मेरा" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -68 ज्योतिषी झा मेरठ
मेरी कुण्डली में 2014 से शनि की दशा चालू है एवं आजीवन कुछ क्षेत्रों में विशेष प्रभाव रहना है | जैसे प्रभाव क्षेत्र ,भाई -बन्धुओं का क्षेत्र ,रोग +शत्रुता ,भाग्य और आय का क्षेत्र --इन सभी क्षेत्रों में जो -जो प्रभाव रहा अब मैं क्रम से उस बात की ओर ले चलना चाहता हूँ | --अस्तु -जबतक पिता थे 2018 -तब तक किसी न किसी तरह एक संयुक्त परिवार था मेरा | भले ही विचार न मिलते हों किसी से किसी का पर चलना एक साथ ही होता था | 2018 के बाद जिस आलीशान भवन को पिताने बनाया था -उसे दो भागों में बाँटना बड़ा कठिन था |भवन के अन्दर जाने का मार्ग एक था आने -जाने का रास्ता मेरे हिस्से में था --जो सीढ़ी थी वो अनुज के हिस्से में थी | भवन का प्रांगण बहुत बड़ा था तो आंगन भी बहुत बड़ा था पर आने जाने का मार्ग संकीर्ण था | बिना सीढ़ी तोड़े बंटवारा संभव नहीं था | सीढ़ी इसलिए नहीं टूट सकती थी क्योंकि हमलोग छत पर जाते नहीं थे साथ ही सीढ़ी की वजह से अनुज को फ्रंट का लाभ मिल रहा था | मुझे सबसे हानि थी -हम शाकाहार थे साथ ही दो बेटियां थीं | अनुज के मकान में किरायेदार बहुत थे ,उनका आना -जाना मुझे बहुत ही अखड़ता था | हम अपने मकान में अच्छे किरायेदार रखना चाहते थे -इस मार्ग की वजह से संभव नहीं था | हमने जितना धन सिर्फ अलग होने में लगाया अगर मुझे जानकारी इस बात की होती तो शायद उतने पैसे में एक आलीशान अपना ही भवन बना लेते | इस भवन के लिए ईंट 1995 में हमने खरीदी | जब भवन का निर्माण हुआ तो मुझे पता भी नहीं चला ,मेरे मामा के सान्निध्य में बनना शुरू हुआ | पिता का पत्र धन के लिए आया हमने मना कर दी फिर भी पिता का सम्मान बचा रहे इसके लिए 2001 में 50000 भेज दिए | तब मेरा फिर से राज योग शुरू हो चूका था | तीन माह बाद फिर पिता का पात्र आया 850000 भेज दो छत बनेगी --हमने केवल 10000 दिए --यहीं से नाराजगी शुरू हुई |--अनुज की शादी हुई --मुझे केवल निमंत्रण पत्र आया हम विवाह में शामिल नहीं हुए | अब इस भवन में जो सबसे ख़राब और विवादित भाग था --वो पिताने हमें दिए --इसमें भी एक शर्त थी मुझे छोड़कर सभी पर चाची के मुकदमें चल रहे थे --हम इसको सुलझाना चाहते थे -50000 देकर पर मामा +जीजा ने होने नहीं दिया | केवल पिता थे कभी -कभी हमारी बातों को मानते थे पर माँ की वजह से लाचार रहते थे --माँ का एक ही शब्द था रेल में कटकर मर जाऊंगीं ऐसा हुआ तो चाहे भाई -भाई लड़े या मरे | हमारी बड़ी पुत्री बड़ी हो रही थी --इसका विवाह मातृभूमि पर ही करना चाहते थे | --पर इतना बड़ा महल ,जाने का रास्ता संकीर्ण था ,हमारा हिस्सा टुटा -फूटा और विवादित था | सारे परिजन विरोधी थे सिर्फ पिता से आशा थी --पर वो भी लाचार थे --हमने पिता से कहा मेरे हिस्से को भी ठीक करा दें जो धन लें --धन वो चीज है बड़े -बड़े को भ्रष्ट बना देता है | पिता बोले -800000 दोगे तो तुम्हारे हिस्से का पलस्तर हो जायेगा | हमने 850000 दिए --फिर क्या था बात बन गयी -पर हमने कहा आपको सिर्फ यह कागज बनाना है --मेरा हिस्सा किधर से है --तैयार हो गए ,ऐसा ही कागज बना --क्योंकि वो भूल हम नहीं करना चाहते थे --जिस भूल की सजा पिताजी को मिली ,जमीं पिताजी की पर हक़दार चाची हो गयी | ---आत्मकथा की अगली बात को --आगे के भाग में पढ़ने हेतु लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें