ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मंगलवार, 7 नवंबर 2023

मेरा राजयोग ही था जो हम चल रहे थे अन्यथा दुःखों की भरमार थी -पढ़ें - भाग -71 ज्योतिषी झा मेरठ



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -71 ज्योतिषी झा मेरठ

प्रिय पाठकगण -भगवान श्री राम हों या श्रीकृष्ण राज परिवार में जन्म लिए --इनकी जीवनी से यह ज्ञात होता है ,दुःख में सुख का अनुभव नहीं होता है और सुख में दुःख का भी अनुभव नहीं होता है | ---अस्तु -मेरा राजयोग ही था जो हम चल रहे थे अन्यथा दुःखों की भरमार थी | एक शतचण्डी 1996 वे में की थी तब उम्र 26 वर्ष थी ,राहु का दरिद्र योग चल रहा था --तो रोजगार का साधन मिलने लगा | दूसरी शतचण्डी किसी यजमान की की थी --1999 में तो निवास और मन्दिर मिले ,रोजगार बहुत ही ठीक था ,सभी जगह प्रख्यात हो रहे थे ,सभी सहकर्मी मित्रों को मनोनुकूल दक्षिणा के साथ सम्मान दिलाने का भरसक प्रयत्न करते थे | पर विध्न अनन्त थे --पिताजी को किसीने कहा होगा ये काला कपडा अपने साथ मेरठ बड़े पुत्र के पास ले जाओ तुम्हारा काम बन जायेगा ,उनका काम बन गया --अनुज का हिस्सा मुझसे 15000 ले गए | हम बहुत बीमार रहने लगे ,छोटी बेटी बहुत बीमार हो गयी ,पहले टाइफाइड हुआ फिर टीबी हुई फिर अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ | मेरा भी छोटा सा ऑपरेशन हुआ -आँख के ऊपरी भाग में अनायास गांठ बन गयी थी | कोई भी परिजन देखने नहीं आये | -आज के युग में बेटियां हों पतनी हो पराधीन जीवन हो तो अहसास वही व्यक्ति कर सकता है -जो धर्मानुरागी हो अन्यथा जीवन मान से जीएं या अपमान से क्या फर्क पड़ता है | मुझे मन्दिर और निवास तो मिले ,रोजगार बहुत थे पर गंदगी बहुत थी --इसलिए हम सब बीमार हो रहे थे | किसी तरहअपना निवास लेना चाह रहे थे | अपना तो कोई था ही नहीं {सब होते हुए भी } एक यजमान मित्र थे उनसे निवेदन किया --भवन छोटा सा दिला दो --बोले जरूर -जहाँ बात करके आये --उस समय मेरठ में कांग्रेस के युवा अध्यक्ष श्री रोहतास भैय्या माधवपुरम प्रेम विहार मेरठ हुआ करते थे | उनकी इनसे बात हुई -20000वयाना दिए -दस मेरे दस यजमान मित्र के --बिना कागजात के फिर क्या था --श्री रोहतास भैय्या उनको पीटा भी और रूपये भी खा गए --हम मुंह देखते ही रह गए | ये 2002 की बात है | अब हम निराश हो गए ,गांव में पैसा देने के बाद माता पिता जीना मुश्किल कर चुके थे वहां भवन का सुख नहीं मिला यहाँ मेरठ में जिन पर उम्मीद थी वो भी ले डुबे | पतनी बीमार हो गयी मकड़े के घाव से --यहाँ धन तो था ,न शुद्ध जल था न शुद्ध वातावरण था स्थान किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ ,बीड़ी ,सिगरेट ,शराब की भरमार थी | भगवन शिव की आराधना में लग गए --एक और मित्र मिले किशनपुरी के ही -धन तो नहीं दिया पर तन से सहायता बहुत की | --चाहे बेटी हो ,पतनी हो या मेरा खुद का ऑपरेशन तन मन से सहायता की | अब हम फिर कैसे भी करके मकान लेना चाह रहे थे ,किराये के मकान में नहीं रहना चाहते थे | ये मित्र यजमान ने एक मकान दिखाया -प्रेम बिहार गली नंबर 2 माधवपुरम मेरठ --40 गज का अभी बन ही रहा था किम्मत सवा दो लाख --मेरे पास थे सवा लाख --उस समय एक मित्र डालम पाड़ा मेरठ में रहते थे ,उनसे कर्य लिए एक लाख --मेरे यजमान मित्र को लगा इतने पैसे कैसे कर्य दे दिया | हमने दो लाख पैंतीस हजार जहाँ -तहाँ से कर्य लेकर यजमान मित्र के हाथ में दे दिए | जहाँ भवन लेने की बात हो चुकी थी कल रजिस्ट्री होगी --उससे लड़ाई करके रात में यजमान मित्र आये बोले --गुरूजी ये मकान मत लो -इन पैसों से व्यापार करेंगें ,बढियाँ मकान लेंगें ,ये घटिया मकान है | मेरी जो परिस्थिति थी वो हम जानते थे या भगवान ,अब तो हम फस गए ,कर्य भी ले लिया मकान भी नहीं मिला धन लालाजी के हाथ चला गया | पतनी ने राय दी ,मकान वाले से बात करो जो भी है ,जैसा भी है लेना है ,मकान मालिक तैयार हो गया --अब लालाजी बोले -और पैसे कहाँ से आयेंगें -जबकि साढ़े आठ हजार रजिस्ट्री में दो लाख अठारह हजार मकान का दाम ---हमने लालाजी को दिए थे दो लाख पैतीस हजार | खैर जैसे- तैसे करके यह मकान मिला -10 /01 /2003 को "भारत भूमि पर पुरुष की अपेक्षा महिला पक्ष दयालु होता है --यह मकान मिला तो इसमें लालाजी की अर्धांगिनी न होती तो शायद हमें मकान तो मिलता ही नहीं धन भी नहीं मिलता | ----अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

जानिए गोवर्धन पूजा का महत्व-ज्योतिषी झा "मेरठ "



 जानिए गोवर्धन पूजा का महत्व-ज्योतिषी झा "मेरठ "

हमारे कृषि प्रधान देश में गोवर्धन पूजा जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत आवश्यकता है। इसके पीछे एक महान संदेश पृथ्वी और गाय दोनों की उन्नति तथा विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा प्रयत्नशील होना छिपा है। अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।

-----अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है। उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र की ही उस दिन पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई है। धर्मग्रंथों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है।
---ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के लिए किया जाता है। बालखिल्य ऋषि का कहना है कि अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव श्रीविष्णु भगवान की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए। इन पर्वों से गायों का कल्याण होता है, पुत्र, पौत्रादि संततियां प्राप्त होती हैं, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त होता है। कार्तिक के महीने में जो कुछ भी जप, होम, अर्चन किया जाता है, इन सबकी फल प्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए।
गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभ कामनाएं-------दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

महालक्ष्मी स्त्रोत्र -सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ


 


महालक्ष्मी स्त्रोत्र -सुनें !ज्योतिषी झा {मेरठ }

दोस्तों -प्रत्येक देवता के पंचांग पूजन होते हैं और तभी कामना पूरक देवता की कृपा प्राप्त की जा सकती है -जैसे प्रथम -न्यास ,दूसरा -ध्यान ,तीसरा -पूजन ,चौथा -जाप और पांचवा -स्तुति । हम किसी भी देवता को प्राप्त करने हेतु पंचांग विधि अपनाते हैं -तभी मनोकामना की पूर्ति इष्ट देव प्रदान करते हैं । इन पांचों में स्तुति सर्वोपरि है -स्तुति के द्वारा किसी को भी रिझाना अति सरल होता है -तो सुनें माँ लक्ष्मी की स्तुति । --- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

ऋणमोचन मंगल स्त्रोत्र -सुनें-ज्योतिषी झा मेरठ



 ऋणमोचन मंगल स्त्रोत्र -सुनें !ज्योतिषी झा {मेरठ }

दोस्तों -जीवन में जब ऋणी या कर्जदार हो जाय ,संतान की कामना हो ,भवन की लालसा हो ,योद्धा की भांति जीना हो ,मैदान में जीत की कामना हो या फिर सरकारी सेवा प्राप्त करनी हो तो इस ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का नित्य पाठ एक समय ,दोनों समय या त्रिकाल पाठ से अवश्य कामना की पूर्ति होती है । --- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा "मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र -का महत्व सुनें -ज्योतिषी झा {मेरठ }


 कनकधारा लक्ष्मी स्तोत्र का महत्व  -सुनें !ज्योतिषी झा {मेरठ }

दोस्तों -एकबार श्रीशंकराचार्यजी ने एक गरीब महिला से भिक्षा मांगी ,धनाभाव के कारण वो महिला घर में रखें आंवला भिक्षा में दिए । भगवान शंकराचार्य को उस महिला पर दया आगयी --तभी उसके आँगन में इस कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया -जिसके प्रभाव से वही आवला स्वर्ण रूप में परिवर्तित हो गए । तब से कोई भी व्यक्ति इस स्तुति के पाठ से धन से युक्त जाता है । ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.

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कनकधारा स्तोत्र {लक्ष्मी स्तुति } सुनें --खगोलशास्त्री झा मेरठ



 कनकधारा स्तोत्र {लक्ष्मी स्तुति } सुनें --खगोलशास्त्री झा मेरठ

कनकधारा वह स्तुति है --जिसे श्री आदिशंकराचार्य ने रचना भी की और तत्काल आवला स्वर्ण रूप में परिवर्तित हो गए थे | यह संस्कृत भाषा हैं --सुनने से भी लाभ होता है एवं पाठ करने से भी लाभ होता है | अपने शिष्य को तमाम कसौटी पर परखने का प्रयास करता रहता हूँ | --जिसे देखकर और सुनकर विस्वास संभव है | ----भवदीय निवेदक --ज्योतिषी झा मेरठ --आपके अनन्त ज्योतिष+कर्मकाण्ड जिज्ञासा का केंद्र --यह पेज है ,पधारें अपना लाभ अपने अनुसार उठायें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

"पात्रता से ही लक्ष्मी स्थिर होती है -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


 



"पात्रता से ही लक्ष्मी स्थिर होती है ?"----मित्रप्रवर ,राम -राम ,नमस्कार ||


लक्ष्मी के बिना जीवन अधूरा सा रहता है,इसके लिए हमलोग अथक परिश्रम भी करते हैं ,धर्म अधर्म का विचार भी नहीं कर पाते हैं-परन्तु यदि कुपात्रता से धन का संचय किया गया हो-तो "लक्ष्मी "हमें परित्याग करने में संकोच नहीं करती हैं -आइये हम आपको एक कथा सुनाते हैं,और कहाँ निवास नहीं करती है "लक्ष्मी "प्रकाश डालने की कोशिश भी करते हैं -शास्त्रोक्त [शास्त्रों से ]?-----अस्तु -श्रीमार्कंडेयपुराण-में एक कथा आती है क़ि शचिपति "इंद्र" दैत्येन्द्र जम्भ से पराजित होकर निराश हो गए | देवगुरु ने इंद्र को श्री विद्या के परमाचार्य "श्री द्त्त्तात्रेय "की शरण में जाने की सम्मति दी |जब इंद्र समेत सब देवता श्री दत्तात्रेय जी के आश्रम पर पहुंचे ,तब उन्होंने उन्हें कुछ विकृत वेषाव्स्था में साक्षात् भगवती लक्ष्मी के साथ आसीन देखा |उनकी प्रेरणा से देवताओं ने पुनः युद्ध छेड़ दिया और जब दैत्य उन्हें मारने लगे ,तब वे भागते हुए दत्तात्रेय जी के आश्रम पर पुनः पहुँच गए और पीछे से खदेड़ते हुए देते भी वहीँ जा पहुंचे|---दैताय्गन वहां उनकी पत्नी भगवती ल्स्ख्मीी को देखकर अपने मनोवेग को न रोक सके और झट सब कुछ छोड़कर ,उस श्री को ही बलात एक पालकी में डालकर सर पर ढ़ोते हुएअपने वासस्थल को चल पड़े | इस पर भगवान दत्तात्रेय ने देवताओं से कहा -"यह आप लोगों के लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है ,क्योंकि ये लक्ष्मी इन दैत्यों के सात स्थानों को लांघकर आठवे स्थान [मस्तक ] पर पहुँच गयी है |सर पर पहुँचते ही ये तत्काल अपने आश्रय का परित्याग करके अन्यत्र चली जाती है ||शारडगधर पद्धति -६५७ में -के भावों को भी समझते हैं ---"कुचैलिनम दन्तमलोपधारिनम ब्रह्मशिनं निष्ठुर वाक्य भाषिनाम |सूर्योदय हस्त्म्येअपी शयिनम विमुन्चती ,श्रीरपि चक्रपनिनम ||----भाव -जिसके वस्त्र तथा दांत गंदे हैं ,जो बहुत खाता तथा निष्ठुर भाषण करता है,जो सुर्यास्त्काल में भी सोया रहता है,वह चाहे चक्रपाणी "विष्णु " ही क्यों न हो ,उसका लक्ष्मी परित्याग कर देती है |और भी कुछ शास्त्रकारों ने लिखा है .---..परान्नम परवस्त्रं च परयानम परस्रीयह|पर वेस्वा निवासस्चा शंक्स्यापी श्रियः हरेत ||--भाव -पराया अन्न ,दूसरे का वस्त्र,पराया यान [वाहन ],परायी स्त्री और परग्रिह्वास[दूसरों के घर में रहना ] ये "इंद्र "की स्री संपत्ति को भी हरण कर लेते हैं ||ब्र०-रंजनन -१६८ के अनुसार -असुरराज भक्त प्रह्लाद ने एक ब्राहमण को अपना शील दान कर दिया |उसके कारण लक्ष्मी ने उन्हें -तत्काल छोड़ दिया ,तत्पश्चात अनेक प्रकार से प्रार्थना करने पर करुणामयी लक्ष्मी ने साक्षात् दर्शन देकर उपदेश दिया कि-हे प्रह्लाद ! तेज ,धर्म,सत्य ,व्रत ,बल ,एवं शील आदि मानवी गुणों में मेरा निवास है |इन गुणों में शील अथवा चरित्र मुझे सबसे अधिक प्रिय है ,इस कारण मैं सच्चिल व्यक्ति के यहाँ रहना सबसे अधिक पसंद करती हूँ ||महा ० शा ०-१२४ के अनुसार ----दानवीर दैत्यराज "बलि " ने एकबार उच्छिष्ट भक्षण कर ब्राह्मणों का विरोध किया| श्री ने उसी समय बलि का घर छोड़ दिया |--लक्ष्मीजी ने कहा चोरी ,दुर्वसन,अपवित्रता एवं अशांति से घृणा करती हूँ | इसी कारण आज में बलि का त्याग कर रही हूँ ,भले ही वह मेरा अत्यंत प्रिय है ||महा ०शन्ति ०२२५ के अनुसार -------इसी प्रकार लक्ष्मीजी रुक्मिनिजी से कहती है ,कि हे सखे !निर्लज्ज ,कलहप्रिय ,निंदाप्रिय,मलिन ,अशांत एवं असावधान लोगों का मैं अतीव तिरस्कार करतई हूँ ,तथा इनमें से एक भी दुर्गुण व्याप्त होने पर मैं उस व्यक्ति का त्याग कर देती हूँ ||महा ०अनु ० ११ के अनुसार ------अनपगामिनी सुस्थिर लक्ष्मी के लिए --शर्दादी तिलक --८/१६१ में निर्देश हैभुयसीम श्रीयमाकन्क्षण सत्यवादी भवेत् सदा |प्रत्यगाशामुखोश्रीयत स्मित पुव प्रियं वदेत ||--अर्थात -अधिक श्री [लक्षी ] की कामना करने वाले व्यक्ति को सदा सत्यवादी होना चाहिए ,पश्चिम मुह भोजन तथा हसकर मधुर भाषण करना चाहिए ||-{-भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री" मेरठ---आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

ऋणमोचन मंगल स्तुति सुनें और नित्य पाठ करें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ



 ऋणमोचन मंगल स्तुति सुनें और नित्य पाठ करें-खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

--जब धन की जरूरत हो या ऋण से उऋण होना हो या फिर संतान की कामना हो तो ऋण मोचन मंगल स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिए |आपका ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से ज्योतिष की विशेष जानकारी हेतु इस लिंक पर पधारें--https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मेरे पिता की कुण्डली में शनि नीच का पंचम भाव में था -पढ़ें - भाग -70 ज्योतिषी झा मेरठ


 


मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -70 ज्योतिषी झा मेरठ

मेरे पिता की कुण्डली में शनि नीच का पंचम भाव में था --जिसकी दृष्टि से दाम्पत्य सुख प्रभावित रहा | आय का क्षेत्र प्रभावित रहा एवं अन्तिम दृष्टि सम्पत्ति के क्षेत्र में थी सो कुछ नदी में समा गयी ,कुछ बिक गयी ,कुछ परिजनों ने कब्जा कर ली ,कुछ विवाद में धन चला गया तो कुछ अपनों ने ले ली --अन्तिम सांस के समय अनुज और माँ ने वो भी धन खर्च नहीं किये जिसपर अधिकार था | माँ का भी धन अनुज ने समेट लिए बदले में माँ को भी शून्य हाथ लगा | वैसे अनुज का विवाह होते ही हम अलग हो गए -माता पिता हमारे साथ न आकर अनुज के साथ रहे | हमने 2003 से विशेष धन देना बन्द कर दिए | हमारे माता - पिता अनुज को धनाढ्य बनाना चाहते थे | मकान में किरायेदार रहने लगे ,रूपये व्याज पर चलने लगे | अनुज की प्रगति होने लगी | 2003 में मेरठ निवास अपना हुआ तो हम भी अपने बच्चों को सही शिक्षा देने में लग गए | मतृभूमि पर सभी परिजन हमें तिरस्कृत भाव से देखने लगे | अब कोई चाय सर्बत का भण्डारा नहीं होता था | बल्कि जब भी हम घर जाते तो हमारा सबसे ज्यादा तिरस्कार पिता ही करते थे | हम अपने पैसों से चाय भी पीते थे | मेरे कमरों में किरायेदार रहते थे वो पैसे भी पिता ही लेते थे ,उपज भी पिता ही लेते थे ,सभी परिजन पिता को चढ़ाते थे ,मेरी सहायता जो करता उससे माता पिता लड़ते थे | मेरी बेटियां बड़ी हो रही थी जब भी गांव जाते थे तो सबसे घटिया मांसाहार किरायेदार को रखते थे ,हमने कईबार पिता से कहा जब तक हम रहते हैं तो ऐसे किरायेदारों को मत रखो --वो कहते थे मेरी मर्जी हम कुछ भी करें | --भवन के अन्दर आने -जाने का रास्ता संकीर्ण था ,यह रास्ता मेरे हिस्से में था पर पिता नहीं चाहते थे सीढ़ी टूटे --बिना सीढ़ी टूटे रास्ता अलग नहीं हो सकता था | मकान हमारा था फायदा पिता लेते थे -जो पिता मुझे बहुत चाहते थे जबतक धन दिया हम अच्छे थे --धन देना बन्द किया सबसे बुरे हो गए | ननिहाल हो या ससुराल या फिर रिस्तेदार सभी हमारा उपहास उड़ाते थे कहते थे --माता पिता को नहीं देखते हो --यह शब्द मरने जैसा लगता था | हमारा राजयोग चल रहा था रोजगार बढियाँ था निवास मेरठ में ही मिल चूका था, धीरे -धीरे अपनी जिम्मेदारी को संभालते हुए आगे बढ़ रहे थे --पर मातृभूमि पर -माता पिता ,दीदी -जीजा ,अनुज के परिवार ,मामा -मामी सभी परिजन हमारे दुश्मन बन चुके थे | मुझे दो कन्या थी तो भगवान ने अनुज को भी दो कन्या दी | अगर माता पिता की कृपा से होता तो उसे पुत्र ही होता ---पर सबके जो माता पिता श्री हरी हैं उन्हें सब पता है | मैं धैर्य बांध चूका था पुत्र की कामना नहीं थी --पर कईबार माता पिता अपमानित कर चुके थे --तुझे पुत्र नहीं होगा | एकबार तो मेरे यजमान मेरठ में बोली -इतने बड़े पण्डित हो तो अपना ही पुत्र क्यों नहीं होता | बात मेरे साथ यह थी सन्तान तो हो सकती थी किन्तु दो पुत्रियों का पालन ही हम ठीक से नहीं कर पाये थे --अगर फिर पुत्री होती तो कहाँ से पालन करते --इस डर से अगली सन्तान की चाहत नहीं थी | --कभी -कभी शाप भी वरदान बन जाता है | --अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 6 नवंबर 2023

मैथिली भाषा -लोकगीत -राति छलि असगर श्रृंगार केने सूतली -ज्योतिषी झा मेरठ



 मैथिली भाषा -लोकगीत -राति छलि असगर श्रृंगार केने सूतली -ज्योतिषी झा मेरठ

ज्योतिष प्रिय पाठकगण -यह मैथिली भाषा का लोकगीत है | बोल हैं --राति छलि असगर श्रृंगार केने सूतली ---इस लोक गीत के शब्द प्रेम से युक्त हैं साथ ही धुन भी बहुत प्यारी है --इसे हमने संगीत से न सजाकर केवल भाव दिखाने का प्रयास किया है | वैसे मैं कोई गायक नहीं हूँ पर कुछ कोशिश करनी चाहिए --यही एक प्रयास मेरा रहता है | ॐ --ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को जानने हेतु इस लिंक पर पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjh... खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

वैदिक शान्ति पाठ सुनें !ज्योतिषी "झा "मेरठ"



 वैदिक शान्ति पाठ सुनें !ज्योतिषी "झा "मेरठ"

---दोस्तों - सनातन धर्म को मानने वाले ,संसार के किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत वैदिक शान्ति पाठ के बिना नहीं प्रायः करते हैं । तो हम भला ज्योतिष के पूरक वेद के बिना ज्योतिषी कैसे बन सकते हैं । या ज्योतिष के बारे में कैसे लिख सकते हैं ---फिर भले ही बताएं ज्योतिष परन्तु निदान तो कर्मकाण्ड के द्वारा ही मिलेगा ---तो सुनिए हमारी वैदिक परम्परा के शान्ति के पाठ ।
----- - ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

आत्मकथा में पहले ठीक से मुझको समझना होगा-पढ़ें - भाग -69 ज्योतिषी झा मेरठ


 



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -69 ज्योतिषी झा मेरठ
प्रिय पाठकगण -हम अपनी आत्मकथा में जो बताना चाहते हैं --उसके लिए पहले ठीक से मुझको समझना होगा ,तभी यह पुस्तक बनेगी | ---अस्तु --2002 -अनुज का विवाह हो गया और हम सम्मिलित नहीं हुए विवाह में तब से नई युगलबन्दी मेरे घर में शुरू हुई -पिता को जो माँ पढ़ाती थी वही पिता पढ़ने लगे | मेरी दो कन्या थी पिता दोनों को बहुत मानते थे पर अब वो भी तिरस्कार करने लगे क्योंकि अब हम सजग हो चुके थे | जब 14 वर्ष के थे तब से घर में धन की सहायता मैं करता आ रहा था 2001 तक | अब हम मेरठ में ही स्थापित होना चाह रहे थे साथ ही यहीं निवास लेने की सोच रहे थे | घर में फालतू का धन देना नहीं चाह रहे थे --क्योंकि अनुज का विवाह होते ही जमीन उसके नाम खरीदी गयी ,उसके जेवर सभी सही सलामत थे | मेरी शादी होते ही जेवर बिक चुके थे ,भैस भी बिक चुकी थी ,हमारे धन से चाय+ सर्बत का नित्य भण्डारा होता था ,हमारे घर में दीदी का सम्पूर्ण साम्राज्य था और सभी पल रहे थे --ऐसी स्थिति में मामा भी लाभ ले रहे थे | मेरा राजयोग चल रहा था ,पतनी ,बच्चे मेरठ में हमारे साथ रह रहे थे | हमने धर्म निभाया था -हमें धर्म अपनी गोद में उठा रहा था | सारा धन माता पिता को समर्पित कर चूका था --पर जब राजयोग होता है --तो फल भी मिलता है --यह चर्चा आगे करूँगा | 2002 अब माता पिता अनुज को मजबूत करना चाह रहे थे | उस समय अनुज भी सशक्त रोजगार के क्षेत्र में था साथ ही हम दोनों शिव चौक मन्दिर मेरठ में साथ -साथ 17 माह रहे थे 1997 +1998 में | 1999 में कूटनीति के तहत अनुज हमें तिरस्कृत कर चूका था | पनाह एक मित्रने दी थी --किन्तु राजयोग के प्रभाव के कारण किसी यजमान की शतचण्डी हमने की --और माँ आदिशक्ति की कृपा से मुझे एक मन्दिर मिला निवास के साथ --कृष्णपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ --1999 में | --अब हमारे माता पिता ,अनुज को लगा --ये तो हाथ नहीं आएगा --अतः पिता मेरठ आये अनुज के पास पर नित्य मिलने आते थे मेरे पास --हम यथाशक्ति सत्कार करते थे | पिता बोले 17 माह में उसके पैसे हैं तुम्हारे पास 50000 हजार दे दो --हमने कहा मेरे पास सारा लेखा -जोखा है 30000 हैं दोनों आधा -आधा बाँट लेते हैं | अनुज पिता से झूट बोला नहीं 50000 हैं --हमने हिसाब किताब देखने की बात कही --पिता बोले --चलो उसका हिस्सा मुझे दे दो --हमने 15000 दे दिए ये धन लेकर पिता गांव चले गए | अब हम समझने लगे मेरी शादी के बाद गहने भी बिक गए ,भैस भी बिक गयी जो जमीन गिरवी थी उसे हमने छुड़ाई --पर आज अनुज की शादी के बाद गहने भी उसके हुए ,जमीं भी उसकी हुई --ये तो अन्याय है | 2003 में हमने कर्ज लेकर एक छोटा सा घर लिया प्रेम विहार माधवपुरम मेरठ में --अब पिता बोले इसमें आधा हिस्सा अनुज का भी है | अब हम सभी परिजनों के शत्रु होते गए ----आत्मकथा की अगली बात को -आगे के भाग में पढ़ने हेतु लिंक पर पधारें - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

दीपावली की रात्र तंत्रशास्त्र की महारात्रि होती है--पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


  दीपावली की रात्र  तंत्रशास्त्र की महारात्रि होती है--पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ

 भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे.-दीपावली की रात्र को तंत्रशास्त्र की महारात्रि होती है।... इस दिन तंत्र-मंत्र/टोन टोटके का प्रयोग अनेक व्यक्ति ईर्ष्या के कारण रिश्तेदार/मित्र/शत्रु के अनिष्ट के लिए करते है। दीपावली को लड़कियों को बाल खोल कर नहीं रखने चाहिए क्योकि इससे तंत्र मन्त्र प्रभाव उन पर जरूर होता है। दीपावली को व्यक्ति को अपने पास मोर पंख भी रखना चाहिए इससे तंत्र मन्त्र का प्रभाव कम होता है.हनुमानजी अजर-अमर व कलियुग में भी भक्तों के आस-पास रहते हैं दीपावली की रात को शुद्ध पारद हनुमान जी संजीविनी ब्यूटी लिए हुए मूर्ति के सामने पर लौंग डालकर दीपक प्रज्वलित करके परिवार के साथ हनुमान चालीसा, हनुमत अष्टक व बजरंग बाण का पाठ करने से घर मे किसी भी तंत्र मन्त्र के प्रभाव, पुरानी बीमारी व कर्जे से बाहर निकलने का मार्ग मिलता है.क्योकि पारद एक जीवंत धातु है और जिस प्रकार संजीवनी बूटी से लक्मण जी को तुरंत होश आकर पहले से भी अधिक शक्ति आ गयी थी उसी प्रकार कार्य स्थान/घर पर ये मूर्ति रखने से परेशानी से निकलने का मार्ग मिलता है।आप हनुमान जी की संजीवनी बूटी उठाई हुई शुद्ध पारद मूर्ति का ठीक से निरक्षण कर खरीदें . आजकल बाजार मे रांगे/गिलट को पारद बता कर बेच देते है, शुद्ध पारद वस्तु की जांच करने के लिए उस पर थोड़ा सा तरल पारद रखे, असली पारद वस्तु पर वह चिपक जायगा व पारद सामान मे चमक आ जायगी, नकली पारद (रांगा/गिलेट) पर नहीं चिपकेगा----ॐ ---- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com




रविवार, 5 नवंबर 2023

शिवताण्डव स्तोत्र देखें और सुनें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 शिवताण्डव स्तोत्र देखें और सुनें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ


 भोले शिव को बिना साज सुंदर आवाज से भी खुश कर सकते हैं -जरा इस शिव ताण्डव स्तोत्र को सुनें ---- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मेरी कुण्डली में 2014 से शनि की दशा चालू है -पढ़ें - भाग -68 ज्योतिषी झा मेरठ



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -68 ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली में 2014 से शनि की दशा चालू है एवं आजीवन कुछ क्षेत्रों में विशेष प्रभाव रहना है | जैसे प्रभाव क्षेत्र ,भाई -बन्धुओं का क्षेत्र ,रोग +शत्रुता ,भाग्य और आय का क्षेत्र --इन सभी क्षेत्रों में जो -जो प्रभाव रहा अब मैं क्रम से उस बात की ओर ले चलना चाहता हूँ | --अस्तु -जबतक पिता थे 2018 -तब तक किसी न किसी तरह एक संयुक्त परिवार था मेरा | भले ही विचार न मिलते हों किसी से किसी का पर चलना एक साथ ही होता था | 2018 के बाद जिस आलीशान भवन को पिताने बनाया था -उसे दो भागों में बाँटना बड़ा कठिन था |भवन के अन्दर जाने का मार्ग एक था आने -जाने का रास्ता मेरे हिस्से में था --जो सीढ़ी थी वो अनुज के हिस्से में थी | भवन का प्रांगण बहुत बड़ा था तो आंगन भी बहुत बड़ा था पर आने जाने का मार्ग संकीर्ण था | बिना सीढ़ी तोड़े बंटवारा संभव नहीं था | सीढ़ी इसलिए नहीं टूट सकती थी क्योंकि हमलोग छत पर जाते नहीं थे साथ ही सीढ़ी की वजह से अनुज को फ्रंट का लाभ मिल रहा था | मुझे सबसे हानि थी -हम शाकाहार थे साथ ही दो बेटियां थीं | अनुज के मकान में किरायेदार बहुत थे ,उनका आना -जाना मुझे बहुत ही अखड़ता था | हम अपने मकान में अच्छे किरायेदार रखना चाहते थे -इस मार्ग की वजह से संभव नहीं था | हमने जितना धन सिर्फ अलग होने में लगाया अगर मुझे जानकारी इस बात की होती तो शायद उतने पैसे में एक आलीशान अपना ही भवन बना लेते | इस भवन के लिए ईंट 1995 में हमने खरीदी | जब भवन का निर्माण हुआ तो मुझे पता भी नहीं चला ,मेरे मामा के सान्निध्य में बनना शुरू हुआ | पिता का पत्र धन के लिए आया हमने मना कर दी फिर भी पिता का सम्मान बचा रहे इसके लिए 2001 में 50000 भेज दिए | तब मेरा फिर से राज योग शुरू हो चूका था | तीन माह बाद फिर पिता का पात्र आया 850000 भेज दो छत बनेगी --हमने केवल 10000 दिए --यहीं से नाराजगी शुरू हुई |--अनुज की शादी हुई --मुझे केवल निमंत्रण पत्र आया हम विवाह में शामिल नहीं हुए | अब इस भवन में जो सबसे ख़राब और विवादित भाग था --वो पिताने हमें दिए --इसमें भी एक शर्त थी मुझे छोड़कर सभी पर चाची के मुकदमें चल रहे थे --हम इसको सुलझाना चाहते थे -50000 देकर पर मामा +जीजा ने होने नहीं दिया | केवल पिता थे कभी -कभी हमारी बातों को मानते थे पर माँ की वजह से लाचार रहते थे --माँ का एक ही शब्द था रेल में कटकर मर जाऊंगीं ऐसा हुआ तो चाहे भाई -भाई लड़े या मरे | हमारी बड़ी पुत्री बड़ी हो रही थी --इसका विवाह मातृभूमि पर ही करना चाहते थे | --पर इतना बड़ा महल ,जाने का रास्ता संकीर्ण था ,हमारा हिस्सा टुटा -फूटा और विवादित था | सारे परिजन विरोधी थे सिर्फ पिता से आशा थी --पर वो भी लाचार थे --हमने पिता से कहा मेरे हिस्से को भी ठीक करा दें जो धन लें --धन वो चीज है बड़े -बड़े को भ्रष्ट बना देता है | पिता बोले -800000 दोगे तो तुम्हारे हिस्से का पलस्तर हो जायेगा | हमने 850000 दिए --फिर क्या था बात बन गयी -पर हमने कहा आपको सिर्फ यह कागज बनाना है --मेरा हिस्सा किधर से है --तैयार हो गए ,ऐसा ही कागज बना --क्योंकि वो भूल हम नहीं करना चाहते थे --जिस भूल की सजा पिताजी को मिली ,जमीं पिताजी की पर हक़दार चाची हो गयी | ---आत्मकथा की अगली बात को --आगे के भाग में पढ़ने हेतु लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

स्तोत्र यानि -स्तुति ,प्रार्थना ,निवेदन सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ


 स्तोत्र यानि -स्तुति ,प्रार्थना ,निवेदन सुनें !"ज्योतिषी झा मेरठ ",झंझारपुर ,मुम्बई"

दोस्तों -कर्मकाण्ड जगत में स्तुति से किसी भी देवता को रिझा सकते हैं ,मना सकते हैं -केवल भाव और स्वरों से श्रद्धा के साथ तो इस स्तुति को सुनें और आप हमसे बेहतर गायें --------- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है-पढ़ें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


 धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है-पढ़ें ?

धनतेरस के दिन{अहर्निशं } लक्ष्मी – गणेश और कुबेर की पूजा की जाती है। पर इस दिन सबसे महत्वपूर्ण पूजा होती है स्वास्थ्य और औषधियों के देवता धनवन्तरी की। इन सभी पूजाओं को घर में करने से स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहती है। इस दिन लोग अपने स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कामना करते हैं। इसके लिए इस दिन धनवन्तरी की पूजा की जाती है। इसके लिए अपने घर के पूजा गृह में जाकर ॐ धं धन्वन्तरये नमः मंत्र का 108 बार उच्चारण करें। ऐसा करने बाद स्वास्थ्य के भगवान धनवंतरी से अच्छी सेहत की कामना करें। ऐसी मान्यता है कि इस दिन धनवन्तरी की पूजा करने से स्वास्थ्य सही रहता हैा धनवन्तरी की पूजा के बाद यह जरूरी है कि लक्ष्मी और गणेश का पूजन किया जाए। इसके लिए सबसे पहले गणेश जी को दिया अर्पित करें और धूपबत्ती चढ़ायें। इसके बाद गणेश जी के चरणों में फूल अर्पण करें और मिठाई चढ़ाएं। इसके बाद इसी तरह लक्ष्मी पूजन करें। इसके अलावा इस दिन धनतेरस पूजन भी किया जाता है और कुबीर देवता की पूजा की जाती है। धनतेरस पूजन के लिए सबसे पहले एक लकड़ी का पट्टा लें और उस पर स्वास्तिक का निशान बना ---इसके बाद इस पर एक तेल का दिया जला कर रख दें----दिये को किसी चीज से ढक दें--दिये के आस पास तीन बार गंगा जल छिड़कें---इसके बाद दीपक पर रोली का तिलक लगाएं और साथ चावल का भी तिलक लगाएं---इसके बाद दीपक में थोड़ी सी मिठाई डालकर मीठे का भोग लगाएं--फिर दीपक में 1 रुपया रखें। रुपए चढ़ाकर देवी लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पण करें--इसके बाद दीपक को प्रणाम करें और आशीर्वाद लें और परिवार के लोगों से भी आशीर्वाद लेने को कहें।---इसके बाद यह दिया अपने घर के मुख्य द्वार पर रख दें,----- ध्यान रखे कि दिया दक्षिण दिशा की ओर रखा हो। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इन तीनों पूजन के समापन से घर में लक्ष्मी सदैव विद्यमान रहती हैं और स्वास्थ्य बेहतर रहता है।------ ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut




शिवपंचाक्षर स्तुति सुनें -खगोलशास्त्री झा "मेरठ "


 शिवपंचाक्षर स्तुति सुनें -खगोलशास्त्री झा "मेरठ "

यह शिवपंचाक्षर यानि ॐ नमः शिवाय इन अक्षरों के ऊपर ही स्तुति बनायी | बनाने वाले श्रीआदिशंकराचार्य थे | यह संस्कृत भाषा में है अति सरल और सुगम है जिसे कोई भी गा सकता है | तो सुनें और नित्य गाये शिव को प्रसन्न करें |---आपका ज्योतिषी झा मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई से -पत्ता किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ |---आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनिवार, 4 नवंबर 2023

अब यह कथा एक किताब का प्रारूप ले चुकी है --पढ़ें - भाग -67 ज्योतिषी झा मेरठ


 



मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -67 ज्योतिषी झा मेरठ
मेरी आत्मकथा -मेरा कल आज और कल में हमने जीवनी रूपी कथा सुनाई है | अब यह कथा एक किताब का प्रारूप ले चुकी है | जो आगे चलकर किताब छपेगी और जन -जन तक पहुंचे यही सोच है | आज मैं उन बातों पर प्रकाश डालना चाहता हूँ जो वास्तविक होते हुए भी सच बहुत दूर होता है | भगवान का प्रसाद भले ही पुजारी की समझ में न आये पर भक्तों के लिए अमृत होता है | हॉस्पिटल में रोगी को भले ही देखने बहुत लोग जाते हों पर दर्द का अहसास सिर्फ दर्द वालों को ही होता है | ज्योतिष की जानकारी भले ही सभी रखते हों पर योग का अबलोकन सिर्फ मर्मज्ञ ज्योतिषी ही कर सकते हैं | --अस्तु --मेरे पिता धन की कामना न करते हुए सिर्फ मुझे शिक्षाविद देखना चाहते थे बाल्य काल में यही वो नींव थी जो मुझे आजतक निरन्तर पढ़ने पर मजबूर करती है | बाद में समय बदला तो सभी बदल गए पर आजतक मैं स्वयं नहीं बदल सका इसलिए आज भी अधूरे हैं | मेरे जीवन में बहुत सी बातें अनुभव करने योग्य हैं --दूर के लोग बहुत सम्मान देते हैं किन्तु जहाँ रहता हूँ वो सबसे ज्यादा तिरस्कार करते हैं | मेरे ज्ञान के मुरीद बहुत से लोग हैं पर अपने परिवार में आज भी मैं वैसा ही दीखता हूँ जैसा बाल्यकाल में था | मेरे आलेखों को दूर देश में रहने वाले बड़े ही श्रद्धा से पढ़ते हैं किन्तु अपने पड़ौसी हों ,परिजन हों ,मित्र हों परिवार हो उन्हें पागल दिखता हूँ | मेरी ज्योतिषी से सभी को भी लाभ मिलता है --चाहे अपने हों या पराये जरुरत पर हम ही समझ में आते हैं --पर प्रभाव क्षणिक देर तक ही रहता है | --कर्मकाण्ड जगत में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जिसको लाभ न मिला हो उस व्यक्ति को उसकी कामना की पूर्ति अवश्य हुई है पर मेरे प्रति श्रद्धा तबतक रहती है जबतक वो व्यक्ति अपनी मंजिल तक न पहुंच जाय --फिर काहे के गुरूजी | मेरठ क्षेत्र में 1988 में आया था शिक्षा से परिपूर्ण था पर --दरिद्र योग चल रहा था तो जीविका के लिए मित्रों से सहायता लेनी पड़ी --पर मेरी सोच ये थी, मेरे द्वारा भी लोगों को काम मिले --जब राजयोग शुरू हुआ तो हम भी लोगों को कार्य देने लगे यह सोचकर की यह मेरा धर्म है | पर मैं जन्मजात न तो कर्मकाण्डी था न ही दान लेना ,मेरे हुए का खाना या मंदिर में रहना ये मेरी सोच में न था न है पर कहते हैं | दान लेने वाले से देने वाले महान होते हैं --अतः मैं तो एक पत्रकार या शिक्षक या फिर उत्तम दर्जे का ज्योतिषी बनना चाहता था --जो किसी पर आश्रित न हो सिर्फ भगवान पर आश्रित रहे | यही सोच मुझे नेट की दुनिया में आने का कारण है | -इस राह में जो दूर देश में रहते हैं उन्हें मैं विभद्र व्यक्ति दीखता हूँ | जो मेरे परिजन हैं या पड़ौसी हैं उन्हें या तो ठगने वाला दीखता हूँ या एक साधारण सा पण्डित | इन तमाम बातों का मुझपर कभी भी कोई फर्क नहीं पड़ा --मुझे जो करना है वो ईस्वर को साक्षी मानकर चलता हूँ --वही मेरे प्रेरणा के श्रोत हैं --यही वो आशीष है जो मेरे अडिग स्तम्भ है | ऐसा प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होता है और प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार पर अडिग रहना चाहिए ---अब आगे के भागों में यही दिखाना चाहता हूँ --व्यक्तिगत जो खूबी व्यक्ति में होती है उसे सिर्फ व्यक्ति ही जनता है --परिजन भी नहीं जानते है ---आत्मकथा की अगली बात को --आगे के भाग में पढ़ने हेतु लिंक पर पधारें - https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

कनकधारा स्त्रोत्र सुनें -खगोलशास्त्री झा मेरठ


 दोस्तों -हमें हिन्दी भाषा शुद्ध -शुद्ध लिखनी या बोलनी आज भी नहीं आती है | हिन्दी भाषा सीखने के लिए मैं किसी कक्षा में नहीं गया बल्कि लोग ,पत्रिका ,अख़बार में क्या और किस प्रकार से लिखते या बोलते हैं --इस प्रक्रिया से हिन्दी सीखने का प्रयास किया था | --इसी प्रकार से बहुत सी सुतियाँ हमें याद नहीं थी तो अपने बालक को सिखाते -सिखाते ही हमने याद किया मेरी उम्र थी -48 वर्ष ,साथ ही पिता होने के नाते विद्या का प्रचार और प्रसार करना भी शिक्षक का धर्म होता है तो सुनें कनकधारा स्तोत्र भाषा संस्कारित है --रचनाकार स्वयं श्री आदि शंकराचार्य हैं | 


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2010 से -नेट की दुनिया में हमने जो कुछ भी लिखा या बोला था -पढ़ें - भाग -66 ज्योतिषी झा मेरठ


 


" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -66 ज्योतिषी झा मेरठ

2010 से -नेट की दुनिया में हमने जो कुछ भी लिखा या बोला था --वास्तव में मुझे यह आभाष नहीं था कि मैं शुद्ध बोल रहा हूँ या अशुद्ध साथ ही तनिक सी भूल हमें लाभ से वंचित कर देगी | 2014 तक नेट भारत में कम विदेशों में प्रयोग ज्यादा करते थे ,साथ ही नेट पर हिन्दी भाषा के प्रति विदेशों में जो भी भारतीय थे --वो सुनते भी थे पढ़ते भी थे | स्काइप पर वीडियो कॉल की फ्री सुविधा थी --इसका लाभ सभी उठाते थे --इस स्काइप पर एक महिला जो पाकिस्तान में थी रहने वाली लखनऊ की थी --उन्हौने पहला वीडियो कॉल की | हमने उन्हें फ्री सेवा दी | मेरी समस्त गलतियों को न देखते हुए लोग मेरे आलेखों को पढ़ते रहे ,फ्री सेवा लेते रहे और सुझाव भी देते रहे | हमने अपने जीवन काल में किसी से कभी कुछ बताने के लिए नहीं कहा न ही नेट का बेसिक ही सीखा --पागलपन सवार था --बहुत प्रख्यात होना था भले ही धन बहुत मिले या न मिले --सम्मान बहुत मिले ,बहुत से लोग हमें जानें --यही उत्कंठा से लिखता गया ,बोलता गया | जब 2019 का दिसम्बर ,मास आया तो एक व्यक्ति श्रीसुदर्शन कर्दमजी माले गांव महाराष्ट्र से ज्योतिष की जानकारी लेनी चाही --हमने कहा अब फ्री सेवा बन्द हो चुकी है ,शुल्क 1100 देकर सेवा मिल सकती है | उन्होनें कहा आपका एक वीडियो जो कनकधारा स्तुति है उसे युटुब से 2011 से निरन्तर सुन रहा हूँ और पाठ भी कर रहा हूँ --आज मेरे मन में जिज्ञासा उठी ज्योतिष की जानकारी करने की तो हमने फोन किया है | स्वयं उनका कॉलेज था | बहुत पूजा पाठ कराते थे | मैं कहीं से कहीं तक उनके योग्य नहीं था --पर बोले आपकी स्तुति के शब्द मुझे मोह लेते हैं | अतः उन्हौनें पैसे दिए --हमने जन्मपत्री देखी ,निदान बताया --उन्होनें कहा पूजा आपसे ही करानी है | हमने बहुत कहा आप वहीँ अपने किसी पण्डितजी से करायें --मेरी सेवा महंगी है | बोले पूजा तो आपही करोगे | एक लाख रूपये उनके खर्च हुए मेरठ आये सपरिवार पूजा करायी ,हमने यथा संभव सत्कार करने का प्रयास किया | यहाँ एक शब्द कहना चाहता हूँ --वृथा न होहि देव रिषि वाणी --जो ऋषि -महर्षियों ने बाते कहीं हैं -वो विस्वास करने पर सटीक उतरती हैं --मुझे कनकधारा स्तुति की जानकारी बाल्यकाल से थी पर याद हमने 2011 में किया और युटुब पर डाला तो माँ लक्ष्मी की मुझ पर भी कृपा होनी थी सो 2020 में जब करोना काल था तो यही धन मुझे जीने का सहारा बना | इस कनकधारा स्तुति को मैं अपने बालक को भी कंठाग्र कराया -2018 में | कभी -कभी लोग कहते हैं -फ्री में बता दो या पंडितजी बहुत पैसे लेते हैं ----इसका एक उदहारण देना चाहता हूँ --आज मैं 53 वर्ष का होने वाला हूँ -करीब -करीब 11 वर्ष का था तब से कर्मकाण्ड कराता आ रहा हूँ ,2010 से 18 /02 /2019 तक फ्री ज्योतिष की सेवा एकबार देने की कोशिश की है | बहुत से ऐसे यजमान रहे -जिनके पिता +पुत्र के लिए बहुत से निःशुल्क कार्य किये पर --आजतक किसीने यह नहीं कहा होगा निःस्वार्थ --पण्डितजी -यह धन रखलो ,अपनी पसंद की एक चादर ले लो ,यह मिठाई अपनी पसन्द की खा लेना ,या कुछ अपने योग्य ले लो , सिर्फ अगर कहा है या दिया है तो वो चीज जिसके द्वारा उनकी भलाई होगी और किसी ग्रह के दोष से मुक्त होंगें --यही वो शब्द या बातें हैं --जो फ्री देने से बाध्य करते हैं | आज के समय में चूल में उलझने पर सत्कार होता है अन्यथा भगवान की सत्ता को भी दिल से न स्वीकार करें | आगे परिचर्चा अगले भाग में करूँगा
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खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...