कल आज और कल -पढ़ें - भाग -61-ज्योतिषी झा मेरठ
2018-मेरी जीवनी की जितनी बातें थीं वो मैं लिख चूका था ,लिखते समय आत्महत्या की सोच थी ,मन में बहुत आक्रोश था | 2018 की शुरुआत में धेवता की अत्यन्त ख़ुशी थी ,इस खुशी में सबसे उत्तम दर्जे का हारमोनियम साज खरीदा --सब कुछ था ,धन था ,साम्राज्य था पर शनि की मेरी दशा चल रही थी --पिता की मंगल की दशा पूर्ण यौवन में थी -न पिता झुकते न मैं झुकता ,उनकी अनपढ़ता की शान थी ,मुझे शिक्षा का अभिमान था | यद्यपि पिता मेरे धर्मध्वज थे मैं उनका सारथी था ,पिता की राह में ,माँ ,बहिन ,भाई ,जीजा ,मामा -मामी --रोड़े अटकाने वाले थे --इसलिए चाहकर भी धर्मरथ पर आरूढ़ न हो सके | मेरे पीछे भार्या थी -वो न होती तो मेरी जो आज शान है ,अभिमान है --वो सब खाक हो जाते --क्योंकि सभी परिजन लूटेरे थे ,हमें कूटनीति नहीं आती --यह कला केवल मेरी भार्या में थी --इसलिए सबकुछ खोने के बाद भी मै जीत चूका था | -धन मेरा आनन्द परिजन लेते रहे ,मेहनत मेरी लाभ परिजनों को मिलता रहा ,शिक्षाविद मैं पर बुद्धू सबके लिए मैं था ,इन तमाम बातों को भरसक बताने की कोशिश की भार्या ने पर मेरे मस्तिष्क में ये सब अधर्म समझ में आते थे | परिजनों को कुछ कहने से अच्छा मुझे मरना समझ में आया --पर होनी को किसने रोकी है | इतनी विषम परिस्थिति होने के बाद भी अपने पिता को एक और उपहार देना चाह रहा था | अपनी छोटी पुत्री का विवाह पिता के सान्निध्य में हो ,कन्यादान माता पिता ही करें --किन्तु कहते हैं विधि का विधान कौन टाल सकता है --जहाँ मैं मरना चाह रहा था --वहां मेरे पिता मुझको छोड़कर चले गए -03 /04 /2018 को | मेरे जितने सपने थे वो तो पिता से जुड़े हुए थे जब वो न रहे --तब मेरे तमाम सपने किस काम के ,फिर कभी हारमोनियम को नहीं बजाया | फिर कभी मरने की नहीं सोची | जब पिता थे तो अनन्त शिकायत थी ,जब पिता थे मैं छोटा था ,जब पिता थे तो अनन्त अपराध क्षमा थे --पर जब पिता नहीं होते तो पुत्र के अनन्त कर्तव्य और बढ़ जाते हैं | पिता के बिना व्यक्ति अधूरा हो जाता है --क्योंकि जीवन पथ के पाठों को पिता ही तो पढ़ाते हैं ,समझाते हैं और बार -बार निखारने की कोशिश करते हैं | इन तमाम बातों को सोचते हुए -अपनी दोनों पुत्रियों को उस घर में देना चाहता था जहाँ पिता की छत्रछाया हो ,पिता सभी प्रकार से मजबूत हों --तभी समस्त संस्कृति और संस्कार मजबूत होंगें | ऐसा घर और ऐसा ही वर मिलें | आज पिता की पांचवीं वर्षी है -आज पिता मेरे सान्निध्य में नहीं हैं किन्तु ब्रम्हभोज ,एकोदिष्ट श्राद्ध ,सब प्रत्येक वर्ष होते रहते हैं --ऐसे समय में मैं भी किसी का पिता हूँ --तो चाहकर भी अपने पिता की याद को भूल नहीं पाता हूँ | जब यह सोचता था पिता के जीते जी मैं मरना चाहता था --तो मुझे अहसास हो रहा है पिता कैसे भी हों पिता के सामने पुत्र आत्महत्या करे- यह मैं कितना बड़ा अपराध करता --मैं जीते जी अपने पिता को मार देता | इसके बाद जो जीवनी लिखनी शुरू की उससे मुझे बहुत कुछ अनुभव हुआ -जीवन का पूर्व भाग क्रोध ,आक्रोश ,दर्द से भरा हुआ था पर उत्तर भाग ज्ञान और उपदेश पर आधारित है --जिसको पढ़ने से सबको लाभ मिलेगा | आगे की परिचर्चा आगे के भाग में करेंगें --भवदीय -खगोलशास्त्री ज्योतिषी झा मेरठ --आपकी राशि पर लिखी हुई बातें मिलतीं हैं पखकर देखें https://www.facebook.com/Astrologerjhameerut

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