प्रिय पाठकगण -कभी -कभी पण्डितजी लोगों के दुःखों को देखते हुए खुद बीमार हो जाते हैं कैसे - सुनें --मेरा सम्बन्ध उस व्यक्ति के साथ यजमान -पुरोहित का तो था ही अपनापन का भी हो गया था | उनकी चार बेटियां थीं ,तीन बेटे थे ,सात भाई थे --सभी लोगों में यही वो व्यक्ति था --जो धार्मिक भी था और अधर्म की चरम सीमा का दलाल था | इस बात का ज्ञान मुझे बहुत बाद में हुआ --अन्यथा हम धन की वजह से दोस्ती नहीं करते या धन के लिए यज्ञ नहीं करते --यही करना होता तो हम बहुत धनवान होते --आज के समय में मुझे लगता है --धनवान उसे कहना चाहिए --जो स्वभाव का धनवान हो --वरना देखने में तो सभी धनवान ही लगते हैं | --अस्तु --उनकी एक पुत्री मुम्बई में बड़ी हस्ती वाली और सुन्दर थी | मैं बहुत छोटी सी उम्र 14 वर्ष में प्रेम पत्र लिख चूका था जिसकी वजह से आश्रम से निकाला गया था --उसके बाद मेरे जीवन में महिला के प्रति आकर्ष समाप्त हो चूका था | परन्तु --मेरी कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी शनि है जो नीच होकर भाग्य के क्षेत्र में है साथ ही लग्न में मंगल ,सूर्य ,केतु की युति है एवं सप्तम भाव में राहु विराजमान है --इसका भावार्थ है --नीच व्यक्ति से विवाहित सम्बन्ध होना साथ ही टूट जाना --पर मुझे कई बार इस योग पर शंका रहती थी --मेरा विवाह भी हो गया ,दो कन्या भी हो गयी ,पुत्र भी हो चूका था ,मुम्बई जैसे शहर से भी आ चूका था | अपनी जिम्मेदारी के पथ पर चल रहा था ,उत्तम गुरु की दशा चल रही थी ,परम धार्मिक था --पर --भारत भूमि पर बहुत सारे सूत्र चाहे अनपढ़ हों या शिक्षित --तर्क देते रहते हैं --वृथा न होहि देव रिषि वाणी --अर्थात ऋषियों की वाणी असत्य नहीं हो सकती है --अतः कुण्डली में योग हो और प्रभावित न करें ऐसा हो ही नहीं सकता --मैं 37 वर्ष का था --तब यह लड़की मुझे भा गई --हुआ यह उसे धनाढ्य बनना था तो हमने यज्ञ के लिए कहा --वो तैयार भी हो गयी --मेरा मन धर्म में कम उसमें ज्यादा लगने लगा --किन्तु ईस्वर की ऐसी कृपा हुई --यज्ञ करते समय मेरे मन में शुद्धता के प्रति कुभाव आने लगा --इसकी वजह से मेरे मन में यह विचार आया -इसके पास धन है और सुन्दर भी है --यह मेरे पास प्रेम के लिए नहीं यज्ञ के लिए आयी है --धन तो यह दुनिया से कमाती है --और किसी की इसलिए हो नहीं सकी है --अतः एक छोटी सी भूल मुझे पतन की ओर ले जा सकती है | इसे ईस्वर की कृपा कहें या ग्रहों के खेल --क्योंकि गुरु की दशा चल रही थी --अतः धर्म का स्तर मजबूत होना था --उस यज्ञ के बाद वो मेरी शिष्या बन गयी --उसके बाद मुझे उसमें पुत्री का ही रूप दिखाई देने लगा | मेरा कहने का अभिप्राय है --जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन --यह उक्ति बिल्कुल सही है | मेरे पास हर तरह के लोग आते रहे हैं -- मेरी गरिमा धर्म की रक्षा करना है --यह सोच मुझे महान बनाती है अन्यथा --पग -पग पर कोई भी क्षेत्र हो भटकाव विशेष होता --इसकी वजह से हम सुधारने की जगह खुद गड़बड़ हो जाते हैं | जिस दिन उसे शिष्या बना लिया उसके बाद हम कर्मकाण्ड में उन्हीं यज्ञों को किया जो एक शास्त्री को करने चाहिए | अतः इसके बाद ज्योतिष का मार्ग ही ठीक लगा -- -- -आगे का --उल्लेख आगे के भाग में करेंगें ----खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
सोमवार, 18 दिसंबर 2023
मेरी आत्मकथा -पढ़ें भाग -86 ज्योतिषी झा मेरठ
प्रिय पाठकगण -कभी -कभी पण्डितजी लोगों के दुःखों को देखते हुए खुद बीमार हो जाते हैं कैसे - सुनें --मेरा सम्बन्ध उस व्यक्ति के साथ यजमान -पुरोहित का तो था ही अपनापन का भी हो गया था | उनकी चार बेटियां थीं ,तीन बेटे थे ,सात भाई थे --सभी लोगों में यही वो व्यक्ति था --जो धार्मिक भी था और अधर्म की चरम सीमा का दलाल था | इस बात का ज्ञान मुझे बहुत बाद में हुआ --अन्यथा हम धन की वजह से दोस्ती नहीं करते या धन के लिए यज्ञ नहीं करते --यही करना होता तो हम बहुत धनवान होते --आज के समय में मुझे लगता है --धनवान उसे कहना चाहिए --जो स्वभाव का धनवान हो --वरना देखने में तो सभी धनवान ही लगते हैं | --अस्तु --उनकी एक पुत्री मुम्बई में बड़ी हस्ती वाली और सुन्दर थी | मैं बहुत छोटी सी उम्र 14 वर्ष में प्रेम पत्र लिख चूका था जिसकी वजह से आश्रम से निकाला गया था --उसके बाद मेरे जीवन में महिला के प्रति आकर्ष समाप्त हो चूका था | परन्तु --मेरी कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी शनि है जो नीच होकर भाग्य के क्षेत्र में है साथ ही लग्न में मंगल ,सूर्य ,केतु की युति है एवं सप्तम भाव में राहु विराजमान है --इसका भावार्थ है --नीच व्यक्ति से विवाहित सम्बन्ध होना साथ ही टूट जाना --पर मुझे कई बार इस योग पर शंका रहती थी --मेरा विवाह भी हो गया ,दो कन्या भी हो गयी ,पुत्र भी हो चूका था ,मुम्बई जैसे शहर से भी आ चूका था | अपनी जिम्मेदारी के पथ पर चल रहा था ,उत्तम गुरु की दशा चल रही थी ,परम धार्मिक था --पर --भारत भूमि पर बहुत सारे सूत्र चाहे अनपढ़ हों या शिक्षित --तर्क देते रहते हैं --वृथा न होहि देव रिषि वाणी --अर्थात ऋषियों की वाणी असत्य नहीं हो सकती है --अतः कुण्डली में योग हो और प्रभावित न करें ऐसा हो ही नहीं सकता --मैं 37 वर्ष का था --तब यह लड़की मुझे भा गई --हुआ यह उसे धनाढ्य बनना था तो हमने यज्ञ के लिए कहा --वो तैयार भी हो गयी --मेरा मन धर्म में कम उसमें ज्यादा लगने लगा --किन्तु ईस्वर की ऐसी कृपा हुई --यज्ञ करते समय मेरे मन में शुद्धता के प्रति कुभाव आने लगा --इसकी वजह से मेरे मन में यह विचार आया -इसके पास धन है और सुन्दर भी है --यह मेरे पास प्रेम के लिए नहीं यज्ञ के लिए आयी है --धन तो यह दुनिया से कमाती है --और किसी की इसलिए हो नहीं सकी है --अतः एक छोटी सी भूल मुझे पतन की ओर ले जा सकती है | इसे ईस्वर की कृपा कहें या ग्रहों के खेल --क्योंकि गुरु की दशा चल रही थी --अतः धर्म का स्तर मजबूत होना था --उस यज्ञ के बाद वो मेरी शिष्या बन गयी --उसके बाद मुझे उसमें पुत्री का ही रूप दिखाई देने लगा | मेरा कहने का अभिप्राय है --जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन --यह उक्ति बिल्कुल सही है | मेरे पास हर तरह के लोग आते रहे हैं -- मेरी गरिमा धर्म की रक्षा करना है --यह सोच मुझे महान बनाती है अन्यथा --पग -पग पर कोई भी क्षेत्र हो भटकाव विशेष होता --इसकी वजह से हम सुधारने की जगह खुद गड़बड़ हो जाते हैं | जिस दिन उसे शिष्या बना लिया उसके बाद हम कर्मकाण्ड में उन्हीं यज्ञों को किया जो एक शास्त्री को करने चाहिए | अतः इसके बाद ज्योतिष का मार्ग ही ठीक लगा -- -- -आगे का --उल्लेख आगे के भाग में करेंगें ----खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
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