ज्योतिष कक्षा का आज सप्तम दिवस है --ज्योतिष जगत में लोक शब्द का अभिप्राय क्या है -पढ़ें -?
--अन्तरिक्ष और पृथ्वी जगत के तीन भाग माने गये हैं | वेदों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि मेघ ,विद्युत तथा नक्षत्रों का आक्रमण -प्रदेश -पृथ्वी से बहुत दूर है | इसी आधार पर पौराणिक ग्रंथों में जगत -"संसार " को लोक की संज्ञा दी गई है | उनमें वर्णित लोक निम्न -14 हैं --{1 }-भूलोक ,--{2 }-भुवर्लोक ,--{3 }-महर्लोक ,--{4 }-जनलोक ,--{5 }-सत्यलोक ,--{6 }-तपोलोक ,--{7 }-स्वर्गलोक |
---स्वर्ग ,मृत्यु {पृथ्वी } और पातालात्मक विभाग वेदों में नहीं मिलते | पुरातन ऋषि -मुनियों ने ये लोक ऊपर के माने हैं | उनकी दृष्टि में नीचे के सात लोक इस प्रकार हैं ----{1 }-तल ,--{2 }-अतल ,--{3 ]-सुतल ,--{4 }--वितल ,--{5 }-तलातल ,--{6 }--रसातल ,--{7 }--पाताल |
--प्रिय ज्योतिष के पाठकगण ---ज्योतिष एक शास्त्र है --छे शास्त्रों में एक ज्योतिष शास्त्र का भी स्थान या नाम है | एक ज्योतिषी को केवल व्यक्ति विशेष की गणना पर ही नहीं रहना चाहिए --सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जिसमें समाया हुआ है -उसे ज्योतिष कहते हैं -- आजकल -ज्योतिष ज्ञान केवल देश ,काल ,परिस्थिति तक ही सीमित हो रहा है --वसुधैव कुटुम्बकम को सार्थक बनाना है तो ज्योतिषी नहीं --खगोलशास्त्री बनें --इसके लिए क्रम से निःशुल्क सभी आलेखों को पढ़ते रहें --कोई बात समझ में नहीं आती है और आप छात्र हैं तो निःसंकोच समाधान प्राप्त करें | -भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com

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