"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -60-ज्योतिषी झा मेरठ
आज मैं अपनी जीवनी में कर्मक्षेत्र में मेरा योगदान कैसा रहा पर विवेचन करना चाहता हूँ "-----यद्यपि एक साधारण सा व्यक्ति का कोई भी कर्मक्षेत्र प्रभावशाली नहीं होता है | जब मैं कर्मक्षेत्र के योग्य हुआ तब राहु की दशा चल रही थी | अतः बाल्यकाल में अनन्त सपने थे -सचाई कुछ नहीं थी | शिक्षा का आधार संस्कृत भाषा थी -तो नौकरी नहीं मिली -पण्डित बन गए | जिस कर्मकाण्ड के प्रति मेरी श्रद्धा नहीं थी --वही जीवन जीने का आधार बना | जब 30 वर्ष के हुए तो संगीतमय कथा की लालसा हुई --जब इस विद्या में निपुण हुए -तब नेट की दुनिया आ चुकी थी --तब मैं -40 वर्ष का हो चूका था --अतः नेट की दुनिया में आ गए --आजतक इसी दुनिया से भरण पोषण होता है | भले ही मुझे अनन्त कर्मक्षेत्र के लिए संघर्ष करना पड़ा हो पर जबतक हम पराधीन रहे --तो लोग हमसे कमीशन लेते रहे | किन्तु जब हम सक्षम हुए -1999 से तब मैं 29 वर्ष का था --तो हमने किसी से कोई कमीशन नहीं लिया | सबको बराबर दक्षिणा देने का प्रयास किया | कमर्काण्ड की दुनिया में एक सक्षम आचार्य को वही धन लेना चाहिए -जो यज्ञ से सम्बन्धित हो अन्यथा धन लाभ नहीं देता है इसका शतसः पालना करने की कोशिश की | दान में मिली हुई वस्तुओं को जिनकी हमें आवश्यकता नहीं थी हमने बेचा नहीं ,संचित नहीं किया बल्कि जरूरत मन्द लोगों को गांव में लेजाकर भोजन के साथ दक्षिणा देकर --वो भी माता पिता के हाथों से कराने की यथाशक्ति कोशिश की --इसकी वजह से ही हम आगे बढ़ते गए | मेरे कोई ऐसे यजमान नहीं रहे --जिनकी मुरादें पूरी न हुई हों | पर अपने जीवनकाल में ब्राहण ,क्षत्रिय ,वैश्य --ये प्रमुख यजमान रहे --इन्हौनें कभी कोई पुरस्कार नहीं दिया -बदले में शोषण ही किया | मेरे जीवन में पुरस्कार देने वाले प्रमुख यजमान ,कोई छारी ,तो कोई गूजर तो कोई जाटव तो कोई यादव तो कोई जाट तो कोई धानक तो कोई पासवान तो कोई नाई --ऐसे लोग सहयोग विशेष करने वाले रहे | आज के समय में नेट की दुनिया में ज्यादातर नवयुवक हैं जो धन भी देते हैं और सम्मान भी करते हैं --क्योंकि वो जब मेरे आलेखों को पढ़ते हैं तो उन बातों को नहीं मानते हैं --जो सुनी -सुनाई हैं --जो प्रत्यक्ष देखते हैं --उनको मानते है | ज्योतिष और कर्मकाण्ड जगत महंगा होने के कारण लोग तन्त्र और यन्त्रों का सहारा लेते हैं | हमने ज्योतिष और कर्मकाण्ड को व्यवसाय नहीं बनाया --बल्कि --जो पण्डित ,शास्त्री को करना चाहिए वही किया | हमने रतनों को नहीं बेचा -जबकि पूर्ण जानकारी है | हमने वही यज्ञ किये जिनको मेरा करने का अधिकार था | --हमने अपने जीवन में कोई याचना लोगों से नहीं की सिर्फ भगवान से की --यह विस्वास है परमात्मा की कृपा होगी तभी कोई कुछ दे सकता है | मुझे धर्म का पालन करने में कई यजमानों से लड़ाई हुई --पर नतमस्तक सिर्फ भगवान के समीप ही हुए | आज भी मन्दिर में रहता हूँ पर आजतक सेवकाई नहीं ली है --23 वर्ष हो चुके हैं | सभी प्रकार की पूजा को जनता हूँ पर केवल मैं यज्ञों को ही कराता हूँ --ताकि जो कम पढ़े लिखे हैं उनको भी रोजगार मिले | ज्योतिष सेवा महंगी है --जो कम खर्च करने वाले हैं वो वहां जाये जो कम पढ़े लिखे हैं ताकि सभी को रोजगार मिले | हमने शिक्षा दान करने की बहुत कोशिश की पर सुपात्र शिष्य नहीं मिले | मुझे लगता है --सबको जीने का हक़ है अतः कर्मक्षेत्र का अर्थ है कर्तव्यपथ और इसका पूर्ण रूपेण पालन हर व्यक्ति को करना चाहिए --आपके भाग्य में कुछ है तो अभी मिलेगा --नहीं है तो कर्म के द्वारा आगे मिलेगा | -----अब मैं जीवनी की ज्वलंत घटनाओं को दर्शाऊँगा जो ग्रहों के खेल भी हैं ,व्यक्ति का अनुभव भी है | ---ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut












