2023
-अपनी जीवनी हमने --2017+18 में लिखी थी | जीवनी लिखने में बहुत सी ऐसी
बातें होतीं हैं --जिनका उल्लेख करें या नहीं करें --जो हम कह रहे हैं वो
तार्किक शब्द हैं या प्रामाणिक --इन तमाम बातों की वजह से केवल --34 भाग
हमने प्रसारित किया था | आज -27 /01 /2023 है --अब मुझे जब तमाम साक्ष्य
मिल चुके हैं --अब मैं बिल्कुल शान्त स्वभाव में हूँ --तो मुझको लगता है
-जो भी हमारे तमाम पाठकगण हैं उनके जीवन में किसी भी प्रकार के कष्ट आते
हैं --तो सामना कैसे करना चाहिए --यही मेरा उदेश्य है --क्योंकि ग्रहों के
खेल निराले होते हैं --जिसे अनुभवी व्यक्ति ठीक से सामना करता है |
---अस्तु --माँ बढियाँ थी, है और रहेगी --पर माँ का दायित्व भी बड़ा होता है
जिसे शाम ,दाम ,भेद का भी प्रयोग करना होता है| --प्रत्येक माँ को चाहिए
जब बहु माँ बन जाये --तो अपना दायित्व सौंप देना चाहिए और ईस्वर का
सान्निध्य प्राप्त करना चाहिए| ---माँ ने जो समर्पण दिखाया था मुझे
बाल्य्काल में बदले में --हमने भी अपने आप को माँ को ही समर्पित कर दिया था
--जब मेरी उम्र -14 वर्ष थी घर की जिम्मेदारी उठा ली थी | आश्रम में जब पढ़
रहा था -जब मैं यज्ञ में जाने लगा तो आय का साधन मिला --सारा धन माँ के
हाथों में ही दिया था | --1988 -जब मेरठ आये यहाँ भी जो धन कमाया -माँ के
हाथों में ही दिए | अपनी कमाई से ही मुम्बई पढ़ने गया था --पढ़ते -समय भी घर
की जिम्मेदारी हमने ही उठाई थी | जमीन गिरवी थी तो हमने छुराई ,पिताजी का
लोन बैंक का था -पतनी के जेवर भी मैं ही बेचा था | किसी ने पढ़ने के लिए
-15000 दिए --1995 में -उससे ईंट हमने ही खरीदी थी | माँ की हर बातों का
पालन सच्चे मन से किया हमने ---क्या ये तमाम बातें माँ को याद नहीं रही
----याद आज भी होगी ---मेरी कुण्डली में राजयोग है --इसके लिए जब मैं 13
वर्ष का था --रेलवे स्टेशन पर श्रीमाली जी किताब राशिफल --10 रूपये में
खरीद कर पढ़ा करता था --ये मैं तभी से जनता हूँ | मैंने बहुत सी किताबों को
इसलिए खरीदी ताकि मेरी कुण्डली में -सूर्य ,मंगल ,चन्द्रमा -बुध शुक्र की
युति क्या -क्या लाभ देंगें --पर --इस और मेरा कभी ध्यान नहीं गया -शनि नीच
का भाग्य क्षेत्र में है साथ ही गुरु भी तीसरे भाव में हैं --ये क्या लाभ
या हानि देंगें ---ये समझ जब आयी --तब मैं 30 वर्ष का हो चूका था | दो
कन्या भी थी ,गरीबी भी थी --पर सावधान होने लगे --जब हम सावधान होने लगे तब
तक खाई बहुत बढ़ चुकी थी | विवाह --1990 में हुआ --कभी पतनी की नहीं सुनी
--सोचता था सारा धन पर अधिकार माँ का है --इसी का परिणाम यह था --दीदी का
साम्राज्य हमारे यहाँ था | मामा का साम्राज्य हमारे घर में था | माँ
साहूकार बन चुकी थी | मेरी पतनी और बच्चों को कुछ नहीं --पतनी ने बहुत मुझे
समझाने की कोशिश की पर --दिल है कि मानता नहीं ---परिणाम -बढियाँ आलीशान
भवन बना ,किरायेदार रहने लगे ,अनुज भी बढियाँ कमाने लगा --जब मुझे अकल आयी
तो सब एक हो गए ---क्योंकि तब मेरी दो बेटियाँ --भाई ,बहिन मामा ,पिता माता
को दिखने लगी --सभी सोचने लगे -मौज करो --अब इससे दूरी बनालो --क्योंकि
हमारे सुख में टांड अड़ायेगा ----भाई की शादी हुई मुझे नहीं पता --बारात आने
का निमंत्रण मिला था --नहीं जाना उचित समझें | --जो जीजा मेरी शादी में
नहीं गए --वो अनुज की शादी में जरूर गए| --मैंने कहा मुझे मकान नहीं चाहिए
--खुद बनाऊंगा --पिता बोले मेरी लाज की पगड़ी रखो --50000 दिए --2000 सन में
| फिर तीन माह बाद बोले छत बनानी है 85000 भेज दो --हमने 10000 दिए | फिर
क्या था सभी एक साथ हो गए --बोले कुछ नहीं मिलेगा --मेरे जीते जी
-------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा
मेरठ----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए
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