"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -40 -ज्योतिषी झा मेरठ
माँ
शब्द की व्याख्या या व्युत्पत्ति या भावार्थ निकालना बहुत सहज नहीं है |
--माँ छत्रछाया है ,माँ कृपा की मूर्ति है ,माँ ममतामयी है ---माँ के लिए
सबका द्वार एक जैसा ही होता है --चाहे उसकी कोख से जन्मा अज्ञानी हो या
ज्ञानी --सभी संतानें एक जैसी ही माँ को लगती है --माँ के दर पे कोई भेद
भाव नहीं होता है | --मैं जब चोर था तब भी माँ के लिए वैसा ही था ,मेरे
जीवन में माँ का भी बड़ा योगदान रहा है --भले ही मेरी माँ अनपढ़ थी -पर मुझको
पढ़ाया है ,आश्रम में वही तो गयी थी नानी के साथ और 10 रूपये भी दिए थे |
जब दीवाल गिरी तो न दीपक था न लालटेन पर माँ मुझको सबसे पहले ढूंढ रही थी |
जब मैं कॉलेज में पढ़ने लगा तो 100 प्रतिमाह यही तो देती थी | एकबार पिता
से युद्ध हुआ तो मैं रात के समय भागा गन्धराईन {अंधराठाढ़ी} से अपने गांव
आया 15 किलोमाटर का सफर था --सांप मेरे पैरों में लिपट गया --मुझे पता नहीं
मेरे पैरों में खून था क्योंकि मैं भागा -भागा माँ के पास ही तो आया था
--भले ही औषधि की सामर्थ नहीं थी पर गरम पानी से साफ किया और देवताओं से
दुआ मांगी थी --आज मैं इसलिए तो जिन्दा हूँ| जब भी घर से निकला तो पलकें
बिछाये मेरी राह तो माँ ही देख रही थी | जब मैं रेडियो चुराया --गरीबी सही
ईमानदार थी तभी तो चचेरे भाई से बोली गाली मत दो मैं रेडियो अपने भाई से
दिल्ली से मंगबाकर दूंगीं --जबकि मैं तो चोर था | जिस पिता को घर की
जिम्मेदारी सम्भालनी चाहिए वो काम तो माँ ने किया | शादी भी माँ ने करायी
भले ही नानी का योगदान था --पर नानी भी तो माँ की माँ थी | --जब गरीबी थी
तो खुद कई दिन खाना नहीं खाया पर मुझको तो पहले खिलाती थी | ---मेरी माँ
में अनन्त गुण हैं --पर एक अबगुण ने --मुझे मरने पर विवस कर दिया --सत्ता
और प्रभुता --बड़ा होना सहज है --पर उन धर्मों का भी पालन करना होता है जो
सत्ता और प्रभुता के लिए अनिवार्य हैं --और मैं यही करना चाहता था --मैं
चाहता था --मेरी माँ भले ही गरीबी देखी है --अब बढियाँ पहनें ,बढियाँ खाये
,अपने घर से बाहर न जाये ,मेरी माँ के पास लोग आये ,मेरी माँ सबकी अवश्य
मदद करें पर सामर्थ के अनुसार ,मेरी माँ केवल दुआ मांगें तप की दुनिया में
रहे ,किसी से लेनी -देनी ऐसी न करे जो जो दूसरे की हो ,अपने समय का सदुपयोग
करे | ----ये वो राहें थी --जो असंभव थी --क्योंकि मेरे घर में दीदी का
सदा साम्राज्य रहा है ,दीदी के पैसे व्याज पर लगाती रही है --घाटा होने पर
हमारे पैसों से पूर्ति करती थी | सम्पूर्ण जीवन दीदी अपने बच्चों के साथ
मेरे यहाँ निवास किया है----जबकि कोई अभाव नहीं है --ये बात मेरी माँ की
समझ में क्यों नहीं आयी है | दूसरा कारण मेरे मामा रहे मेरे यहाँ शिक्षा
मिली -सरकारी नौकरी मिली --करोड़पति हैं कभी भी --इतना नहीं कह सके --दीदी
--जैसा बेटा -बहु कहते हैं वही करो ---बच्चों के सुख में ही माता पिता सुखी
होते हैं | ---मैं अपनी कुण्डली देखी तो-- मेरा भाग्येश ,चतुर्थेश लग्न
में विराजमान है --लग्नेश के साथ यह सर्वोत्तम योग है --सिंह लग्न की
कुण्डली में सूर्य और मंगल लग्न में विराजमान हो चन्द्रमा उच्च का
कर्मक्षेत्र में विराजमान हो --उस जातक को माता ,सम्पत्ति ,वाहन ,भवन का
पूर्ण सुख प्राप्त होता है ---ये तमाम सुख मुझे मिले ---फिर ऐसा क्या था
------आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ----ज्योतिष
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