मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -72 ज्योतिषी झा मेरठ
2005 -मेरा जितना बड़ा राजयोग था उससे कई सौ गुना अनुज का राजयोग चल रहा था | मेरठ में उसका भी भवन बना ,माता पिता बड़े पूंजी पति हो गए थे | माता पिता अपने पैसों से दो कमरे और बनाकर दे दिए | सभी प्रजाओं का आशीष था ,माता पिता की छत्रछाया थी -ईस्वर की कृपा थी ,व्याज से खूब रूपये बरस रहे थे | समाज के लोगों के बीच माता पिता साहूकार बन चुके थे | मुझे सभी अनादर कर रहे थे ,मैं खुद ही अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित रहता था ,जब माता पिता ,परिजन नाराज हों तो आशीर्वाद नहीं अभिशाप मिलता है | इस बात का फायदा चाची ने उठाया -खूब मुकदमें -माता पिता ,अनुज +बधू पर किये जेल भी भेजबा दिए | जब धन हो सद्बुद्धि न हो तो विनाश भी होता है --इस मामले में मेरी कोई राय नहीं ली गयी बल्कि मामा ,जीजा की सलाह पर युद्ध लड़ें | चाची के पास वकील की कृपा थी ,पुलिस की सहायता थी साथ ही युवा अवस्था थी --इन लोगों ने भरपूर आनन्द लिए | समाज में किसी को कोई भय या लज्जा नहीं थी | हम मूक दर्शक बने रहे | अब माता पिता चाहते थे मुकदमें में जो खर्च हो रहा है उसका आधा हिस्सा दे --इसके बदले में अनुज को भरका रहे थे माता पिता कि बिना हिस्सा दिए यहाँ मुझको टिकने नहीं देंगें | ऐसा ही हो रहा था -हम भाई -भाई के दुश्मन बन गए --सुनी -सुनाई बातों पर ,कभी न अनुज पूछा न ही हम उससे बात करना चाहते थे क्योंकि अनपढ़ था ,धन का गरुड़ था साथ ही सभी परिजन उसके साथ थे --एवं अगर मैं सच बोलता भी तो भी उसके गले के नीचे हमारी बातें नहीं उतरती --अतः चुप रहना ही उचित समझते थे | मेरी पतनी भी हिस्सा लेने को आतुर थी ,इसने भी वही रूप धारण किया जो हमारी माँ ने धारण किया था | माँ क्या रेल में कटती उससे पहले मेरी पतनी ही तैयार हो जाती ,समाज के लोग बहुत हमारी मदद करना चाहते थे पर माँ आग में घी डालने का काम करती थी | उन लोगों से पिता लड़ने लगते थे |-- नित्य हमलोगों को माता पिता शाप देते थे | जब हम धन देना बन्द कर दिए तो दीदी का साम्राज्य भी पटना शहर चला गया ,वहीँ जीजा रहते थे ,अब कोई दीदी का मेरे घर नहीं रहता था --क्योंकि गरीब मुझे बनाना चाहते थे --अनुज को तो धनिक बनाने का ही सपना था सो अब मामा का भी साम्राज्य नहीं था | सबसे माता पिता यही कहते थे --बड़ा पढ़ा लिखा था ,धनिक था ,अब घर कैसे चलेगा ,छोटा अनपढ़ है अज्ञानी है पर यह सच नहीं था -व्याज का कारोबार लाखों में था ,किराये से अच्छी कमाई थी ,खेती से उपज आ रही थी --हम भी कुछ न कुछ देते ही थे ---जब अनुज ने देखा बड़ा अलग हो गया है तो उसने भी अपना नया रूप बनाया ,मेरठ में जमीं ली ,मकान बनाया ,पैसों को गुप्त रखा --साथ ही उलटे माता पिता से ही रूपये मंगाने लगा --अच्छा माता पिता को भी लगता था यही सच है | अगर हम इस बात को बताते माता पिता से तो बोलते तू तो उसका शत्रु है अतः चुप रहना ही उचित समझते थे | अब सारे मुकदमें माता पिता को ही लड़ने थे अपने बल पर --और लड़ते भी रहे | अब माता पिता अनुज के लिए इतना तो कर ही रहे थे --अब चाहते थे किसी तरह से एक पुत्र हो जाय अनुज को बड़े को न हो क्योंकि ये बेईमान है | -----अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
2005 -मेरा जितना बड़ा राजयोग था उससे कई सौ गुना अनुज का राजयोग चल रहा था | मेरठ में उसका भी भवन बना ,माता पिता बड़े पूंजी पति हो गए थे | माता पिता अपने पैसों से दो कमरे और बनाकर दे दिए | सभी प्रजाओं का आशीष था ,माता पिता की छत्रछाया थी -ईस्वर की कृपा थी ,व्याज से खूब रूपये बरस रहे थे | समाज के लोगों के बीच माता पिता साहूकार बन चुके थे | मुझे सभी अनादर कर रहे थे ,मैं खुद ही अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित रहता था ,जब माता पिता ,परिजन नाराज हों तो आशीर्वाद नहीं अभिशाप मिलता है | इस बात का फायदा चाची ने उठाया -खूब मुकदमें -माता पिता ,अनुज +बधू पर किये जेल भी भेजबा दिए | जब धन हो सद्बुद्धि न हो तो विनाश भी होता है --इस मामले में मेरी कोई राय नहीं ली गयी बल्कि मामा ,जीजा की सलाह पर युद्ध लड़ें | चाची के पास वकील की कृपा थी ,पुलिस की सहायता थी साथ ही युवा अवस्था थी --इन लोगों ने भरपूर आनन्द लिए | समाज में किसी को कोई भय या लज्जा नहीं थी | हम मूक दर्शक बने रहे | अब माता पिता चाहते थे मुकदमें में जो खर्च हो रहा है उसका आधा हिस्सा दे --इसके बदले में अनुज को भरका रहे थे माता पिता कि बिना हिस्सा दिए यहाँ मुझको टिकने नहीं देंगें | ऐसा ही हो रहा था -हम भाई -भाई के दुश्मन बन गए --सुनी -सुनाई बातों पर ,कभी न अनुज पूछा न ही हम उससे बात करना चाहते थे क्योंकि अनपढ़ था ,धन का गरुड़ था साथ ही सभी परिजन उसके साथ थे --एवं अगर मैं सच बोलता भी तो भी उसके गले के नीचे हमारी बातें नहीं उतरती --अतः चुप रहना ही उचित समझते थे | मेरी पतनी भी हिस्सा लेने को आतुर थी ,इसने भी वही रूप धारण किया जो हमारी माँ ने धारण किया था | माँ क्या रेल में कटती उससे पहले मेरी पतनी ही तैयार हो जाती ,समाज के लोग बहुत हमारी मदद करना चाहते थे पर माँ आग में घी डालने का काम करती थी | उन लोगों से पिता लड़ने लगते थे |-- नित्य हमलोगों को माता पिता शाप देते थे | जब हम धन देना बन्द कर दिए तो दीदी का साम्राज्य भी पटना शहर चला गया ,वहीँ जीजा रहते थे ,अब कोई दीदी का मेरे घर नहीं रहता था --क्योंकि गरीब मुझे बनाना चाहते थे --अनुज को तो धनिक बनाने का ही सपना था सो अब मामा का भी साम्राज्य नहीं था | सबसे माता पिता यही कहते थे --बड़ा पढ़ा लिखा था ,धनिक था ,अब घर कैसे चलेगा ,छोटा अनपढ़ है अज्ञानी है पर यह सच नहीं था -व्याज का कारोबार लाखों में था ,किराये से अच्छी कमाई थी ,खेती से उपज आ रही थी --हम भी कुछ न कुछ देते ही थे ---जब अनुज ने देखा बड़ा अलग हो गया है तो उसने भी अपना नया रूप बनाया ,मेरठ में जमीं ली ,मकान बनाया ,पैसों को गुप्त रखा --साथ ही उलटे माता पिता से ही रूपये मंगाने लगा --अच्छा माता पिता को भी लगता था यही सच है | अगर हम इस बात को बताते माता पिता से तो बोलते तू तो उसका शत्रु है अतः चुप रहना ही उचित समझते थे | अब सारे मुकदमें माता पिता को ही लड़ने थे अपने बल पर --और लड़ते भी रहे | अब माता पिता अनुज के लिए इतना तो कर ही रहे थे --अब चाहते थे किसी तरह से एक पुत्र हो जाय अनुज को बड़े को न हो क्योंकि ये बेईमान है | -----अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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