मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -70 ज्योतिषी झा मेरठ
मेरे पिता की कुण्डली में शनि नीच का पंचम भाव में था --जिसकी दृष्टि से दाम्पत्य सुख प्रभावित रहा | आय का क्षेत्र प्रभावित रहा एवं अन्तिम दृष्टि सम्पत्ति के क्षेत्र में थी सो कुछ नदी में समा गयी ,कुछ बिक गयी ,कुछ परिजनों ने कब्जा कर ली ,कुछ विवाद में धन चला गया तो कुछ अपनों ने ले ली --अन्तिम सांस के समय अनुज और माँ ने वो भी धन खर्च नहीं किये जिसपर अधिकार था | माँ का भी धन अनुज ने समेट लिए बदले में माँ को भी शून्य हाथ लगा | वैसे अनुज का विवाह होते ही हम अलग हो गए -माता पिता हमारे साथ न आकर अनुज के साथ रहे | हमने 2003 से विशेष धन देना बन्द कर दिए | हमारे माता - पिता अनुज को धनाढ्य बनाना चाहते थे | मकान में किरायेदार रहने लगे ,रूपये व्याज पर चलने लगे | अनुज की प्रगति होने लगी | 2003 में मेरठ निवास अपना हुआ तो हम भी अपने बच्चों को सही शिक्षा देने में लग गए | मतृभूमि पर सभी परिजन हमें तिरस्कृत भाव से देखने लगे | अब कोई चाय सर्बत का भण्डारा नहीं होता था | बल्कि जब भी हम घर जाते तो हमारा सबसे ज्यादा तिरस्कार पिता ही करते थे | हम अपने पैसों से चाय भी पीते थे | मेरे कमरों में किरायेदार रहते थे वो पैसे भी पिता ही लेते थे ,उपज भी पिता ही लेते थे ,सभी परिजन पिता को चढ़ाते थे ,मेरी सहायता जो करता उससे माता पिता लड़ते थे | मेरी बेटियां बड़ी हो रही थी जब भी गांव जाते थे तो सबसे घटिया मांसाहार किरायेदार को रखते थे ,हमने कईबार पिता से कहा जब तक हम रहते हैं तो ऐसे किरायेदारों को मत रखो --वो कहते थे मेरी मर्जी हम कुछ भी करें | --भवन के अन्दर आने -जाने का रास्ता संकीर्ण था ,यह रास्ता मेरे हिस्से में था पर पिता नहीं चाहते थे सीढ़ी टूटे --बिना सीढ़ी टूटे रास्ता अलग नहीं हो सकता था | मकान हमारा था फायदा पिता लेते थे -जो पिता मुझे बहुत चाहते थे जबतक धन दिया हम अच्छे थे --धन देना बन्द किया सबसे बुरे हो गए | ननिहाल हो या ससुराल या फिर रिस्तेदार सभी हमारा उपहास उड़ाते थे कहते थे --माता पिता को नहीं देखते हो --यह शब्द मरने जैसा लगता था | हमारा राजयोग चल रहा था रोजगार बढियाँ था निवास मेरठ में ही मिल चूका था, धीरे -धीरे अपनी जिम्मेदारी को संभालते हुए आगे बढ़ रहे थे --पर मातृभूमि पर -माता पिता ,दीदी -जीजा ,अनुज के परिवार ,मामा -मामी सभी परिजन हमारे दुश्मन बन चुके थे | मुझे दो कन्या थी तो भगवान ने अनुज को भी दो कन्या दी | अगर माता पिता की कृपा से होता तो उसे पुत्र ही होता ---पर सबके जो माता पिता श्री हरी हैं उन्हें सब पता है | मैं धैर्य बांध चूका था पुत्र की कामना नहीं थी --पर कईबार माता पिता अपमानित कर चुके थे --तुझे पुत्र नहीं होगा | एकबार तो मेरे यजमान मेरठ में बोली -इतने बड़े पण्डित हो तो अपना ही पुत्र क्यों नहीं होता | बात मेरे साथ यह थी सन्तान तो हो सकती थी किन्तु दो पुत्रियों का पालन ही हम ठीक से नहीं कर पाये थे --अगर फिर पुत्री होती तो कहाँ से पालन करते --इस डर से अगली सन्तान की चाहत नहीं थी | --कभी -कभी शाप भी वरदान बन जाता है | --अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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