हमारे प्रिय पाठकगण - 2017 में -मेरा कल आज और कल लिखने की कोशिश की थी --तब केवल आक्रोश था ,उद्वेग था ,मन पर नियंत्रण नहीं था --अनन्त माता पिता ,परिजनों से शिकायत थी,तब हमने 33 भाग लिखे थे | 2018 --में पिता के देहावसान के बाद मेरा भाव बदला तो अपनी जीवनी रूपी मात्र एक अस्त्र था जो व्यक्तिगत मेरा था --उससे हम आप सभी का दिल जीतना चाहते थे | --इसमें उन तमाम बातों को हूबहू लिखने का प्रयास किया -जो केवल सच पर आधारित थे --33 भाग से 55 भाग तक | अब 2023 में मुझे लगा --जीवनी व्यक्गित सबकी होती है ,बहुत लिखकर समझाने का प्रयास करते हैं तो कुछ दिल में ही रखकर जीते रहते हैं या चले जाते हैं | --वस्तुतः --मानव से बड़ा ढीठ प्राणी कोई हो ही नहीं सकता है -वो लोभ ,अर्थ ,काम ,मद और मोह से बच ही नहीं सकता है --इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अनन्त प्रकार की अपनी -अपनी भूमिका बनाता है ---उससे व्यक्तिगत मैं भी बाहर नहीं आ सका -भले ही मैं ये कहूं ये अच्छा था वो बुरा था --सच तो यह है --प्रत्येक व्यक्ति की जो चार अवस्था होती है --समयानुसार हर व्यक्ति में बदलाव आता रहता है --कभी व्यक्ति समाज से सीखता है ,कभी प्रकृति से सीखता है ,कभी व्यक्ति क्षेत्रों से सीखता है --तो कभी व्यक्ति पूर्वजों से सीखता है | मैं भी बालक था तो कुछ और अनुभव था ,युवा हुआ तो कुछ और अनुभव हुआ ,प्रौढ़ हुआ तो कुछ और तजुर्बा हुआ --जब हम -2020 में 50 वर्ष के हुए --उसके बाद स्वतः ही बहुत बदलाव आया --जो हमने पूर्वजों से सीखा और हमें लगा --अब जानें की तैयारी करनी चाहिए -उसके लिए वैसे ही तैयार होना चाहिए --जैसे मानव बनकर आये थे अनन्त आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए छल -प्रपंच न जाने ब्राह्मण होकर ,एक शास्त्री होकर --जिनसे समाज कुछ सीखता है -बहुत सारे तर्क और कुतर्कों के सहारे अपने आप को सही दिखाने का प्रयास किया | वास्तव में --मानव देह मोक्ष की प्राप्ति के लिए मिली है किन्तु --जीवन में व्यक्ति इस बात को जानते हुए भी इतना लाचार हो जाता है --चाह कर भी बच नहीं सकता है --यह बात --बाल्यकाल ,युवावस्था में समझ में नहीं आती है --जब आती है तब वो इस योग्य नहीं रहता है | मुझे लगता है -हमने जो बातें लिखी हैं या कहीं हैं या जो कहने का अभिप्राय है --वो हर व्यक्ति के काम आ सकती है -हो सकता है --अवस्था के कारण इस कथा को कोई सुख -दुःख समझे ,कोई अपनी तरह की कथा समझे ,कोई राग द्वेष की बात समझे -अनन्त प्रकार के लोग होते हैं --सभी अपना -अपना तर्क लगाते होंगें --किन्तु वास्तविकता यह है -ज्योतिषी हूँ- तो मुझे लगा है --जीवन में ग्रहों के खेल निराले हैं -जिनका प्रभाव जन -जन पर पड़ता है | वास्तव में किसी का कोई शत्रु नहीं है --इसे आप ऐसे समझें --जैसे नाटक में सभी पात्र एक साथ रहते हैं --किन्तु रंग मंच पर आकर सभी अपनी -अपनी भूमिका निभाने लगते हैं --फिर मण्डली में सभी एक जैसा हो जाते हैं --तब न कोई रावण होता है न राम ,न सीता होती है --बस सभी नाटक मण्डली के कलाकार होते हैं --यही बातों को दर्शाने का प्रयास कर रहा हूँ | --अब मैं उन्हीं बातों को समझाने का प्रयास करूँगा --जो आपको करना चाहिए --भवदीय निवेदक --
-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut