"ज्योतिष " की शोभा रत्न होते हैं --पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ
आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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आत्मकथा क्यों लिखी या बोली सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
दोस्तों आत्मकथा एक सोपान हैं | प्रथम सोपान एक से तैतीस भाग तक ,दूसरा सोपान तैतीस भाग से बानवें भाग तक और अन्तिम सोपान बानवें भाग से अन्त तक -इसके बारे में कुछ कहना चाहता हूँ सुनें --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलती है कि नहीं परखकर देखें -
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श्री
भादव गणेश चतुर्थी की विशेष कथा ---ॐ गं गणपतये नमः -शिवपुराणके अन्तर्गत
रुद्रसंहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने
स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना
द्वारपाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक
दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे
कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने
त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और
उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर
जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी
उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय
रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया।
माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और
देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया।--
ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके
अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन!
विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त
गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी
को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के
सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी।
कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा
करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए।
तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्षपर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत
करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।--भाद्रपद शुक्ल पक्ष की
चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया
है। जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक
प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश
चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए,
इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न
मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-'"सिहः प्रसेनम् अवधीत्, सिंहो
जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥'" अस्तु
----------------------------------------------------- श्रीगणेशोत्सव
की वर्तमान समय की बात करें तो --- पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया।
कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थपना शिवाजी
महाराज की मां जीजाबाई ने की थी। परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने
गणोत्सव को को जो स्वरूप दिया----उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन
गये। तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी। पूजा को
सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित
नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने
तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया और उसे एक आंदोलन का
स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में
महत्वपूर्ण योगदान दिया।लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में गणेशोत्सव का
जो सार्वजनिक पौधरोपण किया था वह अब विराट वट वृक्ष का रूप ले चुका है।
वर्तमान में केवल महाराष्ट्र में ही 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेशोत्सव
मंडल है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और
गुजरात में काफी संख्या में गणेशोत्सव मंडल है।--सभी मित्रों को श्री
गणेशोत्सव की हार्दिक शुभ कामनायें ---भवदीय निवेदक - ज्योतिषी झा "मेरठ
,झंझारपुर,मुम्बई " {भारत }ज्योतिष से सम्बंधित सभी लेख इस पेज - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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होती है ।
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--सूर्य ग्रहण में -12 घंटे पहले सूतक लगता है तथा "चन्द्र ग्रहण "में 09 घंटे पहले सूतक लगता है । ग्रहण के समय धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक काल में भोजन ,शयन इत्यादि कर्म वर्जित हो जाते हैं ।इसका भाव -यह है कि ग्रहण के समय सौर मंडल में बहुत प्रदूषण होता है । इससे जड़ -चेतन सब प्रभावित होते हैं । समस्त प्राणी {जीव }भयभीत रहते हैं । प्राकृतिक दृश्य भी बदले -बदले से रहते हैं । बहुत से ज्योति-कणों प्रति सेकेण्ड सैकड़ों मील की गति से चलते हैं । ग्रहण के कारण रुक जाते हैं तथा कणों की छाया की तरह प्रतीत होने लगते हैं । भूमि पर इन कणों की छाया सी बन जाती है एवं थोड़ी ही देर में दिखने लगती है । ग्रहण के समय उन कणों का जीव के मस्तिष्क के कोमल तंतुओं पर जो प्रभाव पड़ता है --उससे प्राणी के आचार -विचार तथा स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है । इस भय से भोजन -शयन पर प्रतिबन्ध होता है तथा ग्रहण के पहले एवं बाद में नहाने की व्यवस्था है ।-- इस बात से लगता है हमारे ऋषियों ने कोई भी नियम कपोल -कल्पित नहीं बनाये हैं ।
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-{१}-मनः एवं मनुष्याणाम कारणं बंध मोक्षयोह ?
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मैं
अपने पूर्वानुमानों को वैज्ञानिक रूप से परिभाषित करता हूँ --जबकि फलित
ज्योतिष के अन्य विद्वान ज्योतिष के शास्त्रीय नियमों की चर्चा करते हैं
।सामान्यतः -एक ही ग्रह -स्थिति के प्रभावों को बताते हुए हम भिन्न -भिन्न
निष्कर्षों पर पहुचते हैं । इसका कारण ज्योतिष के परम्परिक नियमों की अपनी
-अपनी व्याख्या है -----जो सैधांतिक होते हुए भी प्रमाणिक नहीं कही जा
सकती है ।
------मेरे विचार से ज्योतिषी टाइम {समय }का विशेषग्य होता है । वह
अनुमानों पर नहीं अपितु परिणामों पर आनेवाले कल की व्याख्या करते हैं
--इसलिए मैं स्वयं को वैज्ञानिक ज्योतिषी अथवा "टाइम स्पेशलिष्ट "कहता हूँ
।।--भवदीय ---ज्योतिष एवं कर्मकांड विशेग्य {पंडित कन्हैया लाल झा
शास्त्री "} किशन पूरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ {उत्तर प्रदेश }-ज्योतिषी
झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त
बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut
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"आत्म स्थानम मंत्र द्रव्य देव शुद्धिस्तु |पंचमी यावनय कुरुते देवी तस्य देवार्चानम कुतः "
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------"तंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत कुछ सिद्धि प्राप्त करने के लिए ---जैसे अपने शरीर को स्वस्थ रखने एवं जन्म -मरण से छुटकारा पाने हेतु प्राचीन विद्वानों ,ऋषि -मुनियों द्वारा मन्त्रों की रचना की गयी । हर मन्त्र की रचना इस प्रकार होती है जिससे हर शब्द स्वर -व्यंजनों के जोड़ से सही बैठता है । अतः उन मन्त्रों के शुद्ध उच्चारण से कंठ से निकले हर मन्त्र के शब्दों के स्वर से ऐसा कम्पन पैदा होता है -----जिससे मस्तिष्क को जाती हर नाडी प्रभावित होती है । अतः इन उत्पन्न तरंगों द्वारा अन्तः स्रावी ग्रंथियां जैसे ---पिय्युटरी,पीनियल ,थाइराइड और पेरा थाइराइड तक पहुंच इनको उत्तेजित करती है । इस उत्तेजना से हर ग्रंथि अपना कार्य कुशलता पूर्वक कर शरीर के हर अंग में अपना योगदान देती है । जिससे स्वास्थ बना रहता है तथा शरीर सुचारू रूप से अपनी प्रतिरोध-क्षमता बढ़ता रहता है । ---इससे न केवल प्रतिरोध क्षमता बढती है ,बल्कि सामान्य बिमारियों से भी बचा जा सकता है । चार -वेद हैं । महामृत्युंजय मन्त्र ऋग्वेद से और गायत्री मन्त्र यजुर्वेद से हैं । आलेख ---- खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ
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"कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:। गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:॥ --------------शास्त्रों में भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म इस दिन को अघोरा चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रनुसार बिना कुशा के शनिदेव व दूसरे देवों की गई पूजा निष्फल मानी जाती है। पूजा-अनुष्ठान पर इसीलिए विद्वान पंडित अनामिका उंगली में कुश की बनी पैंती अर्थात अंगूठी पहनाते हैं। पवित्रीकरण हेतु कुशा से गंगा जल मिश्रित पानी से सभी पर छिड़काव किया जाता है। इसी कारण इस दिन साल भर के लिए पूजा आदि हेतु कुशा नमक विशिष्ट घास को उखाड़ा जाता है। अघोरा चतुर्दशी के दिन तर्पण करने की मान्यता है कि इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है। परिजनों को बुरी आत्माओं के प्रभाव से बचाने के लिए लोग घरों के दरवाजे व खिड़कियों पर कांटेदार झाडिय़ों को लगाते हैं यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। शास्त्रों में अमावस्या का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। इसलिए इस दिन पितृ तृप्ति के लिए तर्पण का महत्व है। पितृ की तृप्ति के लिए कुशा को अनिवार्य माना गया है। कुशा दस प्रकार की होती हैं। शास्त्रनुसार जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण, सात पत्ती हों, अग्रभाग कटा न हो और हरा हो, वह देव व पितृ दोनों कार्यों हेतु में उपयोग करने वाला होता है। जिन लोगों की जन्मकुंडली में पितृ दोष से संतान आदि न होने की आशंका है, उन्हें इस अमावस्या को पूजा-पाठ, दान अवश्य करना चाहिए। अपने नौकरों का अपमान न करें और किसी को कष्ट न दें। इस दिन शनिदेव व पितृदेव की विशिष्ट पूजन से जीवन के कष्ट मिटते हैं। जिन लोगों की कुंडली में शनि, राहु व केतु परेशान कर रहे हैं, उन्हें तो कुशग्रहणी अमावस्या पर पितृ को भोग व तर्पण द्वारा प्रसन्न करना चाहिए। --------आपक--खगोलशास्त्री झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut -उपलब्ध हैं |
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-----ज्योतिष जगत में कभी सात ही ग्रह थे और सप्तवार आज भी हैं किन्तु राहु -ग्रह और केतु ग्रह के प्रादुर्भाव होने से नव ग्रह बन गए साथ ही राहु और केतु के स्वभाव और प्रभाव में प्रायः यथाबत समता है । ---अस्तु ----इसके माता+पिता भी वही जो राहु के हैं । केतु -ग्रह का तामसी और तमोगुणी स्वभाव ,मलीन रूप ,आचारहीन ,और अशुभ ग्रह है । वर्णशंकर जाति का है और शास्त्रों का अधिनायक है । यह कृष्णवर्ण दक्षिण दिशा का स्वामी एवं क्रूर ग्रह है । केतु -ग्रह से किसी भी जातक की कुण्डली से नाना ,हाथ -पांव ,क्षुधाजनित{पेट सम्बंधित } कष्ट एवं चर्मरोगादि की जानकारी की जाती है । यह गुप्त -शक्ति ,बल ,कठिन कर्म ,भय ,तथा काम क्षेत्र का कारक है । कुछ स्थितियों में केतु शुभ ग्रह भी माना जाता है क्योंकि छाया कारक ग्रह होने के कारण जिसके साथ होता है वैसा ही फल भी देता है ।---आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut |आपका -
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----ज्योतिष के न्याय कर्ता शनि ग्रह ब्रहस्पति ग्रह से आकार में कुछ छोटा है । आज के वैज्ञानिक शनि की आकृति पर मुग्ध हैं । आकाश और ज्योतिष का सबसे सुन्दर ग्रह बताया जाता है । ज्योतिषियों के मत से शनि ग्रह को देखने से आँखों को बड़ी शान्ति मिलती है । परन्तु शनि की यह वास्तविक शोभा और महिमा उसके आसपास के कंकड़ों से है अर्थात वलय यानि कंकड़ 10 मील मोटे और काफी चौड़े हैं । ये दूरबीन से ही दिखाई देते हैं । यह धुंधले प्रकाश वाला और मंद गति से चलने वाला शनि ग्रह है । यह लगभग साढ़े उन्नीस वर्ष में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है । सूर्य से इसकी औसत दूरी 88 करोड़ 64 मील है । ----शनि सूर्य का पुत्र है । सूर्य की दूसरी पत्नी छाया के उदर से उत्पन्न हुआ । चित्ररथ इसकी पत्नी है । काल और यम इसके भाई हैं । इसका रंग श्याम और असित है । बड़े -बड़े बलकारी और बलिष्ठ देवता भी शनि से संघर्ष और स्पर्धा करने से डरते हैं । शनिदेव जिससे प्रसन्न हो निहाल कर देते हैं और जिससे अप्रसन्न होते हैं उसका विनाश करके ही छोड़ते हैं । इनका स्मरण -अर्चना अगाध दुःख ,सघन आपत्ति ,घोर निराशा और असह्य विफलता में किया जाता है । दार्शनिक के प्राणाधार और सन्यासी के अनुराग कर्ता हैं । ऐश्वर्य के दाता भी हैं । किसानों का गौरव ,सर्वहारों का जीवन तथा मननशील मनुष्यों के सेतु हैं ।कठिन आपत्तियों में शनि दुःख हर्ता और जीवन का स्रोत्र हैं । -----शनि ग्रह नपुंसक जाति ,कृष्ण वर्ण ,पश्चिम दिशा का स्वामी ,वायु तत्व एवं वातश्लेष्मिक प्रकृति का है । इसके द्वारा आयु ,शारीरिक बल ,दृढ़ता ,विपत्ति ,प्रभुता ,मोक्ष ,यश ,ऐश्वर्य ,नौकरी ,योगाभ्यास,विदेशी भाषा एवं मूर्छा आदि रोगों का विचार किया जाता है । यदि जातक का जन्म रात्रि में हुआ हो तो यह माता -पिता का कारक होता है । -----शनि सप्तम स्थान में बली होता है तथा वक्री ग्रह अथवा चन्द्रमा के साथ रहने पर चेष्टाबली होता है । शनि क्रूर तथा पापग्रह है ,किन्तु इसका परिणाम सुखद होता है । यह मनुष्य को दुर्भाग्य तथा संकटों के चक्कर में डालकर ,अंत में उसे शुद्ध तथा सात्विक बना देता है ।आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें - --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut- उपलब्ध है|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई
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ज्योतिष जगत के "शुक्र ग्रह"पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ
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ज्योतिष का कला दाता " बुध"पढ़ें --ज्योतिषी झा "मेरठ
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जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...