ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ

ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ
ऑनलाइन ज्योतिष सेवा होने से तत्काल सेवा मिलेगी -ज्योतिषी झा मेरठ 1 -कुण्डली मिलान का शुल्क 2200 सौ रूपये हैं | 2--हमसे बातचीत [परामर्श ] शुल्क है पांच सौ रूपये हैं | 3 -जन्म कुण्डली की जानकारी मौखिक और लिखित लेना चाहते हैं -तो शुल्क एग्ग्यारह सौ रूपये हैं | 4 -सम्पूर्ण जीवन का फलादेश लिखित चाहते हैं तो यह आपके घर तक पंहुचेगा शुल्क 11000 हैं | 5 -विदेशों में रहने वाले व्यक्ति ज्योतिष की किसी भी प्रकार की जानकारी करना चाहेगें तो शुल्क-2200 सौ हैं |, --6--- आजीवन सदसयता शुल्क -एक लाख रूपये | -- नाम -के एल झा ,स्टेट बैंक मेरठ, आई एफ एस सी कोड-SBIN0002321,A/c- -2000 5973259 पर हमें प्राप्त हो सकता है । आप हमें गूगल पे, पे फ़ोन ,भीम पे,पेटीएम पर भी धन भेज सकते हैं - 9897701636 इस नंबर पर |-- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

बुधवार, 1 नवंबर 2023

आयु -आरोग्य दूसरा सुख होता है --सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ


 आयु -आरोग्य दूसरा सुख होता है --सुनें ?-ज्योतिषी झा मेरठ


-दोस्तों प्रत्येक व्यक्ति का दूसरा सुख आयु -आरोग्य है --जिसके लिए अनन्त प्रकार के प्रयास लोग करते हैं | ----- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शिखा से आयु ,तेज ,बल ,ओज और पुरुषार्थ बढ़ते हैं -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 






शिखा से आयु ,तेज ,बल ,ओज और पुरुषार्थ बढ़ते हैं -पढ़ें -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा "मेरठ "
-----हिन्दुओं के प्रमुख सोलह संस्कारों में "चूडाकरण"या "चौल "एक विशेष संस्कार है |इसी संस्कार में आर्यजाति के प्रतीक अथवा मुख्य जातीय चिन्ह स्वरूप "शिखा धारण का विधान है | इसके धारण से आयु ,तेज ,बल ,ओज और पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है | पारस्कर ,आश्वलायन,बैखानस ,बौधायन ,अग्निवेश्य ,आपस्तम्ब और जैमिनीय आदि गुह्य -सूत्र ग्रंथों में चुदकर्म के अंतर्गत शिखा रखने का श्पष्ट विधान मिलता है ||--सिर के मध्य स्थित केश समूह ही चूड़ा कहलाता है | यही चूड़ा प्रधान शिखा मानी जाति है | वशिष्ठ गोत्र वाले मध्य शिखा से दक्षिण भाग में स्थित केश शिखा को चूड़ा कहते हैं | अत्रि और कश्यप गोत्र वाले मध्यभाग में स्थित शिखा के उभय पार्श्व {अगल -बगल }में स्थित केशों को शिखा कहते हैं ||-उपनयन काल में मध्य शिखा के अतिरिक्त अन्य गौण शिखाओं के वपन का विधान "निर्णय सिन्धु " में स्पष्ट रूप से पाया जाता है | महर्षि "हारित" कहते हैं --कि जो लोग मोह ,द्वेष या अज्ञानता से शिखा काट देते हैं ,वे "तप्तकश्छ"व्रत करने से शुद्ध होते हैं ||--ब्रह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य को शिखा,सूत्र और हिन्दुमात्र को शिखा अवश्य धारण करनी चाहिए | बिना यज्ञोपवित और शिखा के हिन्दुओं का किया गया सभी सत्कार्य व्यर्थ हो जाता है और राक्षस कर्म कहलाता है ||---शिखा के साथ बल ,बीर्य,आयुवृद्धि ,तेज और पराक्रम का गहरा सम्बन्ध है | इसलिए हिन्दुओं का यह सर्वोत्कृष्ट जातीय चिन्ह माना जाता है | जिस प्रकार फौजी सिपाहियों का फौजी वेश वीरता सूचक है | उसी प्रकार सिर के मध्य भाग में सुरक्षित सुस्थिर शिखा चिरंतन ,आर्य गौरव तथा हिंदुत्व की द्योतक है |इसलिए शिखा रखना नितांत आवश्यक है ||---वेदं और योगदर्शन के सिद्धांतों के अनुसार शिखा का अधः स्थित भाग ब्रह्मरंध्र माना गया है | इस ब्रह्मरंध्र के ऊपर सहश्रदल कमल में अमृत रुपी ब्रह्मा का स्थान है |विधिपूर्वक किये गए वेदादि के स्वाध्याय और सविधि कर्मानुष्ठान से समुत्पन्न अमृतत्व का अतिक्रांत वायुवेग से सहश्रदल की कर्णिका से प्रविष्ट होता है ||धर्मशास्त्रकारों ने कहा है -कि सनन ,दान ,जप ,होम ,संध्या ,स्वाध्याय और देवार्चन करते समय शिखा में ग्रंथि अवश्य लगानी चाहिए------"स्नाने दाने जपे होमे संधयायाम देवतार्चने | शिखा ग्रंथि सदा कुर्यादीत्येतन मनुरब्रबीत||---वैदिक विज्ञानं से यह बात सिद्ध है कि सर्वव्यापी परमेश्वर परमात्मा की अप्रमेय शक्ति को आकृष्ट करने का सर्वोतम साधन "शिखा -धारण "है |ज्योतिष सम्बंधित कोई भी आपके मन में उठने वाली शंका या बात इस पेज में-https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut उपलब्ध हैं और लिखने की अथक कोशिश करते रहते हैं -आप छात्र हैं ,अभिभावक हैं ,या फिर शिक्षक परखकर देखें साथ ही कमियों से रूबरू अवश्य कराने की कृपा करें .|आपका - ज्योतिषी झा-"मेरठ -झंझारपुर ,मुम्बई"

ज्योतिष क्यों प्रभावित या आकर्षित लोगों को करता है-पढ़ें-भाग -63 -ज्योतिषी झा मेरठ


 




कल आज और कल भाग -63 -ज्योतिषी झा मेरठ"
कृपया समस्त पाठकगण ध्यान दें -न तो मैं जन्मजात गरीब था न हूँ ,न तो अपनी जीवनी लिखकर या बोलकर अमीरी या गरीबी दर्शाना चाहता हूँ --सिर्फ ज्योतिष क्यों प्रभावित या आकर्षित लोगों को करता है --उन तमाम बातों को एक ज्योतिषी होने के नाते जो अनुभव किया है --वो व्यक्त करना चाहता हूँ | 'सत्संगेण गुणा दोषः "--सत्संग का असर सभी जीवों को होता है | मानव बनकर आये हैं --तो मानवता सत्संग से ही संभव है | हम अपनी जीवनी को एक पुस्तक का रूप देना चाहते हैं -अतः अपने -अपने ज्ञान के आधार पर मेरी जीवनी को न परखते हुए --तमाम बातों को पढ़ने या सुनने के बाद ही --इसका मूल्यांकण करें | मैं बार -बार लिखता हूँ --आज के समय में अल्प ज्ञानी लोग नेट की दुनिया में बहुत हैं -किसी एक भाग को सुनने या पढ़ने के बाद ही अर्थ का अनर्थ करते हैं --क्योंकि बहुत पढ़ने या सुनने का समय नहीं होता है तो जो हम समझाना चाहते हैं वो न समझकर --वैसे ही समझ जाते हैं जैसे --अश्व्थामा हतो हतः -- या यह भी कहा-- नरो वा या कुंजरो वा तब तक अर्थ का अनर्थ हो चूका था | मैं जन्मजात गरीब नहीं था न हूँ --कालचक्र के कारण मेरे जीवन में सुख दुःखों का खेल रहा | जो पढ़े लिखे लोग होंगें या जिनको थोर बहुत ज्योतिष का अनुभव होगा --वो समझ समझ सकते हैं --मैं सिंह लगन का जातक हूँ -सूर्य मंगल लग्न में विराजमान हैं | चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में विराजमान है | बुध +शुक्र की युति धन के क्षेत्र में है | त्रिकोणेश गुरु हानि कम लाभ अत्यधिक देते हैं | शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में है --अतः भाग्य का लाभ अनमोल है --इतना होने के बाद भी राहु की 18 वर्ष की दशा ने दरिद्र भी बनाया | ऐसा जब था तब मैं अज्ञानी था ,अनपढ़ परिवार से था ---सबकुछ होते हुए भी सबकुछ खो दिए --इसका एक ही कारण था --ज्योतिष का मार्गदर्शन ,मैं कर्मकाण्ड या ज्योतिषी नहीं करना चाहता था --पर वही करना पड़ा ,अगर मेरे जीवन में एक गुरु या मार्गदर्शन करने वाले परिजन होते तो मैं कुछ और होता ---समय का चक्र को हम ठीक से समझ नहीं पाए --यही दर्शाना चाहता हूँ --भले ही मैं अपने लिए छोटा व्यक्ति रहा पर मुझसे जुड़ा व्यक्ति बड़ा बने यही कामना रहती है | रही बात हमारी सेवा महंगी है तो जब किसी चीज की मुझे जरुरत होती है --तो दान में वो चीज मुझे नहीं मिलती है --उसके लिए हम भी धन खर्च करते हैं | आज के समय में हर व्यक्ति उत्तम प्रकार से जीता है --मोबाइल उत्तम ,वस्त्र उत्तम ,वाहन उत्तम ,भवन उत्तम ,शिक्षा उत्तम ,रहन -सहन उत्तम ,दवा -दारू उत्तम ,दिखाबा उत्तम -----तो ज्योतिष भी तो उत्तम होना चाहिए --अतः मुझपर यह आरोप गलत है | अन्त में एक ही बात कहना चाहता हूँ --मुण्डे -मुण्डे मतिर्भिन्ना --जितने लोग होते हैं उतने विचार होते हैं --पर ग्रन्थ तो वही सभी पढ़ते हैं ---अपने बारे में एक ही शब्द कहना चाहता हूँ -मुझे हर व्यक्ति समझ नहीं सकता है ,मुझे हर व्यक्ति झेल नहीं सकता है --सिर्फ परमात्मा ही मुझे झेल भी सकते हैं और समझ भी सकते हैं | ---आगे की परिचर्चा आगे के भाग में करेंगें --भवदीय -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

मंगलवार, 31 अक्टूबर 2023

धन प्राप्ति के यज्ञ और उपचार सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ


 धन प्राप्ति के यज्ञ और उपचार सुनें ?- -ज्योतिषी झा मेरठ-


- ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई-----ॐ --ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को जानने हेतु इस लिंक पर पधारें --https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut. खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

"यंत्र -मन्त्र एवं तंत्र क्या हैं -ज्योतिष -विशेष -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ


 "यंत्र -मन्त्र एवं तंत्र क्या हैं -ज्योतिष -विशेष -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ---



----"मननात त्रायते यस्मात तस्मात् मन्त्रः प्रकीर्तितः ।

जपात सिद्धिर्जपात सिद्दिर्न संशयः । ।
---मन्त्र ऐसे दिव्यशब्दों का समूह है ,जिसे दृढ इच्छाशक्तिपूर्वक उच्चारण एवं मनन से ही हम अलौकिक काम कर सकते हैं । चुने हुए गुप्त शब्द ही मन्त्र हैं । इनमें शब्दों का ऐसा क्रम दिया जाता है ,कि उनके मौन या अमौन अवस्था में उच्चारण मात्र से शून्य महाकाश में एक विचित्र कम्पन उत्पन्न होती है ,जिसमें अभिसिप्त कार्यसिद्धि एवं रचनात्मक प्रबल -प्रछिन्न शक्ति होती है -----।

अस्तु ------मन्त्र शास्त्र के अनुसार वेदमन्त्रों को ब्रह्मा ने शक्ति प्रदान की । तांत्रिक प्रयोगों को भगवान शिव ने शक्ति संपन्न किया । इसी प्रकार कलियुग में शिवावतार श्री शाबरनाथ जी ने शाबर मन्त्रों को अद्भुत शक्ति प्रदान की । शाबरमन्त्र अनमिल बेजोड़ शब्दों का एक समूह होता है ,जो कि अर्थहीन मालूम देते हैं ,परन्तु भगवान शंकर जी के प्रताप से ये मन्त्र अवन्ध्य प्रभाव रखते हैं ----
"अनमिल आखर अर्थ न जापू । प्रकट प्रभाव महेश प्रतापू {रामचरित मानस }नोट -यंत्र -मन्त्र एवं तंत्रों के योग्य बनें ,किसी गुरु के सान्निध्य में सिद्धि करें ,साथ ही गुप्तता रखें, तब फिर इनके चमत्कार से अपनी और जग की रक्षा करें ।
------प्रेषकः -पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री {मेरठ -भारत }--परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

2014 में शनि की दशा चालू हुई --पढ़ें - भाग -62-ज्योतिषी झा मेरठ




" कल आज और कल -पढ़ें - भाग -62-ज्योतिषी झा मेरठ
2014 में शनि की दशा चालू हुई | शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में है -वैसे जहाँ शनि विराजमान हो वहां लाभ उसी प्रकार का होता है --शनि नीच का भाग्य क्षेत्र में है --अतः अनायास या नीच प्रवृत्ति के लोगों से ही मेरा भाग्योदय हुआ | शनि की दृष्टि आय के क्षेत्र में है अतः हर व्यक्ति न तो मुझे समझ सकता है न ही झेल सकता है | जीवन में अनन्त आय के साधन बने ,अनन्त मित्र बनें ,अनन्त लोगों तक पहुंचे पर सिंह का सूर्य, त्रिकोण का मंगल लग्न में विराजमान होकर --इतना सशक्त ,जिद्दी स्वभाव के बना दिए --जिनकी वजह से मैं बहुत ही सिद्धांतवादी और कठोर स्वभाव का हूँ --अतः न तो किसी का मैं हो सका न ही मेरा कोई हो सका | मेरी कुण्डली में चन्द्रमा उच्च का कर्मक्षेत्र में है -जिसकी वजह से देखने में मैं आकर्षक ,मिलनसार , सौम्य स्वभाव का हूँ ,प्रभावशाली भी हूँ --पर आधुनिक युग में जहाँ किसी भी व्यक्ति का जीवन हो उसे मिलकर चलने में ही भला होता है, यह समझते हुए भी मेरे सिद्धान्त ,मेरे शास्त्रों के उपदेश ,मेरे कर्तव्य मुझे प्राचीनता को भूलने नहीं देते हैं --इनकी वजह से निरन्तर मैं भाग्यहीन रहता हूँ | यद्पि मेरा जन्म साधारण परिवार में हुआ ,जन्मजात चोर ,उचक्का ,लफंगा रहा --पर गुरुकुल की शिक्षा और दीक्षा ने मानों पूर्ण रूपेण अपने पाश में बांध दिया --जो चाहकर भी --यह जानते हुए भी की इससे हानि होती है ,यह जानते हुए भी की ऐसे स्वभाव -प्रभाव से अपने परिवार का ठीक से भरण पोषण नहीं हो पायेगा --फिर भी आधुनिकता में ढल नहीं पाया | एक सक्षम व्यक्ति होकर भी भूखा रहना पसन्द किया पर अधर्म की राह स्वीकार नहीं किया | शनि की दृष्टि तृतीय भाव पर होने से -समस्त परिजन हो या प्रभाव का क्षेत्र -हानि होती रही जबकि हमने किसी को सताया नहीं है ,हमने वही बात कही है जिससे किसी भी व्यक्ति का भविष्य ठीक हो ,जो शास्त्र सम्मत हो --पर आज के समय में माथे पर तिलक होता है स्वभाव से अधर्मी होते हैं ,गर्व से कहो हिन्दू हैं किन्तु शिखा नहीं होती है ,गो हत्या बंद हो ----पर चमड़े के बिना नल पानी नहीं देता है ,व्यक्ति की पादुका नहीं बनती है --यही सब अनन्त बातें हैं --जो मुझे आधुनिकता में चलने नहीं देती है | शनि की दृष्टि रोग और शत्रु के क्षेत्र में भी है --मेरी शत्रुता का कारण यही है -यजमान मुझे अपने में ढालना चाहते रहते हैं मैं उन्हें अपने शास्त्रों की दुनिया में ढालना चाहता रहता हूँ --जो संभव नहीं है क्यों-- क्योंकि आधुनिक समय में पहला सुख तो धन है ,कैसा भी व्यक्ति है धन है -तो मन्दिर बना देगा ,----धन है तो विद्वानों को खरीद लेगा ,धन है तो साम्राज्य स्थापित कर लेगा ,धन है तो महामृत्यंजय के पाठ भी करा लेगा | आज के समय में या आने वाले समय में धर्म की परिभाषा बदल जाएगी | मेरे जीवन में जन्मजात नीच का शनि है अतः जीवन पर्यन्त इन तमाम क्षेत्रों में कठिनाई रही पर जब से --2014 से दशा शुरू हुई तो सबकुछ होते हुए भी मानो कठिनाई और बढ़ गयी | आगे की परिचर्चा आगे करूँगा ---भवदीय निवेदक --खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --ज्योतिष और कर्मकाण्ड की अनन्त बातों को निःशुल्क पढ़ें --लिंक पर पधारकर -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

सोमवार, 30 अक्टूबर 2023

केतु ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ



केतु ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ
ज्योतिष जगत में केतु ग्रह को दानव जगत में मन्त्री का पद दिया गया है | ज्योतिष जगत में केतु ग्रह का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व और पूजा विधि को जानने हेतु -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ



  अहोई अष्टमी व्रत का महत्व और पूजा विधि को जानने हेतु -पढ़ें --ज्योतिषी झा मेरठ

 05  नवम्बर को कार्तिक कृष्ण पक्ष की



अष्टमी पर पडऩे वाली अहोई माता का व्रत है। करवा चौथ के 4 दिन बाद और दीपावली से 8 दिन पूर्व पडऩे वाला यह व्रत, पुत्रवती महिलाएं ,पुत्रों के कल्याण,दीर्घायु, सुख समृद्घि के लिए निर्जल करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सायंकाल घर की दीवार पर of कोनों वाली एक पुतली बनाई जाती है। इसके साथ ही स्याहू माता अर्थात सेई तथा उसके बच्चों के भी चित्र बनाए जाते हैं। आप अहोई माता का कैलेंडर दीवार पर लगा सकते हैं। पूजा से पूर्व चांदी का पैंडल बनवा कर चित्र पर चढ़ाया जाता है और दीवाली के बाद अहोई माता की आरती करके उतार लिया जाता है और अगले साल के लिए रख लिया जाता है। व्रत रखने वाली महिला की जितनी संतानें हों उतने मोती इसमें पिरो दिए जाते हैं। जिसके यहां नवजात शिशु हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो, उसे अहोई माता का व्रत अवश्य करना चाहिए ।
-----विधि--------अहोई माता का आशीर्वाद पाने के लिए पुत्रवती महिलाएं करवाचौथ की भांति ही प्रात: तड़के उठकर सरगी खाती हैं तथा सारा दिन किसी प्रकार का अन्न जल ग्रहण न करते हुए निर्जला व्रत करती हैं। सायंकाल को वे दीवार को खडिय़ा मिट्टी से पोतकर उस पर अष्ट कोष्ठक (आठ कोनों वाली) की अहोई माता का स्वरूप बनाकर उनमें लाल गेरू और पीले रंग की हल्दी से सुन्दर रंग भरती हैं। साथ ही स्याहू माता (सेई) के बच्चों के भी चित्र बनाकर सजाती हैं। तारा निकलने से पहले अहोई माता के सामने जल का पात्र भरकर उस पर स्वास्तिक बनाती हैं तथा उसके सामने सरसों के तेल का दीपक जलाकर अहोई माता की कथा करती हैं।--अहोई माता के सामने मिट्टी की हांडी यानी मटकी जैसा बर्तन रखकर उसमें खाने वाला सामान प्रसाद के रूप में भरकर रखा जाता है। इस दिन ब्राह्मणों को पेठा दान में देना अति उत्तम कर्म माना जाता है।----पूजन सामग्री--------अहोई माता के व्रत में सरसों के तेल से बने पदार्थों का ही प्रयोग होता है। महिलाएं घरों में मट्ठियां, गुड़ से बना सीरा, पूड़े, गुलगुले, चावल, साबुत उड़द की दाल, गन्ना और मूली के साथ ही मक्की अथवा गेहूं के दाने रखकर उस पर तेल का दीपक रखकर जलाती हैं तथा अहोई माता से परिवार की सुख-शांति, पति व पुत्रों की रक्षा एवं उनकी लम्बी आयु की कामना से प्रार्थना करती हैं तथा तारा निकलने पर उसे अर्ध्य देकर व्रत का पारण करती हैं। अहोई माता के पूजन के पश्चात खाने वाला सामान घर के नौकरों आदि को भी प्रसाद रूप में अवश्य देना चाहिए।------ इस व्रत में बच्चों को प्रसाद रूप में तेल के बनाए गए सारे सामान के अजारण बनाकर दिए जाते हैं तथा घर के बुजुर्गों सास-ससुर को व्रत के पारण से पहले उनके चरण स्पर्श करके बया देकर सम्मानित करने की भी परम्परा है जिससे प्रसन्न होकर वे बहू को आशीर्वाद देते हैं।-------------दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

जीवनी लिखते समय आत्महत्या की सोच थी पढ़ें--- भाग -61-ज्योतिषी झा मेरठ



 कल आज और कल -पढ़ें - भाग -61-ज्योतिषी झा मेरठ

2018-मेरी जीवनी की जितनी बातें थीं वो मैं लिख चूका था ,लिखते समय आत्महत्या की सोच थी ,मन में बहुत आक्रोश था | 2018 की शुरुआत में धेवता की अत्यन्त ख़ुशी थी ,इस खुशी में सबसे उत्तम दर्जे का हारमोनियम साज खरीदा --सब कुछ था ,धन था ,साम्राज्य था पर शनि की मेरी दशा चल रही थी --पिता की मंगल की दशा पूर्ण यौवन में थी -न पिता झुकते न मैं झुकता ,उनकी अनपढ़ता की शान थी ,मुझे शिक्षा का अभिमान था | यद्यपि पिता मेरे धर्मध्वज थे मैं उनका सारथी था ,पिता की राह में ,माँ ,बहिन ,भाई ,जीजा ,मामा -मामी --रोड़े अटकाने वाले थे --इसलिए चाहकर भी धर्मरथ पर आरूढ़ न हो सके | मेरे पीछे भार्या थी -वो न होती तो मेरी जो आज शान है ,अभिमान है --वो सब खाक हो जाते --क्योंकि सभी परिजन लूटेरे थे ,हमें कूटनीति नहीं आती --यह कला केवल मेरी भार्या में थी --इसलिए सबकुछ खोने के बाद भी मै जीत चूका था | -धन मेरा आनन्द परिजन लेते रहे ,मेहनत मेरी लाभ परिजनों को मिलता रहा ,शिक्षाविद मैं पर बुद्धू सबके लिए मैं था ,इन तमाम बातों को भरसक बताने की कोशिश की भार्या ने पर मेरे मस्तिष्क में ये सब अधर्म समझ में आते थे | परिजनों को कुछ कहने से अच्छा मुझे मरना समझ में आया --पर होनी को किसने रोकी है | इतनी विषम परिस्थिति होने के बाद भी अपने पिता को एक और उपहार देना चाह रहा था | अपनी छोटी पुत्री का विवाह पिता के सान्निध्य में हो ,कन्यादान माता पिता ही करें --किन्तु कहते हैं विधि का विधान कौन टाल सकता है --जहाँ मैं मरना चाह रहा था --वहां मेरे पिता मुझको छोड़कर चले गए -03 /04 /2018 को | मेरे जितने सपने थे वो तो पिता से जुड़े हुए थे जब वो न रहे --तब मेरे तमाम सपने किस काम के ,फिर कभी हारमोनियम को नहीं बजाया | फिर कभी मरने की नहीं सोची | जब पिता थे तो अनन्त शिकायत थी ,जब पिता थे मैं छोटा था ,जब पिता थे तो अनन्त अपराध क्षमा थे --पर जब पिता नहीं होते तो पुत्र के अनन्त कर्तव्य और बढ़ जाते हैं | पिता के बिना व्यक्ति अधूरा हो जाता है --क्योंकि जीवन पथ के पाठों को पिता ही तो पढ़ाते हैं ,समझाते हैं और बार -बार निखारने की कोशिश करते हैं | इन तमाम बातों को सोचते हुए -अपनी दोनों पुत्रियों को उस घर में देना चाहता था जहाँ पिता की छत्रछाया हो ,पिता सभी प्रकार से मजबूत हों --तभी समस्त संस्कृति और संस्कार मजबूत होंगें | ऐसा घर और ऐसा ही वर मिलें | आज पिता की पांचवीं वर्षी है -आज पिता मेरे सान्निध्य में नहीं हैं किन्तु ब्रम्हभोज ,एकोदिष्ट श्राद्ध ,सब प्रत्येक वर्ष होते रहते हैं --ऐसे समय में मैं भी किसी का पिता हूँ --तो चाहकर भी अपने पिता की याद को भूल नहीं पाता हूँ | जब यह सोचता था पिता के जीते जी मैं मरना चाहता था --तो मुझे अहसास हो रहा है पिता कैसे भी हों पिता के सामने पुत्र आत्महत्या करे- यह मैं कितना बड़ा अपराध करता --मैं जीते जी अपने पिता को मार देता | इसके बाद जो जीवनी लिखनी शुरू की उससे मुझे बहुत कुछ अनुभव हुआ -जीवन का पूर्व भाग क्रोध ,आक्रोश ,दर्द से भरा हुआ था पर उत्तर भाग ज्ञान और उपदेश पर आधारित है --जिसको पढ़ने से सबको लाभ मिलेगा | आगे की परिचर्चा आगे के भाग में करेंगें --भवदीय -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

रविवार, 29 अक्टूबर 2023

कर्मक्षेत्र में मेरा योगदान कैसा रहा पर विवेचन करना चाहता हूँ-पढ़ें- भाग-60-ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -60-ज्योतिषी झा मेरठ

आज मैं अपनी जीवनी में कर्मक्षेत्र में मेरा योगदान कैसा रहा पर विवेचन करना चाहता हूँ "-----यद्यपि एक साधारण सा व्यक्ति का कोई भी कर्मक्षेत्र प्रभावशाली नहीं होता है | जब मैं कर्मक्षेत्र के योग्य हुआ तब राहु की दशा चल रही थी | अतः बाल्यकाल में अनन्त सपने थे -सचाई कुछ नहीं थी | शिक्षा का आधार संस्कृत भाषा थी -तो नौकरी नहीं मिली -पण्डित बन गए | जिस कर्मकाण्ड के प्रति मेरी श्रद्धा नहीं थी --वही जीवन जीने का आधार बना | जब 30 वर्ष के हुए तो संगीतमय कथा की लालसा हुई --जब इस विद्या में निपुण हुए -तब नेट की दुनिया आ चुकी थी --तब मैं -40 वर्ष का हो चूका था --अतः नेट की दुनिया में आ गए --आजतक इसी दुनिया से भरण पोषण होता है | भले ही मुझे अनन्त कर्मक्षेत्र के लिए संघर्ष करना पड़ा हो पर जबतक हम पराधीन रहे --तो लोग हमसे कमीशन लेते रहे | किन्तु जब हम सक्षम हुए -1999 से तब मैं 29 वर्ष का था --तो हमने किसी से कोई कमीशन नहीं लिया | सबको बराबर दक्षिणा देने का प्रयास किया | कमर्काण्ड की दुनिया में एक सक्षम आचार्य को वही धन लेना चाहिए -जो यज्ञ से सम्बन्धित हो अन्यथा धन लाभ नहीं देता है इसका शतसः पालना करने की कोशिश की | दान में मिली हुई वस्तुओं को जिनकी हमें आवश्यकता नहीं थी हमने बेचा नहीं ,संचित नहीं किया बल्कि जरूरत मन्द लोगों को गांव में लेजाकर भोजन के साथ दक्षिणा देकर --वो भी माता पिता के हाथों से कराने की यथाशक्ति कोशिश की --इसकी वजह से ही हम आगे बढ़ते गए | मेरे कोई ऐसे यजमान नहीं रहे --जिनकी मुरादें पूरी न हुई हों | पर अपने जीवनकाल में ब्राहण ,क्षत्रिय ,वैश्य --ये प्रमुख यजमान रहे --इन्हौनें कभी कोई पुरस्कार नहीं दिया -बदले में शोषण ही किया | मेरे जीवन में पुरस्कार देने वाले प्रमुख यजमान ,कोई छारी ,तो कोई गूजर तो कोई जाटव तो कोई यादव तो कोई जाट तो कोई धानक तो कोई पासवान तो कोई नाई --ऐसे लोग सहयोग विशेष करने वाले रहे | आज के समय में नेट की दुनिया में ज्यादातर नवयुवक हैं जो धन भी देते हैं और सम्मान भी करते हैं --क्योंकि वो जब मेरे आलेखों को पढ़ते हैं तो उन बातों को नहीं मानते हैं --जो सुनी -सुनाई हैं --जो प्रत्यक्ष देखते हैं --उनको मानते है | ज्योतिष और कर्मकाण्ड जगत महंगा होने के कारण लोग तन्त्र और यन्त्रों का सहारा लेते हैं | हमने ज्योतिष और कर्मकाण्ड को व्यवसाय नहीं बनाया --बल्कि --जो पण्डित ,शास्त्री को करना चाहिए वही किया | हमने रतनों को नहीं बेचा -जबकि पूर्ण जानकारी है | हमने वही यज्ञ किये जिनको मेरा करने का अधिकार था | --हमने अपने जीवन में कोई याचना लोगों से नहीं की सिर्फ भगवान से की --यह विस्वास है परमात्मा की कृपा होगी तभी कोई कुछ दे सकता है | मुझे धर्म का पालन करने में कई यजमानों से लड़ाई हुई --पर नतमस्तक सिर्फ भगवान के समीप ही हुए | आज भी मन्दिर में रहता हूँ पर आजतक सेवकाई नहीं ली है --23 वर्ष हो चुके हैं | सभी प्रकार की पूजा को जनता हूँ पर केवल मैं यज्ञों को ही कराता हूँ --ताकि जो कम पढ़े लिखे हैं उनको भी रोजगार मिले | ज्योतिष सेवा महंगी है --जो कम खर्च करने वाले हैं वो वहां जाये जो कम पढ़े लिखे हैं ताकि सभी को रोजगार मिले | हमने शिक्षा दान करने की बहुत कोशिश की पर सुपात्र शिष्य नहीं मिले | मुझे लगता है --सबको जीने का हक़ है अतः कर्मक्षेत्र का अर्थ है कर्तव्यपथ और इसका पूर्ण रूपेण पालन हर व्यक्ति को करना चाहिए --आपके भाग्य में कुछ है तो अभी मिलेगा --नहीं है तो कर्म के द्वारा आगे मिलेगा | -----अब मैं जीवनी की ज्वलंत घटनाओं को दर्शाऊँगा जो ग्रहों के खेल भी हैं ,व्यक्ति का अनुभव भी है | ---ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

छलनी से क्यों देखते हैं करवा चौथ का चांद-पढ़कर अनुभव करें -ज्योतिषी झा मेरठ


 छलनी से क्यों देखते हैं करवा चौथ का चांद-पढ़कर अनुभव करें -ज्योतिषी झा मेरठ

 



कार्तिक मास में जब कृष्ण पक्ष आता है उसकी चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है। यह व्रत सुख, सौभाग्य, दांपत्य जीवन में प्रेम बरकरार रखने के लिए होता है। इसके साथ ही परिवार में रोग, शोक और संकट को दूर करने के लिए भी होता है। सुबह से रखा जाने वाला व्रत शाम को चांद देखने के बाद ही खोला जाता है। चांद देखने की भी एक खास परंपरा है, इसे छलनी में से ही देखा जाता है। ऐसा क्यों है. आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी..।--भाइयों ने किया था बहन से छल करवा चौथ व्रत कथा के मुताबिक प्राचीन काल में एक बहन को भाइयों ने स्नेहवश भोजन कराने के लिए छल से चांद की बजाय छलनी की ओट में दीपक जला दिया और भोजन कराकर व्रत भंग करा दिया। इसके बाद उसने पूरे साल चतुर्थी का व्रत किया और जब दोबारा करवा चौथ आया तो उसने विधि पूर्वक व्रत किया और उसे सौभाग्य की प्राप्ति हो गई। उस करवा चौथ पर उसने हाथ में छलनी लेकर चांद के दीदार किए थे।--यह भी है एक कहानीइस दिन चांद को छलनी के जरिए देखने की यह कथा भी प्रचलित है। इसका यह महत्व है कि कोई भी छल से उनका व्रत भंग न कर सके, इसलिए छलनी के जरिए बहुत बारीकी से चंद्रमा को देखने के बाद ही व्रत खोलने की परंपरा विकसित हो गई। इस दिन व्रत करने के लिए इस व्रत की कथा सुनने का भी विशेष महत्व है।---सांस का आशीर्वाद लेकर देती हैं गिफ्ट करवा चौथ के व्रत वाले दिन एक चौकी पर जल का लौटा, करवे में गेहूं और उसके ढक्कन में शक्कर और रुपए रखे जाते हैं। पूजन में रोली, चावल, और गुड़ भी रखा जाता है। फिर लौटे और करवे पर स्वस्तिक का निशान बनाया जाता है। दोनों को 13 बिंदियों से सजाया जाता है। गेहूं के तेरह दाने हाथ में लिए जाते हैं और कथा सुनी जाती है। बाद में सासू मां के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेकर उन्हें भेंट दी जाती है। चंद्रमा के दर्शन होने के बाद उसी चावल को गुड़ के साथ चढ़ाना होता है। सभी रस्मों को पूरी शिद्दत के साथ करने के बाद ही भोजन ग्रहण करने की परंपरा है।---1. यह व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं।--2. यह व्रत 12 से 16 साल तक लगातार हर साल करने की परंपरा है।--3. सुहागिन महिलाएं व्रत से एक दिन पहले सिर धोकर स्नान करने के बाद हाथों में मेहंदी और पैरों में माहुर लगाती हैं।---4. चतुर्थी को सुबह चार बजे महिलाएं सूर्योदय से पूर्व भोजन करती हैं। इसमें दूध, फल और मिठाइयां आदि व्यंजन शामिल किए जाते हैं। सूर्योदय के पहले किया गया यह भोजन सरगही या सरगी कहलाता है।--5. व्रत करने के बाद रात को 16 श्रंगार कर चंद्रोदय पर छलनी से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पति का चेहरा देखने की रस्म होती है। इसके बाद पति अपनी पत्नी को जल पिलाकर व्रत खुलवाता है।------ ॐ आपका - ज्योतिषी झा मेरठ, झंझारपुर और मुम्बई----ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut



राहु ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ



 राहु ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ

-ज्योतिष जगत में राहु ग्रह को दानव जगत में मन्त्री का पद दिया गया है | ज्योतिष जगत में राहु ग्रह का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनिवार, 28 अक्टूबर 2023

जीवनी में व्यक्तिगत सत्संग पर परिचर्चा करना चाहता हूँ -पढ़ें- भाग-59-ज्योतिषी झा मेरठ



"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -59-ज्योतिषी झा मेरठ

आज अपनी जीवनी में व्यक्तिगत सत्संग पर परिचर्चा करना चाहता हूँ | --मेरा जन्म मांसाहार परिवार में हुआ किन्तु -11 वर्ष की आयु में संध्यावंदन,गायत्री एवं वेदपाठ का सत्संग मिला अतः मैं पूर्ण रूप से शाकाहार 11 वर्ष में ही बना ,जबकि मेरे घर ,समाज में सभी प्रायः मांसाहार ही थे | मेरी दूसरी शिक्षा लगमा आश्रम में हुई --जहाँ सभी वैष्णव थे --यहाँ मुझे दीक्षा तुलसी माला की लेनी पड़ी --मैं नहीं ऐसी दीक्षा लेनी चाह रहा था --जिसको ठीक से निभा न सकूं --क्योंकि ऐसा मेरा समाज या परिवार या फिर परिजन थे --पर दीक्षा लेनी पड़ी | तीसरी शिक्षा - जब हम 18 वर्ष के हुए तो मेरठ में मिली --यहां सभी मिले जुले हुए थे --पर हमने अपने धर्म को सदा निभाते रहे | चौथी शिक्षा मुम्बई में मिली -जब हम -21 वर्ष के हुए --यहाँ सभी मिले जुले थे --प्रत्येक शनिवार प्याज और आलू की सब्जी बनती थी --अतः हम व्रत ही करने लगे पर धर्म निभाते रहे | मेरा विवाह भी मांसाहार परिवार में हुआ --विवाह होते ही पतनी भी वैष्णव हो गयी | मेरे जीवन में हर कदम पर दिक्कत बहुत रही --चाहे माता पिता या परिजनों के साथ रहना हो --हमारा मेल नहीं रहा | हमारे बहुत से यजमान रहे --जो धूम्रपान ,मद्यपान करते रहे -किन्तु हमने कभी भी सेवन नहीं किया | जब हम -29 वर्ष के हुए -तो नियमित निवास मेरठ ही रहा --यहाँ आज भी सत्संग वैसा ही है जैसा तब था --मध्यपान ,धूम्रपान ,गुटखा ,तम्बाकू इत्यादि -इत्यादि --पर आजतक इन तमाम चीजों को मेरे दिल में जगह नहीं मिली | मेरे कई यजमान यह कहते रहे एकबार सेवन करके देखो --हमने कहा --समाज हमसे ही अनुकरण करता है | ब्राहण ,आचार्य ,गुरु ये शब्द गरिमामयी है --'यथा राजा तथा प्रजा "---उपदेश देना सरल होता है निभाना कठिन किन्तु -समाज हमारा अनुकरण करता ,समाज धर्मशास्त्रों का अनुकरण और अनुशरण करता है | आज समाज में भेद -भाव का कारण --माता पिता ,गुरुजन ,आचार्य भी हैं | कईबार धर्म के साथ कई प्रश्न स्वतः ही उठते हैं --जिनके कारण हमही लोग होते हैं --एक आचार्य ,शास्त्री ,गुरुजनों ,संत ,महात्माओं ,माता पिता --को क्या और कैसा एवं कहाँ क्या -क्या करने चाहिए -गलत सेवन छुपके से करके अपने आपको धोखा दे सकते हैं --इससे ही भेद- भाव शुरू होते हैं | कईबार हमारे साथ -भोजन कहाँ करना चाहिए ,यज्ञ कहाँ कराने चाहिए ,वेदों के मन्त्रों को कहाँ बोलना चाहिए --इन तमान चीजों से अगर एक आचार्य भटकता है --तो धन तो आ सकता है --धर्म नहीं हो सकता है --धर्म उसे कहते हैं जिसे आत्मसात किया जाय | ---आज हमारे जीवन पद्धति में --बहुत सारी किताबें वो हैं जो हमने लिखीं हैं -जब हम ही ठीक नहीं हैं तो किताबें कहाँ से ठीक होंगीं | आज हम बातें धर्मशास्त्रों की करते हैं किन्तु उन नियमों का हम खुद ही पालन नहीं करते हैं | --मुझे अपने जीवन में कई बातों का संधर्ष करना पड़ा --पर हमने धर्म को धारण किया तो धर्म ने सदा अपनी गोद में उठाये रखा है | धन कितना चाहिए --जीने योग्य --इसके लिए अधर्म क्यों ? इस संसार में पूर्ण केवल परमात्मा है --तमाम वस्तु क्षणिक सुख दे सकती है ,फिर दुःख शुरू हो जाता है | ---अब मैं जीवनी की ज्वलंत घटनाओं को दर्शाऊँगा जो ग्रहों के खेल भी हैं ,व्यक्ति का अनुभव भी है | ---ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शनि ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें ?-ज्योतिषी झा मेरठ



 शनि ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें ?-ज्योतिषी झा मेरठ

ज्योतिष जगत में शनि ग्रह को दानव जगत का सम्राट का पद दिया गया है | ज्योतिष शनि ग्रह का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2023

भारत में दृश्य खण्डग्रास चंद्रग्रहण -28 /10 /23 -पढ़ें - ज्योतिषी झा मेरठ


दिनांक 28 /10 /2023 आश्विन शुक्लपक्ष पूर्णिमा शनिवार को मध्य रात्रि उपरान्त 01 /05 से 02 /45 मध्य रात्रि उपरान्त तक खण्डग्रास चंद्रग्रहण  होगा | ग्रहण में चन्द्रमा की दक्षिण कोर  मामूली रूप से ग्रसित होगी | इस चंद्रग्रहण को भारत के साथ -साथ श्रीलंका ,नेपाल ,पाकिस्तान ,बांग्लादेश ,भूटान ,अफगानिस्तान ,चीन ,मंगोलिया ,कजाकिस्तान ,रूस ,ईराक ,इरान ,साउदीअरब ,सूडान ,तुर्की ,नाईजीरिया ,अलजीरिया ,दक्षिण अफ्रीका ,जर्मन ,पोलैंड ,यूक्रेन ,फांस ,इटली ,स्पेन ,ब्रिटेन ,नार्वे ,स्वीडन --समेत पूरा यूरोप ,थाईलैंड ,मलेशिया ,फिलीपींस ,इंडोनेशिया ,ऑस्ट्रेलिया ,जापान ,कोरिया तथा ब्राजील का पूर्व भाग आदि से देखा जा सकेगा | 

---सूतक की बात करें तो --खंडग्रास चंद्रग्रहण  के सूतक दोष की शुरुआत 28 /10 /2023 को शाम 4 /05 पर होगी | सूतकों  में भोजन बनाना और ग्रहण करना निषेध माना गया है | इसमें आसक्त ,रोगग्रस्त ,असमर्थजनों को प्रतिबंधित नहीं किया गया है | --28 /10 /2023 को सभी देव स्थानों के पट सायंकालीन दर्शन के लिए बन्द रहेंगें | 

---उदर में जिन महिलाओं के शिशु पल रहे हों --उन्हें चाकू आदि से फल +सब्जी नहीं काटने चाहिए  | कैंची से वस्त्र आदि नहीं काटने चाहिए | ग्रहणकाल में ईस्वर की आराधना में समय व्यतीत करना चाहिए | प्राकृत के विरुद्ध आचरण का दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है | निवृत्ति के लिए सत्याचरण गेरुलेप से युक साड़ी का पल्ला सर पर ओढ़ना चाहिए | दान देना ,यज्ञादि कर्म करना अभीष्ट है | 

--विशेष -- समय हवन करना उत्तम होता है | ग्रहण के उपरान्त दान से लाभ मिलता है | 

ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut







शुक्र ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ



 शुक्र ग्रह का स्वभाव ,प्रभाव और निदान सुनें -ज्योतिषी झा मेरठ

-ज्योतिष जगत में शुक्र ग्रह को दानव गुरु का पद दिया गया है | ज्योतिष शुक्र ग्रह का स्वभाव कैसा होता है | प्रभाव कहाँ -कहाँ पड़ता है और उपचार क्या -क्या करना चाहिए ---सुनें --ज्योतिषी झा मेरठ,झंझारपुर और मुम्बई से | ----दोस्तों आप भी अपनी -अपनी राशि के स्वभाव और प्रभाव को पढ़ना चाहते हैं या आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं कि नहीं परखना चाहते हैं तो इस पेज पर पधारकर पखकर देखें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023

हमारे शिशु स्वस्थ क्यों नहीं रहते -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ




"हमारे शिशु स्वस्थ क्यों नहीं रहते -पढ़ें -ज्योतिषी झा मेरठ

----बहुत मैले बिछौने पर अकेली जगह में छोटे बच्चे को सुला देने से "पूतना "ना

म राक्षसी का उसमें प्रवेश होने से बच्चा बीमार हो जाता है ।तब "पूतना "की बलि निकालने से स्वस्थ होता है बच्चा । -----जब कभी बच्चा बैठे -बैठे गिर पड़े ,या यूँ मालूम हो कि-किसी के पीटने से गिरा है और मूर्छा आ गई है अथवा एकाएक कोई रोग हो गया है तब जानो ,कि उसे "महापूतना "ने ग्रसा है । ----यदि कोई लाभादि के वश में आकर "वनदेवता "या "नागदेवता "का अपमान कर दे तो उसके बालक में "ऊर्ध्वपूतना"प्रवेश कर लेती है । -----यदि कोई मनुष्य अपनी ऋतूस्नाता स्त्री का गमन करने के बाद स्नान न करे या बिना ऋतु के संगम करके हाथ मूंह न धोवे और माता अपवित्र अवस्था में ही बालक के साथ सो जावे तो "बालक्रांता"नाम की राक्षसी का दोष होगा । ----बच्चे को इतर फुलेल और फूलमाला पहिनाकर बाहिर जाने से "रेवती ग्रही "का दोष होता है । -----सिर खुले ,जूठे बाल को संध्या के समय सोने से भी रेवती का प्रवेश हो जाता है बालक में । ----संध्या के समय जमीन पर सोने से अथवा खेलने से बालक को "पुष्य रेवती "का दोष होता है । -----कदाचित बालक खेलता -खेलता गिर जाये अथवा उसे उल्टी हो या हाथ -पांव नहीं धुले हों तब उसे "शुष्क रेवती "का आवेश होता है । -----जूठा खाने और देवता के स्थान पर मल -मूत्र करने से "शकुनि ग्रही "बालक को पकड़ लेती है ।
------भाव ----जो नित्यकर्म संध्या -वंदनादि नहीं करते या जो लोग पक्षियों को पालते हैं ,जन्मान्तर में उनके बालकों पर "शिशुमुडिका"राक्षसी का दोष हो जाता है । फिर उसका पूजन और बलि धूपादि दान करने से शांति होती है । ----नोट हम अपने आचरण और नियम का पालन करें तो हमारे बालक स्वस्थ रहेंगें ।---प्रेषकः -ज्योतिष सेवा सदन {मेरठ -भारत } परामर्श हेतु सूत्र -09897701636 +09358885616--- आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut 

इतनी खामिया हैं सनातनी व्यवहार में तो हम धनिक कैसे हुए -पढ़ें -- भाग -58-ज्योतिषी झा मेरठ


 


"मेरा" कल आज और कल -पढ़ें ?--- भाग -58-ज्योतिषी झा मेरठ

'आज अपनी जीवनी में उन प्रश्नों के जबाब देना चाह रहा हूँ --जब इतनी खामिया हैं सनातनी व्यवहार में तो हम धनिक कैसे हुए "--अस्तु --जीवन में धन श्रम +बुद्धि के सहयोग से ही एकत्रित किया जा सकता है | आज के युग में धन कमाना बड़ी बात नहीं है अपितु धन दीर्घकाल तक लाभ दे इसके लिए सद्बुद्धि +संयम की आवश्यकता होती है | इतना होने के बाद भी निरोगी रहें तभी दीर्घकाल तक धन का लाभ लिया जा सकता है | और सबसे बड़ी बात होती है --धनातधर्मः ततः सुखं -धन से धर्म के कार्य होते रहे तभी सुख संभव है | आज के समय में बुद्धि सबके पास है ,सोते -जागते सभी धन कैसे प्राप्त हो बखूबी लगाते हैं --धन प्राप्त भी करते हैं किन्तु --यह बुद्धि हर जगह काम नहीं करती है --जैसे -प्रेम बुद्धि से नहीं दिल से संभव है | दया बुद्धि से नहीं दिल से संभव है| क्षमा बुद्धि से नहीं दिल से संभव है | भगवान और मोक्ष की प्राप्ति बुद्धि से नहीं दिल से संभव है | आज के समय भाई -भाई की शत्रुता ,गुरु शिष्य का सम्बन्ध ,माता पिता से सम्बन्ध ,दाम्पत्य जीवन , यज्ञ इन तमाम चीजों में दिल नहीं दिमाग लगाते हैं --इसलिए धन तो है प्रेम नहीं है ,शिक्षा तो है गुरु शिष्य के सम्बन्ध उत्तम नहीं हैं ,पतनी या पति तो हैं एकता नहीं है ,पिता पुत्र तो हैं --सम्बन्ध नहीं है ,पूजा में धन तो लगाते हैं या करते हैं -पर श्रद्धा और विस्वास नहीं हैं --इसलिए लाभ नहीं मिलता है | एक उदहारण देना चाहता हूँ --घी +शहद अमृत हैं पर एक मात्रा में होने पर विष बन जाते हैं | अतः तार्किक बुद्धि से धन तो आ सकता है --धर्म नहीं हो सकता है --यही आज के समय में सबसे बड़ा दुःख है | अगर दिल से -माता पिता ,पतनी +पति ,पुत्र +पुत्री ,परिजनों ,गुरुजनों ,धर्मशास्त्रों पर भरोसा करें तभी वास्तविक सुख संभव हैं | मैं पढ़ा लिखा शास्त्री हूँ ----मेरे तमाम परिजन मेरी अपेक्षा अनपढ़ हैं --इन्हें हम तार्कित बुद्धि से नहीं अपना सकते हैं --इन्हें केवल दिल से ही जीत सकते हैं --इसलिए मैं माता पिता को सामने मैं भले ही शत्रु दिखता हूँ --पर परोक्ष में मुझ पर गर्व होता है | मैं अपनी दीदी +जीजा का परमशत्रु हूँ किन्तु -परोक्ष में मेरा उपहास नहीं करते हैं बल्कि तारीफ करते हैं | मेरा अनुज जब मेरी पतनी को अपशब्द कहता है --तो मैं दिल का प्रयोग करता हूँ और कहता हूँ ये चप्पल उठाओ मुझे पीटो इससे तुम्हें शान्ति मिलती हो तो --बदले में मैं अपशब्दों का प्रयोग नहीं करता हूँ | मामा =मामी से भले ही अनवन हो किन्तु परोक्ष में वर्णन करते हैं ---------ये सभी इसलिए तारीफ करते हैं क्योंकि हमारा प्रयास रहता है -रिश्ते -नाते दिल की चीजें हैं न कि तार्किक --वही बात कहने का सदा प्रयास करते हैं --जिससे हमें भी लाभ मिले परिजनों को भी मिले --परन्तु एक हाथ से ताली नहीं बजती है --सभी मेरे जैसे हो जायेंगें तो उनका जीवन नहीं चलेगा --अतः भरपूर शत्रुता है उनकी नजर में पर मेरी नजर में कोई किसी का शत्रु नहीं है --ये सब ग्रहों के खेल हैं ,हर व्यक्ति अपनी प्रारब्ध को भोगता है --वो सही राह चलकर भोगे या विपरीत राहों पर चलकर | मेरे यजमान भी मुझसे शत्रुता रखते हैं --शब्दों की वजह से ,व्यवहार की वजह से पर जब ज्ञान की बात आती है ,कर्म की बात आती है ,धर्म की बात आती है तो नतमस्तक भी वही होते हैं --क्योंकि मुझे वही कहनी चाहिए जो शास्त्र सम्मत होते हैं ,मुझे वही परामर्श देने चाहिए --जिससे यजमान का हित हो --ऐसी बातें अच्छी लगे या न लगे ---इसलिए हमने अनेकों यजमान खो दिए --पर जब सत्य समझ में आती है --तब उन्हें हमही अच्छे लगते हैं | --मैं धनिक कैसे हुआ --पर परिचर्चा आगे करूँगा ---अब मैं जीवनी की ज्वलंत घटनाओं को दर्शाऊँगा जो ग्रहों के खेल भी हैं ,व्यक्ति का अनुभव भी है | ---ॐ आपका - -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ---ज्योतिष और कर्मकांड की अनन्त बातों को पढ़ने हेतु या सुनने के लिए प्रस्तुत लिंक पर पधारें -https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ

मेरी कुण्डली का दशवां घर आत्मकथा पढ़ें -भाग -124 - ज्योतिषी झा मेरठ

जन्मकुण्डली का दशवां घर व्यक्ति के कर्मक्षेत्र और पिता दोनों पर प्रकाश डालता है | --मेरी कुण्डली का दशवां घर उत्तम है | इस घर की राशि वृष है...