ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023

भगवान की पूजा कैसे करें --सुनें -भाग -41 -ज्योतिषी झा "मेरठ "



 भगवान की पूजा कैसे करें --सुनें -भाग -41 -ज्योतिषी झा "मेरठ "
सनातन संस्कृति में पूजा के अनन्त विधान हैं | एक हवनात्मक पूजा होती है | दूसरी यज्ञात्मक पूजा होती है | --हवन के द्वारा ईस्वर प्रसन्न किया जाता है --इसे हवनात्मक पूजा कहते हैं | यज्ञों के द्वारा जिसमें अनन्त सामग्री की जरुरत होती है ---उसे यज्ञात्मक पूजा कहते हैं | --तमाम बातों को क्रम से सुनते रहें -----भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा -मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से ---ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को सुनने या पढ़ने हेतु प्रस्तुत लिंक -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut पर पधारें साथ ही निःशुल्क आनन्द लेते रहें |

कुछ देवों को क्यों -धरती पर रहना पड़ा -विस्तार से बतायें -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ

  प्रश्न -कुछ देवों को क्यों -धरती पर रहना पड़ा -विस्तार से बतायें --पढ़ें- ज्योतिषी झा मेरठ 





 --उत्तर -वत्स -सृष्टि की रचना के बाद जब पृथ्वी को स्थापित किया श्री हरि ने तो घरती पर -अग्नि ,वायु ,जल ,सूर्य देवों के बिना जीवों का रहना कठिन था | अतः सभी देव तो अपने -अपने लोकों को गये किन्तु ये देव सभी जीवों की रक्षा हेतु मृत्यलोक में ही रहे | ---वत्स हम सबके प्रत्यक्ष देवता वर्तमान में यहीं है साथ ही समस्त जीव प्रथम इनकी ही आराधना करते हैं | ----प्रमाण --चराचर जगत में भले ही भाषा अलग-अलग हों या शकल अलग -अलग हों या रहन -सहन भिन्न -भिन्न हों पर निर्विरोध अग्नि ,सूर्य ,वायु ,जल की पूजा सभी करते हैं | कर्मकाण्ड जगत में सर्वप्रथम अग्नि की पूजा होती हैं ,संसार के प्रत्येक प्राणी दीप अवश्य जलाते हैं | इसी प्रकार से कर्मकाण्ड जगत में सूर्यदेव की पूजा दीप प्रज्ज्वलित होने के बाद ही होती है -संसार के समस्त प्राणी भगवान भास्कर को नमन अवश्य करते हैं | कर्मकाण्ड जगत में वायु को शुद्ध रखने हेतु हवन का विधान है साथ ही जो हवन में सामग्री डलती है उसका नाम शाकल्य है -इसका निर्माण -तिल ,जौ ,चवाल ,शक्कर एवं गुड़ से होता है जो वायु को शुद्ध तो करता ही है साथ ही जीवों को आरोग्य भी प्रदान करता है | प्रायः विश्व के सभी लोग वायु को शुद्ध रखने का प्रयत्न भी करते रहते हैं | जल अर्थात वरुणदेव -कर्मकाण्ड जगत में अग्नि ,सूर्य के बाद कलश यानि वरुणदेव का ही पूजन होता है --संसार में प्रायः सभी किसी ,न किसी आयोजन में कलश को सिरोधार्य अवश्य ही करते हैं | ये चारो देव प्रत्यक्ष देवता हैं जबतक जगत रहेगा इनकी आराधना सभी जन निर्विघ्नता पूर्वक करते रहेगें | आगे की चर्चा कल करेंगें | -----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

2023 -अपनी जीवनी हमने --2017+18 में लिखी थी -पढ़ें - भाग -41 -ज्योतिषी झा मेरठ

2023 -अपनी जीवनी हमने --2017+18 में लिखी थी | जीवनी लिखने में बहुत सी ऐसी बातें होतीं हैं --जिनका उल्लेख करें या नहीं करें --जो हम कह रहे हैं वो तार्किक शब्द हैं या प्रामाणिक --इन तमाम बातों की वजह से केवल --34 भाग हमने प्रसारित किया था | आज -27 /01 /2023 है --अब मुझे जब तमाम साक्ष्य मिल चुके हैं --अब मैं बिल्कुल शान्त स्वभाव में हूँ --तो मुझको लगता है -जो भी हमारे तमाम पाठकगण हैं उनके जीवन में किसी भी प्रकार के कष्ट आते हैं --तो सामना कैसे करना चाहिए --यही मेरा उदेश्य है --क्योंकि ग्रहों के खेल निराले होते हैं --जिसे अनुभवी व्यक्ति ठीक से सामना करता है | ---अस्तु --माँ बढियाँ थी, है और रहेगी --पर माँ का दायित्व भी बड़ा होता है जिसे शाम ,दाम ,भेद का भी प्रयोग करना होता है| --प्रत्येक माँ को चाहिए जब बहु माँ बन जाये --तो अपना दायित्व सौंप देना चाहिए और ईस्वर का सान्निध्य प्राप्त करना चाहिए| ---माँ ने जो समर्पण दिखाया था मुझे बाल्य्काल में बदले में --हमने भी अपने आप को माँ को ही समर्पित कर दिया था --जब मेरी उम्र -14 वर्ष थी घर की जिम्मेदारी उठा ली थी | आश्रम में जब पढ़ रहा था -जब मैं यज्ञ में जाने लगा तो आय का साधन मिला --सारा धन माँ के हाथों में ही दिया था | --1988 -जब मेरठ आये यहाँ भी जो धन कमाया -माँ के हाथों में ही दिए | अपनी कमाई से ही मुम्बई पढ़ने गया था --पढ़ते -समय भी घर की जिम्मेदारी हमने ही उठाई थी | जमीन गिरवी थी तो हमने छुराई ,पिताजी का लोन बैंक का था -पतनी के जेवर भी मैं ही बेचा था | किसी ने पढ़ने के लिए -15000 दिए --1995 में -उससे ईंट हमने ही खरीदी थी | माँ की हर बातों का पालन सच्चे मन से किया हमने ---क्या ये तमाम बातें माँ को याद नहीं रही ----याद आज भी होगी ---मेरी कुण्डली में राजयोग है --इसके लिए जब मैं 13 वर्ष का था --रेलवे स्टेशन पर श्रीमाली जी किताब राशिफल --10 रूपये में खरीद कर पढ़ा करता था --ये मैं तभी से जनता हूँ | मैंने बहुत सी किताबों को इसलिए खरीदी ताकि मेरी कुण्डली में -सूर्य ,मंगल ,चन्द्रमा -बुध शुक्र की युति क्या -क्या लाभ देंगें --पर --इस और मेरा कभी ध्यान नहीं गया -शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में है साथ ही गुरु भी तीसरे भाव में हैं --ये क्या लाभ या हानि देंगें ---ये समझ जब आयी --तब मैं 30 वर्ष का हो चूका था | दो कन्या भी थी ,गरीबी भी थी --पर सावधान होने लगे --जब हम सावधान होने लगे तब तक खाई बहुत बढ़ चुकी थी | विवाह --1990 में हुआ --कभी पतनी की नहीं सुनी --सोचता था सारा धन पर अधिकार माँ का है --इसी का परिणाम यह था --दीदी का साम्राज्य हमारे यहाँ था | मामा का साम्राज्य हमारे घर में था | माँ साहूकार बन चुकी थी | मेरी पतनी और बच्चों को कुछ नहीं --पतनी ने बहुत मुझे समझाने की कोशिश की पर --दिल है कि मानता नहीं ---परिणाम -बढियाँ आलीशान भवन बना ,किरायेदार रहने लगे ,अनुज भी बढियाँ कमाने लगा --जब मुझे अकल आयी तो सब एक हो गए ---क्योंकि तब मेरी दो बेटियाँ --भाई ,बहिन मामा ,पिता माता को दिखने लगी --सभी सोचने लगे -मौज करो --अब इससे दूरी बनालो --क्योंकि हमारे सुख में टांड अड़ायेगा ----भाई की शादी हुई मुझे नहीं पता --बारात आने का निमंत्रण मिला था --नहीं जाना उचित समझें | --जो जीजा मेरी शादी में नहीं गए --वो अनुज की शादी में जरूर गए| --मैंने कहा मुझे मकान नहीं चाहिए --खुद बनाऊंगा --पिता बोले मेरी लाज की पगड़ी रखो --50000 दिए --2000 सन में | फिर तीन माह बाद बोले छत बनानी है 85000 भेज दो --हमने 10000 दिए | फिर क्या था सभी एक साथ हो गए --बोले कुछ नहीं मिलेगा --मेरे जीते जी -------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

 

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2023

कर्मकण्ड का प्रतिपादन शाण्डिल्य ऋषि ने क्यों किया सुनें -भाग -40 -ज्योतिषी झा मेरठ



 कर्मकण्ड का प्रतिपादन शाण्डिल्य ऋषि ने क्यों किया सुनें -भाग -40 -ज्योतिषी झा मेरठ 

पूजा से सम्बन्धित अनन्त बातों को सुनें भाग -40 --ज्योतिषी झा मेरठ
पूजा किसे कहते हैं | पूजा कैसे करनी चाहिए --कर्मकाण्ड की तमाम बातों को ठीक से सुनें और पथ का अनुशरण करें -लाभ मिलेगा | ------दोस्तों ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड जगत की तमाम बातों को लोग जो पढ़ते हैं वो या तो किसी के पूर्व उल्लेख हैं या कभी किसी आचार्य ने ये बातें कहीं थीं किन्तु हम आपको वर्तमान समय में अपनी कुण्डली से समस्त अपनी जीवनी को दर्शाऊँगा --जो केवल सत्य पर आधारित होगी | न लोभ से ,न द्वेष से ,न मोह से केवल जिज्ञासा से तो --सभी बातों को वीडियों के माध्यम से सुनते रहें और अपना -अपना आशीष प्रदान करते रहें ---आपका -खगोलशास्त्री झा मेरठ --ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut में उपलब्ध हैं |

सृष्टि पर अजर अमर क्यों और कौन -कौन हैं-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ



 सृष्टि पर अजर अमर क्यों और कौन -कौन हैं-पढ़ें-ज्योतिषी झा मेरठ 



 --वत्स -सृष्टि के नियम हैं -जो आया है उसको जाना होता है | पर कुछ चीजें अमर रहतीं हैं अतः सृष्टि पर आजतक कोई उत्पन्न हुआ व्यक्ति अजर अमर नहीं हुए किन्तु उन्होंने कुछ ऐसे कर्म किये जिसकी वजह से जबतक सृष्टि रहेगी अजर और अमर रहेंगें | ---1 -अश्व्थामा का नाम अजर और अमर रहेगा | --2 राजा वली का नाम अजर और अमर रहेगा | 3 -श्री व्यासजी का नाम अजर अमर रहेगा | 4 -श्री हनुमानजी का नाम अजर और अमर रहेगा |5 विभीषणजी का नाम अजर और अमर रहेगा |6 - कृपाचार्यजी का नाम अजर और अमर रहेगा | 7 महर्षि -परशुरामजी का नाम अजर और अमर रहेगा | ----इन सभी महान पुरुषों ने ऐसे कार्य किये जिनकी वजह से जबतक सृष्टि रहेगी इनके नाम चलते रहेंगें या ये कहें -इनके उदाहरणों का दृष्टान्त मिलते रहेंगें | ---दोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा अपनी करनी के कारण क्योंकि जबतक भागवत की चर्चा होती रहेगी इनके नाम भी सामने आते रहेगें | राजा वली --जैसा महादानी आजतक पृथ्वी पर नहीं हुआ --इसलिए जब भी दान की बात होगी या भागवत कथा रहेगी इनके नाम की चर्चा होती रहेगी | भगवान व्यास ने वेदों की रचना की पुराणों की रचना की जबतक -कथा ,पूजा, पाठ या यज्ञों की बात होती रहेगी ये अमर रहेंगें | श्री हनुमानजी महराज ने भक्ति का ऐसा उदारहरण प्रस्तुत किया जबतक धर्म की चर्चा होती रहेगी भक्ति के कारण अटल श्री हनुमानजी का नाम अजर -अमर रहेगा | श्री विभीषणजी ने श्री रामजी की सहायता कर अमर हो गए जबतक रामायण की परिचर्चा होगी अमर रहेंगें श्री विभीषणजी | कुलगुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है अतः जबतक यज्ञादि में गुरुजनों की चर्चा होगी तो कृपाचार्य जी अमर रहेंगें | --भगवान श्री परशुरामजी ने पिता की भक्ति का जो उदारण दिए वो जब -जब पुत्र का कर्तव्य क्या है कि चर्चा होगी -नाम अजर और अमर रहेंगें --इन सभी महापुरुषों के | ज्योतिष की फ्री एकबार सेवा कैसे मिलेगी -ठीक से पढ़ें या सुनें !------दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

माँ शब्द की व्याख्या या व्युत्पत्ति या भावार्थ निकालना बहुत सहज नहीं है -पढ़ें - भाग -40 -ज्योतिषी झा मेरठ


 "मेरा" कल आज और कल -


पढ़ें ?--- भाग -40 -ज्योतिषी झा मेरठ

माँ शब्द की व्याख्या या व्युत्पत्ति या भावार्थ निकालना बहुत सहज नहीं है | --माँ छत्रछाया है ,माँ कृपा की मूर्ति है ,माँ ममतामयी है ---माँ के लिए सबका द्वार एक जैसा ही होता है --चाहे उसकी कोख से जन्मा अज्ञानी हो या ज्ञानी --सभी संतानें एक जैसी ही माँ को लगती है --माँ के दर पे कोई भेद भाव नहीं होता है | --मैं जब चोर था तब भी माँ के लिए वैसा ही था ,मेरे जीवन में माँ का भी बड़ा योगदान रहा है --भले ही मेरी माँ अनपढ़ थी -पर मुझको पढ़ाया है ,आश्रम में वही तो गयी थी नानी के साथ और 10 रूपये भी दिए थे | जब दीवाल गिरी तो न दीपक था न लालटेन पर माँ मुझको सबसे पहले ढूंढ रही थी | जब मैं कॉलेज में पढ़ने लगा तो 100 प्रतिमाह यही तो देती थी | एकबार पिता से युद्ध हुआ तो मैं रात के समय भागा गन्धराईन {अंधराठाढ़ी} से अपने गांव आया 15 किलोमाटर का सफर था --सांप मेरे पैरों में लिपट गया --मुझे पता नहीं मेरे पैरों में खून था क्योंकि मैं भागा -भागा माँ के पास ही तो आया था --भले ही औषधि की सामर्थ नहीं थी पर गरम पानी से साफ किया और देवताओं से दुआ मांगी थी --आज मैं इसलिए तो जिन्दा हूँ| जब भी घर से निकला तो पलकें बिछाये मेरी राह तो माँ ही देख रही थी | जब मैं रेडियो चुराया --गरीबी सही ईमानदार थी तभी तो चचेरे भाई से बोली गाली मत दो मैं रेडियो अपने भाई से दिल्ली से मंगबाकर दूंगीं --जबकि मैं तो चोर था | जिस पिता को घर की जिम्मेदारी सम्भालनी चाहिए वो काम तो माँ ने किया | शादी भी माँ ने करायी भले ही नानी का योगदान था --पर नानी भी तो माँ की माँ थी | --जब गरीबी थी तो खुद कई दिन खाना नहीं खाया पर मुझको तो पहले खिलाती थी | ---मेरी माँ में अनन्त गुण हैं --पर एक अबगुण ने --मुझे मरने पर विवस कर दिया --सत्ता और प्रभुता --बड़ा होना सहज है --पर उन धर्मों का भी पालन करना होता है जो सत्ता और प्रभुता के लिए अनिवार्य हैं --और मैं यही करना चाहता था --मैं चाहता था --मेरी माँ भले ही गरीबी देखी है --अब बढियाँ पहनें ,बढियाँ खाये ,अपने घर से बाहर न जाये ,मेरी माँ के पास लोग आये ,मेरी माँ सबकी अवश्य मदद करें पर सामर्थ के अनुसार ,मेरी माँ केवल दुआ मांगें तप की दुनिया में रहे ,किसी से लेनी -देनी ऐसी न करे जो जो दूसरे की हो ,अपने समय का सदुपयोग करे | ----ये वो राहें थी --जो असंभव थी --क्योंकि मेरे घर में दीदी का सदा साम्राज्य रहा है ,दीदी के पैसे व्याज पर लगाती रही है --घाटा होने पर हमारे पैसों से पूर्ति करती थी | सम्पूर्ण जीवन दीदी अपने बच्चों के साथ मेरे यहाँ निवास किया है----जबकि कोई अभाव नहीं है --ये बात मेरी माँ की समझ में क्यों नहीं आयी है | दूसरा कारण मेरे मामा रहे मेरे यहाँ शिक्षा मिली -सरकारी नौकरी मिली --करोड़पति हैं कभी भी --इतना नहीं कह सके --दीदी --जैसा बेटा -बहु कहते हैं वही करो ---बच्चों के सुख में ही माता पिता सुखी होते हैं | ---मैं अपनी कुण्डली देखी तो-- मेरा भाग्येश ,चतुर्थेश लग्न में विराजमान है --लग्नेश के साथ यह सर्वोत्तम योग है --सिंह लग्न की कुण्डली में सूर्य और मंगल लग्न में विराजमान हो चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में विराजमान हो --उस जातक को माता ,सम्पत्ति ,वाहन ,भवन का पूर्ण सुख प्राप्त होता है ---ये तमाम सुख मुझे मिले ---फिर ऐसा क्या था ------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

कर्मकाण्ड -"पूजा +पाठ " कहते किसे हैं सुनें भाग -39 -ज्योतिषी झा मेरठ



कर्मकाण्ड -"पूजा +पाठ " कहते किसे हैं सुनें भाग -39 -ज्योतिषी झा मेरठ 

कर्मकाण्ड एवं ज्योतिष किसे कहते हैं सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ - भाग 39
ज्योतिष और कर्मकाण्ड के श्रोतागण --आप सबके मन में ज्योतिष और कर्मकाण्ड से सम्बंधित अनन्त प्रश्न मन में उठते होगें | यद्पि मैं स्वयं अल्प ज्ञानी हूँ --फिर भी जितना अनुभव है उतना तो बताने का प्रयास कर ही सकता हूँ --तो सुनें --पूजा कैसे करनी चाहिए ,ज्योतिष का सहारा कब लेना चाहिए ----ज्योतिष या कर्मकाण्ड विषय से सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज में-https://www.facebook.com/astrologerjha/ उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई "

सृष्टि को जाने बिना ज्योतिष और कर्मकाण्ड को समझाना अनुचित है-पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 प्रश्न -क्या सृष्टि को जाने बिना ज्योतिष और कर्मकाण्ड को समझाना अनुचित है-पढ़ें?-ज्योतिषी झा मेरठ



उतर -यद्पि आप ज्योतिष और कर्मकाण्ड को समझ सकते हैं किन्तु --जैसे परीक्षा के लिए छात्र किताब की जगह प्रश्नोत्तरी का अध्ययन करते हैं -और उनका ज्ञान अधूरा रहता है | जबकि उपाधि से विभूषित भी रहते हैं | ---अतः ज्योतिष और कर्मकाण्ड को समझने से पहले यथार्थ को समझें | तभी आप एक योग्य पण्डित या ज्योतिषी हो सकते हैं | -प्रश्न ---क्या विधाता ब्रह्मा भी सृष्टि में उलझ गए थे ?उत्तर --कुछ पुराणों में यह कथा आती है -ब्रह्माजी भी आदि शक्ति को देखकर मोहित हो चुके थे | ज्योतिष में जब कोई योग नहीं बनता है तब सर्बार्थ सिद्ध योग में कोई भी कार्य कर कर सकते हैं किन्तु --जबसे यह कथा बनी तबसे -विवाह संस्कार सभी नक्षत्रों में हो सकता है किन्तु सर्बार्थ सिद्ध योग में वर्जित होता है | पंचकों में भी विवाह होता है कोई दोष नहीं लगता है | -----सृष्टि में हमलोग कहाँ स्थित हैं ?उत्तर ---भू लोक ,भुवर लोक, स्वर लोक,मध्यलोक ,जनलोक ,तप लोक और सत्य लोक --ये सतलोक पृथ्वी के ऊपर हैं और तल ,अतल इत्यादि सप्तलोक पृथ्वी के नीचे हैं | हमलोग मध्यलोक अर्थात बीच में स्थित हैं | --प्रश्न --देवता किसे कहते हैं ?-उत्तर ---जो अवतरित होते हैं उन्हें देवता कहते हैं --ये वास्तव में परमशक्ति के अंश होते हैं -जिनको कर्मकाण्ड के प्रत्येक {अनुष्ठान} यज्ञ में भाग दिया जाता है --ये तभी समझ में आते हैं | --प्रश्न ---फिर भगवान कौन होते हैं ?उत्तर ---गर्भ से उत्पन्न होने वाले को भगवान कहते हैं | कोई भी माँ कर्मनिष्ठ बनकर ऐसी संतान को जन्म दे सकतीं हैं | --तथा जो अविरल अचम्भित करने वाले जन्म लेते हैं उनके कर्मो से उनको भगवान का पद प्राप्त होता हैं ---गौतम बुध ,भगवान व्यास इत्यादि | प्रश्न ---फिर परमतत्व क्या होता है ?उतर --संसार में एक ही परमतत्व है -वो अजन्मा है अविनाशी है -वही अनंत रूप धारण करते हैं | वही स्रष्टा है -वही श्री हरी हैं - वही ब्रह्मा है- वही शिव हैं | संसार की सभी चीजें उनमें ही हैं वो जब चाहे जैसे चाहें चलाते हैं किन्तु नियमावली से वो भी बंधे होते हैं ---इसलिए कोई सत्य तो चित तो कोई आनंद के नामों से जनता है |--आगे की चर्चा आगे करेंगें "ॐ "--दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -39 -ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -39 -ज्योतिषी झा मेरठ

बड़ा पुत्र होना वरदान या अभिशाप है ---अपनी कसौटी पर परखने के बाद ही अहसास किया जा सकता है | --रामचरित मानस में श्री राम का राज्याभिषेक होते ही पाठ पूर्ण हो जाता है जबकि वस्तुतः --उत्तरकाण्ड के बिना रामायण अधूरी है --यह बात केवल ज्ञानी पुरुष ही समझ सकता है | --अस्तु --मुझे जो कुछ भी मिला है वो पिता की देन है वो न होते तो मेरा क्या अस्तित्व होता | हर पिता अपने बड़े पुत्र को अपने अनुसार ढालना चाहते हैं --परिणाम यह होता है --माँ को बड़ा पुत्र तभी खो देता है जब पिता की राह चलता है | मेरे साथ ऐसा ही हुआ --पिता की बताई राह पर चला तो --पिता में ही समा गया --मुझे भले ही पिता ने कुछ दिखाया नहीं, बताया नहीं पर अनुसरण मैं पिता का ही करता गया | पिता मान हैं ,पिता शान हैं ,पिता अभिमान भी हैं किन्तु --ममतामयी नहीं हो सकते --यह आशीर्वाद केवल छोटी सन्तान को माँ से मिलती है | जीवन भर पिता के वसूलों पर चलते -चलते --बड़ा पुत्र --न भाई का न बहिन का ,न माँ का ,न परिजनों का होता है बल्कि उसे हर वो काम करना होता है --जिससे पिता को ठेंस न पहुंचे --अन्त में उसे मृत्यु के सिवा कुछ नहीं दिखता है | मेरे साथ ऐसा ही हुआ | पिता आश्रम छोड़ कर आ गए उम्र थी --13 वर्ष --फिर कभी देखने नहीं गए --गयी तो माँ और नानी देखने | आश्रम से निकाला तो --पिता नहीं ताऊ छोड़ आये | पातेपुर जिला वैशाली पढ़ने गए तो खुद गए | मेरठ आये तो खुद आये | शादी करबादी --पर सारा कर्य मुझ पर डाल दिए | घर की गरीबी थी तो हमने गरीबी हटाई --पूजा से, दान से, कमाई से | मुझे किसी ने --15000 दिए पढ़ने के लिए --1995 में वो सारा धन से ईंट खरीदी | पतनी का मंगलसूत्र बेचा तो पिता के कहने से | पतनी का आदर नहीं किया तो ये सोचता था पिता हैं न देख लेंगें पर कभी देखा नहीं | जब पिता को मजबूत किया तो सबसे कमजोर मैं ही हुआ | जीवन भर -सत्यं वद ,घर्मं चर - -यही सीखता रहा --यही करता रहा --पर मातृदेवो भव यह उच्चारण पहला होता है --यह एक शास्त्री होकर भी नहीं सीख पाया | जब पिता से हिसाब माँगा तो बोले काहे का हिसाब --जो दिया खाया | भाई -भाई का युद्ध हुआ तो मेरी दो कन्या थी --माता पिता -छोटे से बोले तू गरीब हो जायेगा क्योंकि तू अनपढ़ है ,ये पढ़ा लिखा है --ये कभी गरीब नहीं होगा | जब हिस्सा की बारी आयी तो मुझे कम और खराब भाग मिला --क्योंकि तब तक मुझे अकल आ चुकी थी --42 वर्ष का हो चूका था | जीवन भर सोचता रहा पिता को तकलीफ न हो --यह धर्म है यह अधर्म है | पर घर्म की परिभाषा लोग अपने -अपने अनुसार करते हैं ---मेरा एक ही घर्म था पिता की शान पर सदा खड़ा उतरु ---इसका परिणाम यह हुआ --न पतनी के हो सके , न माँ के हो सके न भाई -बहिन के हो सके न ही परिजनों के हुए ---अन्त में मृत्यु ही नजर आने लगी | ---2015 ,16 ,17 --तक आत्म मंथन करने के बाद --इस निष्कर्ष पर पहुंचा ---अपनी आत्मकथा लिखें --तो हो सकता है --कमी कहां रह गयी मिल जाय --पर लिखना बहुत आसान नहीं था --कई -कई रात निन्द नहीं आयी ,कई बार मोटर साइकिल से टकरा गया --चलता किघर और था मन कहीं और था ----जबकि 4 जी नेट था ,100 +500 रूपये की भरपूर मात्रा में सेवा चल रही थी | फ्री सेवा पूर्ण यौवनमें थी | गुजरात +राजस्थान के बहुत से लोग अमेरिका में रहते हैं | सेवा लेने के बाद 2 तीन लोग अमेरिका ले जाना चाहते थे --मेरा यह सपना --1994 वर्ष जब मैं मुम्बई में पढता था तो घर की माली हालत के कारण रह गया था --मैं अमेरिका जाना भी चाहता था ---पर होनी को किसने रोकी है ----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

मेरे पिता महान थे फिर भी कभी बनी नहीं क्यों- सुनें-भाग -38-ज्योतिषी झा मेरठ


 मेरे पिता महान थे फिर भी कभी बनी  नहीं क्यों- सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ 


"मेरा" कल आज और कल सम्पूर्ण कथा सुनें - -ज्योतिषी झा "मेरठ "भाग -38
-दोस्तों ज्योतिष जगत की तमाम बातों को लोग जो पढ़ते हैं वो या तो किसी के पूर्व उल्लेख हैं या कभी किसी आचार्य ने ये बातें कहीं थीं किन्तु हम आपको वर्तमान समय में अपनी कुण्डली से समस्त अपनी जीवनी को दर्शाऊँगा --जो केवल सत्य पर आधारित होगी | न लोभ से ,न द्वेष से ,न मोह से केवल जिज्ञासा से तो --सभी बातों को वीडियों के माध्यम से सुनते रहें और अपना -अपना आशीष प्रदान करते रहें --- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

जगत की रचना क्यों हुई एवं नियमावली क्या थी -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


 
जगत की रचना क्यों हुई एवं नियमावली क्या थी -पढ़ें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



 --वत्स --तुमने उत्तम प्रश्न किया- क्योंकि प्रत्येक निर्माणकर्ता की उत्सुकता रहती है -कि हमारी बातें या चीजें जन -जन तक पंहुचे तभी कार्य की सार्थकता मानी जाती है | ----अस्तु --जैसे प्रत्येक माता पिता संतानों के बिना अधूरे रहते हैं ,या प्रत्येक गुरु उत्तम शिष्य के बिना अधूरे रहते हैं ठीक इसी प्रकार से -जगतपिता भी जगत रचना के बिना अधूरे थे | क्योंकि परमतत्व और परमात्मा की पहचान तो केवल मानव से ही संभव था | संसार में तीन प्रकार के जीव हैं --अण्डज --जो अण्डों से उत्पन्न होते हैं | स्वेदज -जो पसीनों से उत्पन्न होते हैं | उद्भिज --जो उदर से जन्म लेते हैं | इनमें सभी जीव कहलाते हैं सबकी जीने की प्रक्रिया एक जैसी होती हैं किन्तु उदर में भी जो मनुष्य योनि है -उससे अवतरित होने वाले ही परमतत्व को जानने वाले होते हैं | यहाँ यह समझने वाली बात है कि प्रत्येक माता पिता या गुरु अपने से उत्तम पुत्र या शिष्य पाकर ही गदगद होते हैं अन्यथा ये असंतुष्ट रहते हैं | ऐसे ही जगत रचयिता ब्रह्मा ,पालनकर्ता श्रीहरि या संहारकर्ता शिव भी जगत के बिना अधूरे थे साथ ही उन देवों की भी मनसा थी हमें चुनौती देने वाले या हमारी प्रसन्नता को देने वाले केवल मानव ही है | अतः जगत में चौरासी लाख हजार योनियों में नियंत्रण करने की शक्ति केवल मनुष्य को मिली | आज भी प्रत्येक व्यक्ति अपनी अंगुली से चौरासी

अँगुलियों का होता है | साढ़े तीन हाथ का प्रत्येक व्यक्ति होता है | ---इस जगत का नियंत्रण एक छोटा कद का व्यक्ति कैसे करें --इसके लिए मन्त्रों के निर्माण हुए जो अदृश्य शक्ति के रूप में मानवों की सहायता करते हैं | बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सामना करने में मदद करते हैं | यह मन्त्र भी तीन प्रकार के हैं -तंत्र -अर्थात असंभव को संभव बनाने में काम आते हैं | यंत्र --जो कम श्रम से शीघ्र कार्य करें | मन्त्र -ये भी तीन प्रकार के हैं --वैदिक मन्त्र जो केवल सत्य पर आधारित हैं --इनको पाने के लिए अत्यधिक कठिनाइयां झेलनी होती हैं | इसे पाने के लिए सत्पात्र बनना होता | इसका प्रभाव अचूक होता है यह निष्फल नहीं होते हैं | पौराणिक मन्त्र का प्रयोग यंत्रों में होते हैं इसे कोई भी साध सकते हैं | तांत्रिक मन्त्र -ये केवल कुमार्गगामी ही इन मन्त्रों को अपनाते हैं ये तत्काल तो कार्य सिद्ध करते हैं किन्तु अंतिम परिणाम हानि भी पंहुचाते हैं | ---यथा राजा तथा प्रजा ---जैसा राजा होगा प्रजा भी वैसी ही होगी | जगत में उपभोग की अत्यधिक चीजें पतन की ओर ले जाती हैं | बिना उपभोग किये जीव रह भी नहीं सकते -इसलिए दिनों दिन नियमावली बदलती गई |--
जो परमात्मा की ओर बढ़ता है उसे परमात्मा गोद में बिठाते हैं जो अधम की ओर बढ़ता है उसे पुनः इसी संसार में भटकते रहना पड़ता है | ध्यान दें --हम प्रत्येक चीजों का अविष्कार कर सकते हैं किन्तु -विधाता के मन्त्रों का पुनः अविष्कार नहीं कोई कर सकता वो अभेद्य हैं अडिग हैं वो अचल हैं यही नियमावली में जगत के जन -जन को अपने में समेटे हुए हैं तभी तो संसार में जब हम आये तभी परमात्मा थे जब चले जायेंगें तब भी रहेंगें | जब हम आये तो तमाम सगे सम्बन्धी मिलते गए और छूटते गये पर वो परमात्मा सदा हमारे साथ थे हैं और रहेंगें यही जगत की नियमावली है | ---आगे की चर्चा आगे करेंगें "ॐ "--दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -38 -ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -38 -ज्योतिषी झा मेरठ

2015 --नेट की दुनिया में अब नया क्या करें जिससे लोगों के दिल में मेरे प्रति और श्रद्धा बढे | क्योंकि जो आलेख ज्योतिष और कर्मकाण्ड के थे जिनको हम ठीक से जानते थे सभी लिख चुके थे | कई दिन सोचता रहा एक दिन फिर मेरे मन में विचार आया --क्यों न अपनी जीवनी को झांककर देखूं --कहाँ से चला था और कहाँ आ गया | पिता से मैं स्नेह बहुत करता थाऔर पिता भी मुझसे बहुत स्नेह करते थे | जब भी पिता का और मेरा आमना -सामना होता था तो युद्ध बहुत होता था | पिता के अपने तर्क थे जो अनपढ़ता की होती थी --मेरे अपने तर्क थे --जो केवल शिक्षा पर आधारित थे ---ये उसी तरह था जैसा सूर्यदेव +शनिदेव हैं | पिता पुत्र हैं --सभी पूजते दोनों को हैं किन्तु दोनों के जीवन में मतान्तर बहुत हैं | मैंने अपने पिता की जनमपत्री देखी तो पता चला मेरे भाग्य क्षेत्र में और पिता के संतान क्षेत्र में नीच का शनि है ---साथ ही शनि की महादशा मेरी चालू हुई ही थी | रोग और शत्रुता अति बढ़नी थी | --मेरी जन्मपत्री में लिखा हुआ था --44 से 47 मृत्यु योग ----इस बात को मैं 1990 से जनता था पर कभी इस ओर ध्यान इसलिए नहीं दिया --गुरूजी ने अपनी जन्म पत्री देखने के लिए मना कर दिया था | अतः ईस्वर अधीन ही हम रहने लगे | जब शनि दशा चालू हुई तो मेरे मन में मरने का विचार आया कि आत्महत्या कर लूँ --पिता के स्वभाव के कारण --सबकुछ था पर जिस घर को बनाने में जीवन लगा दिया --उस घर में सबसे विशेष तिरस्कार मेरा ही हो रहा था | तो मेरे मन विचार आया अपनी जीवनी लिखूं तो शायद कोई मार्ग मिल जायेगा | मुझे सबसे बड़ा दुःख होता था --धन है ,मकान ,पुत्र है सभी परिजन हैं ,--जिस घर में कभी रोटी नहीं थी --आज सभी लखपति हैं ---सभी परिपूर्ण हैं --परन्तु मुझे ही सबने अलग कर दिया --अतः --2017 में हमने जीवनी लिखनी शुरू की | और मैं देखना चाहता था --कमी कहाँ रह गयी ---इसी बीच --2018 --फरबरी माह में सुखद समाचार आया --बड़ी पुत्री को पुत्र {धेबता } हुआ | नेट की दुनिया में अपनी कला दिखाने के लिए हारमोनियम से कई भजन गाये हैं जो बिडियो युटुब पर उपलब्ध हैं | मेरे आलेखों को जब पाठकगण पढ़ते -पढ़ते थक जाते थे तो बीच -बीच में मनोरंजन भी हो जाय जिससे मन में रोमांच होने लगे --तो कभी मैथिली गीत या भजन तो कभी हिन्दी भजन तो कभी उपदेश बिडियो भी मैं प्रसारित करता रहा | जिससे पाठक गण जुड़े रहें ---अतः --2018 जनवरी में सबसे सुन्दर और अन्तिम हारमोनियम खरीदा --पर होनी को किसने देखी है ----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ-----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मंगलवार, 10 अक्टूबर 2023

मेरे जीवन की अन्तिम यह शनि दशा है -सुनें -भाग -37 ज्योतिषी झा मेरठ



मेरे जीवन की अन्तिम यह शनि दशा है -सुनें -भाग -37 ज्योतिषी झा मेरठ 

 "मेरा" कल आज और कल सम्पूर्ण कथा सुनें - -ज्योतिषी झा "मेरठ "भाग -37
-दोस्तों ज्योतिष जगत की तमाम बातों को लोग जो पढ़ते हैं वो या तो किसी के पूर्व उल्लेख हैं या कभी किसी आचार्य ने ये बातें कहीं थीं किन्तु हम आपको वर्तमान समय में अपनी कुण्डली से समस्त अपनी जीवनी को दर्शाऊँगा --जो केवल सत्य पर आधारित होगी | न लोभ से ,न द्वेष से ,न मोह से केवल जिज्ञासा से तो --सभी बातों को वीडियों के माध्यम से सुनते रहें और अपना -अपना आशीष प्रदान करते रहें --- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"


सृष्टि क्या होती है एवं सृष्टि का ज्योतिष और कर्मकाण्ड से क्या सम्बन्ध है-पढ़ें ?


 सृष्टि क्या होती है एवं सृष्टि का ज्योतिष और कर्मकाण्ड से क्या सम्बन्ध है-पढ़ें ?

 



---जिज्ञासु ---सृष्टि क्या होती है एवं सृष्टि का ज्योतिष और कर्मकाण्ड से क्या सम्बन्ध है -गुरुदेव ! अंक -2--वत्स -वास्तव में परमात्मा की रचना ही सृष्टि है | ऐसी सृष्टि जिसमें रचयिता स्वयं बंधन से मुक्त हैं किन्तु सृष्टि की सभी चीजें एक दूसरे से जुड़ीं हैं -जैसे -संसार का आधार सृष्टि है | जैसे शरीर के आधार -जल ,वायु ,भोजन और अग्नि हैं | जैसे पति का आधार पतनी होती है | शिष्य का आधार गुरु होते हैं | संतान का आधार माता पिता होते हैं | राजा का आधार प्रजा होती है --इसी प्रकार से प्रजा के बिना राजा अधूरा रहता है | संतान के बिना माता पिता अधूरे रहते हैं | संसार के तमाम वस्तुओं के बिना सृष्टि अधूरी रहती है | --यद्पि सृष्टि का संचालन परमपिता करते हैं किन्तु --सभी सृष्टि में रहने वाले नियम से बंधे होते हैं तथा जिस दिन नियमावली समाप्त हो जाएगी उसी दिन सृष्टि समाप्त हो जाएगी |-----वत्स ---ज्योतिष के बिना सृष्टि अधूरी रहती है क्योंकि वर्तमान ,भूत ,भविष्य की जानकारी जिससे मिलती है उसे ज्योतिष कहते हैं | ज्योतिष की रचना जन हित के लिए हुई है | यह ज्योतिष भी नियमावली पर आधारित है -अर्थात -तमाम बातों को जानने के बाद भी रहस्य को गुप्त रखा जाता है समयानुसार

उपचार का मार्ग बताया जाता है | संसार में केवल मनुष्य ही वो प्राणी है जिसको वर्तमान ,भूत और भविष्य की जानकारी की जरुरत होती है साथ ही सभी कलाओं में निपुण भी होता है |-----वत्स -कर्मकाण्ड का वास्तविक अर्थ कर्म से है चाहे सकाम कर्म हो या निष्काम कर्म दोनों कर्मकाण्ड ही कहलाते हैं | किन्तु जिस कर्मकाण्ड का प्रतिपादन सृष्टि में किया गया है -वो षोडश संस्कारों से युक्त एवं जन -जन का जिससे कल्याण होता है वही वास्तविक कर्मकाण्ड कहलाता है | यह भी नियमावली पर आधारित है |-----यद्यपि ज्योतिष के द्वारा जानकारी मिलती है एवं समय का निर्धारित भी ज्योतिष ही करता है किन्तु निदान कर्मकाण्ड के द्वारा ही संभव है ये दोनों परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं | इस संसार में जैसे हमने कहा सभी एक दूसरे से जुड़ें हैं और नियम पर आधारित हैं -कोई भी नियम के विपरीत नहीं कार्य कर सकते हैं अगर करते हैं तो इससे सृष्टि का हनन होता है | जब सृष्टि का हनन होता है तब संतुलन बिगड़ता है फिर सृष्टि नष्ट हो जाती है | फिर कुछ नहीं बचता है न हम न तुम |आगे की परिचर्चा आगे करेंगें- वत्स ?-------आपका--"खगोलशास्त्री" ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई " --ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज में
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...