ज्योतिष की चौथी पढ़ाई संवत्सर है --ये 60 होते हैं | --ज्योतिषियों के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी को कृतयुग का आरम्भ हुआ है | वैशाख शुक्ल तृतीया को त्रेता युग की प्रसूति हुई | माघ कृष्ण अमावस्या को द्वापर का सूत्रपात हुआ और भाद्र कृष्ण त्रयोदशी को कलियुग का प्रादुर्भाव माना जाता है | शब्द मीमांसा शास्त्र के वेत्ताओं ने "संवत्सर " शब्द को भी युग शब्द का ही पर्यायवाची शब्द स्वीकार किया है |
---संवत्सर के विषय में एक मुख्य बात यह है कि उत्तर भारत में प्रायः चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत्सर का प्रारम्भ मानते हैं ,किन्तु गुजरात +महाराष्ट्र आदि दक्षिण भारत में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत्सर का प्रारम्भ मानते हैं | ---------तैत्तरीय ब्राह्मण ग्रन्थ में लिखा है कि अग्नि संवत्सर है | आदित्य परिवत्सर है | चन्द्रमा इदावत्सर और वायु अनुवत्सर है | आधुनिक प्रचलित संवत शब्द संवत्सर शब्द का अपभंश है | सम +वस्ति +ऋतवः --अर्थात अच्छी ऋतू जिसमें है ,उस काल गणना के प्रमाण को संवत्सर कहते हैं |
---ज्योतिष सीखने वाले पाठकों को यह भी जान लेना चाहिए कि जन्म -कुण्डली के प्रारम्भ में संवत्सर का निर्देश रहता है | एक संवत्सर एक वर्ष का माना जाता है | संहिता के विद्वान गुरु मध्यम राशि के भोग काल को {जिसके बारे में हम आगे विस्तार से बताएंगें } संवत्सर कहते हैं | यह काल भी एक वर्ष का माना जाता है | संवत्सर 60 रहते हैं --जिनका ज्ञान प्राप्त अंकतालिका के द्वारा किया जा सकता है ---1 -प्रभाव ,2 -विभव ,-3 शुक्ल ,-4 प्रमोद ,-5 प्रजापति ,-6 -अंगिरा ,-7 -श्रीमुख ,-8 -भाव ,-9 -युव ,-10 -धाता ,-11 -ईस्वर ,-12 बहुधाय ,-13 -प्रसाधि ,-14 -विक्रम ,-15 -वृष ,-16 -चित्रभानु ,-17 -सुभानु ,-18 -तारण ,-19 -पार्थिव ,-20 -व्यय ,-21 -सर्वजीत ,-22 -सर्वधारी ,-23 -विरोधी ,-24 -विकृति ,-25 -खर ,-26 -नन्दन ,-27 -विजय ,-28 -जय ,-29 -मंमथ ,-30 -दुर्मुख ,-31 -हेमलम्बी ,-32 -विलम्बी ,-33 -विकारी ,-34 -शार्वरी ,-35 -प्लव ,-36 -शुभकृत ,-37 -शोभकृत ,-38 -क्रोधी ,-39 -विश्वावसु ,-40 -पराभव ,--41 -प्लवंग ,-42 -कीलक ,-43 -सौम्य ,-44 -साधारण ,-45 -विरोधकृत ,-46 -परिधावी ,-47 -प्रमादी ,-48 -आनन्द ,-49 -राक्षस ,-50 -अनल ,-51 -पिंगल ,-52 -काल ,-53 -सिधार्थी ,-54 -रौद्र ,-55 -दुर्मति ,-56 -दुंदभि ,-57 -रुधिरोदगारी ,--58 -रक्ताक्षी ,-59 -क्रोधन ,-60 -क्षय ----ये संवत्सर प्रत्येक वर्ष आते या चलते हैं |
----उपर्युक्त संवत्सरों का फलाफल ,विकास -ह्रास ,सूर्य की सशक्त गति और कला -वैभव पर आधारित है | किस संवत्सर पर क्या मौलिक और अचूक प्रभाव पड़ता है --उसका वर्णन अंयत्र करेंगें | विश्व का कोई भी राष्ट्र ऐसा नहीं है ,जिसकी धरती पर दिननायक सूर्यदेव ने हलचल न मचा दी हो ,तथा समयोचित लाभ न उठाया हो ,इसकी अभी अर्चना न की हो ! लाभ का यह सार्वभौम नक्षत्र हरेक स्थान श्रद्धा और परिनिष्ठा के साथ पूजा जाता है | अर्थात संसृति का ऐसा कोई महापुरुष नहीं --जो इसे महत्व न देता हो ,इसी के अभ्युदय से भारतवर्ष में संवत्सर परिपाटी का चलन हुआ | अंग्रेजी सन भी संवत्सर {संवत } प्रतीक है | --आगे ऋतू ज्ञान की चर्चा करेंगें ---भवदीय निवेदक -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष सीखनी है तो ब्लॉकपोस्ट पर पधारें तमाम आलेखों को पढ़ने हेतु -पधारें --khagolshastri.blogspot.com

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