ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

रविवार, 29 अक्टूबर 2023

कर्मक्षेत्र में मेरा योगदान कैसा रहा पर विवेचन करना चाहता हूँ-पढ़ें- भाग-60-ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -60-ज्योतिषी झा मेरठ

आज मैं अपनी जीवनी में कर्मक्षेत्र में मेरा योगदान कैसा रहा पर विवेचन करना चाहता हूँ "-----यद्यपि एक साधारण सा व्यक्ति का कोई भी कर्मक्षेत्र प्रभावशाली नहीं होता है | जब मैं कर्मक्षेत्र के योग्य हुआ तब राहु की दशा चल रही थी | अतः बाल्यकाल में अनन्त सपने थे -सचाई कुछ नहीं थी | शिक्षा का आधार संस्कृत भाषा थी -तो नौकरी नहीं मिली -पण्डित बन गए | जिस कर्मकाण्ड के प्रति मेरी श्रद्धा नहीं थी --वही जीवन जीने का आधार बना | जब 30 वर्ष के हुए तो संगीतमय कथा की लालसा हुई --जब इस विद्या में निपुण हुए -तब नेट की दुनिया आ चुकी थी --तब मैं -40 वर्ष का हो चूका था --अतः नेट की दुनिया में आ गए --आजतक इसी दुनिया से भरण पोषण होता है | भले ही मुझे अनन्त कर्मक्षेत्र के लिए संघर्ष करना पड़ा हो पर जबतक हम पराधीन रहे --तो लोग हमसे कमीशन लेते रहे | किन्तु जब हम सक्षम हुए -1999 से तब मैं 29 वर्ष का था --तो हमने किसी से कोई कमीशन नहीं लिया | सबको बराबर दक्षिणा देने का प्रयास किया | कमर्काण्ड की दुनिया में एक सक्षम आचार्य को वही धन लेना चाहिए -जो यज्ञ से सम्बन्धित हो अन्यथा धन लाभ नहीं देता है इसका शतसः पालना करने की कोशिश की | दान में मिली हुई वस्तुओं को जिनकी हमें आवश्यकता नहीं थी हमने बेचा नहीं ,संचित नहीं किया बल्कि जरूरत मन्द लोगों को गांव में लेजाकर भोजन के साथ दक्षिणा देकर --वो भी माता पिता के हाथों से कराने की यथाशक्ति कोशिश की --इसकी वजह से ही हम आगे बढ़ते गए | मेरे कोई ऐसे यजमान नहीं रहे --जिनकी मुरादें पूरी न हुई हों | पर अपने जीवनकाल में ब्राहण ,क्षत्रिय ,वैश्य --ये प्रमुख यजमान रहे --इन्हौनें कभी कोई पुरस्कार नहीं दिया -बदले में शोषण ही किया | मेरे जीवन में पुरस्कार देने वाले प्रमुख यजमान ,कोई छारी ,तो कोई गूजर तो कोई जाटव तो कोई यादव तो कोई जाट तो कोई धानक तो कोई पासवान तो कोई नाई --ऐसे लोग सहयोग विशेष करने वाले रहे | आज के समय में नेट की दुनिया में ज्यादातर नवयुवक हैं जो धन भी देते हैं और सम्मान भी करते हैं --क्योंकि वो जब मेरे आलेखों को पढ़ते हैं तो उन बातों को नहीं मानते हैं --जो सुनी -सुनाई हैं --जो प्रत्यक्ष देखते हैं --उनको मानते है | ज्योतिष और कर्मकाण्ड जगत महंगा होने के कारण लोग तन्त्र और यन्त्रों का सहारा लेते हैं | हमने ज्योतिष और कर्मकाण्ड को व्यवसाय नहीं बनाया --बल्कि --जो पण्डित ,शास्त्री को करना चाहिए वही किया | हमने रतनों को नहीं बेचा -जबकि पूर्ण जानकारी है | हमने वही यज्ञ किये जिनको मेरा करने का अधिकार था | --हमने अपने जीवन में कोई याचना लोगों से नहीं की सिर्फ भगवान से की --यह विस्वास है परमात्मा की कृपा होगी तभी कोई कुछ दे सकता है | मुझे धर्म का पालन करने में कई यजमानों से लड़ाई हुई --पर नतमस्तक सिर्फ भगवान के समीप ही हुए | आज भी मन्दिर में रहता हूँ पर आजतक सेवकाई नहीं ली है --23 वर्ष हो चुके हैं | सभी प्रकार की पूजा को जनता हूँ पर केवल मैं यज्ञों को ही कराता हूँ --ताकि जो कम पढ़े लिखे हैं उनको भी रोजगार मिले | ज्योतिष सेवा महंगी है --जो कम खर्च करने वाले हैं वो वहां जाये जो कम पढ़े लिखे हैं ताकि सभी को रोजगार मिले | हमने शिक्षा दान करने की बहुत कोशिश की पर सुपात्र शिष्य नहीं मिले | मुझे लगता है --सबको जीने का हक़ है अतः कर्मक्षेत्र का अर्थ है कर्तव्यपथ और इसका पूर्ण रूपेण पालन हर व्यक्ति को करना चाहिए --आपके भाग्य में कुछ है तो अभी मिलेगा --नहीं है तो कर्म के द्वारा आगे मिलेगा | -----अब मैं जीवनी की ज्वलंत घटनाओं को दर्शाऊँगा जो ग्रहों के खेल भी हैं ,व्यक्ति का अनुभव भी है | ---ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

छलनी से क्यों देखते हैं करवा चौथ का चांद-पढ़कर अनुभव करें -ज्योतिषी झा मेरठ


 छलनी से क्यों देखते हैं करवा चौथ का चांद-पढ़कर अनुभव करें -ज्योतिषी झा मेरठ

 



कार्तिक मास में जब कृष्ण पक्ष आता है उसकी चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है। यह व्रत सुख, सौभाग्य, दांपत्य जीवन में प्रेम बरकरार रखने के लिए होता है। इसके साथ ही परिवार में रोग, शोक और संकट को दूर करने के लिए भी होता है। सुबह से रखा जाने वाला व्रत शाम को चांद देखने के बाद ही खोला जाता है। चांद देखने की भी एक खास परंपरा है, इसे छलनी में से ही देखा जाता है। ऐसा क्यों है. आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी..।--भाइयों ने किया था बहन से छल करवा चौथ व्रत कथा के मुताबिक प्राचीन काल में एक बहन को भाइयों ने स्नेहवश भोजन कराने के लिए छल से चांद की बजाय छलनी की ओट में दीपक जला दिया और भोजन कराकर व्रत भंग करा दिया। इसके बाद उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और जब दोबारा करवा चौथ आया तो उसने विधि पूर्वक व्रत किया और उसे सौभाग्य की प्राप्ति हो गई। उस करवा चौथ पर उसने हाथ में छलनी लेकर चांद के दीदार किए थे।--यह भी है एक कहानीइस दिन चांद को छलनी के जरिए देखने की यह कथा भी प्रचलित है। इसका यह महत्व है कि कोई भी छल से उनका व्रत भंग न कर सके, इसलिए छलनी के जरिए बहुत बारीकी से चंद्रमा को देखने के बाद ही व्रत खोलने की परंपरा विकसित हो गई। इस दिन व्रत करने के लिए इस व्रत की कथा सुनने का भी विशेष महत्व है।---सांस का आशीर्वाद लेकर देती हैं गिफ्ट करवा चौथ के व्रत वाले दिन एक चौकी पर जल का लौटा, करवे में गेहूं और उसके ढक्कन में शक्कर और रुपए रखे जाते हैं। पूजन में रोली, चावल, और गुड़ भी रखा जाता है। फिर लौटे और करवे पर स्वस्तिक का निशान बनाया जाता है। दोनों को 13 बिंदियों से सजाया जाता है। गेहूं के तेरह दाने हाथ में लिए जाते हैं और कथा सुनी जाती है। बाद में सासू मां के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेकर उन्हें भेंट दी जाती है। चंद्रमा के दर्शन होने के बाद उसी चावल को गुड़ के साथ चढ़ाना होता है। सभी रस्मों को पूरी शिद्दत के साथ करने के बाद ही भोजन ग्रहण करने की परंपरा है।---1. यह व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं।--2. यह व्रत 12 से 16 साल तक लगातार हर साल करने की परंपरा है।--3. सुहागिन महिलाएं व्रत से एक दिन पहले सिर धोकर स्नान करने के बाद हाथों में मेहंदी और पैरों में माहुर लगाती हैं।---4. चतुर्थी को सुबह चार बजे महिलाएं सूर्योदय से पूर्व भोजन करती हैं। इसमें दूध, फल और मिठाइयां आदि व्यंजन शामिल किए जाते हैं। सूर्योदय के पहले किया गया यह भोजन सरगही या सरगी कहलाता है।--5. व्रत करने के बाद रात को 16 श्रंगार कर चंद्रोदय पर छलनी से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पति का चेहरा देखने की रस्म होती है। इसके बाद पति अपनी पत्नी को जल पिलाकर व्रत खुलवाता है।------ ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut



राहु ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ



 राहु ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ

-ज्योतिष जगत में राहु ग्रह को दानव जगत में मन्त्री का पद दिया गया है | ज्योतिष जगत में राहु ग्रह का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनिवार, 28 अक्टूबर 2023

जीवनी में व्यक्तिगत सत्संग पर परिचर्चा करना चाहता हूँ -पढ़ें- भाग-59-ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -59-ज्योतिषी झा मेरठ

आज अपनी जीवनी में व्यक्तिगत सत्संग पर परिचर्चा करना चाहता हूँ | --मेरा जन्म मांसाहार परिवार में हुआ किन्तु -11 वर्ष की आयु में संध्यावंदन,गायत्री एवं वेदपाठ का सत्संग मिला अतः मैं पूर्ण रूप से शाकाहार 11 वर्ष में ही बना ,जबकि मेरे घर ,समाज में सभी प्रायः मांसाहार ही थे | मेरी दूसरी शिक्षा लगमा आश्रम में हुई --जहाँ सभी वैष्णव थे --यहाँ मुझे दीक्षा तुलसी माला की लेनी पड़ी --मैं नहीं ऐसी दीक्षा लेनी चाह रहा था --जिसको ठीक से निभा न सकूं --क्योंकि ऐसा मेरा समाज या परिवार या फिर परिजन थे --पर दीक्षा लेनी पड़ी | तीसरी शिक्षा - जब हम 18 वर्ष के हुए तो मेरठ में मिली --यहां सभी मिले जुले हुए थे --पर हमने अपने धर्म को सदा निभाते रहे | चौथी शिक्षा मुम्बई में मिली -जब हम -21 वर्ष के हुए --यहाँ सभी मिले जुले थे --प्रत्येक शनिवार प्याज और आलू की सब्जी बनती थी --अतः हम व्रत ही करने लगे पर धर्म निभाते रहे | मेरा विवाह भी मांसाहार परिवार में हुआ --विवाह होते ही पतनी भी वैष्णव हो गयी | मेरे जीवन में हर कदम पर दिक्कत बहुत रही --चाहे माता पिता या परिजनों के साथ रहना हो --हमारा मेल नहीं रहा | हमारे बहुत से यजमान रहे --जो धूम्रपान ,मद्यपान करते रहे -किन्तु हमने कभी भी सेवन नहीं किया | जब हम -29 वर्ष के हुए -तो नियमित निवास मेरठ ही रहा --यहाँ आज भी सत्संग वैसा ही है जैसा तब था --मध्यपान ,धूम्रपान ,गुटखा ,तम्बाकू इत्यादि -इत्यादि --पर आजतक इन तमाम चीजों को मेरे दिल में जगह नहीं मिली | मेरे कई यजमान यह कहते रहे एकबार सेवन करके देखो --हमने कहा --समाज हमसे ही अनुकरण करता है | ब्राहण ,आचार्य ,गुरु ये शब्द गरिमामयी है --'यथा राजा तथा प्रजा "---उपदेश देना सरल होता है निभाना कठिन किन्तु -समाज हमारा अनुकरण करता ,समाज धर्मशास्त्रों का अनुकरण और अनुशरण करता है | आज समाज में भेद -भाव का कारण --माता पिता ,गुरुजन ,आचार्य भी हैं | कईबार धर्म के साथ कई प्रश्न स्वतः ही उठते हैं --जिनके कारण हमही लोग होते हैं --एक आचार्य ,शास्त्री ,गुरुजनों ,संत ,महात्माओं ,माता पिता --को क्या और कैसा एवं कहाँ क्या -क्या करने चाहिए -गलत सेवन छुपके से करके अपने आपको धोखा दे सकते हैं --इससे ही भेद- भाव शुरू होते हैं | कईबार हमारे साथ -भोजन कहाँ करना चाहिए ,यज्ञ कहाँ कराने चाहिए ,वेदों के मन्त्रों को कहाँ बोलना चाहिए --इन तमान चीजों से अगर एक आचार्य भटकता है --तो धन तो आ सकता है --धर्म नहीं हो सकता है --धर्म उसे कहते हैं जिसे आत्मसात किया जाय | ---आज हमारे जीवन पद्धति में --बहुत सारी किताबें वो हैं जो हमने लिखीं हैं -जब हम ही ठीक नहीं हैं तो किताबें कहाँ से ठीक होंगीं | आज हम बातें धर्मशास्त्रों की करते हैं किन्तु उन नियमों का हम खुद ही पालन नहीं करते हैं | --मुझे अपने जीवन में कई बातों का संधर्ष करना पड़ा --पर हमने धर्म को धारण किया तो धर्म ने सदा अपनी गोद में उठाये रखा है | धन कितना चाहिए --जीने योग्य --इसके लिए अधर्म क्यों ? इस संसार में पूर्ण केवल परमात्मा है --तमाम वस्तु क्षणिक सुख दे सकती है ,फिर दुःख शुरू हो जाता है | ---अब मैं जीवनी की ज्वलंत घटनाओं को दर्शाऊँगा जो ग्रहों के खेल भी हैं ,व्यक्ति का अनुभव भी है | ---ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनि ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें ?-ज्योतिषी झा मेरठ



 शनि ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें ?-ज्योतिषी झा मेरठ

ज्योतिष जगत में शनि ग्रह को दानव जगत का सम्राट का पद दिया गया है | ज्योतिष शनि ग्रह का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2023

भारत में दृश्य खण्डग्रास चंद्रग्रहण -28 /10 /23 -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


दिनांक 28 /10 /2023 आश्विन शुक्लपक्ष पूर्णिमा शनिवार को मध्य रात्रि उपरान्त 01 /05 से 02 /45 मध्य रात्रि उपरान्त तक खण्डग्रास चंद्रग्रहण  होगा | ग्रहण में चन्द्रमा की दक्षिण कोर  मामूली रूप से ग्रसित होगी | इस चंद्रग्रहण को भारत के साथ -साथ श्रीलंका ,नेपाल ,पाकिस्तान ,बांग्लादेश ,भूटान ,अफगानिस्तान ,चीन ,मंगोलिया ,कजाकिस्तान ,रूस ,ईराक ,इरान ,साउदीअरब ,सूडान ,तुर्की ,नाईजीरिया ,अलजीरिया ,दक्षिण अफ्रीका ,जर्मन ,पोलैंड ,यूक्रेन ,फांस ,इटली ,स्पेन ,ब्रिटेन ,नार्वे ,स्वीडन --समेत पूरा यूरोप ,थाईलैंड ,मलेशिया ,फिलीपींस ,इंडोनेशिया ,ऑस्ट्रेलिया ,जापान ,कोरिया तथा ब्राजील का पूर्व भाग आदि से देखा जा सकेगा | 

---सूतक की बात करें तो --खंडग्रास चंद्रग्रहण  के सूतक दोष की शुरुआत 28 /10 /2023 को शाम 4 /05 पर होगी | सूतकों  में भोजन बनाना और ग्रहण करना निषेध माना गया है | इसमें आसक्त ,रोगग्रस्त ,असमर्थजनों को प्रतिबंधित नहीं किया गया है | --28 /10 /2023 को सभी देव स्थानों के पट सायंकालीन दर्शन के लिए बन्द रहेंगें | 

---उदर में जिन महिलाओं के शिशु पल रहे हों --उन्हें चाकू आदि से फल +सब्जी नहीं काटने चाहिए  | कैंची से वस्त्र आदि नहीं काटने चाहिए | ग्रहणकाल में ईस्वर की आराधना में समय व्यतीत करना चाहिए | प्राकृत के विरुद्ध आचरण का दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है | निवृत्ति के लिए सत्याचरण गेरुलेप से युक साड़ी का पल्ला सर पर ओढ़ना चाहिए | दान देना ,यज्ञादि कर्म करना अभीष्ट है | 

--विशेष -- समय हवन करना उत्तम होता है | ग्रहण के उपरान्त दान से लाभ मिलता है | 

ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut







शुक्र ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ



 शुक्र ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ

-ज्योतिष जगत में शुक्र ग्रह को दानव गुरु का पद दिया गया है | ज्योतिष शुक्र ग्रह का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023

हमारे शिशु स्वस्थ क्यों नहीं रहते -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ




"हमारे शिशु स्वस्थ क्यों नहीं रहते -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

----बहुत मैले बिछौने पर अकेली जगह में छोटे बच्चे को सुला देने से "पूतना "ना

म राक्षसी का उसमें प्रवेश होने से बच्चा बीमार हो जाता है ।तब "पूतना "की बलि निकालने से स्वस्थ होता है बच्चा । -----जब कभी बच्चा बैठे -बैठे गिर पड़े ,या यूँ मालूम हो कि-किसी के पीटने से गिरा है और मूर्छा आ गई है अथवा एकाएक कोई रोग हो गया है तब जानो ,कि उसे "महापूतना "ने ग्रसा है । ----यदि कोई लाभादि के वश में आकर "वनदेवता "या "नागदेवता "का अपमान कर दे तो उसके बालक में "ऊर्ध्वपूतना"प्रवेश कर लेती है । -----यदि कोई मनुष्य अपनी ऋतूस्नाता स्त्री का गमन करने के बाद स्नान न करे या बिना ऋतु के संगम करके हाथ मूंह न धोवे और माता अपवित्र अवस्था में ही बालक के साथ सो जावे तो "बालक्रांता"नाम की राक्षसी का दोष होगा । ----बच्चे को इतर फुलेल और फूलमाला पहिनाकर बाहिर जाने से "रेवती ग्रही "का दोष होता है । -----सिर खुले ,जूठे बाल को संध्या के समय सोने से भी रेवती का प्रवेश हो जाता है बालक में । ----संध्या के समय जमीन पर सोने से अथवा खेलने से बालक को "पुष्य रेवती "का दोष होता है । -----कदाचित बालक खेलता -खेलता गिर जाये अथवा उसे उल्टी हो या हाथ -पांव नहीं धुले हों तब उसे "शुष्क रेवती "का आवेश होता है । -----जूठा खाने और देवता के स्थान पर मल -मूत्र करने से "शकुनि ग्रही "बालक को पकड़ लेती है ।
------भाव ----जो नित्यकर्म संध्या -वंदनादि नहीं करते या जो लोग पक्षियों को पालते हैं ,जन्मान्तर में उनके बालकों पर "शिशुमुडिका"राक्षसी का दोष हो जाता है । फिर उसका पूजन और बलि धूपादि दान करने से शांति होती है । ----नोट हम अपने आचरण और नियम का पालन करें तो हमारे बालक स्वस्थ रहेंगें ।---प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

इतनी खामिया हैं सनातनी व्यवहार में तो हम धनिक कैसे हुए -पढ़ें -- भाग -58-ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -58-ज्योतिषी झा मेरठ

'आज अपनी जीवनी में उन प्रश्नों के जबाब देना चाह रहा हूँ --जब इतनी खामिया हैं सनातनी व्यवहार में तो हम धनिक कैसे हुए "--अस्तु --जीवन में धन श्रम +बुद्धि के सहयोग से ही एकत्रित किया जा सकता है | आज के युग में धन कमाना बड़ी बात नहीं है अपितु धन दीर्घकाल तक लाभ दे इसके लिए सद्बुद्धि +संयम की आवश्यकता होती है | इतना होने के बाद भी निरोगी रहें तभी दीर्घकाल तक धन का लाभ लिया जा सकता है | और सबसे बड़ी बात होती है --धनातधर्मः ततः सुखं -धन से धर्म के कार्य होते रहे तभी सुख संभव है | आज के समय में बुद्धि सबके पास है ,सोते -जागते सभी धन कैसे प्राप्त हो बखूबी लगाते हैं --धन प्राप्त भी करते हैं किन्तु --यह बुद्धि हर जगह काम नहीं करती है --जैसे -प्रेम बुद्धि से नहीं दिल से संभव है | दया बुद्धि से नहीं दिल से संभव है| क्षमा बुद्धि से नहीं दिल से संभव है | भगवान और मोक्ष की प्राप्ति बुद्धि से नहीं दिल से संभव है | आज के समय भाई -भाई की शत्रुता ,गुरु शिष्य का सम्बन्ध ,माता पिता से सम्बन्ध ,दाम्पत्य जीवन , यज्ञ इन तमाम चीजों में दिल नहीं दिमाग लगाते हैं --इसलिए धन तो है प्रेम नहीं है ,शिक्षा तो है गुरु शिष्य के सम्बन्ध उत्तम नहीं हैं ,पतनी या पति तो हैं एकता नहीं है ,पिता पुत्र तो हैं --सम्बन्ध नहीं है ,पूजा में धन तो लगाते हैं या करते हैं -पर श्रद्धा और विस्वास नहीं हैं --इसलिए लाभ नहीं मिलता है | एक उदहारण देना चाहता हूँ --घी +शहद अमृत हैं पर एक मात्रा में होने पर विष बन जाते हैं | अतः तार्किक बुद्धि से धन तो आ सकता है --धर्म नहीं हो सकता है --यही आज के समय में सबसे बड़ा दुःख है | अगर दिल से -माता पिता ,पतनी +पति ,पुत्र +पुत्री ,परिजनों ,गुरुजनों ,धर्मशास्त्रों पर भरोसा करें तभी वास्तविक सुख संभव हैं | मैं पढ़ा लिखा शास्त्री हूँ ----मेरे तमाम परिजन मेरी अपेक्षा अनपढ़ हैं --इन्हें हम तार्कित बुद्धि से नहीं अपना सकते हैं --इन्हें केवल दिल से ही जीत सकते हैं --इसलिए मैं माता पिता को सामने मैं भले ही शत्रु दिखता हूँ --पर परोक्ष में मुझ पर गर्व होता है | मैं अपनी दीदी +जीजा का परमशत्रु हूँ किन्तु -परोक्ष में मेरा उपहास नहीं करते हैं बल्कि तारीफ करते हैं | मेरा अनुज जब मेरी पतनी को अपशब्द कहता है --तो मैं दिल का प्रयोग करता हूँ और कहता हूँ ये चप्पल उठाओ मुझे पीटो इससे तुम्हें शान्ति मिलती हो तो --बदले में मैं अपशब्दों का प्रयोग नहीं करता हूँ | मामा =मामी से भले ही अनवन हो किन्तु परोक्ष में वर्णन करते हैं ---------ये सभी इसलिए तारीफ करते हैं क्योंकि हमारा प्रयास रहता है -रिश्ते -नाते दिल की चीजें हैं न कि तार्किक --वही बात कहने का सदा प्रयास करते हैं --जिससे हमें भी लाभ मिले परिजनों को भी मिले --परन्तु एक हाथ से ताली नहीं बजती है --सभी मेरे जैसे हो जायेंगें तो उनका जीवन नहीं चलेगा --अतः भरपूर शत्रुता है उनकी नजर में पर मेरी नजर में कोई किसी का शत्रु नहीं है --ये सब ग्रहों के खेल हैं ,हर व्यक्ति अपनी प्रारब्ध को भोगता है --वो सही राह चलकर भोगे या विपरीत राहों पर चलकर | मेरे यजमान भी मुझसे शत्रुता रखते हैं --शब्दों की वजह से ,व्यवहार की वजह से पर जब ज्ञान की बात आती है ,कर्म की बात आती है ,धर्म की बात आती है तो नतमस्तक भी वही होते हैं --क्योंकि मुझे वही कहनी चाहिए जो शास्त्र सम्मत होते हैं ,मुझे वही परामर्श देने चाहिए --जिससे यजमान का हित हो --ऐसी बातें अच्छी लगे या न लगे ---इसलिए हमने अनेकों यजमान खो दिए --पर जब सत्य समझ में आती है --तब उन्हें हमही अच्छे लगते हैं | --मैं धनिक कैसे हुआ --पर परिचर्चा आगे करूँगा ---अब मैं जीवनी की ज्वलंत घटनाओं को दर्शाऊँगा जो ग्रहों के खेल भी हैं ,व्यक्ति का अनुभव भी है | ---ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरु ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ


 गुरु ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ

-ज्योतिष जगत में बृहस्पति ग्रह को गुरु का पद दिया गया है | ज्योतिष ग्रह गुरु ग्रह का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें

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कमजोर के सब दुश्मन -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


 



कमजोर के सब दुश्मन -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ

किसी भी व्यक्ति और समाज को शक्तिशाली क्यों होना चाहिए, इस संबंध में श्री गुरुजी ब्रह्मा और मेमने वाली कथा सुनाते थे। एक बार एक मेमना ब्रह्मा जी के पास गया और रो-रोकर अपनी व्यथा बताने लगा। वह बोला, *“महाराज, आप इस सृष्टि के निर्माता हैं। आपने सब जीवों को बनाते समय प्रत्येक को सुरक्षा के लिए कुछ साधन दिये हैं। किसी को नाखून दिये हैं, तो किसी को सींग या दाँत। साँप के पास जहर है, इसलिए लोग उससे भी डरते हैं। पर हमें आपने ऐसी कोई चीज नहीं दी। इस कारण जो चाहे हमें मारकर खा जाता है।’’* ब्रह्मा जी आँख बंदकर उसकी बात सुनते रहे। उन्हें मौन देखकर मेमने ने फिर कहा, “कृपया बतायें कि आपने हमें इतना कमजोर क्यों बनाया ? यह हमारे साथ बहुत बड़ा अन्याय है। महाराज, कृपाकर इससे बचने का कोई मार्ग बतायें।’’ इतना कह कर मेमना फिर रोने लगा। ब्रह्मा जी ने कहा, “पुत्र, तुम्हारा कहना ठीक ही है। यह मेरी भूल ही है कि तुम्हें इतना निर्बल और नि:शस्त्र बनाया। पर अब तुम शीघ्र ही यहाँ से चले जाओ। क्योंकि तुम्हें देखकर मेरा मन भी मचलने लगा है। ऐसा न हो कि मैं ही तुम्हें खा जाऊँ।’’ यह कथा सुनाकर श्री गुरुजी बताते थे कि जिसके पास अपनी ताकत नहीं है, वह सदा प्रताड़ित ही किया जाता है।------- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

बुधवार, 25 अक्टूबर 2023

कर्मकाण्ड +ज्योतिष के अनुभव पर प्रकाश डालना चाहता हूँ -पढ़ें - भाग -57-ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -57-ज्योतिषी झा मेरठ

आज अपनी जीवनी में कुछ कर्मकाण्ड +ज्योतिष के अनुभव पर प्रकाश डालना चाहता हूँ | --सनातन संस्कृति में -हमारेऋषि -महर्षियों ,आचार्यों ,गुरुजनों ,माता पिता के अथक योगदान हैं | आज कर्मकाण्ड जगत या ज्योतिष जगत के भूदेवों का सम्मान उन्हीं की वजह से होता है | यद्पि ऐसा नहीं है कि आज अच्छे आचार्य नहीं हैं -आज भी हैं पर सौ में एक हैं --इसलिए सभी एक जैसा ही दिखते हैं | मेरा सतत प्रयास रहता है --उन बातों को कहें जो हमने अनुभव किये हैं --क्योंकि केवल उनको ही प्रमाणिकता दी जा सकती है | ---अस्तु --हमने बहुत से यज्ञ किये एवं करायें हैं | किसी भी यज्ञ में दक्षिणा बाद में ली है | बहुत से बालक के विवाह एवं उनके बालक के विवाह कराये हैं | 1982 से 2023 तक करीब तीन पीढ़ियों से जुड़े हैं | मुझे अपने जीवन में एक भी यजमान ऐसे नहीं मिले जिन्हौनें श्रद्धा से कुछ उपहार दिया हो | अगर दिया है तो भोजन उत्तम ,सम्मान उत्तम ,व्यवहार उत्तम ,वस्त्र वो जो उन्हें अच्छे लगे -जो हमें अच्छे लगे कदापि नहीं | जीवन भर जी हजूरी करते रहे --बदले में चरण स्पर्श मिलता रहा | जब हम आधुनिक बनें ,आधुनिक यन्त्र से कार्य करने लगे तो --हमने भी नियम बदल दिए | आज काम को सलाम भी लोग करते हैं ,पैसे भी देते हैं --पर एक चीज है प्राचीनता में -सम्मान बहुत था ,आज आधुनिकता में धन तो मिलता है ,पैसे भी मिलते हैं पर गाली देने में भी देर नहीं करते हैं | मेरे बहुत से यजमान रहे जिन्हौनें दक्षिण दी नहीं ,बहुत से यजमान रहे सपने दिखाते रहे ,पुत्र की शादी हो जाएगी तो ये दूंगा ,पौत्र होगा तो वो दूंगा --पर देना तो दूर दक्षिणा भी खा गए | --इन तमाम बातों को देखते हुए नेट की दुनिया में 2010 में आया | हमने देखा आधुनिक यंत्र पर भूदेव कम थे ,जैन ,गोयल ,और भी बहुत लोग जो संस्कृत तो नहीं जानते थे पर अंग्रेजी, हिन्दी वाले बहुत थे --एक कहावत है --वचने किं दरिद्रता -'-पण्डित होहि जो गाल बजाबा " जो ज्ञानी पुरुष होते हैं वो फालतू की बातों से बेहतर हरी के सहारे चलते हैं ,जो अज्ञानी होते हैं -वो वर्तमान के सुख और सुविधा में जीते हैं | इस बात की समझ जब आती है तबतक व्यक्ति जीवन की अन्तिम धड़ी में पहुँच जाता है | --वैसे हमने वही प्रयास करने की अथक कोशिश की जो कर्मकाण्ड जगत में जो शास्त्र सम्मत थे ,नियम थे ,जो लोगों को आज भी लाभ दे और भविष्य में भी लाभ दे | बदले में धर्मसम्मत कुछ नहीं मिला | जब ज्योतिष जगत में आये तो फिर से वही कोशिश की जो धर्म सम्मत था --पर जो समय के साथ नहीं चलता है ---वो पीछे रह जाता है --अतः फ्री जैसा शब्द फ्री ही रहता है उसका वजूद क्षणिक होता है एवं अपना समय व्यर्थ करना होता है | यदि जन्मपत्री सही होती है ,ईस्वर का अस्तित्व है सृष्टि में ,सबके पालन कर्ता हैं श्रीहरि ,सभी राम नाम का सहारा लेकर ही भवसागर से पार होते हैं --और मन्त्रों में शक्ति हैं उन मन्त्रों से यजमान का भला हो सकता है -तो मेरा क्यों नहीं हो सकता है | इसके लिए वही राह चलनी चाहिए -जो शास्त्र कहते हैं ,गुरुजन कहते हैं ,माता पिता कहते हैं --देर हो सकती है विजय भी धर्म की ही होगी | कोई चले न चले हम चलें --जब हम चलेंगें तो पीछे के लोग अवश्य अनुशरण करेंगें | --अब मैं जीवनी की ज्वलंत घटनाओं को दर्शाऊँगा जो ग्रहों के खेल भी हैं ,व्यक्ति का अनुभव भी है | ---ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

बुध ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ



 बुध ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ

-ज्योतिष जगत में बुध ग्रह को वाणी जगत का स्वामी माना गया है | ज्योतिष ग्रह बुध ग्रह का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

नागपंचमी में कालसर्पदोष का निदान क्यों -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ


 




नागपंचमी में कालसर्पदोष का निदान क्यों -पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ
----प्रत्येक वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को लोग नागपंचमी {नाग +शिव }की पूजा करते हैं ।अस्तु --पौराणिक मतों के अनुसार सृष्टि रचना की शुरुआत में विधाता ब्रह्माजी को विशेष क्रोध आया । परिणाम स्वरुप उनके आंसुओं की कुछ बूंदें पृथ्वी के कुछ भागों में गिरीं ---जो नाग रूप में उत्पन्न हुए ,इन नागों में मुख्य रूप से अनंत ,कुलिक ,वासुकि ,तक्षक ,कर्कोटक ,पदम ,महापदम और शंखपाल आदि नामों से विख्यात हैं । जब हम जन्म कुण्डली का आकलन करते हैं तो ये कालसर्पयोग के रूप में देखने को आज भी मिलते हैं -और जिसका सूक्ष्म निदान इस तिथि में करते हैं । ---विधाता ने इन नागों को अपनी संतान के साथ -साथ ग्रहों के समतुल्य शक्ति से युक्त भी कये --ग्रहों में -अनंतनाग =सूर्य ,वासुकि =चन्द्रमा ,तक्षक =मंगल ,कर्कोटक =बुध ,पदम =गुरु ,महापदम =शुक्र और कुलिक +शंखपाल =शनि ग्रह के जैसे हैं । --------गणेशजी एवं रूद्र जनेऊ के रूप में भोलेनाथ श्रृंगार के रूप में ,श्री हरि शैय्या {बिस्तर }के रूप में तो पृथ्वी को अपने फन के ऊपर शेषनाग ने धारण किया है । ---------ज्योतिष शास्त्र {वैदिक }में राहु को काल और केतु को सर्प माना जाता है । ---अतः नागदेवता की पूजा से प्राणी कुंडली में विदित दोष के आलावा शांति प्राप्त करता है । साथ विषधर जीवों के भय से भी मुक्त रहता है । घर में सुख -शान्ति बनी रहती है । घर निर्माण में भी नागदेवता की प्रतिमा रखी जाती है -क्योंकि हम इनके ऋणी भी हैं । -------जहाँ संसाधन युक्त लोग नहीं होते हैं या फिर परम्परा होती है वहां नागदेवता को मुख्य द्वार पर गाय +मिट्टी युक्त गाय गोबर से ही चित्र अंकित कर देते हैं । --घर में लक्ष्मी का वास बना रहे इसलिए भी पूजा करते हैं । -नोट ----वास्तविक बात यह है -कम धन ,कम समय और मेहनत से विशेष प्राप्ति हेतु कुछ मुख्य पर्व होते हैं - हमें विशेष लाभ प्राप्ति हेतु पूजा अर्चना अवश्य करनी चाहिए ।----ॐ शिव -
-प्रेषकः खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --- - परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सनातन संस्तृति कितनी विस्तृत है --पढ़ें -- भाग -56-ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -56-ज्योतिषी झा मेरठ

'आज मैं सनातन संस्तृति कितनी विस्तृत है -पर हमलोग करते क्या हैं ,जानते क्या हैं -प्रकाश डालना चाहता हूँ '--------- सबसे पहली बात जो सदियों से आजतक और आज से अनादिकाल तक चलने वाली पद्धत्ति -संस्तृति को ही वास्तव में सनातन कहते हैं | इसकी नींव इतनी मजबूत है लाख चाहने से भी कमजोर नहीं हो सकती है | धर्म का भावार्थ है जिसे हम आत्मा की बातों को सुनकर अमल करते हैं उसे धर्म कहते है | जिसे हम बुद्धि के द्वारा कार्य करते हैं या मानते है -उसे तर्क और कुतर्क कहते हैं --वास्तव में जिससे अपना भी हित हो एवं सभी का हित हो उसे ही धर्म कहते हैं | सनातन के नियमों के विरुद्ध जाना ही व्यक्ति के उपनाम जाति शब्द है --जैसे मुझे कईबार गुरूजी -कुपात्र ,मलेच्छ ,भ्रष्ट ,संस्कारहीन ,गदहा जैसे शब्दों से सम्बोधन करते थे --जब मैं कोई व्यवहार शास्त्र सम्मत न करके ,दिल से न करके, मन के अनुरूप करता था --इसे ही वास्तव में काम के अनुसार व्यक्ति की जाति समझी जाती है | जब मैं कोई सुन्दर कार्य गुरु या माता पिता के अनुरूप करता था तो --सुन्दर ,काबिल ,अच्छा, उत्तम ,मन प्रसन्न हुआ --जैसे शब्दों से आशीष मिलता था --वस्तुतः --उत्तम कार्य करने पर ही माता पिता गुरुजन आशीष प्रदान करते हैं --जिसे -यह बालक उच्च कूल का है ,खानदानी है ,संस्कारी है ,आदि -आदि --वास्तव में व्यक्ति के गुणों को दर्शाने वाले कर्मों को ही जाति जैसे शब्दों में पिरोया गया --किन्तु -ज्ञानी और अज्ञानी व्यक्ति --किसी भी बात को अपनी -अपनी क्षमतानुसार उसकी व्याख्या करते हैं --जिसे सनातन नहीं कहते हैं बल्कि इसे व्यक्ति की कपोलकल्पना कहते हैं | मैं जन्मजात ब्राहण परिवार से हूँ किन्तु मेरे पिता या मेरे खानदान में कोई भी पुरोहित के कार्य नहीं करते थे | मेरे पिता व्यापारी थे --पर कालचक्र के कारण मैं अति दरिद्र हो गया | मेरी शिक्षा एक आश्रम में हुई -वहां के आचार्य दक्ष और निपुण थे उनके संस्कार मुझ में आये --अतः मैं व्यापार नहीं कर्मकाण्ड और ज्योतिष की दुनिया में आया | धर्म का आचरण करने वाले लोग भले ही कुछ देर के लिए भटक जाय पर बहुत जल्दी उसी परिबेश में आ जाते हैं | मैं एक शिक्षक बनना चाहता था ,कर्मकाण्ड या ज्योतिष से एक पीढ़ी खुशहाल हो सकती है किन्तु दूसरी पीढ़ी नष्ट या निकम्मा हो जाती है --क्योंकि जीवन जीने के लिए एक आचार्य दक्ष होते हुए भी गलत कार्य करे या झूठ से जीए -तो दण्ड भी मिलता है | संतान संस्कृति में -ज्यादातर जो दक्ष आचार्य रहे अपनी संतानों को ज्ञानी और धार्मिक बनाये | -------पर वर्तमान समय में ज्यादातर दक्ष आचार्य इसलिए नहीं है --क्योंकि विशेषतर जजमान ही अल्प ज्ञानी और अभिमानी हैं | धन है पर धर्म नहीं है ,धन है पर दया नहीं है ,धन और बल हैं इसलिए --इसलिए -जजमान आचार्यों के अनुसार नहीं होते हैं बल्कि आचार्य इनके अनुसार होते हैं | ऐसा होने पर किताब भी इनके अनुसार बनती है ,पंचांग कोई आचार्य नहीं जजमान बनाते हैं ,मन्दिर का सञ्चालन कोई आचार्य नहीं करते बल्कि वही जजमान के अनुसार होता है | परिणाम -भ्रष्टता बढ़ती जा रही है | सभी आचार्यों की संतान उसी पथ पर चलती है --जिस पथ पर केवल धन तो आये धर्म की कोई जगह नहीं होती है | सभी मठों पर ,आश्रमों पर ,आचार्यों पर ,संस्कृत के विद्यालयों पर जजमानों का ही अधिकार रहता है --धन के बिना कुछ चलता नहीं है | --अतः धन का आगमन ज्यादा हो धर्म केवल मुहर के लिए होता है | ऐसा नहीं है मैं कोई दूध का धुला हूँ --पर हमने गरीबी की वजह से ज्योतिष +कर्मकाण्ड को अपनाया | इतना तो धन प्रभु ने दिया है जिससे अपने बालक को सही दिशा दे सकते हैं --यह सोच सबकी हो जाय तो सनातन होगा --अन्यथा धन तो आता रहेगा --चाहे जजमान हों या पुरोहित --सिद्धांतों के विपरीत कोई चलेंगें तो न तो अपना भला कर पायेंगें न ही जग का भला करेंगें | -----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023

मंगल ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ



 मंगल ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ

ज्योतिष जगत में मंगल ग्रह को युवराज माना गया है | ज्योतिष ग्रह मंगल का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

घर में शिवलिंग रखें या न रखें- पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ"


 



घर में शिवलिंग रखें या न रखें- पढ़ें -ज्योतिषी झा "मेरठ"

घर में शिवलिंग रखें या न रखें इस बारे में लोगों के मन में बहुत से शक और

सवाल रहते हैं। घर मे सुख शांति व सकारात्मक ऊर्जा के लिए महादेव शिव के प्रतीक शिवलिंग को घर में स्थापित करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।--घर के मंदिर में रखे गए शिवलिंग का आकर हमारे अंगूठे से बड़ा नहीं होना चाहिए। शिवलिंग में जलधारा व एक नाग लिपटा हुआ होना चाहिए एवम शिवलिंग शुद्ध सोने, चांदी, स्फटिक या पारद से निर्मित होना चाहिए।--शिवलिंग की पूजा मे कभी तुलसी की पत्तियों, कुमकुम व हल्दी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।-शिवलिंग भगवान शंकर का एक अभिन्न अंग है, जो अति गर्म है, जिस कारण शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा प्रचलित है। मन्दिरों में शिवलिंग के उपर एक घड़ा रखा होता है जिसमें से पानी की एक-2 बूंद शिवलिंग पर गिरा करती है जिससे शिवलिंग की गर्मी धीरे-धीरे शान्त होकर उसमें से सकारात्मतक उर्जा प्रवाहित होने लगती है। -घर में शिवलिंग पर भी रखने रोज जल/दूध अर्पित करना चाहिए, ऐसा न करने पर शिवलिंग से निकलने वाली गर्म उर्जा परिवार के लोगों को खासकर महिलाओं को नुकसान पहुंचाती है। जैसे- सिर दर्द, स्त्री रोग, जोडो में दर्द, मन अशांत, घरेलू झगड़े, आर्थिक अस्थिरिता आदि प्रकार की समस्यायें घर में बनी रहती है।---शुद्ध पारद शिवलिंग दर्शन मात्र से ही मोक्ष प्राप्त होता है इसके घर में रखने मात्र से ही सुयश, आजीविका में सफलता, सम्मान, शांति प्राप्त होती है | पारद पूर्ण जीवित धातु है. शुद्ध पारद हाथ मे लेने से स्पंदन का आभास होता है--|-ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज में---https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

आज मैं अपनी जीवनी में सनातन धर्म अनुभव क्या रहा है - भाग -55-ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -55-ज्योतिषी झा मेरठ

आज मैं अपनी जीवनी में दर्शन कराना चाहता हूँ -सनातन धर्म अनुभव क्या रहा है | जब मैं 12 वर्ष का था -1982 में तब से सन्ध्यावन्दन करता आ रहा हूँ | मेरठ ,झंझारपुर और मुम्बई इन शहरों का पूर्ण योगदान रहा है मेरे जीवन में --इन शहरों की भाषा और संस्कृति का पूर्ण प्रभाव रहा है | मतान्तर प्रायः सभी चीजों में हैं --सनातन जो शास्त्र हैं या ऋषि- महर्षि या आचार्य हुए हैं --सबके दरवाजे बिना ताला के हैं ,सबके विचार यथावत हैं ,सबके आहार -व्यवहार जैसा अन्दर हैं वही बाहर हैं | आज की जो संस्कृति या संस्कार हैं --वो जैसा दिखते हैं -वास्तव में अन्दर कुछ और होता है --इसलिए तर्क और कुतर्क की संभावना बढ़ जाती है | --अस्तु --हमने अपने जीवन काल में तीन पीढ़ियों के सुखद संस्कार कराये हैं | आज भी वही हूँ जो 1982 में था | हमारा रहन -सहन ,वेश -भूषा ,खान -पीन ,हाव -भाव कुछ नहीं बदले --पर देने वाले यजमान बदल गए --| मन्दिर बढियाँ बनाते हैं --पुजारी घटिया रखते हैं | विवाह में -पंडाल ,भोजन ,बैण्ड बाजा ,पहनावा सभी उत्तम दर्जे के होते हैं किन्तु --पण्डित सबसे अनुभवहीन चाहिए --जिसकी दक्षिणा सबसे कम हो | जितने भी सोलह प्रकार के संस्कार होते हैं --उसे न तो जानते हैं --अगर जानते हैं -तो ब्राहण का कोई अस्तिव नहीं होता है | अब थोड़ी ज्योतिष की भी बात कर लेते हैं --दूल्हा करोड़पति हो --कुण्डली मिलान -100 रूपये का हो ऐसा मर्मज्ञ ज्योतिषी नहीं करते हैं --ये वही लोग कर सकते हैं --जिनके पास -100 रूपये का पंचांग होगा | जिनका अपना ज्ञान होगा या जिनका अपना पंचांग होगा -वो महंगे होंगें जो लोगों को स्वीकार्य नहीं होते हैं | हमने भी बहुत ज्योतिषी की है --जानने वाले यजमान हों तो सेवा करते जाएं दक्षिणा तो यजमान की चाकरी है | मन्दिर में रहना है -यजमान की हाँ में हाँ है तो मन्दिर है अन्यथा -ये मन्दिर भगवान का कम यजमानों का अधिक होता है --इसलिए उत्तम आचार्य पंडित नहीं होते --साथ ही शिक्षाविद हैं --शास्त्रों के नियमों का पालना करते हैं --तो यजमान अज्ञानी होते हैं -जिनके पास धन तो होता है ज्ञान नहीं होता है --तो भला जो अपना हित नहीं जानते वो समाज का हित क्या करेंगें | मुझे अपने जीवन में एक भी उत्तम यजमान नहीं मिले जिनके पास धन ,मन ,तन के साथ ज्ञानी भी हों | इसका परिणाम यह हुआ हम अपने पुत्र को ज्ञानी संस्कृत में नहीं अंग्रेजी में बनाना चाहते हैं | आज हर व्यक्ति सक्षम है ,हर व्यक्ति बढियाँ खाता है ,पीता है ,उत्तम दर्जे के संसाधनों से युक्त है ---पर दान घटिया ,विद्वान घटिया ,कर्म घटिया ,आचरण घटिया ,व्यवहार घटिया ,हर व्यक्ति को अपना सुख तो दिखता है --दूसरे को सुखी नहीं देख सकता है --परिणाम -नाश की ओर जाना | ये बातें आज ही हो रही है ऐसा नहीं है --राजा -महराजाओं के जमाने भी होता था --तब ऋषि-महर्षि -तपोवन में चले जाते थे --इन्हीं तमाम बातों को देखते हुए वैराग ले लेते थे | --मेरा सिर्फ यह कहना है --ज्योतिष और कर्मकाण्ड महर्षियों की देन हैं जिसे हमें पात्र भी बनना चाहिए --दान लें दान दें ,पढ़ें और पढायें ,यज्ञ करें और करायें --अन्यथा सनातन तो रहेगा सनातनी नहीं होंगें |-----आगे की चर्चा आगे करेंगें -----ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 23 अक्टूबर 2023

चंद्र ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ"



 चंद्र ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ"

ज्योतिष जगत में चंद्र ग्रह को मन्त्री माना गया है | ज्योतिष ग्रह सूर्यदेव का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut-

रुद्राक्ष क्यों धारण करें -पढ़ें -- ज्योतिषी झा "मेरठ




रुद्राक्ष क्यों धारण करें -पढ़ें -- ज्योतिषी झा "मेरठ

ॐ -यह हमारे पूर्वज जानते थे और रुद्राक्ष प्रयोग करते थे। क्योकि रुद्राक्ष मे एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है। जो शरीर मे ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है, जिससे बाहरी ऊर्जाएं आपको परेशान नहीं कर पातीं। रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर 27-मुखी तक होते हैं, जिन्हें अलग-अलग प्रयोजन के लिए पहना जाता है। जैसे..... एक मुखी रुद्राक्ष : इसके मुख्य ग्रह सूर्य होते हैं। इसे धारण करने से हृदय रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द का कष्ट दूर होता है। चेतना का द्वार खुलता है, मन विकार रहित होता है और भय मुक्त रहता है। लक्ष्मी की कृपा होती है। दो मुखी रुद्राक्ष : मुख्य ग्रह चन्द्र हैं यह शिव और शक्ति का प्रतीक है मनुष्य इसे धारण कर फेफड़े, गुर्दे, वायु और आंख के रोग को बचाता है। यह माता-पिता के लिए भी शुभ होता है। तीन मुखी रुद्राक्ष : मुख्य ग्रह मंगल, भगवान शिव त्रिनेत्र हैं। भगवती महाकाली भी त्रिनेत्रा है। यह तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना साक्षात भगवान शिव और शक्ति को धारण करना है। यह अग्रि स्वरूप है इसका धारण करना रक्तविकार, रक्तचाप, कमजोरी, मासिक धर्म, अल्सर में लाभप्रद है। आज्ञा चक्र जागरण (थर्ड आई) में इसका विशेष महत्व है। चार मुखी रुद्राक्ष : चार मुखी रुद्राक्ष के मुख्य देवता ब्रह्मा हैं और यह बुधग्रह का प्रतिनिधित्व करता है इसे वैज्ञानिक, शोधकर्त्ता और चिकित्सक यदि पहनें तो उन्हें विशेष प्रगति का फल देता है। यह मानसिक रोग, बुखार, पक्षाघात, नाक की बीमारी में भी लाभप्रद है। पांच मुखी रुद्राक्ष : यह साक्षात भगवान शिव का प्रसाद एवं सुलभ भी है। -- यह सर्व रोग हरण करता है। मधुमेह, ब्लडप्रैशर, नाक, कान, गुर्दा की बीमारी में धारण करना लाभप्रद है। यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। छ: मुखी रुद्राक्ष : शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का प्रतिनिधित्व करता है। इस पर शुक्रग्रह सत्तारूढ़ है। शरीर के समस्त विकारों को दूर करता है, उत्तम सोच-विचार को जन्म देता है, राजदरबार में सम्मान विजय प्राप्त कराता है। सात मुखी रुद्राक्ष : इस पर शनिग्रह की सत्तारूढ़ता है। यह भगवती महालक्ष्मी, सप्त ऋषियों का प्रतिनिधित्व करता है। लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, हड्डी के रोग दूर करता है, यह मस्तिष्क से संबंधित रोगों को भी रोकता है। आठ मुखी रुद्राक्ष : भैरव का स्वरूप माना जाता है, इसे धारण करने वाला व्यक्ति विजय प्राप्त करता है। गणेश जी की कृपा रहती है। त्वचा रोग, नेत्र रोग से छुटकारा मिलता है, प्रेत बाधा का भय नहीं रहता। इस पर राहू ग्रह सत्तारूढ़ है। नौ मुखी रुद्राक्ष : नवग्रहों के उत्पात से रक्षा करता है। नौ देवियों का प्रतीक है। दरिद्रता नाशक होता है। लगभग सभी रोगों से मुक्ति का मार्ग देता है। दस मुखी रुद्राक्ष : भगवान विष्णु का प्रतीक स्वरूप है। इसे धारण करने से परम पवित्र विचार बनता है। अन्याय करने का मन नहीं होता। सन्मार्ग पर चलने का ही योग बनता है। कोई अन्याय नहीं कर सकता, उदर और नेत्र का रोग दूर करता है। ग्यारह मुखी रुद्राक्ष : रुद्र के ग्यारहवें स्वरूप के प्रतीक, इस रुद्राक्ष को धारण करना परम शुभकारी है। इसके प्रभाव से धर्म का मार्ग मिलता है। धार्मिक लोगों का संग मिलता है। तीर्थयात्रा कराता है। ईश्वर की कृपा का मार्ग बनता है। बारह मुखी रुद्राक्ष : बारह ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करता है। शिव की कृपा से ज्ञानचक्षु खुलता है, नेत्र रोग दूर करता है। ब्रेन से संबंधित कष्ट का निवारण होता है। तेरह मुखी रुद्राक्ष : इन्द्र का प्रतिनिधित्व करते हुए मानव को सांसारिक सुख देता है, दरिद्रता का विनाश करता है, हड्डी, जोड़ दर्द, दांत के रोग से बचाता है। चौदह मुखी रुद्राक्ष : भगवान शंकर का प्रतीक है। शनि के प्रकोप को दूर करता है, त्वचा रोग, बाल के रोग, उदर कष्ट को दूर करता है। शिव भक्त बनने का मार्ग प्रशस्त करता है।-- रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने से वह अपार गुणशाली होता है। अभिमंत्रित रुद्राक्ष से मानव शरीर का प्राण तत्व अथवा विद्युत शक्ति नियमित होती है। भूतबाधा, प्रेतबाधा, ग्रहबाधा, मानसिक रोग के अतिरिक्त हर प्रकार के शारीरिक कष्ट का निवारण होता है।---------- ॐ |--ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज मे -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - खगोलशास्त्री झा " मेरठ ,झंझारपुरऔर मुम्बई

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...