ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

रविवार, 15 अक्टूबर 2023

शिक्षा और अशिक्षा की एक कथा सुनें -भाग -45 -ज्योतिषी झा "मेरठ "


 


शिक्षा और अशिक्षा की एक कथा सुनें -भाग -45 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
दोस्तों -आज हमारे समाज में ज्ञान का पैमाना बदल चूका है --जिसका परिणाम यह होता है -सही क्या है ,गलत क्या है --इसकी जानकारी दूसरे के द्वारा मिलती है ,अगर कानों से सुना जाय और आँखों से देखा जाय साथ ही दोनों में समानता हो तो ठीक ज्ञान हो सकता है | आज एक कथा सुनाता हूँ सुनें -----भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें |

सीमन्त संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 

 सीमन्त संस्कार किसे कहते हैं -जानने हेतु -पढ़ें


खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ  




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कर्मकाण्ड जगत में तीसरा संस्कार का नाम -सीमन्त संस्कार है | प्रत्येक देश की सुरक्षा हेतु सीमा की व्यवस्था होती है |सीमा को आर- पार करने हेतु दोनों देशों को कुछ नियमावली का पालन करना पड़ता है | तभी मित्रता बनी रहती है | इसी प्रकार से जब माँ का गर्भ सातवां माह पूर्ण करता है तब जच्चा -बच्चा दोनों को अंदर और बाहर से खतरा रहता है -इस अनहोनी की घटना से माँ को बहुत ही सतर्क और सावधान रहना होता है --इसी का नाम महर्षियों ने सीमन्त संस्कार रखा है | नियमावली --वैसे यह संस्कार आज भी सभी माताएं तो नहीं करती है किन्तु -कुछ सतर्कता जरूर रखती हैं | -----अस्तु ---जब गर्भ सात माह का हो जाय तो सास को चाहिए -पुरोहित जी को बुलाकर पंचांग पूजन करायें पुत्रवधु से एवं घर की सीमा के बाहर न जायें साथ ही अपने आप को परमात्मा में तल्लीन करें जिससे गर्भ के अंदर शिशु की रक्षा परमात्मा करें और बहरी सुरक्षा माँ करें इससे दोनों का कल्याण होता है | ----ध्यान दें --प्रत्येक जातकों के तीनों संस्कार अवश्य होने चाहिए | आज हमलोग आधुनिकता में विशेष खो रहे हैं प्राचीन को विस्मृत करते जा रहे हैं ----क्योंकि जब हम आज भी -सूर्य ,चंद्र,अग्नि ,पवन ,वरुणदेव के बिना जी नहीं सकते हैं तो इन संस्कारों को कैसे भूल सकते हैं | जब हम आज भी उन्हीं मन्त्रों को मानते हैं अपनी -अपनी तमाम मनोरथों को उन्हों मन्त्रों से पूर्ण करने का प्रयास भी करते हैं तो भला सोचें हम अपने संस्कारों के बिना इनका सामना कैसे करेंगें | ---अतः इस पर अवश्य विचार करें | ---आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मेरे मामा का साम्राज्य मेरे घर में कैसे हुआ --पढ़ें ?--- भाग -45 -खगोलशास्त्री झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -45 -खगोलशास्त्री झा मेरठ

'आज मैं मेरे मामा का साम्राज्य मेरे घर में कैसे हुआ पर प्रकाश डालना चाहता हूँ --इसके बाद दीदी की कथा सुनाऊंगा जो अधूरी रह गयी है "----अस्तु --मेरी माँ के दो बहिन एक भाय हुए | नाना बहुत छोटी 8 वर्ष की उम्र में चले गए | माँ का पालन नानी के पिता ने की जिनको हमने बहुत करीब से देखा है --उन्हौने ही मेरी माँ का विवाह मेरे पिता से कराया था साथ ही मेरे घर में बहुत सम्मान था --पर निर्लोभी थे कुछ दिया ही होगा लिया नहीं किन्तु जब मेरी गरीबी आयी उससे पहले ही दिवंगत हो गए थे| मेरे पिता के विवाह के बाद मामा मेरे घर पर रहे, नानी का खर्च भी पिता ने ही उठाया था | मौसी का लालन -पालन नानी ने ही किया --नानी पे जमीन तो थी पर आय का साधन नहीं था --अतः मेरी माँ ने भार उठाया | मेरे मामा बहुत जल्दी दसवीं पास कर सरकारी नौकरी रेलवे में प्राप्त की और दिल्ली चले गए | तब मेरी उम्र 7 वर्ष थी जो ठीक से ज्ञात नहीं है| तब जब मामा थे तो मेरा राजयोग चल रहा था पिता-ने जमीं ली, दुकान ली --पर सुना है --सारी पूंजी चोरी हो गयी थी| ---हम दोनों भाईयों के जनेऊ संस्कार 1980 में हुए --तब मामा दिल्ली से हमलोगों के लिए बहुत कुछ ला रहे थे जो ट्रेन में ही खो गए | उपनयन संस्कार बड़े ही धूमधाम से हुए थे --तत्काल ही कुछ पैसों की जरुरत हुई थी --पिताने मामा से उधार 2000 मांगें थे --बोले पैसे तो नहीं हैं मेरी पतनी के गहने ले लो और व्याज पर पैसे लेलो --मेरी माँ ने ऐसा ही किया| कुछ दिन बाद गहने वापस कर दिए --मेरे पिता ने | ---इसके बाद मेरे घर में दीदी की शादी हुई मामाने मदद नहीं की बल्की जमीन बेचकर शादी हुई थी | इसके बाद पूर्ण रूप से गरीबी मेरे परिवार में चल रही थी --कभी भी एक रूपये देते हुए मामा को नहीं देखा| --1984 में दीदी का गोना {द्विरागमन }हुआ जो जमीन फिर गिरबी रखकर हुआ --तब मैं 14 वर्ष का था ,सबकुछ जानता था | मेरा भाई सर्पदंश से दिवंगत हुआ --कर्य लेकर संस्कार हुए थे --तब भी कोई मदद नहीं की थी | मामा की शादी पिता ने करायी थी --तो मामा को पुत्र नहीं था --माँ ने कहा हमने पहली जन्मपत्री फ्री में बनायीं थी --और कहा बालक अवश्य होगा --तत्काल ही दो बालक हुए --उनको पहले से दो कन्या थीं | मुझे याद नहीं है कभी ममाने एक रुपया मुझको दिया हो --एकबार बोले दसवीं प्रथम स्थान से पास करोगे तो किताब दिलाऊंगा ---आजतक नहीं दिलाये |1981 जबसे मुझे ज्ञान हुआ -1988 जब मैं मेरठ आ गया --गुप्त रहे | मेरठ मेरा आना और मामा का अधिपत्य बनना हुआ| मामा जब भी घर आते रहे थैला ले जाते रहे ---हमने --14 वर्ष से ही अपने घर को संभालने की कोशिश की है | --मेरी माँ सदावहार रही क्योंकि मेरे घर से तब से धन जा रहा था --जब हम नहीं थे \मेरे घर में वही होता था जो माँ चाहती थी | पिता हमारे सदा नाराज रहते थे इस बात से --मुझसे बारबार कहते थे --दोनों -जीजा और मामा पे कभी भी भरोसा मत करना | --जब हम मेरठ आये --तो धन और बरसने लगा मेरे घर में मामा की तो चांदी दी ही चांदी हो गयी | ---यहाँ मैं आपलोगों से ही मत जानना चाहता हूँ --क्या मेरे मामा सही थे --अगर सही थे तो हमारी ह्रदय से कोई मदद क्यों नहीं की जबकि हमारे माता पिता ने तो बहुत किया था| --चलो जो दूसरा प्रश्न है --मेरे पिता ने पढ़ाया तो हम तीन भाई एक बहिन थे एक को ही पढ़ा देते | यदि मदद नहीं की तो मेरी माँ को सही दिशा देते | ---मेरे मामा की सारी बातें ,दीदी को ,अनुज को ,माँ को, पिता को ,जीजा को अच्छी लगती है मेरी बात या मेरी पतनी की बात अच्छी क्यों नहीं लगती है | --मैं तो कभी मांगने भी नहीं गया ==एकबार जब मुम्बई पढ़ने जा रहे थे तो --एक रास्ता बताया था मुर्दा उठाकर कमाने का जो हमने अमल नहीं किया | ---बात यह जिस व्यक्ति को खाने की लेने की आदत हो जाती है यह उसका स्वभाव बन जाता है ---मेरे मामा देना नहीं लेना सीखें हैं | जब मेरे घर में सुख के दिन आते हैं तो फिर मामा प्रकट हुए --मेरा मकान बना मामा की सलाह पर ,भाई का विवाह हुआ मामा की सलाह पर ,मुकदमें हुए मामा की सलाह पर --जब माता पिता ,अनुज -अनुज भार्या की जेल हुई तो बचाने जीजा ,मामा नहीं यह कार्य मेरी भार्या ने की |-----अब आगे ज्योतिष के माध्यम से साबित करने का प्रयास करूँगा --किसी जातक के जीवन में मातृपक्ष का सुख क्यों नहीं है | ---ॐ------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

क्या हम सुपात्र हैं -ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड के- सुनें -भाग -44 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 क्या हम सुपात्र हैं -ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड के सुनें --भाग -44 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
दोस्तों -उपदेश देना सरल होता है किन्तु पालन करना बहुत ही कठिन होता है | पर सीख मिलती है तो व्यक्ति सुधरने का प्रयास भी करता है | -----भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें |

पुंसवन संस्कार क्यों होता है -पढ़ें--खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 

 पुंसवन संस्कार क्यों होता है  -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ ---



-उत्तर ----वत्स -इस प्रकृति में जो भी वस्तु या चीजें हैं -सभी का विस्तार होता रहता है | जो छोटा है वो बड़ा होगा जो बड़ा होगा वो एक दिन समाप्त होगा | एक जैसा कोई भी इस प्रकृति में नहीं रहता है | एक जैसा केवल श्री हरी ही इस प्रकृति में रहते हैं | पर मानवों में वो कला है जो चाहे बन सकता है ,बना सकता है --वो चाहे तो असंभव हो संभव बना सकता है | ----मानवों के पूर्वज रिषि -महर्षियों ने -मानवों के हित के लिए षोडश संस्कार की रचना की | इन संस्कारों के बल पर ही असंभव को संभव किया जा सकता है | पर दुर्भाग्य यह है --इनमें से बहुत से संस्कार जातकों के होते ही नहीं हैं या माता पिता -उन संस्कारों से अनभिज्ञ हैं | वत्स हम भी इन संस्कारों को संतान होने के बाद जाना -अतः हमारे भी बहुत से संस्कार नहीं हुए किन्तु हम चाहते हैं --तुम सब इन संस्कारों को समझों और अपनाने की कोशिश करो | ------अस्तु ---जब माँ का गर्भ तीन माह का होता है -तो पूर्व के विधियों का परित्याग कर पुंसवन संस्कार --यानि जातक कैसे हृष्ट -पुष्ट हो-इस संस्कार से जातक हृष्ट -पुष्ट ही नहीं होता बल्कि ---नियमावली -यह है -जब गर्भ तीन माह का हो तो सास को पुरोहित जी को बुलाकर पहले पंचांग पूजन करना चाहिए फिर बट वृक्ष के पास जाकर उत्तम संतान यानि निरोगी संतान की कामना करनी चाहिए इतना ही नहीं -कृपया ध्यान दें आप सभी के मन में एक शंका आ सकती है कि इतने वृक्षों में बट वृक्ष ही क्यों -आम क्यों नहीं तो ध्यान दें --बट वृक्ष एक ऐसा वृक्ष इस जगत में है जो बिना खाद पानी के सभी वृक्षों से बलिष्ठ होता है --तो संतान कैसी होनी चाहिए बलिष्ठ या दुबला -पतला ----इसलिए इस वृक्ष से यह कामना करनी चाहिए -हे बटवृक्ष आपकी तरह हमारी संतान बलिष्ठ हो और प्रार्थना के बाद इस वृक्ष के दूध को मां के वायी नाक में दूध डालने से कन्या और दायीं नाक में दूध डालने से पुत्र की प्राप्ति होती है | ---आगे की चर्चा कल करेंगें ----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




जीवनी लिखते समय अपने को अनन्त कसौटी पर परखें -भाग -44 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -44 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

"हम अपनी जीवनी लिखते समय सबसे पहले अपने आप को अनन्त कसौटी पर परखें --जैसे क्या मेरे माता यहीं हैं ,क्या मैं इनकी ही संतान हूँ ,मेरी जीवनी में जितने पात्र हैं सच में मेरे परिजन हैं या आपको भ्रमित करने के लिए आधार बनाया गया है --आईये आप लोग भी अपनी -अपनी कसौटी पर अपने आपको परखकर देखें "----अस्तु -- ज्योतिष की दुनिया में कोई भी जातक या जातिका यह जान सकते हैं --मैं किसकी संतान हूँ ,जो वर्तमान में मेरे माता पिता हैं क्या सच में हैं --इसके लिए ज्योतिष जगत हमें सटिक जानकारी देता है | --मेरी कुण्डली में चौथे भाव का और नवम भाव का स्वामी मंगल है जो लग्नेश सूर्य के साथ लग्न में ही विराजमान हैं ,इनकी यानि मंगल ग्रह -4 ,7 ,8 भाव पर पूर्ण दृष्टि डालता है | सूर्य स्वराशि का लग्न में है | --यह तो निश्चित हो गया जो मेरी माँ है -उसका मैं पूर्ण अंश हूँ | --कर्मेश --जिसे पिता का क्षेत्र भी कहा जाता है ज्योतिष की दुनिया में --मेरा शुक्र कर्मेश है किन्तु दूसरे घर में में बुध के साथ उपस्थित है ---बुध की वजह से नीचता भंग हो गयी है साथ ही कर्मक्षेत्र में चन्द्रमा उच्च का है --अतः मैं अपने पिता का ही आत्मज हूँ | अब दूसरी शंका थी --जो मेरा रंग है ,कद है क्या मेरी कुण्डली से सही मिलान है --मैं सिंह लग्न का हूँ सूर्य ,मंगल और केतु लगन में हैं एवं सप्तम भाव में राहु है और किसी ग्रह की पूर्ण दृष्टि नहीं पड़ रही है ---अतः देदीप्यमान चेहरा ,कद्दावर शक्ल ,लाल वर्ण होते हुए भी --स्थान के अनुसार रूप दिखाई देगा | जैसे ग्रहण लगने पर सूर्य +चन्द्र अपनी कान्ति खो देते हैं इसी प्रकार से मैं मातृभूमि पर जब भी रहूँगा तो रूप धूमिल रहेगा ,अगर किसी और प्रदेश या जगह पर रहूँगा तो लाल-गौर वर्ण स्वरूप मेरा रहेगा ---यह बात भी सही है --वास्तविक जो मेरा रूप है वो काला है पर ग्रहण से दूर होने पर मेरा रूप गौर वर्ण हो जाता है | --अतः यह जो उपलब्ध कुण्डली है यह भी सही है और मैं भी सही हूँ ---| --अब आपलोगों के मन में भी कई प्रश्न उठ रहे होंगें --आधार क्या है --तो ताजिकनीलकण्ठी ,मुहूर्तचिन्तामणि ,वृहत्पराशर ,जातकाभरणं ,जातकतत्वम --बहुत सारे जो संस्कृत के ग्रन्थ हैं -सांख्यकारिका --तमाम ग्रन्थों को जानने के बाद ही यह निष्कर्ष संभव है ,इसके साथ ही --व्यक्ति की अनुभव की कला ---अब फिर एक शंका आपके मन में उठ सकती है --कोई कम पढ़ा हो या नहीं जनता हो तो उसे सही ज्ञान नहीं हो सकता है ---इसका जबाब है --ज्योतिष का लाभ केवल राजा महराजा लेते थे ----इसके लिए -गणना और साधना होती थी --ब्रह्मण की जिम्मेदारी राजा की होती थी राजा का दायित्व ज्योतिषी का होता था --एवं सदा अन्वेषण में ज्योतिषी लगे रहते थे | आज अन्वेषण कम तर्क और कुतर्क ज्यादा होते हैं | आज अगर एक कुण्डली सही बनाई जाय तो लाख रूपये भी कम हैं --पर आपकी हां में हां मिलानी है ,अपनी जीविका चलानी है --तो हम लाचार होते हैं ,न अपना भला कर पाते हैं न आपका | ----ॐ------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

नन्दीमुख श्राद्ध शुभ कार्य में क्यों करना चाहिए -सुनें भाग -43 --ज्योतिषी झा 'मेरठ '



 नन्दीमुख श्राद्ध शुभ कार्य में क्यों करना चाहिए -सुनें भाग -43 --ज्योतिषी झा 'मेरठ '
जब भी कोई शुभ कार्य करें तो पहले नन्दीमुख श्राद्ध अवश्य करना चाहिए | नन्दीमुख श्राद्ध का अर्थ है -मातृपक्ष और पितृपक्ष को श्रद्धांजलि देना | ----ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-- उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

उत्तम संतान की प्राप्ति कैसे होती है -सविध बतायें -पढ़ें-ज्योतिषी झा मेरठ


  उत्तम संतान की प्राप्ति कैसे होती है -सविध बतायें -पढ़ें?




 
उत्तर --वत्स - जैसे -भवन की मजबूती नींव से होती है | किसी देश की मजबूती एकता से होती है | सृष्टी की मजबूती नियमावली से होती है --वैसे ही कर्मकाण्ड जगत में मानवों की मजबूती संस्कारों से ही संभव है | ये संस्कार सोलह प्रकार के होते हैं | प्रथम संस्कार का नाम है -"गर्भाधान संस्कार " प्राचीन समय में जब संतान की कामना होती थी तो दादी अपनी -अपनी पुत्र वधुओं से यह संस्कार की नियमावली बताती थी और सभी नियमावली का अनुशरण करतीं थीं | जो इस गर्भाधान संस्कार को सविध करती थी उसे उत्तम संतान मिलती थी | ----नियमावली ---जब भी संतान की कामना हो तो रजस्वला होने से छठे दिन पति -पतनी और सास के साथ पुरोहित जी से सविध पंचोपचार पूजन विधाता का कराना चाहिए | पति - पतनी परमपिता परमेस्वर से प्रार्थना जैसी संतान की कामना की करेंगें वैसी ही संतान संभव है | पति -पतनी का मिलन यदि सम संख्या में होगा तो उत्तम पुत्र होगा ,अगर दोनों का मिलन विषम संख्या में होगा तो उत्तम कन्या होगी | ---यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है -इस विधि से तो सभी पुत्र ही चाहेंगें तो फिर सृष्टि कैसे चलेगी ---तो जो भी यह प्रथम प्रयोग करेगा तो एकबार ही यह संभव है साथ ही -जो एकदशी को दोनों का मिलन होगा तो अधम संतान होगी ,यदि पूर्णिमा या अमावश्या का दोनों का मिलन होगा तो हानिकारक संतान होगी | मेरे विचार से इतने नियमों को जो निभाएगा उसे ही उत्तम संतान की प्राप्ति होगी जो आधुनिक समय में सभी नहीं निभा पायेंगें | ---सबसे बड़ी बात इस संसार में भले ही अत्यधिक संतान नहीं चाहते हों किन्तु दो संतान तो कम से कम सभी को जरूर चाहिए | और सभी एक कन्या और एक पुत्र की कामना अवश्य करेंगें क्योंकि कन्या की कामना वही कर सकता है जो धर्म को मानेगा और यह विधि धर्म पर ही आधारित है | इस विधि से धार्मिक व्यक्ति धर्म का पालन कर सकता है | आगे की चर्चा कल करेंगें ------ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मेरी जीवनी में नाटक की तरह अनन्त पात्र हैं-पढ़ें - भाग -43 ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -43 -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी जीवनी में नाटक की तरह अनन्त पात्र हैं ,सभी पात्रों की अपनी -अपनी भूमिका है --तभी यह आत्मकथा बनी है | परमात्मा ने मेरी जीवनी में आठों रसों का स्वाद भरपूर दिया है | इस जीवनी रूपी स्वाद को जितना चखने का प्रयास करेंगें --आप में स्वतः ही निखार आता जायेगा क्योंकि यह सत्य पर आधारित है साथ ही आज जहाँ से मैं लिखने की कोशिश कर रहा हूँ --वहां केवल एक ही धेय है --आपका कल्याण --चूकि -रत्न क्या होते हैं ,ग्रह क्या होते हैं ,हमारे ऊपर प्रभाव क्यों पड़ता है ,हमें निदान क्या -क्या करने चाहिए ,कालसर्पदोष के 95 आलेख भी लिख चूका हूँ ,वास्तु दोष क्या होता है इसके भी 35 आलेख लिख चूका हूँ --देश -विदेश की तमाम बातों को लिख चूका हूँ ,लाखों लोगों को एकबार निःशुल्क ज्योतिष सेवा दे चूका हूँ | इसके बाद हमने अपनी सेवा महंगी कर दी ताकि कम लोग ही हमसे सम्पर्क कर सकें | --पर मानव हैं कामना की पूर्ति होते ही पुनः कामना शुरू होती है --साथ ही --अगर आप सभी पाठकगण पढ़े लिखे हैं ,रामायण हो ,वेद हों ,पुराण हों ,भागवत हो या फिर और ग्रन्थ सभी के बारे में बखूबी जानते हैं| हो सकता है --रत्न के बारे में ,आलेखों के बारे में या ज्योतिष के बारे में हमने आपको अपनी और तार्किक बुद्धि से खीचने का प्रयास किया हो --तो मुझे लगा --मेरी जीवनी ही एक ऐसा उदहारण हो सकती है --जो मेरी खुद की घटना है एवं अब हम उस पड़ाव पर हैं --जहाँ मुझे जरुरत की पूर्ति हो चुकी है --और आराधना की ओर जाना चाहिए | इस अवस्था में --मुझे लगता है आने वाला जो समय आयेगा --उसमें सुख कम दुःख लोगों को अति मिलेगा --तब लोगों को शान्ति की तलाश में -कैसे यकीन करेंगें कि सामने वाला जो कह रहा है --वो लोभ से या बरगलाने के लिए या फिर बहकाने के लिए --तब आपको सच की राह ,जीने की कला ,आप क्या हैं ,क्या आप जिसे शत्रु समझते हैं --वो शत्रु है ,आपके कर्तव्य क्या हैं ,आपको करना क्या चाहिए ---तथा प्रेरणा देने वाले ठीक हैं या उनकी कहानी आप जैसी ही है --तब यह जीवनी समझ में आएगी --आज भले ही न आये | बाबा तुलसी दास हों या भगवान व्यास --तब जब वो रहे तब ये दोनों ग्रन्थ --रामायण + भागवत -जिसे स्वयं भगवान स्वरूप आज मानते हैं ,वैसी ख्याति नहीं प्राप्ति की जैसे ख्याति आज मिल रही है | --अतः --जब मैं नहीं रहूँगा तब यह जीवनी एक कथा बन जायेगी --यह मुझे भरोसा एवं विस्वास है --क्योंकि मेरा ध्येय -व्यक्ति कल्याण है | मेरा ध्येय ज्योतिष को उस पायदान पर खड़ा करना है --जो उसका सही अस्तित्व है | ---यह बात साबित करने का भरसक प्रयास करूँगा --ज्योतिष का प्रभाव क्या सच में पड़ता है | कभी मैं कन्हैयालाल झा था ,कभी मैं ज्योतिषी झा था --अब हम खगोलशास्त्री झा हैं --इसका भावार्थ होता है --अन्वेषण करना ,सटिक बातों को बताना ,भेद -भाव रहित उत्तम समज की रचना करना --जन -जन का कल्याण कैसे हों ताकि सभी अपनी -अपनी जीवनी को ठीक से सवार सकें ---ॐ------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -

तीन प्रकार के कौन से ऋण होते हैं सुनें -भाग 42 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 तीन प्रकार के कौन से ऋण होते हैं सुनें -भाग 42 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
प्रिय श्रोतागण ---प्रत्येक व्यक्ति तीन प्रकार का ऋणी होता है ---जिसे उसे चुकाना ही पड़ता है | यद्यपि इस संसार में मानव केवल ऋणी ही होता --लाख चाहे तब भी उऋण नहीं हो सकता है --फिर भी कुछ ऋण ऐसे हैं ---जिनको चुकाने का भरसक प्रयास अबश्य प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए | --ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-- उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

सृष्टि में वर्ण व्यवस्था की क्यों जरुरत पड़ी--पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


  सृष्टि में वर्ण व्यवस्था की क्यों जरुरत पड़ी विस्तार से बतायें -गुरुदेव-पढ़ें?




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उत्तर -वत्स --जैसे देश चलाने के लिए शासन की जरुरत होती है वैसे ही परमात्मा की सृष्टि कैसे सुदृढ़ चलती रहे इसके लिए मानवों को चार भागों में विभाजित किया --साथ ही सबसे बड़ी बात -नियमावली ,जो आज है वही थी पर जो विचार कल थे वो आज नहीं हैं --इसका प्रभाव यह हुआ -तब एक दूसरे से सब जुड़ें थे पर आज सभी स्वतंत्र हैं | ---वर्ण व्यवस्था में पहला -ब्राह्मण का स्थान पहला था -पर नियम ये थे -ब्राहण वही बनेगा जो -सत्यवादी ,शिक्षित {वेदों -पुराणों }आचरणवान ,कर्मनिष्ठ और नियम करने वाला और कराने वाला ही ब्राहण होगा | राजा को भी मार्ग बतायेगा पर सिंहासन पर विराजमान नहीं होगा | क्षत्रीय --अर्थात जिसकी छत्र छाया में सभी सुखी रहें -साथ ही -अपना सुख का त्यागी होगा ,सिंहासन का सेवक समझकर विराजमान होगा -साथ ही ब्राह्मण की बातों को अमल करेगा और गुरु समझेगा वही क्षत्रिय होगा |वैश्य --अर्थात -जो सभी का भरण पोषण करेगा उसी में अपना हित समझेगा साथ ही राजा को सही कर देगा, ब्राह्मणों के मन्त्रों से देवों को प्रसन्न करेगा वही वैश्य बनेगा | शूद्र {हरिजन }अर्थात -जो सबकी सेवा करेगा ,या ब्राह्मण ,क्षत्रिय और वैश्यों के हित के लिए अपने आप को समर्पित करेगा वही हरिजन बनेगा | --ध्यान दें --सभी राजा नहीं बन सकते है ,सभी ब्राह्मण नहीं बन सकते हैं सभी क्षत्रिय नहीं बन सकते है और न ही सभी हरिजन ही बन सकते हैं | इस बात को दूसरे तरीके से समझेँ --जैसे शरीर एक है -मुख का काम बोलने का है और खाने का -जैसा खायेगा वैसा ही बोलेगा --अतः जो यह समझ ले हम क्या खाएं और क्या बोलें तो उस शरीर का कोई अहित नहीं हो सकता हैं | इसी तरीके से -हाथों का काम है शरीर की रक्षा करने का या किसी भी कार्य को करने के लिए हाथों की जरुरत होती है ,हाथों के बिना शरीर अधूरा है काम करेगा तो शरीर ठीक रहेगा नहीं करेगा तो शरीर बेकार हो जायेगा |--इसी प्रकार से उदर का काम है जो भी उदर में डाले वो पचना चाहिए -क्योंकि शरीर की सभी इन्द्रियां उदर के ऊपर निर्भर करतीं हैं | अर्थात सही पेट की निगरानी ही शरीर को सुखद अनुभूति करा सकती है अन्यथा शरीर दुखी रहेगा | शूद्र --अर्थात शरीर की टाँगें -अगर टाँगें न हों तो शरीर कही जा आ नहीं सकता है --पर कहाँ जाये -कैसे जाएँ कब जाएँ तभी तो शरीर सुरक्षित रहेगा | वस्तुतः -जब शरीर के सभी अंग एक साथ जुड़ें हैं सभी अंग अपना -अपना काम करते हैं तभी तो शरीर की एक पहचान होती है इसमें न तो कोई छोटा है न कोई बड़ा - तो कर्म है किसी भी अंग के गलत कार्य से शरीर का पतन हो सकता है और सभी अंगों के सही कार्य से उन्नति तो --विधाता ने संसार में वर्णों की व्यवस्था इसलिए की | गलती व्यवस्था में नहीं गलती मुझमें है यह जबतक हम नहीं समझेंगें तब तक यह सृष्टि के नियम ठीक नहीं हो सकते हैं | आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameeru

मेरी जीवनी एक दिन अमर कथा हो जायेगी -पढ़ें - भाग -42 -ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -42 -ज्योतिषी झा मेरठ
मेरी जीवनी एक दिन अमर कथा हो जायेगी --भले ही पाठकगण --अभी अपने -अपने तर्क लगाते हों -----अस्तु --अब मैं अपनी दीदी की परिचर्चा करना चाहता हूँ --कैसे मेरे घर में साम्राज्य हुआ | --मेरी दीदी मुझसे ढाई वर्ष बड़ी है | अगर मुझे कहे कैसी बहिन चाहिए --तो हजार बार कहूंगा यही दीदी चाहिए --क्यों ? मेरी दीदी की भी बहुत खूबियां है जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है --मेरी दीदीने भी मुझे बहुत माँ की तरह स्नेह दिया है ,जब मैं छोटा था तो अपनी गोद में बालक की तरह खिलाया है | एकबार मुझे उठाने के चक्कर में उसका हाथ टूट गया था --तब भी उतना ही स्नेह किया था जितना माँ ने किया है | जब मैं कहीं चला जाता था तो ढूंढ कर माँ के पास वही लाती थी | हम दोनों बच्चे थे तो कपडे पहले मुझे पहनाती थी --जैसे स्वेटर - खुद नहीं खाती थी पहले मुझे खिलाती थी | मेरी छोटी -छोटी गलती को छुपाती नहीं थी बल्की माँ से शिकायत करती थी ताकि मैं गलत राह न चलूँ | परन्तु --उस समय मेरा राजयोग चल रहा था -चन्द्रमा ,मंगल ये उच्च के हैं मेरे तो सभी प्रकार के सुख मुझे मिलने थे --किन्तु --दीदी की कुण्डली उपलब्ध नहीं है इसलिए कुछ कह नहीं सकता पर --मेरी कुण्डली में राहु की दशा शुरू हुई -तो 1981 में दीदी की शादी हुई -उस समय मैं 11 वर्ष का था और पातेपुर जिला वैशाली पढ़ने गया था --बिना पिता के धन के और बिना पिता की आज्ञा के --इसी बीच दीदी की शादी हो गयी | केवल तीन माह वहां रहे -वहां से भोपाल जाना था -सभी मित्र नहीं गए मैं जाना चाहता था पर मुझे भी वापस गांव आना पड़ा | मेरा घर मांसाहार था पर यहाँ से मैं शाकाहार बनने लगा | इसी बीच पिताकी जमीन बिकी ,दुकान बिक गयी ,कुछ जमीन नदी में समा गयी ,घर बाढ़ के कारण टूट गया ,जो दीदी के जेवर ,कपड़े ,बर्तन ससुराल के थे -मेरे घर में ही थे -चोरी हुई -सब सामान चोर ले गए --पिता नौकरी के लिए कलकत्ता गए थे --जो मेरा राजयोग था अब राहु की वजह से दरिद्र योग में परिवर्तन हो गया | दीदी का गोना हुआ नहीं था | हमलोग महादरिद्र हो गए --पिता वापस कलकत्ता से आ गए --क्योंकि कभी शहर गए नहीं थे ,अनुभव नहीं था ,मन नहीं लगा वापस आ गए | मेरी माँ तो पांचवी पास है --दीदी ने कभी स्कूल की शकल नहीं देखी न किसी ने दिखाई | राहु का दरिद्र योग हो तो ऐसा ही होता है --मेरे पिता ने धूमधाम से शादी की थी --जमीन बेचकर ,दुकान बेचकर और दहेज में दामाद को पढ़ाने की शर्त भी ले ली थी ---मेरा जो घर है वो शहर में है --झंझारपुर बाजार --यहाँ सभी प्रकार की सुविधा थी --कालेज भी था ---जीजा बी ए में शायद पढ़ रहे थे --तो उन्होंने सोचा ससुराल में रहकर ही पढेंगें --पर शादी के दो माह बाद ही दरिद्रभंजन मेरा परिवार हो गया | तो मेरे जीजा सबसे बड़े थे पढ़े लिखे थे --हमलोगों पर दया करनी चाहिए थी --पर हमारे घर पर रहकर पढ़ने लगे --घर में कुछ था ही नहीं --माँ इधर -उधर से मांगकर कुछ लाती थी --जिसे ईज्जत बचाने के लिए केवल जीजा को खिलाती थी | मेरा छोटा भाई बहुत छोटा था तो जीजा के साथ बैठकर खा लेता था --मुझसे भूख सहन नहीं होती थी ,माँ ,दीदी ,पिताजी भी भूखे जैसे -तैसे रह लेते थे --मुझसे रहा नहीं जाता था --मैं ऊधम मचाता था --अन्त में एकदिन जीजा के कपड़ें कीचड़ में डाल दिया --जीजा तो चले गए --मुझे लगता है --आजतक इस बात को भूले नहीं होंगें | यह बात दीदी भी आजतक भूली नहीं होगी | माता पिता तो क्षमा कर दिए होंगें --बालक समझकर ---पर इसके बाद जीजा पढ़ते तो थे नित्य मेरे घर आते थे दीदी से मिलने --उस माली हालत में पिता एकदिन मुझे आश्रम छोर आये ---घर की खाई बढ़ती रही -------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023

भगवान की पूजा कैसे करें --सुनें -भाग -41 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 भगवान की पूजा कैसे करें --सुनें -भाग -41 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
सनातन संस्कृति में पूजा के अनन्त विधान हैं | एक हवनात्मक पूजा होती है | दूसरी यज्ञात्मक पूजा होती है | --हवन के द्वारा ईस्वर प्रसन्न किया जाता है --इसे हवनात्मक पूजा कहते हैं | यज्ञों के द्वारा जिसमें अनन्त सामग्री की जरुरत होती है ---उसे यज्ञात्मक पूजा कहते हैं | --तमाम बातों को क्रम से सुनते रहें -----भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें |

कुछ देवों को क्यों -धरती पर रहना पड़ा -विस्तार से बतायें -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ

  प्रश्न -कुछ देवों को क्यों -धरती पर रहना पड़ा -विस्तार से बतायें --पढ़ें- ज्योतिषी झा मेरठ 





 --उत्तर -वत्स -सृष्टि की रचना के बाद जब पृथ्वी को स्थापित किया श्री हरि ने तो घरती पर -अग्नि ,वायु ,जल ,सूर्य देवों के बिना जीवों का रहना कठिन था | अतः सभी देव तो अपने -अपने लोकों को गये किन्तु ये देव सभी जीवों की रक्षा हेतु मृत्यलोक में ही रहे | ---वत्स हम सबके प्रत्यक्ष देवता वर्तमान में यहीं है साथ ही समस्त जीव प्रथम इनकी ही आराधना करते हैं | ----प्रमाण --चराचर जगत में भले ही भाषा अलग-अलग हों या शकल अलग -अलग हों या रहन -सहन भिन्न -भिन्न हों पर निर्विरोध अग्नि ,सूर्य ,वायु ,जल की पूजा सभी करते हैं | कर्मकाण्ड जगत में सर्वप्रथम अग्नि की पूजा होती हैं ,संसार के प्रत्येक प्राणी दीप अवश्य जलाते हैं | इसी प्रकार से कर्मकाण्ड जगत में सूर्यदेव की पूजा दीप प्रज्ज्वलित होने के बाद ही होती है -संसार के समस्त प्राणी भगवान भास्कर को नमन अवश्य करते हैं | कर्मकाण्ड जगत में वायु को शुद्ध रखने हेतु हवन का विधान है साथ ही जो हवन में सामग्री डलती है उसका नाम शाकल्य है -इसका निर्माण -तिल ,जौ ,चवाल ,शक्कर एवं गुड़ से होता है जो वायु को शुद्ध तो करता ही है साथ ही जीवों को आरोग्य भी प्रदान करता है | प्रायः विश्व के सभी लोग वायु को शुद्ध रखने का प्रयत्न भी करते रहते हैं | जल अर्थात वरुणदेव -कर्मकाण्ड जगत में अग्नि ,सूर्य के बाद कलश यानि वरुणदेव का ही पूजन होता है --संसार में प्रायः सभी किसी ,न किसी आयोजन में कलश को सिरोधार्य अवश्य ही करते हैं | ये चारो देव प्रत्यक्ष देवता हैं जबतक जगत रहेगा इनकी आराधना सभी जन निर्विघ्नता पूर्वक करते रहेगें | आगे की चर्चा कल करेंगें | -----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

2023 -अपनी जीवनी हमने --2017+18 में लिखी थी -पढ़ें - भाग -41 -ज्योतिषी झा मेरठ

2023 -अपनी जीवनी हमने --2017+18 में लिखी थी | जीवनी लिखने में बहुत सी ऐसी बातें होतीं हैं --जिनका उल्लेख करें या नहीं करें --जो हम कह रहे हैं वो तार्किक शब्द हैं या प्रामाणिक --इन तमाम बातों की वजह से केवल --34 भाग हमने प्रसारित किया था | आज -27 /01 /2023 है --अब मुझे जब तमाम साक्ष्य मिल चुके हैं --अब मैं बिल्कुल शान्त स्वभाव में हूँ --तो मुझको लगता है -जो भी हमारे तमाम पाठकगण हैं उनके जीवन में किसी भी प्रकार के कष्ट आते हैं --तो सामना कैसे करना चाहिए --यही मेरा उदेश्य है --क्योंकि ग्रहों के खेल निराले होते हैं --जिसे अनुभवी व्यक्ति ठीक से सामना करता है | ---अस्तु --माँ बढियाँ थी, है और रहेगी --पर माँ का दायित्व भी बड़ा होता है जिसे शाम ,दाम ,भेद का भी प्रयोग करना होता है| --प्रत्येक माँ को चाहिए जब बहु माँ बन जाये --तो अपना दायित्व सौंप देना चाहिए और ईस्वर का सान्निध्य प्राप्त करना चाहिए| ---माँ ने जो समर्पण दिखाया था मुझे बाल्य्काल में बदले में --हमने भी अपने आप को माँ को ही समर्पित कर दिया था --जब मेरी उम्र -14 वर्ष थी घर की जिम्मेदारी उठा ली थी | आश्रम में जब पढ़ रहा था -जब मैं यज्ञ में जाने लगा तो आय का साधन मिला --सारा धन माँ के हाथों में ही दिया था | --1988 -जब मेरठ आये यहाँ भी जो धन कमाया -माँ के हाथों में ही दिए | अपनी कमाई से ही मुम्बई पढ़ने गया था --पढ़ते -समय भी घर की जिम्मेदारी हमने ही उठाई थी | जमीन गिरवी थी तो हमने छुराई ,पिताजी का लोन बैंक का था -पतनी के जेवर भी मैं ही बेचा था | किसी ने पढ़ने के लिए -15000 दिए --1995 में -उससे ईंट हमने ही खरीदी थी | माँ की हर बातों का पालन सच्चे मन से किया हमने ---क्या ये तमाम बातें माँ को याद नहीं रही ----याद आज भी होगी ---मेरी कुण्डली में राजयोग है --इसके लिए जब मैं 13 वर्ष का था --रेलवे स्टेशन पर श्रीमाली जी किताब राशिफल --10 रूपये में खरीद कर पढ़ा करता था --ये मैं तभी से जनता हूँ | मैंने बहुत सी किताबों को इसलिए खरीदी ताकि मेरी कुण्डली में -सूर्य ,मंगल ,चन्द्रमा -बुध शुक्र की युति क्या -क्या लाभ देंगें --पर --इस और मेरा कभी ध्यान नहीं गया -शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में है साथ ही गुरु भी तीसरे भाव में हैं --ये क्या लाभ या हानि देंगें ---ये समझ जब आयी --तब मैं 30 वर्ष का हो चूका था | दो कन्या भी थी ,गरीबी भी थी --पर सावधान होने लगे --जब हम सावधान होने लगे तब तक खाई बहुत बढ़ चुकी थी | विवाह --1990 में हुआ --कभी पतनी की नहीं सुनी --सोचता था सारा धन पर अधिकार माँ का है --इसी का परिणाम यह था --दीदी का साम्राज्य हमारे यहाँ था | मामा का साम्राज्य हमारे घर में था | माँ साहूकार बन चुकी थी | मेरी पतनी और बच्चों को कुछ नहीं --पतनी ने बहुत मुझे समझाने की कोशिश की पर --दिल है कि मानता नहीं ---परिणाम -बढियाँ आलीशान भवन बना ,किरायेदार रहने लगे ,अनुज भी बढियाँ कमाने लगा --जब मुझे अकल आयी तो सब एक हो गए ---क्योंकि तब मेरी दो बेटियाँ --भाई ,बहिन मामा ,पिता माता को दिखने लगी --सभी सोचने लगे -मौज करो --अब इससे दूरी बनालो --क्योंकि हमारे सुख में टांड अड़ायेगा ----भाई की शादी हुई मुझे नहीं पता --बारात आने का निमंत्रण मिला था --नहीं जाना उचित समझें | --जो जीजा मेरी शादी में नहीं गए --वो अनुज की शादी में जरूर गए| --मैंने कहा मुझे मकान नहीं चाहिए --खुद बनाऊंगा --पिता बोले मेरी लाज की पगड़ी रखो --50000 दिए --2000 सन में | फिर तीन माह बाद बोले छत बनानी है 85000 भेज दो --हमने 10000 दिए | फिर क्या था सभी एक साथ हो गए --बोले कुछ नहीं मिलेगा --मेरे जीते जी -------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

 

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...