शुद्धि [४]-द्रव्य शुद्धि [५]-और -मंत्र शुद्धि |----पुरश्चरण के बिना कोई भी मंत्र फलदायी नहीं हो सकता है | -[जिस मंत्र के जितने अक्षर होते हैं -उतने लाख मंत्र के जापों को -पुरश्चरण कहते हैं | पुरश्चरण के बाद मंत्र कामधेनू के सामान सभी सिद्धियों को देने वाले बन जाते हैं | चरण के पांच अंग हैं-जप ,हवन, तर्पण ,मार्जन और ब्राहमण भोजन |यदि किसी साधक का पर्योग एक बार में सफल नहीं होता -तो शांति पाठ करके पुनः करना चाहिए |असफलता के कई कारण हो सकते हैं |-----अशुद्ध मन्त्र ,मंत्र का अशुद्ध उच्चारण ,साधना में विघ्न ,अखंड दीप का बुझना,ब्रहमचर्य का खंडन,साधक द्वारा मंत्र साधना के नियमों का पूर्ण रूप से पालन न करना और -गुरु ,मंत्र देवता में श्रद्धा और विस्वास का न होना | इसके आलावा देव शुद्धि न होना भी एक कारण होता है | देव शुद्धि के लिए गुरु की आज्ञानुसार पाठ करना चाहिए ||----मंत्रोचारण,जप साधना के लिए कार्ज -भेद -अनुसार समय दिशा ,मौसम,स्थान ,पहनेवाले वस्त्रों व् पूजा करने के आसन के रंग में भी अंतर होता है | भोग लगाने के सामन में भी अंतर होता है |कई बार मंत्र एक होता है ,परन्तु मंत्र के पल्लव में फर्क होता है ,कार्यानुसार जिस भावना से मंत्रोंचारण किया जय ,उसका फल उसी रूप में मिलता है | मंत्र का उच्चारण अगर ग्यारह ,इक्कीस या इक्यावन हजार बार बताया गया हो और निश्चित अवधि में पूरा करने पर ही फल प्राप्ति होती है |यह बात और है कि साधक अपनी सुविधा और जरुरत के अनुसार जप की संख्या में ग्यारह इक्कीस ,इकतालीस दिनों में विभाजित कर लें |---इस सबके बावयूद एक बात ध्यान रखने योग्य है कि गुरु कृपा ,गुरु निर्देश ,गुरु नियमों का पालन ,गुरु आगया सर्वोपरि मानकर साधक चले ,तो उसकी सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है ||---अक्षय -त्रीतिया" हो या कोई और उत्सव-न क्षयः अक्षयः सा एक तृतीया -जिसका नाश नहीं होता है ,जो अमिट होता है -तो ध्यान दें ये धर्म भी हो सकता है और अधर्म भी -ये तो आपके कर्म के ऊपर ही निर्भर करेगा ||-----ॐ -आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सतगुरु की महिमा अनन्त भजन सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ



 सतगुरु की महिमा अनन्त भजन सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ ,

दोस्तों - भारतीय संस्कृति में गुरु और शिष्य का विशेष महत्व है | जिसकी झलक गुरु पूर्णिमा को दिखने को मिलती है ---आज हर वर्ष गुरु पूर्णिमा पर्व तो आता है --पर महत्व नगण्य सा होता जा रहा है --इन तमाम बातों को भजन के शब्दों में दर्शाया गया है | गुरु होने के नाते अपने अनन्त शिष्यों को "गुरु पूर्णिमा "की ढेर सारी शुभकामनायें देता हूँ --और निवेदन करता हूँ उन बातों का पालन भी करें जिन बातों पर यह पर्व निर्भर है |---- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मंगलवार, 7 नवंबर 2023

मेरा राजयोग ही था जो हम चल रहे थे अन्यथा दुःखों की भरमार थी -पढ़ें - भाग -71 ज्योतिषी झा मेरठ



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -71 ज्योतिषी झा मेरठ

प्रिय पाठकगण -भगवान श्री राम हों या श्रीकृष्ण राज परिवार में जन्म लिए --इनकी जीवनी से यह ज्ञात होता है ,दुःख में सुख का अनुभव नहीं होता है और सुख में दुःख का भी अनुभव नहीं होता है | ---अस्तु -मेरा राजयोग ही था जो हम चल रहे थे अन्यथा दुःखों की भरमार थी | एक शतचण्डी 1996 वे में की थी तब उम्र 26 वर्ष थी ,राहु का दरिद्र योग चल रहा था --तो रोजगार का साधन मिलने लगा | दूसरी शतचण्डी किसी यजमान की की थी --1999 में तो निवास और मन्दिर मिले ,रोजगार बहुत ही ठीक था ,सभी जगह प्रख्यात हो रहे थे ,सभी सहकर्मी मित्रों को मनोनुकूल दक्षिणा के साथ सम्मान दिलाने का भरसक प्रयत्न करते थे | पर विध्न अनन्त थे --पिताजी को किसीने कहा होगा ये काला कपडा अपने साथ मेरठ बड़े पुत्र के पास ले जाओ तुम्हारा काम बन जायेगा ,उनका काम बन गया --अनुज का हिस्सा मुझसे 15000 ले गए | हम बहुत बीमार रहने लगे ,छोटी बेटी बहुत बीमार हो गयी ,पहले टाइफाइड हुआ फिर टीबी हुई फिर अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ | मेरा भी छोटा सा ऑपरेशन हुआ -आँख के ऊपरी भाग में अनायास गांठ बन गयी थी | कोई भी परिजन देखने नहीं आये | -आज के युग में बेटियां हों पतनी हो पराधीन जीवन हो तो अहसास वही व्यक्ति कर सकता है -जो धर्मानुरागी हो अन्यथा जीवन मान से जीएं या अपमान से क्या फर्क पड़ता है | मुझे मन्दिर और निवास तो मिले ,रोजगार बहुत थे पर गंदगी बहुत थी --इसलिए हम सब बीमार हो रहे थे | किसी तरहअपना निवास लेना चाह रहे थे | अपना तो कोई था ही नहीं {सब होते हुए भी } एक यजमान मित्र थे उनसे निवेदन किया --भवन छोटा सा दिला दो --बोले जरूर -जहाँ बात करके आये --उस समय मेरठ में कांग्रेस के युवा अध्यक्ष श्री रोहतास भैय्या माधवपुरम प्रेम विहार मेरठ हुआ करते थे | उनकी इनसे बात हुई -20000वयाना दिए -दस मेरे दस यजमान मित्र के --बिना कागजात के फिर क्या था --श्री रोहतास भैय्या उनको पीटा भी और रूपये भी खा गए --हम मुंह देखते ही रह गए | ये 2002 की बात है | अब हम निराश हो गए ,गांव में पैसा देने के बाद माता पिता जीना मुश्किल कर चुके थे वहां भवन का सुख नहीं मिला यहाँ मेरठ में जिन पर उम्मीद थी वो भी ले डुबे | पतनी बीमार हो गयी मकड़े के घाव से --यहाँ धन तो था ,न शुद्ध जल था न शुद्ध वातावरण था स्थान किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ ,बीड़ी ,सिगरेट ,शराब की भरमार थी | भगवन शिव की आराधना में लग गए --एक और मित्र मिले किशनपुरी के ही -धन तो नहीं दिया पर तन से सहायता बहुत की | --चाहे बेटी हो ,पतनी हो या मेरा खुद का ऑपरेशन तन मन से सहायता की | अब हम फिर कैसे भी करके मकान लेना चाह रहे थे ,किराये के मकान में नहीं रहना चाहते थे | ये मित्र यजमान ने एक मकान दिखाया -प्रेम बिहार गली नंबर 2 माधवपुरम मेरठ --40 गज का अभी बन ही रहा था किम्मत सवा दो लाख --मेरे पास थे सवा लाख --उस समय एक मित्र डालम पाड़ा मेरठ में रहते थे ,उनसे कर्य लिए एक लाख --मेरे यजमान मित्र को लगा इतने पैसे कैसे कर्य दे दिया | हमने दो लाख पैंतीस हजार जहाँ -तहाँ से कर्य लेकर यजमान मित्र के हाथ में दे दिए | जहाँ भवन लेने की बात हो चुकी थी कल रजिस्ट्री होगी --उससे लड़ाई करके रात में यजमान मित्र आये बोले --गुरूजी ये मकान मत लो -इन पैसों से व्यापार करेंगें ,बढियाँ मकान लेंगें ,ये घटिया मकान है | मेरी जो परिस्थिति थी वो हम जानते थे या भगवान ,अब तो हम फस गए ,कर्य भी ले लिया मकान भी नहीं मिला धन लालाजी के हाथ चला गया | पतनी ने राय दी ,मकान वाले से बात करो जो भी है ,जैसा भी है लेना है ,मकान मालिक तैयार हो गया --अब लालाजी बोले -और पैसे कहाँ से आयेंगें -जबकि साढ़े आठ हजार रजिस्ट्री में दो लाख अठारह हजार मकान का दाम ---हमने लालाजी को दिए थे दो लाख पैतीस हजार | खैर जैसे- तैसे करके यह मकान मिला -10 /01 /2003 को "भारत भूमि पर पुरुष की अपेक्षा महिला पक्ष दयालु होता है --यह मकान मिला तो इसमें लालाजी की अर्धांगिनी न होती तो शायद हमें मकान तो मिलता ही नहीं धन भी नहीं मिलता | ----अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

जानिए गोवर्धन पूजा का महत्व-ज्योतिषी झा "मेरठ "



 जानिए गोवर्धन पूजा का महत्व-ज्योतिषी झा "मेरठ "

हमारे कृषि प्रधान देश में गोवर्धन पूजा जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत आवश्यकता है। इसके पीछे एक महान संदेश पृथ्वी और गाय दोनों की उन्नति तथा विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा प्रयत्नशील होना छिपा है। अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।

-----अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है। उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र की ही उस दिन पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई है। धर्मग्रंथों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है।
---ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के लिए किया जाता है। बालखिल्य ऋषि का कहना है कि अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव श्रीविष्णु भगवान की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए। इन पर्वों से गायों का कल्याण होता है, पुत्र, पौत्रादि संततियां प्राप्त होती हैं, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त होता है। कार्तिक के महीने में जो कुछ भी जप, होम, अर्चन किया जाता है, इन सबकी फल प्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए।
गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभ कामनाएं-------दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

महालक्ष्मी स्त्रोत्र -सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ


 


महालक्ष्मी स्त्रोत्र -सुनें !ज्योतिषी झा {मेरठ }

दोस्तों -प्रत्येक देवता के पंचांग पूजन होते हैं और तभी कामना पूरक देवता की कृपा प्राप्त की जा सकती है -जैसे प्रथम -न्यास ,दूसरा -ध्यान ,तीसरा -पूजन ,चौथा -जाप और पांचवा -स्तुति । हम किसी भी देवता को प्राप्त करने हेतु पंचांग विधि अपनाते हैं -तभी मनोकामना की पूर्ति इष्ट देव प्रदान करते हैं । इन पांचों में स्तुति सर्वोपरि है -स्तुति के द्वारा किसी को भी रिझाना अति सरल होता है -तो सुनें माँ लक्ष्मी की स्तुति । --- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

ऋणमोचन मंगल स्त्रोत्र -सुनें-ज्योतिषी झा मेरठ



 ऋणमोचन मंगल स्त्रोत्र -सुनें !ज्योतिषी झा {मेरठ }

दोस्तों -जीवन में जब ऋणी या कर्जदार हो जाय ,संतान की कामना हो ,भवन की लालसा हो ,योद्धा की भांति जीना हो ,मैदान में जीत की कामना हो या फिर सरकारी सेवा प्राप्त करनी हो तो इस ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का नित्य पाठ एक समय ,दोनों समय या त्रिकाल पाठ से अवश्य कामना की पूर्ति होती है । --- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र -का महत्व सुनें -ज्योतिषी झा {मेरठ }


 कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र का महत्व  -सुनें !ज्योतिषी झा {मेरठ }

दोस्तों -एकबार श्रीशंकराचार्यजी ने एक गरीब महिला से भिक्षा मांगी ,धनाभाव के कारण वो महिला घर में रखें आंवला भिक्षा में दिए । भगवान शंकराचार्य को उस महिला पर दया आगयी --तभी उसके आँगन में इस कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया -जिसके प्रभाव से वही आवला स्वर्ण रूप में परिवर्तित हो गए । तब से कोई भी व्यक्ति इस स्तुति के पाठ से धन से युक्त जाता है । ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.

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कनकधारा स्तोत्र {लक्ष्मी स्तुति } सुनें --खगोलशास्त्री झा मेरठ



 कनकधारा स्तोत्र {लक्ष्मी स्तुति } सुनें --खगोलशास्त्री झा मेरठ

कनकधारा वह स्तुति है --जिसे श्री आदिशंकराचार्य ने रचना भी की और तत्काल आवला स्वर्ण रूप में परिवर्तित हो गए थे | यह संस्कृत भाषा हैं --सुनने से भी लाभ होता है एवं पाठ करने से भी लाभ होता है | अपने शिष्य को तमाम कसौटी पर परखने का प्रयास करता रहता हूँ | --जिसे देखकर और सुनकर विस्वास संभव है | ----भवदीय निवेदक --ज्योतिषी झा मेरठ --आपके अनन्त ज्योतिष+कर्मकाण्ड जिज्ञासा का केंद्र --यह पेज है ,पधारें अपना लाभ अपने अनुसार उठायें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"पात्रता से ही लक्ष्मी स्थिर होती है -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


 



"पात्रता से ही लक्ष्मी स्थिर होती है ?"----मित्रप्रवर ,राम -राम ,नमस्कार ||


लक्ष्मी के बिना जीवन अधूरा सा रहता है,इसके लिए हमलोग अथक परिश्रम भी करते हैं ,धर्म अधर्म का विचार भी नहीं कर पाते हैं-परन्तु यदि कुपात्रता से धन का संचय किया गया हो-तो "लक्ष्मी "हमें परित्याग करने में संकोच नहीं करती हैं -आइये हम आपको एक कथा सुनाते हैं,और कहाँ निवास नहीं करती है "लक्ष्मी "प्रकाश डालने की कोशिश भी करते हैं -शास्त्रोक्त [शास्त्रों से ]?-----अस्तु -श्रीमार्कंडेयपुराण-में एक कथा आती है क़ि शचिपति "इंद्र" दैत्येन्द्र जम्भ से पराजित होकर निराश हो गए | देवगुरु ने इंद्र को श्री विद्या के परमाचार्य "श्री द्त्त्तात्रेय "की शरण में जाने की सम्मति दी |जब इंद्र समेत सब देवता श्री दत्तात्रेय जी के आश्रम पर पहुंचे ,तब उन्होंने उन्हें कुछ विकृत वेषाव्स्था में साक्षात् भगवती लक्ष्मी के साथ आसीन देखा |उनकी प्रेरणा से देवताओं ने पुनः युद्ध छेड़ दिया और जब दैत्य उन्हें मारने लगे ,तब वे भागते हुए दत्तात्रेय जी के आश्रम पर पुनः पहुँच गए और पीछे से खदेड़ते हुए देते भी वहीँ जा पहुंचे|---दैताय्गन वहां उनकी पत्नी भगवती ल्स्ख्मीी को देखकर अपने मनोवेग को न रोक सके और झट सब कुछ छोड़कर ,उस श्री को ही बलात एक पालकी में डालकर सर पर ढ़ोते हुएअपने वासस्थल को चल पड़े | इस पर भगवान दत्तात्रेय ने देवताओं से कहा -"यह आप लोगों के लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है ,क्योंकि ये लक्ष्मी इन दैत्यों के सात स्थानों को लांघकर आठवे स्थान [मस्तक ] पर पहुँच गयी है |सर पर पहुँचते ही ये तत्काल अपने आश्रय का परित्याग करके अन्यत्र चली जाती है ||शारडगधर पद्धति -६५७ में -के भावों को भी समझते हैं ---"कुचैलिनम दन्तमलोपधारिनम ब्रह्मशिनं निष्ठुर वाक्य भाषिनाम |सूर्योदय हस्त्म्येअपी शयिनम विमुन्चती ,श्रीरपि चक्रपनिनम ||----भाव -जिसके वस्त्र तथा दांत गंदे हैं ,जो बहुत खाता तथा निष्ठुर भाषण करता है,जो सुर्यास्त्काल में भी सोया रहता है,वह चाहे चक्रपाणी "विष्णु " ही क्यों न हो ,उसका लक्ष्मी परित्याग कर देती है |और भी कुछ शास्त्रकारों ने लिखा है .---..परान्नम परवस्त्रं च परयानम परस्रीयह|पर वेस्वा निवासस्चा शंक्स्यापी श्रियः हरेत ||--भाव -पराया अन्न ,दूसरे का वस्त्र,पराया यान [वाहन ],परायी स्त्री और परग्रिह्वास[दूसरों के घर में रहना ] ये "इंद्र "की स्री संपत्ति को भी हरण कर लेते हैं ||ब्र०-रंजनन -१६८ के अनुसार -असुरराज भक्त प्रह्लाद ने एक ब्राहमण को अपना शील दान कर दिया |उसके कारण लक्ष्मी ने उन्हें -तत्काल छोड़ दिया ,तत्पश्चात अनेक प्रकार से प्रार्थना करने पर करुणामयी लक्ष्मी ने साक्षात् दर्शन देकर उपदेश दिया कि-हे प्रह्लाद ! तेज ,धर्म,सत्य ,व्रत ,बल ,एवं शील आदि मानवी गुणों में मेरा निवास है |इन गुणों में शील अथवा चरित्र मुझे सबसे अधिक प्रिय है ,इस कारण मैं सच्चिल व्यक्ति के यहाँ रहना सबसे अधिक पसंद करती हूँ ||महा ० शा ०-१२४ के अनुसार ----दानवीर दैत्यराज "बलि " ने एकबार उच्छिष्ट भक्षण कर ब्राह्मणों का विरोध किया| श्री ने उसी समय बलि का घर छोड़ दिया |--लक्ष्मीजी ने कहा चोरी ,दुर्वसन,अपवित्रता एवं अशांति से घृणा करती हूँ | इसी कारण आज में बलि का त्याग कर रही हूँ ,भले ही वह मेरा अत्यंत प्रिय है ||महा ०शन्ति ०२२५ के अनुसार -------इसी प्रकार लक्ष्मीजी रुक्मिनिजी से कहती है ,कि हे सखे !निर्लज्ज ,कलहप्रिय ,निंदाप्रिय,मलिन ,अशांत एवं असावधान लोगों का मैं अतीव तिरस्कार करतई हूँ ,तथा इनमें से एक भी दुर्गुण व्याप्त होने पर मैं उस व्यक्ति का त्याग कर देती हूँ ||महा ०अनु ० ११ के अनुसार ------अनपगामिनी सुस्थिर लक्ष्मी के लिए --शर्दादी तिलक --८/१६१ में निर्देश हैभुयसीम श्रीयमाकन्क्षण सत्यवादी भवेत् सदा |प्रत्यगाशामुखोश्रीयत स्मित पुव प्रियं वदेत ||--अर्थात -अधिक श्री [लक्षी ] की कामना करने वाले व्यक्ति को सदा सत्यवादी होना चाहिए ,पश्चिम मुह भोजन तथा हसकर मधुर भाषण करना चाहिए ||-{-भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री" मेरठ---आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

ऋणमोचन मंगल स्तुति सुनें और नित्य पाठ करें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



 ऋणमोचन मंगल स्तुति सुनें और नित्य पाठ करें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

--जब धन की जरूरत हो या ऋण से उऋण होना हो या फिर संतान की कामना हो तो ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिए |आपका ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से ज्योतिष की विशेष जानकारी हेतु इस लिंक पर पधारें--https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मेरे पिता की कुण्डली में शनि नीच का पंचम भाव में था -पढ़ें - भाग -70 ज्योतिषी झा मेरठ


 


मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -70 ज्योतिषी झा मेरठ

मेरे पिता की कुण्डली में शनि नीच का पंचम भाव में था --जिसकी दृष्टि से दाम्पत्य सुख प्रभावित रहा | आय का क्षेत्र प्रभावित रहा एवं अन्तिम दृष्टि सम्पत्ति के क्षेत्र में थी सो कुछ नदी में समा गयी ,कुछ बिक गयी ,कुछ परिजनों ने कब्जा कर ली ,कुछ विवाद में धन चला गया तो कुछ अपनों ने ले ली --अन्तिम सांस के समय अनुज और माँ ने वो भी धन खर्च नहीं किये जिसपर अधिकार था | माँ का भी धन अनुज ने समेट लिए बदले में माँ को भी शून्य हाथ लगा | वैसे अनुज का विवाह होते ही हम अलग हो गए -माता पिता हमारे साथ न आकर अनुज के साथ रहे | हमने 2003 से विशेष धन देना बन्द कर दिए | हमारे माता - पिता अनुज को धनाढ्य बनाना चाहते थे | मकान में किरायेदार रहने लगे ,रूपये व्याज पर चलने लगे | अनुज की प्रगति होने लगी | 2003 में मेरठ निवास अपना हुआ तो हम भी अपने बच्चों को सही शिक्षा देने में लग गए | मतृभूमि पर सभी परिजन हमें तिरस्कृत भाव से देखने लगे | अब कोई चाय सर्बत का भण्डारा नहीं होता था | बल्कि जब भी हम घर जाते तो हमारा सबसे ज्यादा तिरस्कार पिता ही करते थे | हम अपने पैसों से चाय भी पीते थे | मेरे कमरों में किरायेदार रहते थे वो पैसे भी पिता ही लेते थे ,उपज भी पिता ही लेते थे ,सभी परिजन पिता को चढ़ाते थे ,मेरी सहायता जो करता उससे माता पिता लड़ते थे | मेरी बेटियां बड़ी हो रही थी जब भी गांव जाते थे तो सबसे घटिया मांसाहार किरायेदार को रखते थे ,हमने कईबार पिता से कहा जब तक हम रहते हैं तो ऐसे किरायेदारों को मत रखो --वो कहते थे मेरी मर्जी हम कुछ भी करें | --भवन के अन्दर आने -जाने का रास्ता संकीर्ण था ,यह रास्ता मेरे हिस्से में था पर पिता नहीं चाहते थे सीढ़ी टूटे --बिना सीढ़ी टूटे रास्ता अलग नहीं हो सकता था | मकान हमारा था फायदा पिता लेते थे -जो पिता मुझे बहुत चाहते थे जबतक धन दिया हम अच्छे थे --धन देना बन्द किया सबसे बुरे हो गए | ननिहाल हो या ससुराल या फिर रिस्तेदार सभी हमारा उपहास उड़ाते थे कहते थे --माता पिता को नहीं देखते हो --यह शब्द मरने जैसा लगता था | हमारा राजयोग चल रहा था रोजगार बढियाँ था निवास मेरठ में ही मिल चूका था, धीरे -धीरे अपनी जिम्मेदारी को संभालते हुए आगे बढ़ रहे थे --पर मातृभूमि पर -माता पिता ,दीदी -जीजा ,अनुज के परिवार ,मामा -मामी सभी परिजन हमारे दुश्मन बन चुके थे | मुझे दो कन्या थी तो भगवान ने अनुज को भी दो कन्या दी | अगर माता पिता की कृपा से होता तो उसे पुत्र ही होता ---पर सबके जो माता पिता श्री हरी हैं उन्हें सब पता है | मैं धैर्य बांध चूका था पुत्र की कामना नहीं थी --पर कईबार माता पिता अपमानित कर चुके थे --तुझे पुत्र नहीं होगा | एकबार तो मेरे यजमान मेरठ में बोली -इतने बड़े पण्डित हो तो अपना ही पुत्र क्यों नहीं होता | बात मेरे साथ यह थी सन्तान तो हो सकती थी किन्तु दो पुत्रियों का पालन ही हम ठीक से नहीं कर पाये थे --अगर फिर पुत्री होती तो कहाँ से पालन करते --इस डर से अगली सन्तान की चाहत नहीं थी | --कभी -कभी शाप भी वरदान बन जाता है | --अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 6 नवंबर 2023

मैथिली भाषा -लोकगीत -राति छलि असगर श्रृंगार केने सूतली -ज्योतिषी झा मेरठ



 मैथिली भाषा -लोकगीत -राति छलि असगर श्रृंगार केने सूतली -ज्योतिषी झा मेरठ

ज्योतिष प्रिय पाठकगण -यह मैथिली भाषा का लोकगीत है | बोल हैं --राति छलि असगर श्रृंगार केने सूतली ---इस लोक गीत के शब्द प्रेम से युक्त हैं साथ ही धुन भी बहुत प्यारी है --इसे हमने संगीत से न सजाकर केवल भाव दिखाने का प्रयास किया है | वैसे मैं कोई गायक नहीं हूँ पर कुछ कोशिश करनी चाहिए --यही एक प्रयास मेरा रहता है | ॐ --ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को जानने हेतु इस लिंक पर पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjh... खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

वैदिक शान्ति पाठ सुनें !ज्योतिषी "झा "मेरठ"



 वैदिक शान्ति पाठ सुनें !ज्योतिषी "झा "मेरठ"

---दोस्तों - सनातन धर्म को मानने वाले ,संसार के किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत वैदिक शान्ति पाठ के बिना नहीं प्रायः करते हैं । तो हम भला ज्योतिष के पूरक वेद के बिना ज्योतिषी कैसे बन सकते हैं । या ज्योतिष के बारे में कैसे लिख सकते हैं ---फिर भले ही बताएं ज्योतिष परन्तु निदान तो कर्मकाण्ड के द्वारा ही मिलेगा ---तो सुनिए हमारी वैदिक परम्परा के शान्ति के पाठ ।
----- - ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

आत्मकथा में पहले ठीक से मुझको समझना होगा-पढ़ें - भाग -69 ज्योतिषी झा मेरठ


 



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -69 ज्योतिषी झा मेरठ
प्रिय पाठकगण -हम अपनी आत्मकथा में जो बताना चाहते हैं --उसके लिए पहले ठीक से मुझको समझना होगा ,तभी यह पुस्तक बनेगी | ---अस्तु --2002 -अनुज का विवाह हो गया और हम सम्मिलित नहीं हुए विवाह में तब से नई युगलबन्दी मेरे घर में शुरू हुई -पिता को जो माँ पढ़ाती थी वही पिता पढ़ने लगे | मेरी दो कन्या थी पिता दोनों को बहुत मानते थे पर अब वो भी तिरस्कार करने लगे क्योंकि अब हम सजग हो चुके थे | जब 14 वर्ष के थे तब से घर में धन की सहायता मैं करता आ रहा था 2001 तक | अब हम मेरठ में ही स्थापित होना चाह रहे थे साथ ही यहीं निवास लेने की सोच रहे थे | घर में फालतू का धन देना नहीं चाह रहे थे --क्योंकि अनुज का विवाह होते ही जमीन उसके नाम खरीदी गयी ,उसके जेवर सभी सही सलामत थे | मेरी शादी होते ही जेवर बिक चुके थे ,भैस भी बिक चुकी थी ,हमारे धन से चाय+ सर्बत का नित्य भण्डारा होता था ,हमारे घर में दीदी का सम्पूर्ण साम्राज्य था और सभी पल रहे थे --ऐसी स्थिति में मामा भी लाभ ले रहे थे | मेरा राजयोग चल रहा था ,पतनी ,बच्चे मेरठ में हमारे साथ रह रहे थे | हमने धर्म निभाया था -हमें धर्म अपनी गोद में उठा रहा था | सारा धन माता पिता को समर्पित कर चूका था --पर जब राजयोग होता है --तो फल भी मिलता है --यह चर्चा आगे करूँगा | 2002 अब माता पिता अनुज को मजबूत करना चाह रहे थे | उस समय अनुज भी सशक्त रोजगार के क्षेत्र में था साथ ही हम दोनों शिव चौक मन्दिर मेरठ में साथ -साथ 17 माह रहे थे 1997 +1998 में | 1999 में कूटनीति के तहत अनुज हमें तिरस्कृत कर चूका था | पनाह एक मित्रने दी थी --किन्तु राजयोग के प्रभाव के कारण किसी यजमान की शतचण्डी हमने की --और माँ आदिशक्ति की कृपा से मुझे एक मन्दिर मिला निवास के साथ --कृष्णपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ --1999 में | --अब हमारे माता पिता ,अनुज को लगा --ये तो हाथ नहीं आएगा --अतः पिता मेरठ आये अनुज के पास पर नित्य मिलने आते थे मेरे पास --हम यथाशक्ति सत्कार करते थे | पिता बोले 17 माह में उसके पैसे हैं तुम्हारे पास 50000 हजार दे दो --हमने कहा मेरे पास सारा लेखा -जोखा है 30000 हैं दोनों आधा -आधा बाँट लेते हैं | अनुज पिता से झूट बोला नहीं 50000 हैं --हमने हिसाब किताब देखने की बात कही --पिता बोले --चलो उसका हिस्सा मुझे दे दो --हमने 15000 दे दिए ये धन लेकर पिता गांव चले गए | अब हम समझने लगे मेरी शादी के बाद गहने भी बिक गए ,भैस भी बिक गयी जो जमीन गिरवी थी उसे हमने छुड़ाई --पर आज अनुज की शादी के बाद गहने भी उसके हुए ,जमीं भी उसकी हुई --ये तो अन्याय है | 2003 में हमने कर्ज लेकर एक छोटा सा घर लिया प्रेम विहार माधवपुरम मेरठ में --अब पिता बोले इसमें आधा हिस्सा अनुज का भी है | अब हम सभी परिजनों के शत्रु होते गए ----आत्मकथा की अगली बात को -आगे के भाग में पढ़ने हेतु लिंक पर पधारें - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

दीपावली की रात्र तंत्रशास्त्र की महारात्रि होती है--पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


  दीपावली की रात्र  तंत्रशास्त्र की महारात्रि होती है--पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ

 भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे.-दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि होती है।... इस दिन तंत्र-मंत्र/टोन टोटके का प्रयोग अनेक व्यक्ति ईर्ष्या के कारण रिश्तेदार/मित्र/शत्रु के अनिष्ट के लिए करते है। दीपावली को लड़कियों को बाल खोल कर नहीं रखने चाहिए क्योकि इससे तंत्र मन्त्र प्रभाव उन पर जरूर होता है। दीपावली को व्यक्ति को अपने पास मोर पंख भी रखना चाहिए इससे तंत्र मन्त्र का प्रभाव कम होता है.हनुमानजी अजर-अमर व कलियुग में भी भक्तों के आस-पास रहते हैं दीपावली की रात को शुद्ध पारद हनुमान जी संजीविनी ब्यूटी लिए हुए मूर्ति के सामने पर लौंग डालकर दीपक प्रज्वलित करके परिवार के साथ हनुमान चालीसा, हनुमत अष्टक व बजरंग बाण का पाठ करने से घर मे किसी भी तंत्र मन्त्र के प्रभाव, पुरानी बीमारी व कर्जे से बाहर निकलने का मार्ग मिलता है.क्योकि पारद एक जीवंत धातु है और जिस प्रकार संजीवनी बूटी से लक्मण जी को तुरंत होश आकर पहले से भी अधिक शक्ति आ गयी थी उसी प्रकार कार्य स्थान/घर पर ये मूर्ति रखने से परेशानी से निकलने का मार्ग मिलता है।आप हनुमान जी की संजीवनी बूटी उठाई हुई शुद्ध पारद मूर्ति का ठीक से निरक्षण कर खरीदें . आजकल बाजार मे रांगे/गिलट को पारद बता कर बेच देते है, शुद्ध पारद वस्तु की जांच करने के लिए उस पर थोड़ा सा तरल पारद रखे, असली पारद वस्तु पर वह चिपक जायगा व पारद सामान मे चमक आ जायगी, नकली पारद (रांगा/गिलेट) पर नहीं चिपकेगा----ॐ ---- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com




रविवार, 5 नवंबर 2023

शिवताण्डव स्तोत्र देखें और सुनें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 शिवताण्डव स्तोत्र देखें और सुनें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 भोले शिव को बिना साज सुंदर आवाज से भी खुश कर सकते हैं -जरा इस शिव ताण्डव स्तोत्र को सुनें ---- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...