ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

ज्योतिष कक्षा भाग -9 -सूर्य और आकाश -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


जन्मपत्री बनाते समय गणना तो बाद में होती है -पहले बहुत सारी चीजें लिखीं जातीं हैं --हमारा प्रयास है आप समझें -कुण्डली बनाते समय -संवत ,शाके ,मास ,पक्ष -सूर्य की स्थिति और भी बहुत चीजें हैं क्यों लिखी जाती है --क्रम से समझाने का प्रयास करेंगें | ---अस्तु --

---खगोल में जो रिक्तता है ,वो ही 'आकाश कहलाता है | यह रिक्त और शून्य क्षेत्र अति व्यापक और विस्तृत है | भूगोल शास्त्रियों ने इस खगोल को क्रमशः तीन भागों में विभाजित किया है --{1 }-उत्तरी क्षेत्र ,--{2 }-मध्य क्षेत्र ,{3 }--दक्षिण क्षेत्र --| ---इस प्रकार सूर्य ,गति संक्रमण को बांधा है | --उत्तरी क्षेत्र में एक कल्पित रेखा खींची है --जिसे "कर्क रेखा "की संज्ञा दी है | ---मध्य क्षेत्र में  "विषुवत रेखा '  दक्षिण क्षेत्र में "मकर रेखा "के नाम से विश्रुत हैं | --यह तीनों कटिबंध सूर्य की गति के आधारभूत है | जब सूर्य त्तर दिशा की ओर संक्रमण करता है ,तो उत्तरायण और दक्षिण में जानें से उसे दक्षिणायन का प्रारूप दिया जाता है | 

----जन्मपत्री बनाते समय --उत्तरायण या दक्षिणायन का जिक्र होता है ---इससे क्या लाभ और हानि होती है इसकी चर्चा आगे कहीं करेंगें | --जबसे नेट के माध्यम से कुण्डली बनने लगी ,तब से ज्योतिष की गणित सीमित हो गयी है --फलित भी संस्कृत ग्रन्थों के आधार पर नहीं होता है --मेरा एक छोटा सा प्रयास है --आप मेरे द्वारा लिखें तमाम लेखों को पढ़कर बढियाँ ज्योतिषी बन सकते हैं --इसके लिए केवल क्रम से निःशुल्क लेखों को पढ़ते जाएँ --अगले भाग में अयन शब्द पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगें ---भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com



ज्योतिष कक्षा भाग -8 -सूर्य का महत्व -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


कोई भी लोक अथवा धरातल हो ,पृथ्वी के ऊपर हो या नीचे --सब स्थानों पर सूर्य -रश्मियों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है | ये सूर्य -रश्मियां रूप ,रस ,गंध ,माधुर्य एवं आकर्षण की विधायित्री ही नहीं ,अपितु जीवन परिपेक्ष्य में मानव को प्राणदायक विभूतियाँ भी प्रदान करती हैं | खनिज और धातु पदार्थों का निर्माण भी मार्तण्ड और विभाबसु सूर्य की क्षमा नामक रश्मि "किरण " से संस्पर्श से होता है | प्राचीन ऋषि -मुनियों ने सूर्य को वैद्यराज सिद्ध किया है | विटामिन "डी "-की कमी से होने वाले रोग सूर्य -रश्मियों में स्नान करने से पास नहीं फटकते | 

----निर्माण और संहारकारी गैस भी उत्पन्न करने वाली पूषन नामक सूर्य की किरणें ही हैं ,जो अणु -आयुध रूप में विनाशकारी महाभयावह संत्रास और विस्फोटन की महती और बलबती शक्तियां बनी हुई हैं | तेज और प्रकाश हमें सूर्य से ही प्राप्त होते हैं | यदि सूर्य न निकले , तो प्रकाश भी आविर्भूत न हो | सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में  अंधकार व्याप्त रहे | सूर्य का प्रकाश जगत के  नेत्र हैं | वायु की निष्पत्ति भी सूर्य ही है | सूर्य की कलाएं ही वायु को गति देती हैं | 

----सूर्य अग्निपुंज है | उसकी तीव्रता जब तिगवांसु बन जाती है , तो उसमें शक्ति का उद्भव होता है और फैलती है ,विस्तार और प्रसार के लिए मचलती है --उस समय अवस्था बड़ी विकत और भयावह होती है | उसके इस उग्र रूप को बवंडर वात्यचक्र और प्रलयंकर का नाम दिया गया है | सूक्ष्म गति में भी इसका प्रवेश है और स्थूल रूप में भी ! कोई  गुण ,तत्व और पदार्थ ऐसा नहीं है --जहाँ इसका अंग समाविष्ट न हो | 

----मेरे ज्योतिष के पाठकगण --ज्योतिष का सम्राट सूर्य है --कोई ग्रह तो कोई भगवान कहता है | ज्योतिष का वास्तविक आधार सूर्यदेव ही हैं --आगे सूर्य और आकाश पर चर्चा करेंगें ---भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com



बुधवार, 24 जनवरी 2024

ज्योतिष कक्षा भाग -7 -लोक - किसे कहते हैं --पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिष कक्षा का आज सप्तम दिवस है --ज्योतिष जगत में लोक  शब्द का अभिप्राय क्या है -पढ़ें -?

--अन्तरिक्ष और पृथ्वी जगत के तीन भाग माने गये हैं | वेदों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि मेघ ,विद्युत तथा नक्षत्रों का आक्रमण -प्रदेश -पृथ्वी से बहुत दूर है | इसी आधार पर पौराणिक ग्रंथों में जगत -"संसार " को लोक की संज्ञा दी गई है | उनमें वर्णित लोक निम्न -14 हैं --{1 }-भूलोक ,--{2 }-भुवर्लोक ,--{3 }-महर्लोक ,--{4 }-जनलोक ,--{5 }-सत्यलोक ,--{6 }-तपोलोक ,--{7 }-स्वर्गलोक  | 

---स्वर्ग ,मृत्यु {पृथ्वी } और पातालात्मक विभाग वेदों में नहीं मिलते | पुरातन ऋषि -मुनियों ने   ये लोक ऊपर के माने हैं | उनकी दृष्टि में नीचे के सात लोक इस प्रकार हैं ----{1 }-तल ,--{2 }-अतल ,--{3 ]-सुतल ,--{4 }--वितल ,--{5 }-तलातल ,--{6 }--रसातल ,--{7 }--पाताल  | 

--प्रिय ज्योतिष के पाठकगण ---ज्योतिष  एक शास्त्र है --छे शास्त्रों में एक ज्योतिष शास्त्र का भी स्थान या नाम है | एक ज्योतिषी को केवल व्यक्ति विशेष की गणना पर ही नहीं रहना चाहिए --सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड   जिसमें समाया हुआ है -उसे ज्योतिष कहते हैं -- आजकल -ज्योतिष ज्ञान केवल देश ,काल ,परिस्थिति तक ही सीमित हो रहा है --वसुधैव कुटुम्बकम को सार्थक बनाना है तो ज्योतिषी नहीं --खगोलशास्त्री बनें --इसके लिए क्रम से निःशुल्क सभी आलेखों को पढ़ते रहें --कोई बात समझ में नहीं आती है और आप छात्र हैं तो निःसंकोच समाधान प्राप्त करें | -भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com


मंगलवार, 23 जनवरी 2024

ज्योतिष कक्षा भाग -6 -प्रकृति - किसे कहते हैं --पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 ज्योतिष कक्षा  का छठा दिन है --विषय है प्रकृति किसे कहते हैं ?--ज्योतिष के दो भाग हैं --एक गणित  और दूसरा फलित --ज्यादातर छात्र --गणित की दुनिया में न जाकर फलित की दुनिया में  ज्योतिषी बनते है  | -- यह तो यह है --दोनों विषय -चाहे गणित हो या फलित सरल नहीं हैं  | अधूरा ज्ञान से आप धन तो कमा सकते हैं -किन्तु अपने ह्रदय पटक पर आप स्वयं को ठगा हुआ महसूस करेंगें ---हम चाहते हैं --ज्योतिष  की तमाम बातों को क्रम से पढ़ते रहें निःशुल्क -आप ऐसा ज्योतिषी बनें --जिसे खगोलशास्त्री कहते हैं | 

----प्रकृति --जड़ -जंगम ही प्रकृति है | इसके नव द्रव्य हैं --{1 }-पृथ्वी ,--{2 }-जल ,--{3 }-तेज ,--{4 }-वायु ,--{5 }-आकाश ,--{6 }--काल ,--{7 }--दिक -{दिशा },--{8 }-आत्मा ,---एवं --{9 }--मन ---इन नव द्रव्यों में प्रथम चार परमाणु रूप हैं -ये निराकार होते हुए भी इंद्रिय गम्य हैं | ये अपने गुणों से पहचाने जाते हैं और जब इनके ऊपर दिनकर {सूर्यदेव } का प्रभाव पड़ता है ,तो वह शान्त -अशान्त ,सुन्दर से असुन्दर ,मधुर से विषम और जीवन से मरण में परिणत हो जाते हैं | 

----आपने  -ज्योतिष का परिचय जाना ,सूर्यदेव  वैभव जाना ,संवत्सर को जाना ,ऋतुओं को जाना --आज -प्रकृति को जाना -- अगले भाग में लोक किसे कहते हैं पर परिचर्चा करेंगें ----जब आप सभी आलेखों को ठीक से पढेंगें --तो खुद एक खगोलशास्त्री बन जायेंगें --जिसपर देश को गर्व होगा --कोई शंका हो तो निःशुल्क हमसे  सम्पर्क कर  सकते हैं --ध्यान दें केवल छात्रों लिए निःशुल्क सेवा  है ---भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com



सोमवार, 22 जनवरी 2024

ज्योतिष कक्षा भाग -5 -ऋतु - किसे कहते हैं --पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिष कक्षा में आज पांचवा दिन ऋतु ज्ञान का है -इसको जाने  बिना ज्योतिष में आगे नहीं बढ़ सकते है --

---"ऋतु " शब्द युगवाची है | काल माषन गणना में इस शब्द का प्रयोग होता है | जिसको गति मित्र "सूर्य " देता है | अर्थात --प्रभापुंज दिवाकर ही ऋतुओं का जन्मदाता है | वेद ग्रन्थों में 6 ऋतुओं के नामों का उल्लेख है | किसी समय 3 और 5 ऋतू भी मानी जाती थीं | इस काल में हेमन्त और शिशिर दोनों को मिलाकर ही एक ऋतु मानते थे | 

---ऋतुएं निम्न हैं ---{1 }--बसंत ऋतु ,---{2 }---ग्रीष्म ऋतु ---{3 }--वर्षा ऋतु ---{4 }--शरद ऋतु ---{5 }--हेमन्त ऋतु ---{6 }--शिशिर ऋतू ----सभी ऋतुओं में बसन्त ऋतु को ही अधिक प्राथमिकता दी गई है | वेदों में बसंत ऋतु को ही ऋतुओं का मुख कहा गया है | --साल में 12 महीनें होते हैं -प्रत्येक ऋतु को दो माह का समय निर्धारित किया है पंचागकारों ने --इसकी चर्चा आगे करेंगें  | --अगले भाग में प्रकृति की चर्चा करेंगें --भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com


रविवार, 21 जनवरी 2024

ज्योतिष कक्षा भाग -4 -संवत्सर किसे कहते हैं --पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिष की चौथी पढ़ाई संवत्सर है --ये 60 होते हैं | --ज्योतिषियों के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी को कृतयुग का आरम्भ हुआ है | वैशाख शुक्ल तृतीया को त्रेता युग की प्रसूति हुई | माघ कृष्ण  अमावस्या को द्वापर का सूत्रपात हुआ और भाद्र कृष्ण त्रयोदशी को कलियुग का प्रादुर्भाव माना जाता है | शब्द मीमांसा शास्त्र के वेत्ताओं ने "संवत्सर " शब्द को भी युग शब्द का ही पर्यायवाची शब्द स्वीकार किया है | 

---संवत्सर के विषय में एक मुख्य बात यह है कि उत्तर भारत में प्रायः चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत्सर का प्रारम्भ मानते हैं ,किन्तु गुजरात +महाराष्ट्र  आदि दक्षिण भारत में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत्सर का प्रारम्भ मानते हैं | ---------तैत्तरीय ब्राह्मण ग्रन्थ में लिखा है कि अग्नि संवत्सर है | आदित्य परिवत्सर है | चन्द्रमा इदावत्सर और वायु अनुवत्सर है | आधुनिक प्रचलित संवत शब्द संवत्सर शब्द का अपभंश है | सम +वस्ति +ऋतवः --अर्थात  अच्छी ऋतू जिसमें है ,उस काल गणना के प्रमाण को संवत्सर कहते हैं | 

---ज्योतिष सीखने वाले पाठकों को यह भी जान लेना चाहिए कि जन्म -कुण्डली के प्रारम्भ में संवत्सर का निर्देश  रहता है | एक संवत्सर एक वर्ष का माना जाता है | संहिता के विद्वान गुरु मध्यम राशि के भोग काल को {जिसके बारे  में हम आगे विस्तार से  बताएंगें } संवत्सर कहते हैं | यह काल भी  एक वर्ष का माना जाता है | संवत्सर 60 रहते हैं --जिनका ज्ञान प्राप्त अंकतालिका के द्वारा किया जा सकता है ---1 -प्रभाव ,2 -विभव ,-3 शुक्ल ,-4 प्रमोद ,-5 प्रजापति ,-6 -अंगिरा ,-7 -श्रीमुख ,-8 -भाव ,-9 -युव ,-10 -धाता ,-11 -ईस्वर ,-12 बहुधाय ,-13 -प्रसाधि ,-14 -विक्रम ,-15 -वृष ,-16 -चित्रभानु ,-17 -सुभानु ,-18 -तारण ,-19 -पार्थिव ,-20 -व्यय ,-21 -सर्वजीत ,-22 -सर्वधारी ,-23 -विरोधी ,-24 -विकृति ,-25 -खर ,-26 -नन्दन ,-27 -विजय ,-28 -जय ,-29 -मंमथ ,-30 -दुर्मुख ,-31 -हेमलम्बी ,-32 -विलम्बी ,-33 -विकारी ,-34 -शार्वरी ,-35 -प्लव ,-36 -शुभकृत ,-37 -शोभकृत ,-38 -क्रोधी ,-39 -विश्वावसु ,-40 -पराभव ,--41 -प्लवंग ,-42 -कीलक ,-43 -सौम्य ,-44 -साधारण ,-45 -विरोधकृत ,-46 -परिधावी ,-47 -प्रमादी ,-48 -आनन्द ,-49 -राक्षस ,-50 -अनल  ,-51 -पिंगल ,-52 -काल ,-53 -सिधार्थी ,-54 -रौद्र ,-55 -दुर्मति ,-56 -दुंदभि ,-57 -रुधिरोदगारी ,--58 -रक्ताक्षी ,-59 -क्रोधन ,-60 -क्षय ----ये संवत्सर प्रत्येक वर्ष  आते या चलते हैं | 

----उपर्युक्त संवत्सरों का फलाफल ,विकास -ह्रास ,सूर्य की सशक्त गति और कला -वैभव पर आधारित है | किस संवत्सर पर क्या मौलिक और अचूक प्रभाव पड़ता है --उसका वर्णन अंयत्र करेंगें | विश्व का कोई भी राष्ट्र ऐसा नहीं है ,जिसकी धरती पर  दिननायक सूर्यदेव ने हलचल न मचा दी हो ,तथा समयोचित लाभ न उठाया हो ,इसकी अभी अर्चना न की हो ! लाभ का यह सार्वभौम नक्षत्र हरेक स्थान  श्रद्धा और परिनिष्ठा के साथ पूजा जाता है | अर्थात संसृति का ऐसा कोई महापुरुष नहीं --जो इसे महत्व न देता हो ,इसी के अभ्युदय से भारतवर्ष में संवत्सर परिपाटी का चलन हुआ | अंग्रेजी सन भी संवत्सर {संवत }  प्रतीक है | --आगे ऋतू ज्ञान की चर्चा करेंगें ---भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com


शनिवार, 20 जनवरी 2024

ज्योतिष कक्षा भाग -3 -युग किसे कहते हैं --पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिष के पाठकगण -अब मैं ज्योतिष की ऐसी किताब लिखने का प्रयास करने जा रहा हूँ --जो हम रहें या न रहें -यह ज्योतिष की लिखित मेरे द्वारा किताब किसी भी ज्योतिष जिज्ञासु व्यक्ति को लाभ देगी | बहुत ही सरल भाषा में 


ब्लॉग पोस्ट पर उपलब्ध रहेगी --इसे निःशुल्क कोई भी पढ़कर लाभ ले सकता है | -आज ज्योतिष ज्ञान का तृतीय दिवस है --आज जानें --युग शब्द का अर्थ क्या है एवं ज्योतिष में इसकी क्या जरुरत है | 

---कलि शयनो भवति सज्जीहानस्तु द्वापर ,उतिष्ठ स्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरंश्चरै वेति चरैवेति "--

{1  }-सोने वाला युग -कलियुग 

{2 }-बैठने वाला युग --द्वापर युग 

{3 }-उठने वाला युग --त्रेता युग 

{4 }--धूमने वाला युग -कृत युग 

---काल मान के अर्थ में युग शब्द वेदों में अनेको बार आया है | युग कितने हैं ? --इस पर विद्वानों में थोड़ा मतभेद अवश्य है | कहीं 5 कहीं 6 कहीं 4 और कहीं 3 का विवेचन है | सायणाचार्य का त्रियुगं शब्द का अर्थ -कृत ,त्रेता ,द्वापर तीन युगों का द्योतक हैं  | स्तोमों में चार और पांच की संख्या बतलायी है | वास्तविकता कुछ भी हो --युग ही काल के परिमाण दर्शक हैं और वह क्रमशः चार हैं ---

{1 }--सतयुग --17 लाख 28 हजार वर्ष 

{2 }-त्रेतायुग --12 लाख 96 हजार वर्ष 

{3 }-द्वापरयुग --8 लाख 64 हजार वर्ष 

{4 }--कलियुग --4 लाख 32 हजार वर्ष 

--आर्य ग्रंथों में इन युगों की आरम्भ --सृष्टि का उल्लेख भी मिलता है | -----ज्योतिष ज्ञान में पहला ज्योतिष परिचय जाना ,दूसरा सूर्यदेव का वैभव को जाना इसके बाद --युग को जाना --आगे संवत्सर की चर्चा करेंगें | --भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

सूर्य का वैभव -पढ़ें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


ज्योतिष का पहला पाठ आपने पढ़ा --ज्योतिष का वास्तविक परिचय | आज ज्योतिष जगत में दूसरी  पढ़ाई सूर्य देव से करें --सूर्यदेव को जानें बिना ज्योतिष को समझ नहीं सकते हैं | -------अस्तु --सूर्य को ही वैभव का कल्प तरु माना जाता है | ऋतुओं का जन्मदाता भी सूर्य ही है ,और वायु का पिता एवं जनक भी है | इसकी कोमल रश्मियों  से रस ,सुगन्धि और माधुर्य की उत्पत्ति होती है | इसी सूर्य के चारो ओर पृथ्वी भ्रमण करती है | पृथ्वी एक विशाल अन्तरिक्ष -यान है | यह अंतरिक्ष में से एक अति वेगवान गति -से संघर्षण करती है ,अर्थात --अपने शानदार पिंड पर हम सबको धारण किए हुए जब यह पृथ्वी अंतरिक्ष में चक्कर लगाती है ,तब यह सूर्य के चारो ओर वर्षावधिक दीर्घ वृत्तीय ग्रहपथ में धूमती है | किन्तु --सब समय सूर्य से यह एक ही समान अंतर पर नहीं रहती | कईबार यह अत्यन्त निकट होती है और अनेक बार सूर्य से बहुत दूर अंतरिक्ष में भटकने को चली जाती है | --{"वास्तव में सूर्य नहीं चलता है प्रत्युत पृथ्वी चलती है --"किन्तु पृथ्वी वासियों को पृथ्वी पर से यही दृष्टिगोचर होता है कि सूर्य चलता है "--}जबकि चन्द्रमा  पृथ्वी के चारो ओर भ्रमण करता है | चन्द्रमा के प्रकाश और प्रभाव से पृथ्वी की सारी वनस्पति पैदा होती है | समस्त जड़ी -बूटी ,पेड़ -पौधे सब चन्द्रमा से पोषण प्राप्त करते हैं | इसी कारण चन्द्रमा को औषधिपति कहा जाता है | समुद्र में ज्वार -भाटे का कारण भी चन्द्रमा ही है | इसी कारण पृथ्वीवासी चन्द्रमा से सदा प्रभावित होते हैं | 

---सूर्य मानव का सर्वप्रथम ध्यान आकर्षित करता है | नदी के तीव्र द्रव्य में जैसे भंवर पड़ते हैं --वैसे ही सूर्य के गरम द्रव्य में भी भंवर पड़ते हैं ,जो गरम वायु गैस के होते हैं | सूर्य की पृथ्वी से दूरी 9 करोड़ 30 लाख मील और सूर्य का व्यास 8 लाख 65 हजार मील है | पृथ्वी की अपेक्षा सूर्य बहुत बड़ा है | पृथ्वी का विषुवत वृत्तीय व्यास 7 ,927 मील है | पृथ्वी की परिधि 25 हजार मील है | भूमि का क्षेत्रफल 5 ,70 ,00 ,00 वर्ग मील है | पानी का क्षेत्रफल 14 ,00 ,00 ,000 वर्ग मील है और पृथ्वी का कुल भार 6 ,60 ,00 ,00 ,00 ,00 ,00 ,00 ,00 ,00 ,000 टन है | पृथ्वी वासियों को 1 लाख 86 हजार मील प्रति सैकेण्ड के हिसाब से सूर्य प्रकाश प्राप्त होता है | 

----ज्योतिष शास्त्री सूर्य को तारा की संज्ञा देते हैं | --तारा उसे कहते हैं ,जिसमें वास्तविक गति उपलब्ध न हो और वो स्थिर प्रायः हो | ज्योतिष के विद्वानों ने सूर्य को काल भी कहा है | काल का पर्याय युग है | युग शब्द की विवेचना ज्योतिष के अनेक ग्रंथों में हुई है | वेदत्रयी -संहिता काल में चार युगों की कल्पना है और उनकी सृष्टि दिव्या दिव्य भावों के आधार पर की गई है ---कलि शयनो भवति सज्जीहानस्तु द्वापर ,उतिष्ठ स्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरंश्चरै वेति चरैवेति "--अगले  भाग में युग शब्द की व्याख्या करें ---भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष के सभी आलेख इस लिंक पर निःशुल्क उपलब्ध हैं -khagolshastri.blogspot.com


गुरुवार, 18 जनवरी 2024

ज्योतिष की लिखित कक्षा शुरू क्रम से लेखों को पढ़ते रहे --ज्योतिषी झा मेरठ


 ज्योतिष की लिखित कक्षा शुरू क्रम से लेखों को पढ़ते रहे --ज्योतिष का परिचय पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ 

ॐ -इस संसार के हर मनुष्य को अपने भाग्य और भविष्य की चिंता रहती है | धनवान से धनवान व्यक्तियों को भी इस बात की चाह रहती है कि वह धनवान बनें | जो लोग प्रयत्न करके भी वांछित सफलता अपने जीवन में नहीं प्राप्त कर पाते वे भाग्य संवारने की चिंता से इंसान हजारों -हजार साल से ग्रस्त रहा है | प्राचीन काल के राजा -महराजाओं के दरबार में राजपुरोहित हुआ करते थे | उनके जरिये से ही राज -परिवार और दरबार के सभी मांगलिक कार्य सम्पन्न होते हैं | राजा के सिंहासन पर बैठने का शुभ-अशुभ ,युद्ध के लिए प्रस्थान की लग्न घडी आदि सभी प्रमुख मामलों में राज पुरोहित पर ही राजा और राजपरिवार को निर्भर रहना पड़ता था | वे राजपुरोहित अपने आपमें ज्योतिष ज्ञान का सम्पूर्ण भण्डार समेटे रहा करते थे | उन्हें अपने ज्ञान से सम्पूर्ण ब्रहाण्ड को व्यापक रूप में देखने की शक्ति थी | 

----प्राचीन काल में यह ज्ञान कुछ लोगों तक ही सीमित हुआ करता था | पर हमारे आचार्यों ,मनीषियों ,विद्वानों और ज्योतिषाचार्यों ने इस बात को समझा और अनुभव किया कि भारत की धरती पर अपनी ,पली -बढ़ी हुई ज्योतिष ज्ञान की विद्या कहीं सिमटते -सिमटते इतने कम लोगों के पास न रह जाए कि एक दिन वह  लुप्त प्रायः  हो जाए | इस संभावना को ध्यान में रखकर उन्होनें इस ज्ञान को लिखित रूप देना आरम्भ किया | भोजपत्रों पर पाण्डुलिपियों की शक्ल में इस ज्ञान को संचित किया जाने लगा | 

---उन आचार्यों और ज्योतिषाचार्यों की सूझ -बूझ का परिणाम है कि आज ज्योतिष ज्ञान हर किसी की पहुंच के भीतर का ज्ञान हो गया है | अब इसके लिए किसी खानदानी रूप से चले आ रहे पण्डित -ज्ञानी पर ही निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं रह गयी है | आम आदमी ,पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर ग्रह -नक्षत्रों की दशा ,चाल ,शुभ -अशुभ फल योग के बारे में ज्ञान प्राप्त कर अपने भाग्य और भविष्य के बारे में जानकारी स्वयं प्राप्त कर सकता है | 

-----मेरे जीवन का अन्तिम भाग चल रहा है --मेरे द्वारा लिखे हुए लेखों से न सिर्फ आपको सम्पूर्ण ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त होगा ,बल्कि आप ग्रहों की दशा ,गति ,चाल की सही जानकारी प्राप्त करके ,लग्न -मुहूर्त के आधार पर दूसरों की जन्म पत्री भी बना सकेंगें | 

---भविष्य को लेकर प्रत्येक मनुष्य के मन में कुछ न कुछ सवाल होते हैं ---जिनका जवाब पाने में मेरे ज्योतिष के लेख बहुत ही सहायक होंगें | इस ज्योतिष लेखों के द्वारा आप अपना भविष्य जान सकते हैं तथा अनर्थ की स्थिति में ज्योतिष द्वारा उसका निर्धारण भी कर सकते हैं | ज्योतिष विद्या भी विकास के नये -नये आयाम तय कर रही है | हमारे जीवन में ग्रहों का विशेष महत्व होता है | ग्रह अथवा नक्षत्र हमारे जीवन के घटना -दुर्घटना क्रम को संचालित करते हैं | इन ग्रहों के वशीभूत होकर ही हम चाहे अनचाहे में गलत और सही कार्य करते हैं --तो उनकी शान्ति के लिए ज्योतिष द्वारा कुछ उपचार भी संभव हैं | ग्रहों के शुभ और अशुभ होने का हम पर सीधा प्रभाव पड़ता है | संसार की प्रत्येक वस्तु ,जीव -जन्तु ,पशु -पक्षी और पेड़ -पौधों इत्यादि पर भी ग्रह अपना पूर्ण प्रभाव डालते हैं | यह बात शाट -प्रतिशत सत्य है कि निपुण ज्योतिषविद को इसके ज्ञान से सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड को व्यापक रूप में देखने का दृष्टिकोण प्राप्त है | इस ज्ञान से व्यक्ति को महत्ता प्राप्त होती है और वह घटनाओं का माहात्म्य अधिक योग्यता पूर्वक ग्रहण कर सकता है | उसका दृष्टिकोण विष्वव्यापी व सबका मंगल करने वाला हो जाता है | --भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष के सभी आलेख इस लिंक पर निःशुल्क उपलब्ध हैं -khagolshastri.blogspot.com




ज्योतिष में "मौसम " की विशेषता -पढ़ें ---खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


जैसा कि सभी जानते हैं कि पृथ्वी सूर्य के चारो ओर घूमती है और सूर्य के वारों और पृथ्वी की परिक्रमा के कारण मौसम बदलते रहते हैं । पृथ्वी की विशेष स्थिति 21 जून को देखने को मिलती है । उस समय उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु होती है तथा उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है -इसलिए दिन रात की तुलना में अधिक लंबे होते हैं । उत्तरी ध्रुव के निकट तो दिन 24 घंटों का होता है -इसके विपरीत उस समय दक्षिणी ध्रुव में सर्दियों का मौसम होता है ,क्योंकि दक्षिणी ध्रुव सूर्य के परे होता है और दिन रात की तुलना में छोटे होते हैं । दक्षिणी ध्रुव में निरंतर 24 घंटे की ही रात होती है । -----अस्तु ----इसके आलावा इस अवधि में सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्ध की सतह पर सीधी पड़ती है । विशेष रूप से कर्क रेखा पर लम्बे रूप में होती है । मकर रेखा पर उन दिनों सूर्य की किरण सीधी लंब रूप में न पड़कर ,कोण बनाती हुई पड़ती है । इससे उनका ताप {तेज }वहां पर कम मात्रा में पहुंचता है ।
--------22 दिसंबर को उत्तरी गोलार्ध में सर्दियों का मौसम एवं दक्षिणी गोलार्ध में गर्मियों का मौसम होता है । 22 दिसंबर तथा 21 मार्च को उत्तरी गोलार्ध में बसंत ऋतु होती है । उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दोनों ही सूर्य की ओर बराबर झुके होते हैं । इस तरह से दिन और रात हरेक जगह पर एक समान होती है । भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं -इस अवधि में दिन और रात की लम्बाई बराबर होती है ।नोट ---ज्योतिष अथाह सागर है जिसमें हमें डुबकी के साथ -साथ सभी बातों पर अत्यधिक ध्यान देना होता है तभी हम सच्चे ज्योतिषी बन सकते हैं और ज्योतिषी का प्रसार कर सकते हैं । --ॐ -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ--आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -khagolshastri.blogspot.com




बुधवार, 17 जनवरी 2024

ज्योतिष का संवत और हिजरी, ईस्वी सन -को जानने हेतु पढ़ें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


मुहम्मद पैगंबर ईस्वी सन 622 तारीख 15 के दिन मक्के मदीना आ गए थे -उस दिन से हिजरी सन की शुरुआत हुई । इसकी शुरुआत मौहर्रम मास की पहली तारीख से होता है । इनका वर्ष चांद मास का माना जाता है । अमावस्या के बाद जिस दिन पहला चन्द्र दर्शन होता है उस दिन को ही मास का पहला दिन माना जाता है । कारण चन्द्रदर्शन रात को ही होता है । अतः वार का प्रारम्भ भी रात को ही होता है । इनका वर्ष 354 का होता है। यह हिजरी सन चन्द्र वर्ष होने के कारण हरेक तीसरे वर्ष इनका मौहर्रम हमारे मास से पहले का होता है । इस तरह से 32 व 33 वर्ष पर इनके हिजरी सन का एक अंक बढ़ जाता है । --------पारसी सन ----जिसको ऐजदी जर्द सन पारसी भाषा में कहते हैं -का प्रारम्भ ईस्वी सन 630 में शुरू हुआ था । इनके मास 30 सावन दिन के होते हैं । अतः इनका सन सौर वर्ष से सम्बन्ध रखने के लिए प्रति वर्ष के अंत में 5 दिन अधिक मानते हैं ।
------मलमास -----अधिक मास संवत में सूर्य और चन्द्र के वर्षों के भेद से होता है सूर्य का वर्ष 365 दिनों से कुछ अधिक और चन्द्र वर्ष 354 दिन का होता है । इस कारण दोनों प्रकार के संवत वर्ष वर्ष में अंतर को सही रखने के लिए मलमास का प्रयोग विधान है अन्यथा कभी तो भाद्र का महीना पड़े -वर्षा ऋतु में तो कभी प्रचंड गर्मी में और कभी घोर जाड़े में --ऐसा न हो इसलिए दोनों प्रकार के वर्षों में 11 दिन के अंतर को पाटने के लिए मलमास या अधिक मास जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है की योजना कर दी गई है । अस्तु ------जब दो संक्रांति के बीच में एक चन्द्र मास पड़ जाता है -तो उसे अधिकमास कहते है । इस कारण उनके ताजिये और रोजे -चंद्रमास के हिसाब से कभी जाड़े में होते हैं तो कभी गर्मियों में ।-------नोट ज्योतिष की समस्त गणनाएं सूर्य एवं चन्द्रमा के आधार पर ही सम्भव है और संसार के सभी लोगों ने इनकी महत्ता दी है । चाहे कोई भी धर्म हो कोई भी भाषा हो -----देश हो या विदेश -सभी जगह -मान्यता सूर्यदेव और चन्द्रमा की अवश्य है । --ॐ -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ--आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -khagolshastri.blogspot.com



मंगलवार, 16 जनवरी 2024

ज्योतिष के मत से ग्रहों की उत्पत्ति कैसे हुई -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


आकाश के स्थिर तेजोगोल को तारे और अस्थिर अर्थात सूर्य की परिक्रमा करने वाले तेजोगोल को "ग्रह"कहते हैं । ग्रहों की संख्या -9 हैं -इस प्रकार से -सूर्य ,चन्द्र ,मंगल ,बुध ,गुरु ,शुक्र ,शनि ,राहु और केतु । -----अस्तु ----ज्योतिष और ज्योतिषियों के मत के अनुसार विधाता "ब्रह्मा "के मन में जब संसार की रचना की कामना हुई तो सर्वप्रथम उनके मन से चन्द्रमा और आकाश ,नेत्रों से सूर्य ,आकाश से वायु ,वायु से अग्नि ,ध्वनि ,स्पर्श ,रंग एवं गुण ,अग्नि से जल ,स्वाद आदि ,जल से भूमि ,सुगंध ,स्पर्श ,ध्वनि आदि ,इसी क्रम से दो ग्रह और पंचतत्व निर्मित हुए । इसके उपरांत अग्नि से मंगल ,भूमि से बुध ,जल से शुक्र ,वायु से शनि और आकाश से गुरु ऐसे पांच ग्रहों को जन्म दिया । ----भारतीय ज्योतिष में जिन्हें नक्षत्र या ग्रह कहकर पुकारा जाता है -उनमें एक नक्षत्र यानि सूर्य ,एक उपग्रह यानि चन्द्रमा ,पांच ग्रह यानि -मंगल ,बुध ,गुरु ,शुक्र ,शनि एवं दो अमूर्त अस्तित्व यानि राहु +केतु सम्मिलित हैं । राहु +केतु नाम से पुकारे जाने वाले अमूर्त स्थल वो स्थान है -जहाँ सूर्य के चहुं ओर पृथ्वी का दीर्घवृत्त और चन्द्रमा के दीर्घवृत्त को काटता है ।-अर्थात --एक छड़ी के दो छोरों की भांति दोनों दीर्घवृत्तों के ये संघर्ष स्थल सदैव एक दूसरे के आमने -सामने रहते हैं --इसलिए प्रत्येक जातक की जन्मकुण्डली में राहु और केतु परस्पर आमने -सामने घर में ही देखने को मिलते हैं । -----------दोस्तों ---विद्यमान ग्रहों के अलावा पाश्चात्य देश के धुरंधर आचार्य संशोधकों ने सन -1887 में हर्षल एवं सन 1846 में नेपच्युन और बाद में प्लूटो नामक ग्रहों की खोज की और इनका भी यथाबत स्थान दिया किन्तु प्राचीन भारतीय ज्योतिषीगणों नें ज्योतिषी गणना में इन ग्रहों को कोई स्थान नहीं दिया । भारतीय आचार्यों ने केवल पांच ग्रह ,एक नक्षत्र यानि सूर्य ,एक उपग्रह यानि चन्द्रमा और दो अमूर्त स्थलों राहु +केतु के अतिरिक्त अन्य किसी भी आकाशीय पिण्ड को मान्यता नहीं दी ।
--ॐ -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ--आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -khagolshastri.blogspot.com





सोमवार, 15 जनवरी 2024

सम्मुख "शुक्र "का विचार कब करें -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ-


जिस दिशा में 'शुक्र "सम्मुख एवं जिस दिशा में दक्षिण हो ,उन दिशाओं में बालक ,गर्भवती स्त्री तथा नूतन विवाहिता स्त्री को यात्रा नहीं करनी चाहिए ?यदि बालक यात्रा करे तो --विपत्ति पड़ती है ।नूतन विवाहिता स्त्री यात्रा करे तो --सन्तान को दिक्कत होती है ।गर्भवती स्त्री यात्रा करे तो --गर्भपात होने का भय होता है ।यदि पिता के घर कन्या आये तथा रजो दर्शन होने लगे तो --सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है ।----यथा --भृगु ,अंगीरा ,वत्स ,वशिष्ठ ,भारद्वाज -गोत्र वालों को सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है ।---सम्मुख "शुक्र "तीन प्रकार का होता है -----{1}-जिस दिशा में शुक्र का उदय हो ।---{2}--उत्तर दक्षिण गोल -भ्रमण वशात जिस दिशा शुक्र रहे ।---{3}--अथवा --कृतिका आदि नक्षत्रों के वश जिस दिशा में हो -उस दिशा में जाने वालों को शुक्र सम्मुख होगा ।---जिस उदय में हो -उस दिशा में यात्रा न करें ।-{1}-यदि पूर्व में शुक्र का उदय हो -तो पश्चिम और दक्षिण दिशाओं तथा नैरित्य तथा अग्निकोण विदिशाओं को जाना शुभ होगा ।{2}-यदि पश्चिम में उदय हो -तो पूर्व एवं उत्तर दिशाओं तथा ईशान ,वायव्य विदिशाओं में जाना शुभ रहेगा ।-{3}-जब गुरु अथवा शुक्र अस्त हो गये हों -अथवा सिंहस्त गुरु हो ,कन्या का रजो दर्शन पिता के घर में होने लगा हो ,अच्छा मुहूर्त न मिले तो --दीपावली के दिन कन्या पति के घर जा सकती है ।{4}--गुरु उपचय में हो ,शुक्र केंद्र में हो एवं लग्न शुभ हो तथा शुभ ग्रह से युक्त हो --तब स्त्री पति के घर की यात्रा कर सकती है ।{5}--जब चन्द्र रेवती से लेकर कृतिका नक्षत्र के प्रथम चरण के बीच में रहता है --तब तक शुक्र अन्धा हो जाता है --इसमें सम्मुख अथवा दक्षिण शुक्र का दोष नहीं लगता है ।{6}-एक ही ग्राम या एक ही नगर में ,राज्य परिवर्तन के समय -विवाह तथा तीर्थयात्रा के समय शुक्र का दोष नहीं लगता है ।--नोट समय का वेशक आभाव हो -किन्तु सम्मुख शुक्र का अवश्य विचार करके शुभ यात्रा करें ?"--ॐ |
खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ--आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -


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रविवार, 14 जनवरी 2024

मेरी आत्मकथा सच या व्यथा पढ़ें भाग -95 -ज्योतिषी झा मेरठ


 दोस्तों -अब जो भी लिखने का प्रयास कर रहा हूँ वो हर व्यक्ति का अन्तिम सच होता है --जिसे आप बालक हैं तो अभी यह बात अपनी घटना जैसी प्रतीत होगी | अगर युवा हैं तो प्रतिस्पर्धा जैसी सोच बनेगी या तिरस्कार की भावना पनपेगी | अगर प्रौढ़ हैं या जीवन के अन्तिम भाग में प्रवेश कर चुके हैं --तो यथार्थ समझ में आएगा | अस्तु --राजा गरीब भी हो जाय तो प्रवृत्ति वैसी ही रहती है --मैं राजयोग में जन्मा था-- यद्यपि मध्यम परिवार और अशिक्षित समाज था | फिर भी मुझे बिहार ,उत्तर प्रदेश और मुम्बई में शिक्षा मिली --इन तमाम जगहों पर खुद ही पहुंचा ,खुद ही आगे बढ़ा --न तातो न माता न बन्धुर न दाता --इसके लिए न तो किसी की सहायता ली न ही याचना की --सबसे बड़ी बात थी --कोई भांप नहीं सका -अपनी जिम्मेदारी को उठाते हुए अपने घर की भी जिम्मेदारी उठाई थी | जिसके साथ रहा उसका कर्ज उतारकर जिया | मेरा केवल एक ही शौक होता था -वस्त्र अच्छे होने चाहिए -भले ही पेट में रोटी हो या न हो | सदा एक ही  सोच रहती थी मेरे पिता को मुझसे कभी कष्ट न मिले | मेरे जीवन के दो मुख्य नायक हैं एक पिता- दूसरी पतनी -जब राहु की दशा चल रही थी 1980 से 1988 तक --तो मेरे मुख्य नायक पिता रहे | मेरे पिता का क्या स्वभाव और प्रभाव था यह संगति नहीं मिली मुझे --क्योंकि जब हम 10 वर्ष के हुए  तो अपनी शिक्षा का मार्ग खुद ढूंढा -श्री महर्षि महेश योगी संस्था झंझारपुर बाजार से पातेपुर जिला वैशाली तक | 1983 में पुनः लगमा आश्रम में पिता देकर आ गए थे --फिर कभी देखने नहीं गए | यहाँ मैं विद्वान कम चोर ,उचक्का ,संगतिहीन ज्यादा बना --यद्यपि यहाँ केवल मेरे आराध्य सरकार ही अच्छे थे --जिनकी छवि आज भी हृदय पटल पर अंकित है | इस आश्रम में ज्ञान की नीव बहुत ही मजबूत थी --पर भले ही मैं चोर था ,उचक्का था ,संगतिहीन था किन्तु मैं अपने आराध्य सरकार की तरह बनना चाहता था | मैं अपने पिता की तरह नहीं बनना चाहता था --क्योंकि मेरे पिताजी व्यापारी थे | पर पिता के लिए करना बहुत कुछ चाहता था | -जैसा कि मेरे साथ जन्मजात रहा -प्रभाव क्षेत्र और सगे -सम्बन्धियों से लाभ नहीं मिलना था --इसलिए -इस आश्रम में चोर,उचक्के और संगतिहीन व्यक्ति ज्यादा मिले --मेरा अनुभव है --संस्कृत के पाठशाला में ज्यादातर गरीब बच्चे जाते थे या जो घर में नहीं सुधरते थे उनको वहां माता पिता छोर आते थे --पर भारतीय संस्कृति में भले ही आश्रम ऐसे बच्चे जाते थे किन्तु आचार्य निष्णात होते थे --जिनकी वजह से चोर भी धार्मिक बन जाता था ,संगति हीन भी संस्कारवान बन जाता था | मैं जन्मजात तो चोर ही था --आश्रम की संगति और संस्कारों के प्रभाव से मैं ज्ञानी बना और संस्कारी बना | इस आश्रम में भिक्षाटन से राशन ,जलावन आता था --कईबार -बांस चोरी से काटकर लाते थे तब सभी छात्रों के लिए भोजन बनता था | कईबार -सब्जी ,उपले चुराकर  ले आता  था किसानों के-- क्योंकि तब सभी छात्रों के लिए भोजन बनता था | आज मैं ठीक राह पर चल रहा हूँ तो ये मेरे आराध्य सरकार का आशीर्वाद है | अपने पिता द्वारा दिए उपदेश को ही याद  रखे --हम अपने पिता की एक विशेष बात को सदा याद रखी --मेरे पिता चाहते तो गरीबी थी --हमसे नौकरी करबाते किन्तु वो सदा चाहते थे मैं पढू --भले ही मेरे घर में गरीबी रहे ,पिता से ज्यादा माँ का सान्निध्य मुझे मिला किन्तु माँ का नहीं हो सका न ही माँ मेरी व्यवहार से हो सकी | पिता की सुनी -सुनाई छवि मेरे ह्रदय पटल पर अंकित है --उनके लिए ही सदा जीता रहा | आगे की परिचर्चा आगे करूँगा --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ--आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -khagolshastri.blogspot.com


ज्योतिष जगत में आयु का निर्णय क्या सच है -पढ़ें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


यद्पि ज्योतिष अथाह सागर की भांति है जिसे मंथन के द्वारा ही समझा जा सकता है | छे शास्त्रों में ज्योतिष भी एक शास्त्र है जिसे -नेत्र या दर्पण के नाम से जाना जाता है | प्राचीन समय में जब जन्मकुण्डली का जब भूदेव निर्माण हाथों से करते थे तब आयु का निर्णय भी अपने -अपने क्षेत्रों के आधार पर करते थे ,समय बदला कंप्यूटर की कुण्डली बनने लगी ,कंप्यूटर में जन्मकुण्डली कितने पेज की चाहिए यह लोग जानने लगे, जबकि अंग्रेजी विज्ञान जगत में सभी चीजों को एकसाथ समाहित कर दिया गया --इसका प्रभाव यह हुआ कि हमें सच का पत्ता ही नहीं है असत्य की ओर बढ़ने लगे -जो मर्मज्ञ ज्योतिषी हैं वो आज भी अपने -अपने पंचांगों का ही सहारा लेते हैं | -----अस्तु ----भारतीय भूभागों में -उत्तरीय क्षेत्र में विंशोत्तरी महादशा चलती हैं -यहाँ के आचार्यों ने प्रत्येक व्यक्ति की उम्र 120 वर्ष मानी है --इसका अभिप्राय है किसी भी व्यक्ति के जीवन में जैसे बाल्यकाल ,युवा और बुढ़ापा के बाद जीवन का इतिश्री हो जाता है उसकी सीमा 120 वर्ष ही इस समय है --इसलिए यहाँ के लोगों को विंशोत्तरी महादशा से आयु निर्धारित होती है | ---पूर्वी भारत -में योगिनी दशा चलती है ---जिसका अर्थ है 64 वर्ष यानि प्रत्येक व्यक्ति की सही उम्र 64 वर्ष ही है इसके बाद दुबारा इस दशा की शुरुआत हो सकती है -जिसकी संख्या बहुत ही कम होती है | दक्षिणी भारत में --अष्टोत्तरी दशा की मान्यता आचर्यों ने दी है --जिसका अभिप्राय है --प्रत्येक व्यक्ति की उम्र --108 वर्ष ही संभव है अर्थात जीवन में इन्हौने भी माना किसी भी व्यक्ति के जीवन में कोई चीज दुबारा नहीं आती है | ---कंप्यूटर जगत ने इन तमाम बातों को प्रत्येक जन्मपत्री में एकसाथ प्रसारित कर दिया ,जिसकी वजह से पेज तो बहुत हो गए पर अभिप्राय नहीं बताया --इसकी वजह से ज्योतिषी अल्पज्ञानी हो गए ,अपना ज्ञान विस्मृत हो गया दूसरे का ज्ञान स्मरण रह गया |नोट ----हमने तमाम ज्योतिष के अनेक ग्रंथों का अवलोकन किया ,मेरा भी अनुभव रहा जितने ग्रन्थ उतने विचार नूतन ज्योतिष के ग्रंथों में केवल है प्राचीन जितने भी ग्रन्थ हैं उनके मत में कोई भिन्नता नहीं है --अतः 120 वर्ष की महादशा प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में तो नहीं आती है पर अभी भी एक आध व्यक्ति की उम्र इतनी हो सकती है और यह दशा प्रत्येक व्यक्ति की आयु का निर्णय सटिक देती भी है | ज्योतिष जगत में यह जाना जा सकता है कि किस व्यक्ति की कितनी आयु है किन्तु इसके लिए गणित और फलित दोनों ज्ञान की जरुरत होती है साथ उत्तम गुरु की कृपा की भी जरुरत होती हैं |-
--आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -



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शनिवार, 13 जनवरी 2024

मेरी आत्मकथा सच या व्यथा पढ़ें भाग -94 -ज्योतिषी झा मेरठ


मेरे प्रिय पाठकगण --अपनी जीवनी को तीन भागों में समेटने की कोशिश  है | पहला भाग -एक से तैतीस --यहाँ तक की जो वास्तविक कथा --उसको ऐसा समझें --किसी नाटक को देखते समय दर्शक के मन जो देखने से भाव उठता है --उन तमाम बातों को लिखने की कोशिश की है --यद्यपि  यह सच कथा थी | इन तमाम भागों को लिखते समय मन में  आक्रोश था ,शिकायत थी ,गिले -शिकवे थे --मुझे भी पता नहीं था हम क्या और क्यों लिख रहे हैं | सिर्फ मन में मरने की सोच थी --तमाम बातें मन में बसी हुई थीं --उन वेदनाओं को क्रोध रूपी लेखों में उतारने की कोशिश की थी | 2018 में -पिता चल बसे तो मैं स्वयं भावुक हो गया --मेरे मन की सारी पीड़ा स्वतः ही समाप्त हो गयी --उस स्थिति में फिर जीने की तमन्ना नहीं थी --अनायास मेरा स्वास्थ गड़बड़ हुआ -2018 ,19 ,20 तक स्वास्थ ठीक नहीं रहा --यह मृत्यु योग था --जिसे बाल्यकाल से जनता था --पर पता नहि कैसे बच गया --पूर्व के आलेखों के पापों को धोने के लिए --हमने शान्त भाव से --33 से 78 भाग जीवनी रूपी ज्ञान के लिखे --इन भागों का सही मायने में भाव यह है --जैसे किसी नाटक के सभी कलाकार रंग मंच पर अपनी -अपनी भूमिका निभाते हैं --नाटक पूर्ण होने पर एक साथ बड़े भाव से रहते हैं --ऐसा लगता ही नहीं है --कोई राम तो कोई ,रावण ,तो कोई सीता या अनन्त भूमिका के पात्र थे --सभी तन्मयता से भय मुक्त होकर एक साथ रहते भी हैं ढिठौली भी करते हैं --इतना ही नहीं अगले नाटक का रिहलसल भी करते हैं | जब मेरा मन शान्त था तो मुझे एक शास्त्री होने के नाते लगा --कोई किसी का शत्रु नहीं होता है -हर व्यक्ति की जीवनी होती है जिसे वो स्वयं नहीं जनता है | अगर माता पिता ,गुरुजन या जीवन में किसी का मार्गदर्शन सही मिल जाय तो व्यक्ति आगे ही बढ़ता रहता है --वो दोषारोपण नहीं करता है बल्कि विधि का विधान समझकर आगे बढ़ता है --यही मेरा भाव था | बहुत से लोग अविवेकी होकर बहुत कुछ खो देते हैं --अतः मैं जन्मा था तो राजयोग था ,फिर दरिद्र योग आया फिर राजयोग आया --अतः प्रत्येक के  जीवन में सुख -दुःख आते रहते हैं --विवेक से काम लेने से मार्ग सरल हो जाते हैं --यही हमने  कोशिश की है | अब मेरी   जीवनी का 78 से आगे अन्तिम भाग चल रहे हैं --इस भाग में --मैं पराम् राजयोग में जी रहा हूँ --यह काल खण्ड मेरा अन्तिम है | अभी शनि की दशा चल रही है --2014 से शरू हुई है 2033 तक रहेगी | इसके बाद भी बुध की दशा चलेगी यह भी राजयोग कारक है किन्तु मारकेश है | मेरे  स्वभाव और प्रभाव को कोई नहीं समझ सकता है क्योंकि -चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में है | मेरी वाणी और धन की क्षमता को कोई नहीं समझ सकता है --क्योंकि कन्या राशि में बुध शुक्र की युति है | मेरा कद -काठी को कोई नहीं समझ सकता है --क्योंकि सूर्य +मंगल लग्न में सिंह राशि में है | मेरे जीवन शैली में -शनि नीच का है जो सबकुछ तो देता है ,धन भी है ,भवन भी है सारे परिजन  हैं किन्तु फिर भी मैं अकेला हूँ | गुरु बृहस्पति तृतीय भाव में है --जिनकी वजह से पुत्र भी मिला ,दाम्पत्य सुख भी मिला ,परिजन भी मिले किन्तु --सबके बीच अपने आपको स्वभाव और प्रभाव की वजह से अकेला खड़ा पाता हूँ --ऐसा हर व्यक्ति के साथ होता है --इन्हीं  बातों को दर्शाना चाहता हूँ --मुझे लगता है --किसी नाटक के निर्माता को सब जानकारी होती -वो केवल आनन्द लेता रहता है --उसे न तो हर्ष होता है न ही विस्मय होता है --ऐसा ही हर व्यक्ति को अपने  जीवन में  होना चाहिए न ही हर्ष होना चाहिए न ही विस्मय होना चाहिए --केवल कर्तव्य पथ पर चलना चाहिए | --यही आत्मकथा सच या व्यथा है ---क्रम से सभी बातों को पढ़ते रहें --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ-आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -


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शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

अपनी -अपनी जन्म तिथियों के स्वभाव और प्रभाव जानें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 अपनी -अपनी जन्म तिथियों के स्वभाव और प्रभाव जानें ?--खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ-

ॐ ज्योतिष के दो प्रारूप हैं -गणित और फलित |-गणित को गणना के माध्यम से ही जाना जा सकता है ,किन्तु समय के आभाव के कारण कुछ जातक - अपनी कुंडली की जानकारी से वंचित रह जाते हैं | उन जातकों के हित के लिए और जिन जातकों को अपनी कुंडली की जानकारी उपलब्ध रहती है उन सभी के लिए भी--अपनी -अपनी जन्म तिथियों की जानकारी के द्वारा -अपने -अपने कष्टको दूर कर सकते हैं |------वैदिक प्रक्रिया में सात्विक बलिदानों के विधान बताये गए हैं-|-----जन्म चाहे शुक्ल पक्ष में हो या कृष्ण पक्ष में तिथिओं का फलित यथावत होता है |{१}-प्रतिपदा तिथि में जन्म हुआ हो तो -- स्वामी अग्निदेव हैं -कष्ट तिथि आपकी द्वादशी होगी --शक्कर एवं घी की आहुति देने से {हवन में }लाभ होगा |-दान आप -घी एवं अन्न का करें |{२}-द्वितीया तिथि में जन्म हुआ हो तो --आपके स्वामी -ब्रह्मा हैं,कष्दायक तिथि पंचमी रहेगी ,पायस{खीर }की आहुति देने से लाभ होगा,---भोजन का दान करने से सुख समृद्धि आएगी |{३}-तृतीया तिथि में जन्म हुआ हो तो - इष्टदेव -देवी हैं ,सप्तमी तिथि आपके लिए हानिकारक रहेगी ,घी और अन्न की आहुति से लाभ होगा ,-दान आप रक्तवस्त्र का करें -अत्यधिक प्रसन्नता मिलेगी ||{४}-चतुर्थी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो --इष्टदेव आपके गणेशजी हैं ,पूर्णिमा तिथि आपके लिए अहितकर रहेगी ,मिष्टान की आहुति देने से-प्रसन्नता मिलेगी ,रत्न मूंगा का दान से लक्ष्मी की प्राप्ति होगी ||{५}-पंचमी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपके नागदेव हैं ,षष्ठी तिथि आपके लिए अहितकर रहेगी ,खीर की आहुति से लाभ होगा ,दूध का दान से प्रसन्नता मिलेगी ||{६}-षष्ठी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपके कार्तिकजी हैं ,द्वादशी तिथि कष्दायक रहेगी आपके लिए ,मोदक की आहुति से लाभ होगा ,चित्रित वस्त्र का दान से उन्नति होगी आपकी ||{७}-सप्तमी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपके सूर्यदेव हैं ,अष्टमी तिथि में हानी होगी आपको ,खीर की आहुति से लाभ मिलेगा ,ताम्बे के पत्र का दान से लक्ष्मी की प्राप्ति होगी ||{८}-अष्टमी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो - इष्टदेव आपके शिव हैं ,त्रयोदशी तिथि हानिकारक रहेगी ,सामग्री { शाकल्य }की आहुति से लाभ होगा ,पीतवस्त्र का दान से पद और गरिमा मिलेगी |{९}-नवमी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपकी दुर्गा हैं ,तृतीया तिथि हानिकारक रहेगी ,मिष्ठान्न की आहुति से उन्नति होगी ,रक्तवस्त्र का दान से लाभ होगा |{१०}-दशमी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपके यमदेव हैं ,दशमी तिथि आपके लिए अहितकर रहेगी,शाकल्य की आहुति से उन्नति होगी ,नीलवस्त्र का दान से रोग शोक नहीं होंगें ||{११}एकादशी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो --आपके इष्टदेव विस्वेदेव हैं , सप्तमी तिथि हानिकारक रहेगी ,मोदक की आहुति से लाभ होगा ,पीतवस्त्र का दान से उन्नति होगी |]१२} द्वादशी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो -इष्टदेव आपके विष्णुदेव हैं ,सप्तमी तिथि हानिकारक रहेगी ,मिष्ठान की आहुति से लाभ होगा ,स्वेत्वस्त्र का दान से उन्नति होगी |{१३}त्रयोदशी तिथि में आपका जन्म हुआ हो तो-इष्टदेव आपके कामदेव हैं ,दशमी तिथि हानिकारक रहेगी ,दही और शर्करा की आहुति से लाभ होगा ,स्वर्ण का दान से राजयोग बनेगा |{१४}-चतुर्दशी तिथि में जन्म हुआ हो तो -- इष्टदेव आपके शिव हैं ,अमावस तिथि हानिकारक रहेगी ,शाकल्य की आहुति से लाभ होगा,रजत का दान या अभिषेक से उन्नति होगी ||{१५}पूणिमा तिथि में जन्म हुआ हो तो -आपके इष्टदेव चन्द्रमा हैं ,दही का दान से लाभ होगा ,चंडी का दान से उन्नति होगी |{१६}-अमावस तिथि में जन्म हुआ हो तो --इष्टदेव आपके पितर हैं,तृतीया तिथि आपके लिए अहितकर रहेगी ,पका अन्न की आहुति से लाभ मिलेगा {खीर },सुन्दर भूदेव को भोजन करने से लाभ होगा ||--------सभी मित्र बंधू अपनी -अपनी तिथि में जन्म के अनुसार प्रयोग करके देखें अति लाभ होगा |



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बुधवार, 10 जनवरी 2024

संवत -2072 अर्थात सन 2015 की विशेषता -पढ़ें --कभी यह आलेख लिखा था -ज्योतिषी झा मेरठ




 संवत -2072 अर्थात सन 2015 की विशेषता -पढ़ें --कभी यह आलेख लिखा था -ज्योतिषी झा मेरठ

---बृहस्पतिर्यदा कर्के स्वल्पं मेघः प्रवर्षति राजा भीविग्रहश्चैव दुर्भिक्षम तत्र जायते । । ---श्री संवत 2072 का प्रारम्भ 20 /03 /2015 शुक्रवार के दिन 15 /05 पर कर्क लग्न में होगा । तत्कालीन ग्रहों  स्थिति  के अनुसार  भारत की प्रभावित राशि कर्क लग्न +लग्नेश सभी तरह से बलवान होने से भारत माता का विस्व में ओहदा बढ़ेगा । ---संवत -2072 -अर्थात -2015 के ज्येष्ठ{मई } ,आषाढ़{जून } ,भाद्रपद{सितम्बर } और मार्गशीर्ष{नवम्बर } में विशेष उपद्रव होंगें । भारतीय वर्ष की कुण्डली के आकलन से विदित होता है कि भारत के पश्चिमी भूभाग -भुज ,कछ एवं राजस्थान के पश्चिमी भाग में अपद्रवी कोहराम मचा सकते हैं । शनि की दृस्टि से मई ,जून ,सितम्बर ,नवंबर ,दिसंबर -2015 एवं जनवरी 2016 में भारतीय क्षेत्रों में उपद्रवी से बचने के लिए विशेष सावधानी बरतनी पड़ेगी । राजतन्त्र के राजा सूर्य इस संवत -2072 में चतुर्ग्रही योग में केतु से पीड़ित हैं -अतः सरकार के विरोधी सक्रीय निरंतर रहेंगें । देश के प्रभावी नेता संकट के घेरेमें आ सकते है । दिनांक -14 /04 /2015 वैशाख कृष्ण पक्ष दशमी तिथि मंगलवार के दिन 13 /47 पर सूर्यदेव अश्विनी नक्षत्र मेष राशि में प्रवेश करेंगें । इस वर्ष सौर वर्ष की शुरुआत भी कर्क लग्न से हो रही है ---इसके अनुसार सूर्यदेव पाप ग्रहों से पीड़ित हैं और विस्व कुण्डली में सुख का देवता शुक्र स्वग्रही आय भाव में विराजमान हैं  जो वर्ष के राजा शनि से दृष्ट सम्बन्ध बना लिया है ---अतः शुक्र तामसी वृति वाले राक्षसों का गुरु है -इस कारण  इस वर्ष असत्कर्मचारी हिंसक वृत्तिवालों को सर्वाधिक लाभ मिलेगा । इस्लाम बाहुल्य देश आपस में उलझते रहेंगें -{इससे इनको बचना चाहिए } ---शनि के विषय में यह उक्ति है --"शनैश्चरै भूमिपतौ सकृज्जलं प्रसूत रोगैः परिपीडयते जनाः । शुद्धं नृपाणां गत तस्करादयैर भ्रमन्ति लोका छुधिताश्च देशान । । अर्थात शनि सौर जगत्कुण्डली के ज्ञान भाव में बैठा है । विस्व की सात्विक सोच को ग्रहण लगायेगा । सभी देश अपनी -अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित तो रहेंगें ही पर एक दूसरे पर हावी होने के लिए हथियारों की प्रमुखता भी देंगें । बारूद की ढेर पर खड़ा विस्व समुदाय विस्व युद्ध की पुकार करेंगें । --कर्क राशि में उच्च का गुरु 14 /07 /2015 तक भारत एवं भारतीय जनता पार्टी के लिए अनुकूल रहेगा । खेल जगत एवं विज्ञानके क्षेत्र में मान सम्मान देश का बढ़ेगा । गुरु ग्रह की कृपा से भारत एवं भारतीय उन्नति के पथ पर अग्रसर रहेंगें । --------आगे श्री हरि कृपा --भवदीय ----खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ ----ॐ --ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को जानने हेतु इस लिंक पर पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut


यूरोपीय देशों की ज्योतिषीय स्थिति 2018 -जानें -कभी यह आलेख लिखा था -ज्योतिषी झा मेरठ


 यूरोपीय देशों की ज्योतिषीय स्थिति 2018 -जानें -कभी यह आलेख लिखा था -ज्योतिषी झा मेरठ

---1 /1 /2018 से दिसम्बर 2018 तक की ज्योतिषीय भविष्यवाणी की बात करें तो --यूरोपीय कुण्डली ग्रहस्थिति एवं गोचर ग्रहों के अनुसार -अमेरिका ,रूस ,ब्रिटेन ,फांस ,जर्मनी आदि देशों में परमाणु के साथ मारक अस्त्र -शस्त्रों के विपरीत आवाज उठेगी | मुस्लिम देशों -अफगानिस्तान ,पाक अधिकृत कश्मीर एवं पाकिस्तान में पनप रहे इस्लसामिक स्टेट के उग्रवाद के विरुद्ध देशों का एक संगठन खड़ा होगा , किन्तु आंतरिक तौर पर बड़े देश शस्त्र -अस्त्रों के निर्माण में उलझे रहेंगें | क्योंकि उत्तरी कोरिया आदि के तानाशाह बड़े राष्ट्रों के लिए एक चेतावनी के रूप में खड़े रहेंगें | शनि -सूर्य की चंद्र पर दृष्टि एवं मंगल की केतु पर दृष्टि समस्याओं के समाधान में बाधक रहेगी | -----13 /1 /2018 को शुक्र मकर में आयेगा और 14 /01 /18 को सूर्य भी मकर राशि में प्रवेश कर शनि +केतु के साथ मेल करेगा | इस समय सूर्य ,शुक्र ,केतु पर मंगल की दृष्टि भी है | अतः इस समय उग्रवाद से या किसी हादसे में किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति की हत्या या निधन हो सकता है | कहीं उग्रवाद द्वारा भयंकर काण्ड ,भूकम्प ,तूफान ,ज्वालामुखी विस्फोट ,समुद्री तूफान आदि से जनधन हानि होगी |---7 /03 /2018 को मंगल धनु राशि में प्रवेशकर शनि के साथ एकराशि सम्बन्ध बनायेगा --यह स्थिति 30 /04 /2018 तक प्रभावी रहेगी | ---अस्तु ---यह स्थिति विश्व में युद्धपरक वातावरण एवं अघटित घटनाओं ,प्राकृतिक उत्पात ,यान -दुर्घटनाओं एवं प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञों के लिए उत्तम नहीं है | प्रकृतिक के दोहन से तथा अन्य पर्यावरण सम्बंधित समस्यायें विश्व में संकटमय स्थिति पर विचार करने के लिए विवश करेंगीं | ------7 /03 /2018 के बाद 2 /05 /2018 तक यूरोपीय देशों में अघटित या अप्रत्याशित दुःखद घटनाएं एवं जनधन हानि के योग भी बन रहे हैं | कहीं सीमाप्रांतों पर सशस्त्र ,सैन्य संघर्ष ,कहीं प्राकृतिक उत्पात या कहीं आंतरिक क्रांति से अशान्ति उत्पन्न होगी | नेतृत्व चिंतित्व या किंकर्तव्य विमूढ़ रहेगा | किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को पद त्याग करने पर विवश होना पड़ेगा | ----2 /05 /2018 से मंगल मकर उच्च में आकर राहु के साथ समसप्तक योग बनाएगा | इसी बीच 14 /15 मई से 8 जून तक शुक्र -शनि का भी समसप्तक योग चलेगा एवं 6 /11 /2018 से 23 /12 /2018 तक लगभग शनि अपने शत्रु ग्रह मंगल पर विशेष दृष्टि रखेगा ----अभिप्राय यह है ----कथित समयावधियों में विश्व के प्रमुख देशों में भारी उलट -फेर एवं अघटित घटनाओं या प्राकृतिक प्रकोप या उग्रवादियों के जघन्य अपराधों से भारी अशान्ति बनेगी | इस समय जनता एवं शासकों को भी सुरक्षा की दृष्टि से सावधान रहना चाहिए | --भवदीय ----खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ ----ॐ --ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को जानने हेतु इस लिंक पर पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut





खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...