मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -71 ज्योतिषी झा मेरठ
प्रिय पाठकगण -भगवान श्री राम हों या श्रीकृष्ण राज परिवार में जन्म लिए --इनकी जीवनी से यह ज्ञात होता है ,दुःख में सुख का अनुभव नहीं होता है और सुख में दुःख का भी अनुभव नहीं होता है | ---अस्तु -मेरा राजयोग ही था जो हम चल रहे थे अन्यथा दुःखों की भरमार थी | एक शतचण्डी 1996 वे में की थी तब उम्र 26 वर्ष थी ,राहु का दरिद्र योग चल रहा था --तो रोजगार का साधन मिलने लगा | दूसरी शतचण्डी किसी यजमान की की थी --1999 में तो निवास और मन्दिर मिले ,रोजगार बहुत ही ठीक था ,सभी जगह प्रख्यात हो रहे थे ,सभी सहकर्मी मित्रों को मनोनुकूल दक्षिणा के साथ सम्मान दिलाने का भरसक प्रयत्न करते थे | पर विध्न अनन्त थे --पिताजी को किसीने कहा होगा ये काला कपडा अपने साथ मेरठ बड़े पुत्र के पास ले जाओ तुम्हारा काम बन जायेगा ,उनका काम बन गया --अनुज का हिस्सा मुझसे 15000 ले गए | हम बहुत बीमार रहने लगे ,छोटी बेटी बहुत बीमार हो गयी ,पहले टाइफाइड हुआ फिर टीबी हुई फिर अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ | मेरा भी छोटा सा ऑपरेशन हुआ -आँख के ऊपरी भाग में अनायास गांठ बन गयी थी | कोई भी परिजन देखने नहीं आये | -आज के युग में बेटियां हों पतनी हो पराधीन जीवन हो तो अहसास वही व्यक्ति कर सकता है -जो धर्मानुरागी हो अन्यथा जीवन मान से जीएं या अपमान से क्या फर्क पड़ता है | मुझे मन्दिर और निवास तो मिले ,रोजगार बहुत थे पर गंदगी बहुत थी --इसलिए हम सब बीमार हो रहे थे | किसी तरहअपना निवास लेना चाह रहे थे | अपना तो कोई था ही नहीं {सब होते हुए भी } एक यजमान मित्र थे उनसे निवेदन किया --भवन छोटा सा दिला दो --बोले जरूर -जहाँ बात करके आये --उस समय मेरठ में कांग्रेस के युवा अध्यक्ष श्री रोहतास भैय्या माधवपुरम प्रेम विहार मेरठ हुआ करते थे | उनकी इनसे बात हुई -20000वयाना दिए -दस मेरे दस यजमान मित्र के --बिना कागजात के फिर क्या था --श्री रोहतास भैय्या उनको पीटा भी और रूपये भी खा गए --हम मुंह देखते ही रह गए | ये 2002 की बात है | अब हम निराश हो गए ,गांव में पैसा देने के बाद माता पिता जीना मुश्किल कर चुके थे वहां भवन का सुख नहीं मिला यहाँ मेरठ में जिन पर उम्मीद थी वो भी ले डुबे | पतनी बीमार हो गयी मकड़े के घाव से --यहाँ धन तो था ,न शुद्ध जल था न शुद्ध वातावरण था स्थान किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ ,बीड़ी ,सिगरेट ,शराब की भरमार थी | भगवन शिव की आराधना में लग गए --एक और मित्र मिले किशनपुरी के ही -धन तो नहीं दिया पर तन से सहायता बहुत की | --चाहे बेटी हो ,पतनी हो या मेरा खुद का ऑपरेशन तन मन से सहायता की | अब हम फिर कैसे भी करके मकान लेना चाह रहे थे ,किराये के मकान में नहीं रहना चाहते थे | ये मित्र यजमान ने एक मकान दिखाया -प्रेम बिहार गली नंबर 2 माधवपुरम मेरठ --40 गज का अभी बन ही रहा था किम्मत सवा दो लाख --मेरे पास थे सवा लाख --उस समय एक मित्र डालम पाड़ा मेरठ में रहते थे ,उनसे कर्य लिए एक लाख --मेरे यजमान मित्र को लगा इतने पैसे कैसे कर्य दे दिया | हमने दो लाख पैंतीस हजार जहाँ -तहाँ से कर्य लेकर यजमान मित्र के हाथ में दे दिए | जहाँ भवन लेने की बात हो चुकी थी कल रजिस्ट्री होगी --उससे लड़ाई करके रात में यजमान मित्र आये बोले --गुरूजी ये मकान मत लो -इन पैसों से व्यापार करेंगें ,बढियाँ मकान लेंगें ,ये घटिया मकान है | मेरी जो परिस्थिति थी वो हम जानते थे या भगवान ,अब तो हम फस गए ,कर्य भी ले लिया मकान भी नहीं मिला धन लालाजी के हाथ चला गया | पतनी ने राय दी ,मकान वाले से बात करो जो भी है ,जैसा भी है लेना है ,मकान मालिक तैयार हो गया --अब लालाजी बोले -और पैसे कहाँ से आयेंगें -जबकि साढ़े आठ हजार रजिस्ट्री में दो लाख अठारह हजार मकान का दाम ---हमने लालाजी को दिए थे दो लाख पैतीस हजार | खैर जैसे- तैसे करके यह मकान मिला -10 /01 /2003 को "भारत भूमि पर पुरुष की अपेक्षा महिला पक्ष दयालु होता है --यह मकान मिला तो इसमें लालाजी की अर्धांगिनी न होती तो शायद हमें मकान तो मिलता ही नहीं धन भी नहीं मिलता | ----अगली चर्चा अगले भाग में करूँगा --आपका खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ -ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु यहाँ पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut









