दोस्तों -आजकल बड़े लोगों पर जब आक्षेप लगता है --तो पहला हर व्यक्ति का बिचार होता है --इतने बड़े होकर ऐसा गलत कार्य कैसे किया | मेरे जीवन में ऐसा क्षण 2020 में आया जब पिता नहीं थे और हम नाना बन चुके थे -दो भाईयों के बीच भवन का बटवारा होना था | अनुज को कोई दिक्क्त नहीं थी -जगह हमारी थी -उसके सभी परिजनों [लोगों }का आना -जाना वहीँ से होता था | हमारी जमीन होते हुए भी दीवाल नहीं बना सकते थे | शास्त्र कहते हैं -मातृदेवो भव --किन्तु कुण्डली में चतुर्थ भाव का स्वामी मंगल लग्न में सूर्य +केतु साथ बिराजमान हैं | इन मंगल +सूर्य की वजह से मुझे तीन भवन प्राप्त हुए --किन्तु केतु की वजह से माँ का स्वभाव मुझसे मेल नहीं खाता है --अतः माँ का एक निर्णय मुझे सुखी बना सकता था --किन्तु पिता की सहमति होते हुए भी --माँ की वजह से घर टूट गया ,भाई -भाई युद्ध करते रहे --माँ देखती रही ,समाज हँसता रहा ,रिस्तेदार तालियां बजाते रहे --केवल मरना मेरा होता था --क्योंकि मैं शिक्षाविद था | आज हमारे बच्चों को मेरे प्राण की जरुरत हो तो हँसते -हँसते दे देंगें --किन्तु किसी के हम भी बच्चे थे --मुझे भी तो माता पिता ने ऐसे ही पाले होंगें --फिर यह दरार क्यों आयी ---मुझे लगता है --पूर्व की अपेक्षा आज के माता पिता बड़े ही दयालु होते हैं | मेरे घर में कोई कमी नहीं थी --दीदी ,अनुज और मैं सभी को ईस्वर ने जरुरत से ज्यादा धन और सुख दिए --किसी को कोई कमी नहीं किन्तु फिर भी मेरा घर --जिस घर में --एक ही माँ के उदर से जन्मे ,एक साथ पले -बढे --सभी को एक ही शिक्षा दी गयी --सच बोलना चाहिए ,किसी का नहीं लेना चाहिए ,परिश्रम से कमाना चाहिए | बाल्य्काल हमारा दरिद्र योग में बीता था --दीदी ,अनुज और मैं तीनों ने यथावत दुःख देखे तो यथावत सुख भी देखे --फिर जब धन आया तो प्रेम कहाँ चला गया | हम दुनिया के सामने झुक सकते हैं किन्तु --अपनों के सामने नहीं झुक सकते हैं | आजकल यह दशा मेरे घर की नहीं है --यह स्थिति घर -घर में है | मेरे बिचार से बड़ा भाई पिता की तरह धर्म निभाते -निभाते चले जाते हैं ,उसके भाग्य में शायद किसी का होना नहीं लिखा रहता है ,उसे -परिजन तो अपमान करते ही हैं --वो अपने बच्चों के भी नहीं होते हैं | खेर--- मेरी कुण्डली में शनि की दृष्टि तृतीय भाव पर थी साथ ही गुरु देव भी यही विराजमान थे --शनि की दशा में मुझे यही पुरस्कार मिलना था | जितने रूपये लगाकर हमने बटबारा किया --उतने में तो खुद आलीशान अपना भवन बना लेते | मेरे तो पैसे भी चले गए ,समाज में अपमानित भी हुआ ,न बच्चों का हो सका न अपने परिजनों का | यह जीवनी भी एक लीला थी --जिसमें रंग- मंच पर सभी पात्र अपनी -अपनी भूमिका निभाते हैं -अभिनय पूरा होने पर राम +रावण एक जगह बैठकर ठहाके लगाते रहते हैं --जिसे दर्शक अपनी -अपनी घटनाओं से जोड़कर देखते हैं ,रंगमच के कलाकार केवल अपनी -अपनी भूमिका निभाते हैं अतः इन तमाम बातों का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है | नाटक बनाने वाले इस ताक में रहते हैं इस नाटक से कितना फायदा हुआ | मुझे लगता है अगर हर व्यक्ति अपनी जीवनी को तीनों रूप में देखे --तो न तो कष्ट होगा न ही मलाल जीवनी से रहेगा | ---अब मेरे जीवन की आत्मकथा में जो सार है --जिससे आपको जीने की राह मिलती है या आपको इसी प्रकार से जीना चाहिए क्रम से पढ़ते रहें --भवदीय ज्योतिषी झा मेरठ -जीवनी के सभी भागों को पढ़ने के लिए लिंक का उपयोग करें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
रविवार, 7 जनवरी 2024
मेरी आत्मकथा में दारुण कथा पढ़ें भाग -93 -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों -आजकल बड़े लोगों पर जब आक्षेप लगता है --तो पहला हर व्यक्ति का बिचार होता है --इतने बड़े होकर ऐसा गलत कार्य कैसे किया | मेरे जीवन में ऐसा क्षण 2020 में आया जब पिता नहीं थे और हम नाना बन चुके थे -दो भाईयों के बीच भवन का बटवारा होना था | अनुज को कोई दिक्क्त नहीं थी -जगह हमारी थी -उसके सभी परिजनों [लोगों }का आना -जाना वहीँ से होता था | हमारी जमीन होते हुए भी दीवाल नहीं बना सकते थे | शास्त्र कहते हैं -मातृदेवो भव --किन्तु कुण्डली में चतुर्थ भाव का स्वामी मंगल लग्न में सूर्य +केतु साथ बिराजमान हैं | इन मंगल +सूर्य की वजह से मुझे तीन भवन प्राप्त हुए --किन्तु केतु की वजह से माँ का स्वभाव मुझसे मेल नहीं खाता है --अतः माँ का एक निर्णय मुझे सुखी बना सकता था --किन्तु पिता की सहमति होते हुए भी --माँ की वजह से घर टूट गया ,भाई -भाई युद्ध करते रहे --माँ देखती रही ,समाज हँसता रहा ,रिस्तेदार तालियां बजाते रहे --केवल मरना मेरा होता था --क्योंकि मैं शिक्षाविद था | आज हमारे बच्चों को मेरे प्राण की जरुरत हो तो हँसते -हँसते दे देंगें --किन्तु किसी के हम भी बच्चे थे --मुझे भी तो माता पिता ने ऐसे ही पाले होंगें --फिर यह दरार क्यों आयी ---मुझे लगता है --पूर्व की अपेक्षा आज के माता पिता बड़े ही दयालु होते हैं | मेरे घर में कोई कमी नहीं थी --दीदी ,अनुज और मैं सभी को ईस्वर ने जरुरत से ज्यादा धन और सुख दिए --किसी को कोई कमी नहीं किन्तु फिर भी मेरा घर --जिस घर में --एक ही माँ के उदर से जन्मे ,एक साथ पले -बढे --सभी को एक ही शिक्षा दी गयी --सच बोलना चाहिए ,किसी का नहीं लेना चाहिए ,परिश्रम से कमाना चाहिए | बाल्य्काल हमारा दरिद्र योग में बीता था --दीदी ,अनुज और मैं तीनों ने यथावत दुःख देखे तो यथावत सुख भी देखे --फिर जब धन आया तो प्रेम कहाँ चला गया | हम दुनिया के सामने झुक सकते हैं किन्तु --अपनों के सामने नहीं झुक सकते हैं | आजकल यह दशा मेरे घर की नहीं है --यह स्थिति घर -घर में है | मेरे बिचार से बड़ा भाई पिता की तरह धर्म निभाते -निभाते चले जाते हैं ,उसके भाग्य में शायद किसी का होना नहीं लिखा रहता है ,उसे -परिजन तो अपमान करते ही हैं --वो अपने बच्चों के भी नहीं होते हैं | खेर--- मेरी कुण्डली में शनि की दृष्टि तृतीय भाव पर थी साथ ही गुरु देव भी यही विराजमान थे --शनि की दशा में मुझे यही पुरस्कार मिलना था | जितने रूपये लगाकर हमने बटबारा किया --उतने में तो खुद आलीशान अपना भवन बना लेते | मेरे तो पैसे भी चले गए ,समाज में अपमानित भी हुआ ,न बच्चों का हो सका न अपने परिजनों का | यह जीवनी भी एक लीला थी --जिसमें रंग- मंच पर सभी पात्र अपनी -अपनी भूमिका निभाते हैं -अभिनय पूरा होने पर राम +रावण एक जगह बैठकर ठहाके लगाते रहते हैं --जिसे दर्शक अपनी -अपनी घटनाओं से जोड़कर देखते हैं ,रंगमच के कलाकार केवल अपनी -अपनी भूमिका निभाते हैं अतः इन तमाम बातों का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है | नाटक बनाने वाले इस ताक में रहते हैं इस नाटक से कितना फायदा हुआ | मुझे लगता है अगर हर व्यक्ति अपनी जीवनी को तीनों रूप में देखे --तो न तो कष्ट होगा न ही मलाल जीवनी से रहेगा | ---अब मेरे जीवन की आत्मकथा में जो सार है --जिससे आपको जीने की राह मिलती है या आपको इसी प्रकार से जीना चाहिए क्रम से पढ़ते रहें --भवदीय ज्योतिषी झा मेरठ -जीवनी के सभी भागों को पढ़ने के लिए लिंक का उपयोग करें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
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